बिहार में डचों कंपनियों का आगमन
बिहार में डचों कंपनियों का आगमन
बिहार में यूरोपीय व्यापारी कंपनियों का आगमन 17वीं सदी में प्रारंभ हुआ। उस समय बिहार अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था। बिहार के क्षेत्र में सर्वप्रथम पुर्तगाली आए, जिन्होंने अपना व्यापारिक केंद्र हुगली में स्थापित किया था। वे हुगली से ही नाव के माध्यम से पटना आया करते थे। वे अपने साथ मसाले, चीनीमिट्टी के बरतन आदि लाते थे और वापसी में सूती वस्त्र एवं अन्य प्रकार के वस्त्र ले जाते थे।
17वीं शताब्दी के मध्य तक डचों ने बिहार के कई स्थानों पर शोरे का गोदाम स्थापित किया था। सर्वप्रथम डचों ने पटना कॉलेज की उत्तरी इमारत में 1632 ई. में डच फैक्टरी (Dutch Factory) की स्थापना की। इनकी अभिरुचि सूती वस्त्र, चीनी, शोरा, अफीम आदि से संबंधित व्यापार में थी। 1662 ई. में बंगाल में डच मामलों के प्रधान नथियास वैगडेंन बरूक ने मुगल सम्राट् औरंगजेब से व्यापार से संबंधित एक फरमान बंगाल, बिहार और उड़ीसा के लिए प्राप्त किया था। डच यात्री ट्रैवरनि 21 दिसंबर, 1665 को पटना पहुँचा। उसके बाद उसने छपरा से यात्रा की। छपरा में उस समय शोरे का शुद्धीकरण किया जाता था। शोरे पर अधिकार के लिए फ्रांसीसी, ईस्ट इंडिया कंपनी एवं डच कंपनियों के बीच हमेशा तनाव उत्पन्न होते रहते थे। 1848 ई. में विद्रोही अफगान सरदार शमशेर खान ने पटना पर आक्रमण किया तथा फतुहा स्थित डच फैक्टरी को लूटा। प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों की सफलता ने डचों की स्थिति को और दयनीय बना दिया। 1758 ई. में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने बिहार में शोरे के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया। नवंबर, 1759 में वेदरा के निर्णायक युद्ध में डच अंग्रेजों के हाथों पराजित हुए और उनका अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया। वे किसी तरह से अपने चिनकूसा कासिम बाजार एवं पटना के माल गोदाम को सुरक्षित रखने में सफल हो पाए।
1780-81 ई. के बीच यूरोप में ब्रिटेन एवं हॉलैंड के बीच युद्ध छिड़ जाने के कारण बिहार में भी दोनों कंपनियों के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए। 10 जुलाई, 1781 को पटना मिलिशिया के कमांडिंग ऑफिसर मेजर हार्डी ने पटना डच मालगोदाम को जब्त कर लिया। छपरा एवं सिंधिया की डच फैक्टरियों को भी अपने कब्जे में ले लिया गया। 5 अगस्त, 1781 को पैट्रिक हिट्ले ने डच फैक्टरी की कमान मैक्सवेल से ग्रहण की। 8 अक्तूबर, 1784 को डच कंपनी को गोदाम फिर से वापस दे दिया गया। पुनः 1795 ई. में फ्रैंको-डच युद्ध के कारण भारत में डच ठिकानों को अंग्रेजी सरकार के अधीन कर दिया गया, लेकिन 1817 ई. में डच माल गोदामों को पुनः वापस कर दिया गया। अंततः 1824-25 ई. में डच व्यापारिक केंद्रों को अंतिम रूप से अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी में सम्मिलित कर लिया गया।
- डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी 1632 में पटना में अपना कारखाना स्थापित किया जो अब पटना कलेक्ट्रेट के लिए जाना जाता है।
- डच ईस्ट इंडिया कंपनी के बारे में:
- मार्च 1602 में, डच संसद के एक चार्टर द्वारा, डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना युद्ध करने, संधियों को तय करने, क्षेत्रों का अधिग्रहण करने और किले बनाने की शक्तियों के साथ की गई थी।
- डचों का मुख्य उद्देश्य भारत और दक्षिण पूर्व एशिया से पुर्तगाली और ब्रिटिश व्यापारिक शक्तियों को खत्म करने में लगा रहा।
- भारत में, उन्होंने 1605 में मसूलीपट्टनम में पहला कारखाना स्थापित किया, उसके बाद 1610 में पुलिकट, 1616 में सूरत, बिमिलीपट्टम (1641), करिकल (1645), चिनसुरा (1653), कासिमबाजार, बारानागोर, पटना, बालासोर, नेगापट्टम और कोचीन में स्थापित किया।
- डच ईस्ट इंडिया कंपनी का चरमोत्कर्ष 1669 में था जब यह 150 व्यापारी जहाजों, 40 युद्धपोतों और 50 हजार कर्मचारियों और 10 हजार सैनिकों की सेना के साथ दुनिया की सबसे समृद्ध निजी कंपनी थी।
- भारत में, सबसे महत्वपूर्ण घटना 1741 में कोलाचेल की लड़ाई थी, जो डच ईस्ट इंडिया कंपनी और त्रावणकोर सेना के राज्य के बीच लड़ी गई थी।
- यह भारत में यूरोपीय शक्ति की एक बड़ी हार थी और डचों के अंत की शुरुआत थी।
- भ्रष्टाचार और दिवालियेपन के कारण, डच ईस्ट इंडिया कंपनी को औपचारिक रूप से 1800 में भंग कर दिया गया था।
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