मध्य प्रदेश की भू-वैज्ञानिक संरचना

मध्य प्रदेश की भू-वैज्ञानिक संरचना

मध्य प्रदेश की भू-वैज्ञानिक संरचना Geological Structure of MP in Hindi

राज्य संरचना की दृष्टि से प्रायद्वीपीय पठार का भाग है। प्रायद्वीपीय पठार भू-वैज्ञानिक इतिहास में कभी भी पूर्णतः जलमग्न नहीं हुआ है। केवल कुछ समय के लिए इस पठार का कुछ भाग छिछले समुद्रों में ढका था। इस कारण प्रायद्वीपीय पठार पर विभिन्न कालों की भू-वैज्ञानिक संरचना का विकास हुआ है।

मध्यप्रदेश का अधिकांश भाग प्रायद्वीपीय पठार का हिस्सा होने के कारण यहाँ विभिन्न कालों की भू-वैज्ञानिक संरचना देखने को मिलती है।

मध्यप्रदेश में निम्न कालों की भू-वैज्ञानिक संरचना पाई जाती है

मध्य प्रदेश की भू-वैज्ञानिक संरचना Geological Structure of MP in Hindi

राज्य संरचना की दृष्टि से प्रायद्वीपीय पठार का भाग है। प्रायद्वीपीय पठार भू-वैज्ञानिक इतिहास में कभी भी पूर्णतः जलमग्न नहीं हुआ है। केवल कुछ समय के लिए इस पठार का कुछ भाग छिछले समुद्रों में ढका था। इस कारण प्रायद्वीपीय पठार पर विभिन्न कालों की भू-वैज्ञानिक संरचना का विकास हुआ है।

मध्यप्रदेश का अधिकांश भाग प्रायद्वीपीय पठार का हिस्सा होने के कारण यहाँ विभिन्न कालों की भू-वैज्ञानिक संरचना देखने को मिलती है।


मध्यप्रदेश में निम्न कालों की भू-वैज्ञानिक संरचना पाई जाती है

  1. आद्य महाकल्प (आर्कियन) Archaean Mahakalpa
  2. आर्य समूह Arya Group
  3. क्रिटेशियस कल्प Cretaceous kalp
  4. तृतीयक शैल समूह Tertiary rock group

आद्य महाकल्प (आर्कियन) Archaean Mahakalpa in MP

  • आद्य महाकल्प की चट्टानें पृथ्वी की प्रथम कठोर चट्टानें हैं। इन प्रारम्भिक चट्टानों में जीवाश्म के अवशेष नहीं मिलते हैं, क्योंकि तत्कालीन समय में पृथ्वी पर जीवन का विकास नहीं हुआ था।
  • मध्यप्रदेश में इस युग की चट्टाने बुन्देलखण्ड क्षेत्र में बुन्देलखण्ड नीस के रूप में मिलती हैं।इस क्षेत्र में आद्य महाकल्प की चट्टानों के साक्ष्य संकरी पहाडि़यों में गुलाबी ग्रेनाइट, सिल, एवं डाइक के रूप में पाए जाते हैं।
  • मध्य प्रदेश में स्थित आद्य महाकल्प की चट्टानों का निर्माण तरल लावा के ठण्डे होने एवं छिछले क्षेत्र के निक्षेपण द्वारा हुआ है। इन दोनों प्रकार की चट्टानों का प्रादेशिक एवं तापीय कायान्तरण अधिक होने के कारण इनका विभेदीकरण कठिन है।

धारवाड़ समूह Dharwad Group in MP

  • धारवाड़ समूह की चट्टानों का निर्माण आद्य महाकल्प की चट्टानों के अपरदन से निकले पदार्थों के द्वारा हुआ है। अत्याधिक ताप एवं दाब के कारण इनका कयान्तरण होने से ये चट्टानों अधिकतर फाइलाइट, शिस्ट तथा स्लेट के रूप में पाई जाती है। प्राचीन चट्टानों के अपरदन से बनने के कारण इनमें भी जीवाश्म नहीं मिलते हैं।
  • मध्यप्रदेश में धारवाड़ समूह की चट्टानें मुख्य रूप से जबलपुरबालाघाट तथा छिंदवाड़ा में मिलती हैं।
  • जबलपुर में इस शैल समूह का रवेदार डोलोमाइट चूने पत्थर (संगमरमर) नर्मदा की घाटी में पाया जाता है।
  • छिंदवाड़ा में धारवाड़ शैल समूह सौंसर सीरीजसिकोली सीरीज के रूप में पाया जाता है। इसमें मैंगनीज निक्षेप मिलते हैं।
  • बालाघाट तथा अन्य निकटवर्ती भागों में धारवाड़ चट्टानें चिलपी सीरीज के रूप में उपस्थित हैं जिनमें अत्याधिक मोटी स्लेट तथा फाइलाइट की तहें मिलती हैं।

पुरान संघ Puran Sangh in MP

धारवाड़ समूह की चट्टानों कालान्तर में पर्वत निर्माणकारी क्रिया के द्वारा पुराने मोड़दार पर्वतों में बदल गई। अपरदन चक्र की क्रिया द्वारा मोड़दार पर्वत धीरे-धीरे समतल प्रायः मैदान में बदल गए। इन समतल प्रायः मैदानों में बाद के कालों की चट्टानों के निक्षेपण से पुरान संघ की चट्टानों का निर्माण हुआ ।

पुरान संघ की चट्टानों का वर्गीकरण

समयावधि के आधार पर पुरान संघ क चट्टानों को दो भागों में बॉटा गया है।

कड़प्पा शैल समूह Kaddapa Shail Samuh

  • कड़प्पा शैल समूह, विंध्यन शैल समूह की अपेक्षा प्राचीन है। कड़प्पा शैल समूह की चट्टानें अत्याधिक टूटी एवं कायांतरित हैं। ये चट्टानें मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के मैदान में पाई जाती हैं। परन्तु मध्यप्रदेश के बिजावर, पन्ना, ग्वालियर में भी इनका विस्तार देखने को मिलता है। अतः ये चट्टानें मध्य प्रदेश के उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर शैल जेस्पर, पोर्सलेनाइट तथा हार्नस्टोन के रूप में पाई जाती हैं। निचले कड़प्पा शैल समूह की बिजावर सीरीज में हीरा मिलता है।

विंध्यन शैल समूह Vindhyan rock group

  • विंध्यन शैल समूह की चट्टानों की मध्य प्रदेश में मोटाई लगभग 4,200 मीटर है। इन जलज प्रकार की चट्टानों पर अन्तरभौमिक क्रियाओं का प्रभाव नहीं पडा है। मध्यप्रदेश में इन चट्टानों का विस्तार सोन के उत्तर-पश्चिम में रीवा से लेकर चंबल के पश्चिम में राजस्थान तक है।।

प्रदेश में कड़प्पा समूह की चट्टानों को दो भागों में विभाजित किया गया है-

01- लोअर विंध्यन Lower Vindhyan

  • लोअर विंध्यन समूह की चट्टानें विंध्याचल श्रेणी में नर्मदा के उत्तर पूर्व से पश्चिम तक फैली है। सोन की घाटी तथा भीमा घाटी में भी इनका विस्तार देखने को मिलता है। सोन घाटी में ये चट्टानें 914 मीटर मोटे चूने के पत्थर, शैल तथा बालू पत्थर के रूप में मिलती हैं।

02- अपर विंध्यन Upper Vindhyan

  • इस समूह की चट्टानों का विस्तार नर्मदा के उत्तर में कैमूररीवा तथा भांडेर सीरीज के रूप में है। इन चट्टानों में अल्प मात्रा में छोटे जीव जंतुओं एवं वनस्पितियों के कुछ चिन्ह मिलते हैं। इमारती पत्थर इस समूह की चट्टानों में बहुतायत मात्रा में मिलता है, जिसका उपयोग उत्तरी भारत की ऐतिहासिक इमारतों के निर्माण में हुआ है।

आर्य समूह Arya Group

आर्य समूह के अंतर्गत अपर कार्बोनीफेरस से लेकर अत्यंत नूतन युग तक को शामिल किया जाता है। अपर कोर्बोनीफेरस युग में दक्कन का पठार अन्तरभौमिक क्रियाओं से प्रभावित हुआ था, लेकिन पर्वन निर्माणकारी प्रक्रिया से यह क्षेत्र अछूता रहा, परन्तु  अत्याधिक खिंचाव के कारण बीच-बीच में दरारें पड़ गईं तथा संकरा, लम्बा भूभाग इनके सहारे नीचे धंस गया। इन संकरे भागों में मीठे जल की झीलों का निर्माण हो गया। कालान्तर में इन झीालों में निक्षेपित पदार्थों से गोण्डवाना शैल समूह की चट्टानों का निर्माण हुआ।

गोण्डवाना शैल समूह Gondwana Shale Group

  • गोण्डवाना शैल समूह की चट्टानें मध्यप्रदेश में मुख्य रूप से सतपुड़ा क्षेत्र तथा बघेलखण्ड पठार में मिलती हैं जहाँ ये शैल समूह एक अर्द्धवृत्त के रूप में उत्तर में सीधी से लेकर दक्षिण में रायगढ़ तक वितरित हैं।
  • इस समूह की चट्टानों मे एकरूपता मिलती है। इनके किनारे भ्रंशित होते हैं।
  • गोण्डवाना शैल समूह के गठन में बहुत अधिक भिन्नता मिलती हैं इसमें मोटी और महीन बालू, मिट्टी आदि की परतें निरन्तर एक-दूसरे में बदलती हैं।

मध्यप्रदेश में गोण्डवाना शैल समूह की चट्टानों को तीन भागों में विभाजित किया गया है-

1-लोअर गोण्डवाना शैल समूह Lower Gondwana Shale Group

  • लोअर गोण्डवाना शैल समूह को तालचीर के नाम से जाना जाता है।
  • यह मुख्य रूप से सोन-महानदी घाटी एवं सतपुड़ा के क्षेत्रों में मिलते हैं।
  • इनकी 10-122 मीटर मोटी बनावट से भू-वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि इनका परिवहन हिम तथा जल दोनों के द्वारा किया गया है। इसमें यह भी निष्कर्ष निकलता है कि उस काल में यह शीत युग के प्रभाव में था।
  • पेंचघाटी तथा मोहपानी के कोयला क्षेत्र तालचीर शैल समूह के अंतर्गत ही आते हैं।

2- मध्य गोण्डवाना शैल समूह Middle Gondwana Shale Group

  • मध्यप्रदेश में मध्य गोण्डवाना शैल समूह का समुचित विकास सतपुड़ा क्षेत्र में हुआ है।
  • सतपुड़ा क्षेत्र के चारों स्तर- पंचेत, पंचमढ़ी, देनवा, तथा बागरा में इस समूह की चट्टाने मिलती हैं।
  • पचमढ़ी क्षेत्र में महाकाय मोटी तहों वाला बालू का पत्थर मिलता है। इसमें लोहे की अधिकता के कारण यह पीले से लाल रंग का है। पचमढ़ी शैल के ऊपर देनवा का आवरण है।

3- अपर गोण्डवाना समूह Upper Gondwana Shale Group

  • अपर गोण्डवाना शैल समूह सतपुड़ा तथ बघेलखण्ड दोनों क्षेत्रों मेें मिलते हैं।
  • इसमें अधिकतर बालुका पत्थर और शैल मिलते हैें। साथ ही इसमें  कोयले की परतें तथा वानस्पतिक पदार्थ एवं चूने के पत्थर की परते भी मिलती हैं।
  • सतपुड़ा क्षेत्र में इसे चौगान तथा जबलपुर स्तर के नाम से जाना जाता है।

क्रिटेशियस कल्प Cretaceous kalp in MP

  • मध्यप्रदेश में क्रिटेशियस कल्प के साक्ष्य नर्मदा घाटी में मिलते हैं।
  • नर्मदा घाटी में नदी तथा एश्चुअरी के निक्षेपण से बने शैल समूह मिलते हैजिन्हें बाघ सीरीज कहा जाता है।
  •  मध्यप्रदेश के अन्य भाागों में बिखरे हुए अपेक्षाकृत नए निक्षेपणों को लमेटा सीरीज के नाम से पुकारा जाता है। इनमें सिलिका मिश्रत चूने के पत्थर, मिट्टी मिश्रित बालुका पत्थर, ग्रिट तथा क्ले प्रमुख शैल हैं।
  • इन चट्टानों में कुछ जीवाश्म अवशेष भी पाए जाते हैं।

तृतीयक शैल समूह Tertiary rock group

  • तृतीयक शैल समूह में गोण्डवाना महाद्वीप टूटकर छोटे-छोटे भागों में विभाजित हो गया तथा उनके बीच का भाग सागर के नीचे डूब गया। इस समय दक्कन पठार को वर्तमान आकार मिला तथा टैथिस सागर का विशाल निक्षेपण मोड़दार पर्वत के रूप में ऊपर उठकर हिमालय पर्वत बना। इन अन्तरभौमिक क्रियाओं का प्रभाव दक्षिणी मध्यप्रदेश पर भी पड़ा

विभिन्न युग एवं उनके मध्यप्रदेश में साक्ष्य

 

युग साक्ष्य मध्यप्रदेश में
आद्य महाकल्प
(आर्कियन)
बुन्देलखण्ड का गुलाबी ग्रेनाइट, नीस,
सिल, डाइक
धारवाड़ समूह बालाघाट की चिलपी श्रेणी,
छिंदवाड़ा की सौंसर श्रेणी,
बुंदेलखण्ड की बिजावर श्रेणी
पुरान संघ पन्ना, ग्वालियर की बिजावर श्रेणी,
कैमूर, भाण्डेर, रीवा श्रेणी
द्रविण संघ मध्यप्रदेश में साक्ष्य नहीं मिले हैं।
आर्य समूह सतपुड़ा एवं बघेलखण्ड में विस्तृत कोयला घाटी
क्रिटेशियस
कल्प
बाघ, लमेटा, मालवा पठार के ज्वालामुखी संस्तर
तृतीयक समूह नर्मदा सोन घाटी

 

हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *