“मन पावन चितचोर, पलक ओट नहिं करि सकौं’ की व्याख्या करें।
“मन पावन चितचोर, पलक ओट नहिं करि सकौं’ की व्याख्या करें।
उत्तर :- प्रस्तुत पंक्ति कृष्णभक्त कवि रसखान द्वारा रचित हिंदी पाठ्य-पुस्तक के ‘प्रेम-अयनि श्रीराधिका’ पाठ से उद्धृत है। इसमें कवि ने कृष्ण की मनोहर छवि के प्रति अपने हृदय की रीझ को व्यक्त किया है।
प्रस्तुत पंक्ति में कवि कहते हैं कि नन्दकिशोर में जिस दिन से चित्त लग गया है उन्हें छोड़कर कहीं नहीं भटकता । कृष्ण को अपना प्रीतम बताते हुए कहते हैं कि मन को पवित्र करने वाले चित्तचोर को आठों पहर देखते रहने की कामना समाप्त नहीं होती । कृष्ण मन को हरने वाले हैं। चित्त को चुराने वाले हैं। उनकी मोहनी मूरत अपलक देखते रहने की आकांक्षा कवि व्यक्त करते हैं।
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