भारत के शास्त्रीय नृत्य ‘कथक’ को समझाइए ।
भारत के शास्त्रीय नृत्य ‘कथक’ को समझाइए ।
उत्तर— कत्थक–भारत की कत्थक नृत्य शैली भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों में सबसे नवीन है। 15वीं सोलहवीं शताब्दी के बीच इसका प्रचलन हुआ, यह तथ्य मूर्तिकला के प्रमाण से तो नहीं मगर हिन्दी एवं ब्रज भाषा के साहित्य से और मिनिएचर पेन्टिंग के सशक्त प्रमाणों से अवश्य सिद्ध हो जाता है। यह नृत्य शैली मन्दिरों, राजदरबारों, गली कूचों में एक सी पनपी है। उत्तर भारतीय संगीत की शास्त्रीय व उपशास्त्रीय गायन शैलियों ख्याल, ठुमरी, दादरा के साथ कत्थक का अटूट सम्बन्ध है । इस शास्त्रीय नृत्य रास का समावेश सम्भवतः कृष्ण के समय में हो गया था और कालान्तर में उन्हीं की कथा इसमें प्रमुख हो गई है। अतः इसे ‘नटवरी नृत्य’ भी कहते हैं।
संगीत का प्रयोग—इसमें मधुर व उज्ज्वल संगीत का प्रयोग किया जाता है क्योंकि यह प्रभु कथा के लिए होती है। इसलिए इस संगीत की धुनों से अधिक भारी नहीं बनाया जाता है। कथक नृत्य के साथ दो प्रकार की संगत की जाती हैं। एक में केवल हारमोनियम या सारंगी पर धुन जिसे ‘नगमा’ कहते हैं। नर्तक कई तरह की लयकारी करते हुए नाचते रहते हैं दूसरे में गायिका या गायिका कोई गाना गाते हैं।
वेशभूषा–मुगलकाल में नृत्यकारों को विशेष रूप से राजाश्रय मिला और नृत्य में शृंगारिक हाव-भाव एवं मुद्राओं की बहुतायत हो गई। कथक में चूड़ीदार पायजामा और घेरदार बाबा दंदी या कुरता पहने जाते हैं। ऊपर से शेरवानी पहन लेते हैं, सिर से कामदारी जरी या साटन की दुपलिया या चुन्नटदार टोपी पहनते हैं, कभी केवल दुपट्टा ही लिया जाता है कुछ नर्तक कुरते के ऊपर खुले गले का जाकेट भी पहन लेते हैं और एक कन्धे से लेकर कमर तक तिरछा दुपट्टा बाँध लेते हैं।
कथक नृत्य के लिए स्त्रियों की पहली वेशभूषा साड़ी, ब्लाउज है। साड़ी उल्टे पल्ले की होती है। स्त्रियों की दूसरी पोशाक चूड़ीदार पायजामा और घेरदार कुरता है स्त्रियों का कुरता पुरुषों की तुलना में अधिक नीचे होता है। कुरते के ऊपर दुपट्टा होता है, तीसरी पोशाक में लहँगा अँगिया और चुनरी होती है।
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