प्रायोजना विधि से आप क्या समझते हैं? सामाजिक विज्ञान में से उपयुक्त उदाहरण द्वारा इस विधि के चरणों को स्पष्ट कीजिए।
प्रायोजना विधि से आप क्या समझते हैं? सामाजिक विज्ञान में से उपयुक्त उदाहरण द्वारा इस विधि के चरणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर— “प्रायोजना विधि – योकम व सिम्पसन के अनुसार, प्रोजेक्ट स्वाभाविक वातावरण में किये जाने वाले स्वाभाविक एवं जीवन -तुल्य कार्य की एक बड़ी इकाई होती है। इसमें किसी कार्य को करने या किसी वस्तु को बनाने की समस्या का पूर्ण रूप से समाधान करने का प्रयास किया जाता है। प्रोजेक्ट उदेश्यपूर्ण होता है। हम प्रोजेक्ट या प्रायोजना के अर्थ को अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ लेखकों की परिभाषाएँ नीचे दे रहे हैं—
किलपैट्रिक के अनुसार, ” प्रोजेक्ट सामाजिक वातावरण में पूर्ण संलग्नता से किया जाने वाला उद्देश्यपूर्ण कार्य है।”
स्टीवेन्सन के अनुसार, “प्रोजेक्ट एक समस्यात्मक कार्य है, जिसका समाधान उसके प्रकृत वातावरण में रहते हुए ही किया जाता है।”
पार्कर के मतानुसार, ” प्रोजेक्ट कार्य की एक इकाई है, जिसमें छात्रों को कार्य की योजना और सम्पन्नता के लिए उत्तरदायी बनाया जाता है।”
बैलार्ड के कथनानुसार, “प्रोजेक्ट वास्तविक जीवन का एक छोटा-सा अंश होता है जिसे विद्यालय में सम्पादित किया जाता है।”
योजना विधि का अर्थ– योजना विधि के अर्थ को स्पष्ट मरसेल ने लिखा है,” शिक्षण की निगमुन या आगमन विधि के समान योजना – विधि के सार रूप में न तो कभी शिक्षण की पद्धति थी और न है। इसकी मूल धारणा यह है कि सीखने वाले का सक्रिय उद्देश्य अति महत्वपूर्ण होता है। सीखने वाले को स्वयं कार्य करना चाहिए, अन्यथा वह अच्छी प्रकार से नहीं सीख सकेगा।”
सामाजिक अध्ययन में योजनाओं के उदाहरण– सामाजिक अध्ययन में विभिन्न योजनाओं का प्रयोग सम्भव है। सामाजिक अध्ययन मानवीय सम्बन्धों का अध्ययन करने वाला विषय है। इन सम्बन्धों के आन्तरिक स्वरूप को समझने के लिए योजनाएँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि योजनाओं की पूर्ति सामाजिक वातावरण में ही सम्भव है। सामाजिक अध्ययन में निम्नलिखित योजनाओं को प्रयोग में लाया जा सकता है—
(1) ग्राम पंचायत का चुनाव, संगठन एवं कार्य प्रणाली ।
(2) विद्यालय में विभिन्न चुनाव ।
(3) विद्यालय में विभिन्न परिषदों, गोष्ठियों तथा समुदायों का संगठन एवं उनकी कार्यप्रणाली ।
(4) ग्राम, नगर तथा विद्यालय की सफाई
(5) हमारे उत्सव ।
(6) विद्यालय की कृषि।
(7) सिंचाई के साधन ।
(8) सामुदायिक सर्वेक्षण ।
(9) विभिन्न ऐतिहासिक, औद्योगिक, भौगोलिक आदि स्थानों की यात्राएँ ।
(10) नाटकों का लेखन एवं उनका अभिनय।
( 11 ) विभिन्न वस्तुओं – सिक्कों, टिकटों, मुहरों, बर्तनों आदि का संग्रह ।
(12) स्क्रेप बुक्स का निर्माण ।
(13) मानचित्र, मॉडल, समय-रेखा, समय- ग्राफ, चित्र आदि निर्माण ।
(14) सहकारी बैंक, विद्यालय, पोस्ट ऑफिस, सहकारी दुकान आदि का संचालन ।
प्रायोजना विधि में शिक्षण के सोपान पंद- योजना विधि से शिक्षण करते समय निम्नलिखित पदों का अनुसरण करना पड़ता है—
(1) परिस्थिति उत्पन्न करना- योजना विधि में शिक्षक बालकों के ऊपर कोई कार्य थोपता नहीं है, वरन् वह बालकों से विचार विमर्श करके ऐसी परिस्थिति उत्पन्न करता है कि उनकी किसी विशेष कार्य में रुचि जागृत हो जाती है और उससे सम्बन्धित समस्या का समाधान करने के लिए तत्पर हो जाते हैं।
(2) योजना का चयन- समस्या के समाधान के लिए बालक विभिन्न प्रकार की योजनाएँ प्रस्तुत करते हैं। शिक्षक उन योजनाओं के गुण-दोषों का विवेचन करके उन्हें ऐसी योजना को चुनने में सहायता देता है, जो सर्वोत्तम तथा समस्त बालकों को मान्य तथा सर्वाधिक महत्त्व की होती हैं ।
(3) उद्देश्य निरूपण- इस पद पर योजना के विषय में यह निर्णय लिया जाता है कि उसकी प्रकृति एवं लक्ष्य क्या होने चाहिए। योजना के लक्ष्यों का निर्धारण शिक्षक के निर्देशों तथा सुझावों पर निर्भर होता है। परन्तु उसे इसके निर्धारण में छात्रों की रुचियों आवश्यकताओं तथा योग्यताओं को ध्यान में रखना चाहिए, क्योंकि उसका मुख्य उद्देश्य छात्रों की सहृदयपूर्ण रुचि को इन लक्ष्यों के लिए जागृत करना होता है।
(4) योजना का कार्यक्रम बनाना- योजना के लक्ष्यों का निर्धारण करने के बाद उनकी प्राप्ति के लिए उपयुक्त कार्यक्रम बनाया जाना चाहिए। इस स्तर पर लक्ष्यों की प्राप्ति के विभिन्न साधनों पर विचार-विमर्श किया जाता है, साथ ही उनका तुलनात्मक अध्ययन करके उपयुक्त कार्यक्रम का चयन किया जाता है।
(5) योजना को पूर्ण करना- कार्यक्रम को निश्चित करने के बाद उसे छात्रों द्वारा पूर्ण किया जाता है। छात्र कार्यक्रम में निर्धारित विभिन्न क्रियाओं को वैयक्तिक या सामूहिक दोनों ही रूप से करते हैं। शिक्षक उनकी क्रियाओं का निरीक्षण एवं पथ-प्रदर्शन करता है।
(6) योजना मूल्यांकन करना- इस पद पर विचार-विमर्श छात्र अपने कार्य के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त शिक्षक उनके कार्य की जाँच करके उनकी सफलता या असफलता का मूल्यांकन करता है। करतेता है कि योजना के लक्ष्यों की प्राप्ति हुई है करके यह या नहीं।
(7) योजना को लिखना- योजना का मूल्यांकन हो जाने के बाद छात्र अपनी योजना-पुस्तिकाओं में उसका पूर्ण विवरण लिखते हैं। शिक्षक उनके विवरणों को पढ़कर उनके कार्य और प्रगति के सम्बन्ध में अपने विचार निश्चित करता है।
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