भारत में साझा राजनीति के आविर्भाव के मुख्य कारण क्या हैं? इन साझों की संभावनाओं की विवेचना कीजिए।
भारत में साझा राजनीति के आविर्भाव के मुख्य कारण क्या हैं? इन साझों की संभावनाओं की विवेचना कीजिए।
अथवा
साझा राजनीति के कारण, यथा राष्ट्रीय पार्टियों की शक्ति में कमी एवं क्षेत्रीय पार्टियों की शक्ति में कमी का गठन आदि का वर्णन करते हुए इनकी संभावनाओं को बताएं |
उत्तर – स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व भारतीय जनमानस का एक सामान्य उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति था। इस राष्ट्रीय उद्देश्य हेतु भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने जनता का सबसे प्रभावशाली नेतृत्व किया। अतः कांग्रेस संपूर्ण भारत में प्रभाव रखने वाली सबसे शक्तिशाली पार्टी वन गई। आजादी के बाद भी कुछ वर्षों तक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों एवं इसके प्रभावशाली नेताओं के कारण कांग्रेस का प्रभाव बना रहा। सन् 1977 तक केन्द्र में कांग्रेस की सरकार बनती रही एवं अधिकतर राज्यों में भी इसकी सरकारें रहीं। बाद के वर्षों में विभिन्न क्षेत्रीय, सामाजिक एवं धार्मिक मुद्दे उभरे जिसके समाधान के लिए कांग्रेस प्रभावशाली नेतृत्व देने में असफल रही एवं कांग्रेस जैसी किसी राष्ट्रीय पार्टी का अभाव रहा जो इन मुद्दों के लिए नेतृत्व प्रदान कर सकती थी। फलस्वरूप विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों की स्थापना हुई जिन्होंने इन मुद्दों को उठाकर जनता के बीच लोकप्रियता हासिल की एवं केन्द्र में सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत हेतु बड़ी पार्टियों को इन पार्टियों का सहारा लेना पड़ा जिससे भारतीय राजनीति में मिली-जुली सरकार का प्रचलन हो गया।
1977 ई. में सर्वप्रथम साझा सरकार बनी । भारतीय राजनीति के इस महत्वपूर्ण घटना का सर्वप्रमुख कारण केन्द्र सरकार की तानाशाही पूर्ण नीतियों के विरुद्ध 1974 का जे. पी. आन्दोलन था। जे. पी. आंदोलन के कारण 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल घोषित किया एवं जे. पी. सहित प्रमुख नेताओं को जेल में डाल दिया। फलस्वरूप केन्द्र में सर्वप्रथम साझी सरकार बनने की संभावना बनी। यद्यपि यह साझी सरकार टिकाऊ न हो सकी परंतु भारतीय राजनीति के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण बिन्दु साबित हुई।
> भारत में साझा राजनीति की संभावना
भारत में साझा राजनीति की प्रवृत्ति का उद्भव एवं विकास स्वतः हुआ जो भारतीय लोकतंत्र के विकास एवं सशक्तिकरण का परिणाम है। भारत में साझा राजनीति के पहले केंद्र तथा राज्यों में कांग्रेस की सत्ता थी जिससे क्षेत्रीय एवं सामाजिक समस्याओं का निदान प्रभावकारी तरीके से नहीं हो पाया। फलतः क्षेत्रीय पार्टियों का उदय एवं सशक्तिकरण हुआ। अधिकतर राज्यों एवं केन्द्र की सरकार में एकाधिक पार्टियां शामिल हो गईं इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा। सर्वप्रथम इससे विभिन्न वर्गों अथवा समुदायों को सरकार में शामिल होने का मौका मिला जिससे इन पार्टियों ने अपने क्षेत्रीय समस्याओं को सुलझाने का प्रयास किया।
साझा सरकार में शामिल विभिन्न पार्टियां अलग-अलग विचारधाराओं, क्षेत्रों अथवा मुद्दों का प्रतिनिधित्व करती हैं परन्तु इनके एक सरकार में शामिल होने के बाद ये सरकार चलाने हेतु एक सर्वमान्य एजेंडे पर कार्य करते हैं जिससे विभिन्न क्षेत्रीय एवं अन्य मुद्दों का समाधान होता है तथा पार्टियां अपनी उग्र सैद्धांतिक रवैये को त्याग सरकार को सुचारू रूप से चलाने के लिए व्यावहारिक तरीकों को ज्यादा महत्व देती हैं। जैसे वामपंथी दल सैद्धांतिक तौर पर पूंजीवाद के खिलाफ हैं लेकिन UPA-1 की सरकार में शामिल होने पर उन्होंने अधिकतर व्यावहारिक रवैया ही अपनाया।
अतः क्षेत्रीय, जातीय, धार्मिक आधार पर विविधतापूर्ण हमारे देश में जहां बहुदलीय व्यवस्था को स्वीकार किया गया है, वहीं ‘साझा सरकार’ केन्द्रीय तथा राज्य स्तर की राजनीति का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया है। अनेक नकारात्मक बातों के साथ ही साझा- सरकार की अनेक संभावनाएं हैं जो हमारे लोकतंत्र के परिपक्व होने के साथ-साथ बढ़ती जा रही हैं। हमें गंभीरतापूर्वक इसके सकारात्मक बिन्दुओं को बढ़ाने की आवश्यकता है।
• साझा राजनीति के कारण –
> राष्ट्रीय पार्टी की शक्ति में कमी एवं विभिन्न क्षेत्रीय मुद्दों के कारण क्षेत्रीय पार्टियों की स्थापना एवं सशक्तिकरण
> 1977 में केन्द्र में प्रथम साझा सरकार बनी
> साझा राजनीति की संभावना
> साझा राजनीति भारतीय लोकतंत्र के विकास एवं सशक्तिक का परिणाम है।
> विभिन्न वर्ग एवं क्षेत्र के लोगों को सरकार में शामिल होने का मौका मिलता है जिससे भारतीय लोकतंत्र की मजबूती बढ़ती है।
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