बिहार की नदियों का वर्णन करें।

बिहार की नदियों का वर्णन करें।

उत्तर-बिहार की नदियों को जलापूर्ति के आधार पर दो वर्गों में रखा जाता है ।

(i) गंगा के उत्तरी मैदान की नदियाँ – इनमें गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, लखनदेई, कमला, कोसी और महानंदा मुख्य है। इन नदियों की ढाल उत्तरी मैदान की ढाल के अनुसार है। ये सभी नदियाँ हिमालय पहाड़ से निकलती हैं। अतः इनमें वर्ष भर जल बहा करता है। ये बरसात में उफनने लगती है और आस-पास के क्षेत्रों में बाढ लाती है। ये नदियाँ अपना मार्ग भी बदलती रहती है। जिसके कारण अनेक झाड़न झीलों का निर्माण हुआ है। इस क्षेत्र में दलदल और चौर भूमि मिलती है। कोसी नदी अपने मार्ग-परिवर्तन और बाढ़ लाने के लिए बदनाम है। ये बिहार का शोक कहलाती थी। किंतु अब इसके दोनों किनारे पर बाँध बनाकर इसे नियंत्रित किया गया है। फिर भी 2008 में कुसहा बाँध तोड़कर इस नदी ने बड़ी तबाही मचायी है।

(ii) गंगा के दक्षिण मैदान की नदियाँ – इस क्षेत्र में मुख्यतः सोन, पनपन. फल्ग, चानन और चीर नदियाँ प्रवाहित हैं। ये सब नदियाँ दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवाहित होकर गंगा से मिलती हैं। इन नदियों में केवल वर्षा का जल ही प्रवाहित होता है। इसलिए ग्रीष्मकाल में ये नदियाँ सूख जाती है। बरसात में ये नदियाँ भी उमड पडती है और आस-पास के क्षेत्रों में बाढ़ लाती है। कई भाग जल से भर कर ताल क्षेत्र बन जाती है, जैसे मोकामा या बड़हिया का ताल। पटना से लखीसराय तक का क्षेत्र जल्ला कहलाता है।

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