‘मैं तो बेचारा उसका असिस्टेंट हूँ। उस नाचने वाले का’, व्याख्या कीजिए।
‘मैं तो बेचारा उसका असिस्टेंट हूँ। उस नाचने वाले का’, व्याख्या कीजिए।
उत्तर :-प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति हिन्दी पाठ्यपुस्तक के ‘जित-जित मैं निरखत हूँ’ शीर्षक से ली गई है। यह शीर्षक हिन्दी साहित्य की साक्षात्कार विधा है। इसमें भारतीय कत्थक के महानतम नायक बिरजू महाराज स्वयं अपने मुखारविन्द से कत्थक के प्रति अपनी समर्पण भावना का वर्णन किया है।
प्रस्तुत पंक्ति में साक्षात्कार के दरम्यान अपनी कत्थक के प्रति निष्ठा, समर्पण एवं अंतर्बोध की प्रामाणिकता को उजागर किया है। उनकी दृष्टि में लाखों लोग उनके आशिक हैं। लेकिन बिरजू महाराज का स्वीकार करना है कि लाखों लोग मेरे हाड़-मांस के बने शरीर पर फिदा नहीं हैं बल्कि मेरे जो आशिक हैं वे मेरे व्यक्तित्व अर्थात् नाच के प्रति । मैं भी तो नाच के कारण ही लोगों के बीच दर्शन का पात्र हूँ। आशिक किसी व्यक्ति का कोई नहीं होता बल्कि उसके आंतरिक व्यक्तित्व के प्रति होता है। मेरा नाच तो एक व्यक्ति है जिसमें व्यक्तित्व की गरिमा भरी हुई है। उसी नाचरूपी व्यक्ति का मैं भी सहायक हूँ। मैं तो उसे केवल सहयोग करता हूँ। मूल रूप से मेरा आंतरिक व्यक्तित्व ही मझे नचाकर लोगों को आशिक बनाया है।
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