बिहार के आर्थिक विकास की स्थिति की विवेचना कीजिए।

बिहार के आर्थिक विकास की स्थिति की विवेचना कीजिए।

उत्तर- देश का एक प्रमुख राज्य होने पर भी बिहार आर्थिक दूष्टि से अत्यंत पिछड़ा हुआ है।
वस्तुतः, आर्थिक विकास के प्रायः सभी मापदंडों पर यह देश के अन्य सभी राज्यों से नीचे है। किसी राज्य के विकास का स्तर अंततः उसके राज्य घरेलू उत्पाद पर निर्भर करता है। देश के विकसित राज्यों की तुलना में बिहार का शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद बहत कम है। प्रतिव्यक्ति आय विकास का एक अन्य महत्त्वपूर्ण संकेतक है जो लोगों के जीवन-स्तर को प्रभावित करता है। जनसंख्या की सघनता अधिक होने के कारण बिहारवासियों की प्रतिव्यक्ति आय भी बहुत कम है। 2005-2006 में जहाँ हरियाणा और महाराष्ट्र की प्रतिव्यक्ति आय क्रमशः 38,832 तथा 37,021 रुपये थी वहाँ बिहार की प्रतिव्यक्ति आय मात्र 7,875 रुपये थी। खनिज संपदा औद्योगिक विकास का आधार है। विभाजन-पूर्व खनिज पदर्थो की दूष्टि से बिहार देश का सबसे धनी राज्य था। परंतु, विभाजन के पश्चात बिहार के अधिकांश खनिज नवनिर्मित राज्य झारखंड में चले गए हैं। इसका बिहार के औद्योगिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। पूँजी आदि के अभाव में उत्तर बिहार के चीनी, जूट, कागज आदि अधिकांश कृषि-आधारित उद्योग रुग्ण अवस्था में हैं अथवा बंद हो गए हैं। परिणामतः, राज्य की अधिकांश जनसंख्या अपने जीविकोपार्जन के लिए कृषि पर निर्भर है। परंतु, बिहार की कृषि अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था में है तथा इसकी उत्पादकता देश के प्रायः अन्य सभी राज्यों से कम है। बिहार की आर्थिक और सामाजिक दोनों ही संरचनाएँ बहुत कमजोर एवं निम्न स्तर की हैं। राज्य में बिजली की बहुत कमी है तथा यह कृषि एवं उद्योग दोनों के विकास में बाधक सिद्ध होती है।

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