‘रसखानि कबौं इन आँखिन सौं ब्रज के बनबाग तड़ाग निहारौं’ की व्याख्या करें।
‘रसखानि कबौं इन आँखिन सौं ब्रज के बनबाग तड़ाग निहारौं’ की व्याख्या करें।
उत्तर :- प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य की पाठ्य-पुस्तक के रसखान-रचित करोल के कुंजन ऊपर वारों’ पाठ से उद्धत है । प्रस्तुत पंक्ति में कवि ब्रज पर अपना जावन सर्वस्व न्योछावर कर देने की भावमयी विदग्धता मुखरित करते हैं।
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि ब्रज की बागीचा एवं तालाब अति सुशोभित एवं अनपम हैं। इन आँखों से उसकी शोभा देखते बनती है। कवि कहते हैं कि ब्रज के वनों के ऊपर. अति रमनीय, सुशोभित, मनोहारी मधुवन के ऊपर इन्द्रलोक को भी न्योछावर कर दूँ तो कम है। ब्रज के मनमो इक तालाब एवं बाग की शोभा देखते हुए कवि की आँखें नहीं थकती, इसकी शोभा निरंतर निहारते रहने की भावना को कवि ने इस पंक्ति के द्वारा बड़े ही सहजशैली में
अभिव्यक्त किया है।
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