मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक पुरातात्विक पर्यटन स्थल
मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक पुरातात्विक पर्यटन स्थल
मध्यप्रदेश के प्रमुख धार्मिक एवं पर्यटन स्थल
मध्यप्रदेश के पर्यटन स्थल
- क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य मध्यप्रदेश पर्यटन की दृष्टि से अपना विशिष्ट स्थान रखता है। मध्यप्रदेश में लगभग 450 पर्यटन केंद्र हैं जिन्हें निम्नानुसार चार श्रेणियों में बाँटा जा सकता है
1. ऐतिहासिक एवं पुरातत्वीय महत्व के स्थान
2. प्राकृतिक सौदर्य के स्थान
3. धार्मिक महत्व के स्थान
4. वन्य प्राणी पर्यटन स्थल
- खजुराहो , कान्हा, साँची-भोपाल, माण्डू-इंदौर, ग्वालियर, शिवपुरी, पचमढ़ी, बांधवगढ़, अमरकंटक, उज्जैन, ओंकारेश्वर, चित्रकूट आदि स्थल प्रमुख हैं
- मध्यप्रदेश के पर्यटन स्थलों का विकास करने की दृष्टि से वर्ष 1978 में म.प्र. राज्य पर्यटन विकास निगम का गठन किया गया।
- पर्यटन स्थल
- 1. पचमढ़ी
- 2.साँची
- 3. खजुराहो
- 4. माण्डू
- 5. उज्जैन
- 6. भेड़ाघाट (संगमरमर की चट्टाने)
- 7.चित्रकूट
- 8. अमरकंटक
- 9. ग्वालियर
- 10. शिवपुरी
- 11. ओंकारेश्वर तथा महेश्वर
- 12, भोपाल
- 13. बांधवगढ़
- 14. कान्हा
- 15.ओरछा
- 16. भोजपुर तथा भीमबेटका
- 17. विदिशा, उदयगिरी गुफाए, ग्यारसपुर तथा उदयपुर
पचमढ़ी
- सतपुड़ा पर्वत के पठार पर पचमढ़ी स्थित है ।
- पचमढ़ी का शाब्दिक अर्थ है पाँच कुटियाँ जो यहां विद्यमान पाँच गुफाओं की सूचक हैं।
- दंत कथा के अनुसार इनमें पाण्डवों ने वनवास काल का एक वर्ष बिताया था।
- प्राचीन वास्तुवेत्ता इन गुफाओं को बौद्धकालीन मानते हैं, जो संभवत: साँची और अजन्ता के बीच की संयोजन कड़ियों की प्रतीक हैं।
दर्शनीय स्थल
- प्रियदर्शिनी, हाडीखोह पचमढ़ी की सबसे प्रभावोत्पादक घाटी है। अप्सरा, विहार, रजत प्रपात, राजगिरि, लांजी गिरी, आईरीन सरोवर, जलावतरण (डचेस फॉल), जटाशंकर,महादेव छोटा महादेव, चौरागढ़, धूपगढ़, पांडव गुफाएं, गुफा समूह, धुंआधार, भ्रांत नीर (डोरोथी डिप), अस्तांचल, बीनवादक की गुफा (हार्पर केव) तथा सरदार गुफा प्रमुख दर्शनीय स्थल है
- निकटतम हवाई अड्डा भोपाल (195 कि.मी.)
- पिपरिया (47 कि.मी.) सबसे सुविधा जनक रेलवे स्टेशन है।
साँची
- भोपाल से 45 कि.मी. की दूरी पर स्थित है साँची।
- साँची को पूर्व में ‘काकणाय’, ‘काकणादबोट’, ‘बोट-श्री पर्वत’ नामों से जाना जाता था।
- यहाँ स्थित स्मारकों का निर्माण तृतीय शती ईसा पूर्व से बारहवी शती ईस्वी तक निरन्तर जारी रहा।
- साँची के पुराने स्मारकों के निर्माण का श्रेय मौर्य सम्राट अशोक (तत्कालीन राज्यपाल विदिशा) को है जिन्होंने अपनी विदिशा निवासी रानी की इच्छानुसार साँची की पहाड़ी पर स्तूप विहार एवं एकाश्म स्तम्भ का निर्माण कराया था।
- शुंग काल में साँची एवं उसके निकटवर्ती स्थानों पर अनेक स्मारकों का निर्माण हुआ था। इसी काल में अशोक के ईट निर्मित स्तूप को प्रस्तर खंडों से आच्छादित किया गया था।
- स्तूप 2 और 3 तथा मंदिर का निर्माण शुंगकाल में ही हुआ था। भारत सरकार के पुरा- सर्वेक्षण विभाग द्वारा साँची के निकटवर्ती स्थानों पर खुदाई में साँची सदृश अन्य स्तूप श्रृंखला का पता चला है।
दर्शनीय स्थल
- विशाल स्तूप क्रमांक 1:- 36.5 मीटर की परिधि तथा 16-4 मीटर की ऊंचाई वाला भव्य निर्माण प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला की अनुपम कृति हैं।
- स्तूप क्रमांक-2 की श्रेष्ठता उसके पाषाण-निर्मित घेरे में है।
- उर्द्धगोलाकार युक्त गुंबध वाले स्तूप क्रमांक-3 का धार्मिक महत्व है।
- महात्मा बुद्ध के दो प्रमुख शिष्यों सारिपुत्र तथा महामोगलायन के अवशेष यहीं मिले थे।बौद्ध विहार, अशोक स्तंभ तथा गुप्त कालीन संग्रहालय यहां के अन्य दर्शनीय स्थल है।
खजुराहो
- यहाँ के विश्वप्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण चन्देल राजाओं 950-1050 (यशोवर्मन तथा धंग) ईस्वी के मध्य करवाया था।
- इन मंदिरों की संख्या 85 थी लेकिन अब इनकी संख्या कम हो गई हैं।
- ये मंदिर मध्य युगीन भारत की शिल्प एवं वास्तुकला के सर्वोत्कृष्ट नमूने हैं। यहाँ दूर-दूर तक फैले मंदिरों की दीवारों पर देवताओं तथा मानव आकृतियों का अंकन बहुत भव्य है
- यह विश्व प्रसिद्ध है
दर्शनीय स्थल
- 1. पश्चिम समूह के मंदिर-कंदरिया महादेव, चौंसठ योगिनी, चित्रगुप्त मंदिर, लक्ष्मण मंदिर तथा मातंगेशवर मंदिर।
- 2. पूर्वी समूह-पार्श्वनाथ मंदिर घंटाई मंदिर, आदिनाथ मंदिर।
- 3. दक्षिण समूह-दूल्हादेव मंदिर तथा चतुर्भुज मंदिर। इसके अलावा-बेनी सागर बांध , स्नेह प्रपात भी देखने लायक है।
मांडू(मांडव)
- यहां निर्मित मंडपों, स्तंभ युक्त कक्षों गुंबदों के साथ मांडू बहुत मनोरम लगता है। मांडू को बाजबहादुर और रूपमति की प्रणय गाथा से भी जोड़ा जाता है । समुद्र से 2000 फुट की ऊंचाई पर विंध्य पर्वतमाला की गोद में स्थित इस सुरक्षित स्थल को मालवा के परमार राजाओं ने अपनी राजधानी बनाया था। यहां का प्रत्येक स्थापत्य भारतीय वास्तुकला का भव्य नमूना है।
दर्शनीय स्थल
- मांडू का परकोटा जिसमें 12 दरवाजे हैं जो रामपोल, तारापुर दरवाजा, जहांगीर दरवाजा, दिल्ली दरवाजा आदि नामों से जाने जाते हैं। यह निर्माण अपनी मजबूती के लिए प्रसिद्ध है।
- जहाज महल, हिंडोला महल, होशंगशाह का मकबरा, जामी मस्जिद अशर्फी महल, रेचा कुंड, रूपमती मंडप, नीलकंठ, नीलकंठ महल, हाथी महल तथा लोहानी गुफाएं आदि दर्शनीय है।
उज्जैन
- उज्जयिनी को भारत की सांस्कृतिक-काया का मणि-चक्र माना गया है। पुराणों में उज्जयिनी, अवन्तिका, अमरावती, प्रतिकल्पा, कुमुद्धती आदि नामों से इसकी महिमा गायी गई है।
- महाकवि कालीदास द्वारा वर्णित “श्री विशाला” एवं पुराणों में वर्णित “सार्वभौम” नगरी यही है। उज्जैन का सिंहस्थ पर्व प्रत्येक बारह वर्षों के अंतराल से कुभ पर्व रूपी दुर्लभ अवसर पर मनाया जाता है। श्रीकृष्ण सुदामा ने यही सांदीपनि आश्रम में शिक्षा प्राप्त की थी।
दर्शनीय स्थल
- यहां महाकाल मंदिर परिसर , मंगलनाथ, काल भैरव, विक्रान्त भैरव, हरसिद्धि, चौसठयोगिनी, गढ़कालिका, नगर कोट की रानी, गोपाल मंदिर, अनंत नारायण मंदिर, अंकपात, त्रिवेणी संगम पर नवग्रह मंदिर, चिन्तामण-गणेश, अवन्ति-पार्श्वनाथ मंदिर,ख्वाजा शकेब की मस्जिद, बोहरों का रोजा, जामा मस्जिद, वैश्या टेकरी का स्तूप-स्थल, कालियादह महल, ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर, पीर-मत्स्येन्द्र की समाधि, जयसिंहपुरा, दिगम्बर जैन संग्रहालय, वाकणकर स्मृति जिला पुरातत्व संग्रहालय, भारतीय कला भवन, दुर्गादास राठौर की छत्री आदि दर्शनीय स्थल हैं।
भेड़ाघाट
- भेड़ाघाट (जबलपुर) में संगमरमरी चट्टानों पर तेज प्रवाह से गिरता नर्मदा नदी का जल पर्यटकों को आकर्षित करता है। जबलपुर से 21 कि.मी. दूर संगमरमर की ऊँची दूधिया चट्टानों के बीच बहती हुई नर्मदा नदी अति सुंदर दृश्य उपस्थित करती है।
दर्शनीय स्थल
- भेड़ाघाट के समीप चौसठ योगिनी मंदिर तथा गौरीशंकर मंदिर दर्शनीय हैं।
चित्रकूट
- प्राचीन काल में तपस्या और शांति का स्थल चित्रकूट ब्रम्हा, विष्णु, महेश के बाल अवतार का स्थान माना जाता है। वनवास के समय भगवान राम, सीता व लक्ष्मण, महर्षि अत्रि तथा सती अनुसूया के अतिथि बनकर यहाँ रहे थे।
दर्शनीय स्थल
- रामघाट में मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित घाटों की कतारें हैं। कामदगिरि, जानकी कुण्ड, सती अनुसूया, स्फटिक शिला, गुप्त गोदावरी, हनुमान धारा, भरत कूप दर्शनीय हैं।
अमरकंटक
- भारत की प्रमुख सात नदियों में से अनुपम नर्मदा का उदगम स्थल अमरकण्टक प्रसिद्ध तीर्थ और नयनाभिराम पर्यटन स्थल है। मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले की पुष्पराजगढ़ तहसील के दक्षिण-पूर्वी भाग में मैकल पर्वतमालाओं में स्थित अमरकण्टक भारत के पवित्र स्थलों में गिना जाता है। नर्मदा और सोन नदियों का यह उद्गम स्थल आदिकाल से ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहा है। नर्मदा का उद्गम यहां एक कुंड से तथा सोनभद्रा का पर्वतशिखर से हुआ है।
दर्शनीय स्थल
अमरकण्टक के मन्दिर जिसकी संख्या 24 हैं। कपिलधारा जलप्रपात, सोन मुंग, माई की बगिया, कबीरा चौरा, भृगु कमण्डल और पुष्कर बांध देखने योग्य हैं। घाटी में बसे अमरकण्टक ग्राम में भव्य शिखरों वाले मंदिर और कई धर्मशालाएं हैं।
ग्वालियर
- ग्वालियर शहर सदियों तक अनेक राजवंशों का आश्रय स्थल रहा और प्रत्येक के राज्यकाल में इनमें नए आयाम जुड़े। यहां के योद्धाओं,राजाओं,कवियों,संगीतकारों और साधु-संतों ने अपने योगदान से इस नगर को अधिकाधिक समृद्धि और सम्पन्नता प्रदान की और यह नगर सारे देश में विख्यात हुआ।
- विशाल ग्वालियर दुर्ग का निर्माण सन् 525 ई. में राजा सूरजपाल ने कराया था। मध्यकाल के इतिहास में इस दुर्ग का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
दर्शनीय स्थल
- ग्वालियर दुर्ग , गुजरी महल राजा मानसिंह तोमर ने गुजर रानी मृगनयनी के प्रेम में बनवाया। मान मंदिर, सूरजकुंड, तेली का मंदिर, सास-बहू का मंदिर, जयविलास महल, रानी लक्ष्मीबाई की अश्वारोही मूर्ति, संग्रहालय, तानसेन की समाधी, गौस मोहम्मद का मकबरा, कला वीथिका, नगर पालिका संग्रहालय, चिड़ियाघर, गुरुद्वारा, सूर्य मंदिर आदि दर्शनीय है।
शिवपुरी
- ग्वालियर रियासत के सिंधिया राजाओं की ग्रीष्मकालीन राजधानी रह चुकी शिवपुरी आज भी अपने सुन्दर राजप्रासादों तथा संगमरमर से निर्मित अलंकृत छतरियों के द्वारा राजसी विरासत की याद दिलाती है।
दर्शनीय स्थल
- माधव राष्ट्रीय उद्यान: 156 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह उद्यान विभिन्न प्रकार की वनस्पति एवं विविध प्राणियों से समृद्ध है। हिरण की बहुलता वाले इस क्षेत्र में चिंकारा, भारतीय कलपूंछ और चीतल मिल जाते हैं। इसके अलावा नीलगाय, सांभर, चौसिंघा, कृष्णमृग, रीठ, चीता और बंदर प्रमुख हैं।
- राष्ट्रीय उद्यान के अतिरिक्त सिंधिया राजवंश की कलात्मक छतरियां, गुलाबी रंग का माधव बिलास प्रसाद, अभ्यारण्य के बीच उसके सर्वोच्च बिन्दु पर स्थित कगूरेदार जार्ज कैसल, सख्या सागर, बोट क्लब, भदैया कुण्ड तथा वीर तात्या टोपे की विशाल मूर्ति यहां के अन्य दर्शनीय स्थल है।
ओंकारेश्वरः
- ॐ की पवित्र आकृति स्वरूप यह द्वीप सदृश मनोरम स्थल अनंतकाल से तीर्थ के रूप में मान्य है। यहां नर्मदा-कावेरी के संगम पर ओंकार मांधाता के मंदिर में स्थापित ज्योतिर्लिंग पुराण प्रसिद्ध 12 जयोतिर्लिंगों में से एक है।
दर्शनीय स्थल
- ओंकार मांधाता, सिद्धनाथ मंदिर, चौबीस अवतार, सप्त मातृका मंदिर तथा काजल रानी गुफा आदि यहां है।
महेश्वर
- इतिहास प्रसिद्ध सम्राट कार्तवीर्य अर्जुन की प्राचीन राजधानी महिष्मति ही आधुनिक महेश्वर है। इसका उल्लेख रामायण तथा महाभारत में भी मिलता है। रानी अहिल्याबाई होलकर ने यहां के महलों को चार चांद लगाए।
दर्शनीय स्थल
- राजगद्दी और राजवाड़ा,घाट तथा मंदिर दर्शनीय हैं। महेश्वर की साड़ियाँ अत्यधिक प्रसिद्ध है।
भोपाल
- ग्यारहवीं सदी के भोजपाल तथा तत्पश्चात् भूपाल नामक इस नगर को परमारवंशी राजा भोज ने बसाया था। भोपाल पांच पहाड़ियों पर बसा है तथा इसमें दो झीलें हैं। यहां की जलवायु सम है।
दर्शनीय स्थल
- ताज-उल-मसाजिट, जामा मस्जिद, लक्ष्मीनारायण मंदिर, बिड़ला संग्रहालय, शौकत महल और सदर मंजिल, भारत-भवन, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, राजकीय संग्रहालय, गांधी भवन, वन विहार, चौक, बड़ी और छोटी झील, मछली घर इत्यादि दर्शनीय हैं।
बांधवगढ़
- शहडोल जिले में विंध्य पर्वत माला की दूरस्थ पहाड़ियों में 448 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैला छोटा किन्तु सघन राष्ट्रीय उद्यान है।
- सफेद शेर की मातृभूमि बांधवगढ़ में बाघों की सघनता पूरे भारत की तुलना में सबसे अधिक है। इस भू-भाग की घाटियों ओर ढालानों में साल-वन फैले हुए हैं जो पहाड़ियों तथा उद्यान के दक्षिण और पश्चिम में शुष्क क्षेत्र होने के कारण पतझरीय वनों के रूप में बदलते जाते हैं।
दर्शनीय स्थल
- वन्य जीवन:- यहां 22 से अधिक स्तनपायी प्राणी और 250 से अधिक प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं। यहां मांस भक्षी प्राणियों में एशियायी सियार, बंगाल लोमड़ी, भालू, बिज्जू, सफेद नेवला, धारीदार लकड़बग्घा, जंगली बिल्ली, तेन्दुआ और बाघ शामिल हैं।
कान्हा
- साल और बांसों से भरा कान्हा का जंगल, सन् 1955 में एक विशेष कानून के द्वारा कान्हा राष्ट्रीय उद्यान अस्तित्व में आया। यह पशु-पक्षियों के लिए एक निर्भिक आश्रय स्थल बन गया है।
दर्शनीय स्थल
- बमनीदादर, स्तनपायी प्राणियों की जातियां तथा कान्हा का पशु पक्षी संसार दर्शनीय है।
ओरछा
- ओरछा राज्य की स्थापना 16वीं सदी में बुन्देला राजपूत रूद्रप्रताप ने की थी। ओरछा के प्रांगण में अनेक छोटे मकबरे और स्मारक हैं। इनमें से प्रत्येक का रोचक इतिहास है। मध्यकाल की यह प्रसिद्ध एतिहासिक नगरी है।
दर्शनीय स्थल
- जहांगीर महल, राजमहल, राय प्रवीण महल, रामराजा मंदिर, चतुर्भुज मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, फूल बाग, दीवान हरदौल महल, सुन्दर महल, छत्रियां, शहीद स्मारक
भोजपुर
- किंबदन्तियों के रूप में अमरता प्राप्त धार के महान सम्राट राजा भोज ने इसकी स्थापना की थी। यहां का भव्य शिवमंदिर मध्य भारत का सोमनाथ कहालाता है।
दर्शनीय स्थल
- भोपाल से 28 कि.मी. दूर भोजपुर की प्रसिद्धि भव्य शिवमंदिर और विधाल बांध के कारण है। यह मंदिर भोजेश्वर मंदिर के रूप में माना जाता है। जैन मंदिर भी दर्शनीय है।
भीम बेटका
- विन्ध्य पर्वत श्रृंखलाओं की उत्तरी छोर से घिरा हुआ भीम बैटका भोपाल से 40 कि.मी. दूर दक्षिण दिशा की ओर स्थित है। भीम बेटका समूह मानव इतिहास का एक बहुमूल्य इतिवृत्त और समुद्र पुरातात्विक संकुल माना जाता है।
दर्शनीय स्थल
- यहां 500 से अधिक गुफाओं में प्रागैतिहासिक गुफावासियों की दैनिक जीवनचर्या के मनोहारी चित्र दर्शाए गए हैं।
विदिशा, उदयगिरी गुफाएं, ग्यारसपुर तथा उदयपुर तथा बाघ की गुफाएं
- विदिशा, बेसनगर तथा भेलसा के नाम से प्रसिद्ध यह क्षेत्र प्राचीन इतिहास की समृद्ध धरोहर के रूप में सांची से केवल 10 कि.मी. दूर बेतवा और बेस नदियों के बीच स्थित है।
- यह क्षेत्र शुंग, नाग, सातवाहन तथा गुप्त सम्राटों के अधीन रहकर अत्यंत समृद्धि को प्राप्त हुआ था।
- सम्राट बनने के पूर्व अशोक यहां के राज्यपाल रहे थे। विदिशा का उल्लेख महाकवि कालिदास की महान कृति मेघदूत में मिलता है।
दर्शनीय स्थल
- लोहांगी शिला, गुम्बज, बीजा मंडल आदि हैं। हेलियोदोरस का स्तंभ (खंबा बाबा) हेलियोदोरस द्वारा वासुदेव के सम्मान में स्थापित स्तंभ है।
उदयगिरी गुफाएं
- विदिशा से 4 कि.मी. दूर स्थित हैं तथा चौथी-पांचवीं सदी में निर्मित हुआ था गुप्तकालीन इन गुफाओं की तोरण-श्रृंखला अतिसुन्दर है।
- विष्णु को बारह अवतार के रूप में उत्कीर्ण किया गया है। भगवान विष्णु की विशालकाय मूर्ति विश्राम मुद्रा में है।
ग्यारसपुर
- सांची से 41 कि.मी. दूर स्थित यह स्थान मध्ययुग का महत्वपूर्ण स्थान है। बज्र भद्र और मालादेवी के नक्काशीदार स्तंभ दर्शनीय है।
उदयपुर
- यह स्थान भोपाल से विदिशा तथा गंजबासौदा होते हुए 90 कि.मी. की दूरी पर है।
- यहां का विशाल नील कंठेश्वर मंदिर परमार कालीन स्थापत्य कला का बेजोड़ उदाहरण है। बीजा मंडल, शाही मस्जिद, महल, पिसनहारी का मंदिर आदि अन्य दर्शनीय स्थल हैं।
बाघ की गुफाएँ
- बाघ गुफाएँ इंदौर से 146 कि.मी. दूर है।
- अजन्ता की गुफाओं की तरह ही ये गुफाएं भी प्राचीन काल की हैं। इन गुफाओं में हिन्दू महाकाव्यों और बौद्ध ग्रंथों की घटनाएं अंकित हैं।
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