रूढ़ियुक्तियों की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

 रूढ़ियुक्तियों की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। 

उत्तर— रूढ़ियुक्तियों की विशेषताएँ— रूढ़ियुक्तियों के आशय को समझने हेतु उनकी विशेषताओं पर दृष्टिपात करना आवश्यक है जो निम्न प्रकार हैं—

(1) रूढ़ियुक्ति एक मानसिक चित्र है— रूढ़ियुक्ति सचमुच में किसी वर्ग या समुदाय के व्यक्तियों के संदर्भ में एक मानसिक चित्र है जिससे हम उस वर्ग के व्यक्तियों में कुछ विशेषताओं को आरक्षित करते हैं। जैसे- आज देश को आजाद हुए वर्षों बीत गए है पर जाति व्यवस्था समाप्त नहीं हो रही है। उसने अपने पैर जमाए हुए हैं। हमारे देश में अस्पृश्यता के अनेक कानून बन चुके हैं लेकिन सामान्य वर्ग आज भी उसको गन्दे, अनपढ़, निःसहाय, कमजोर आदि समझते हैं।
(2) रूढ़ियुक्ति सर्वसम्मत विश्वास होती है— रूढ़ियुक्तियों में किसी वर्ग विशेष के व्यक्तियों के बारे में एक विश्वास होता है जिस पर सर्वसहमति होती है। जैसे- हिन्दू नारी अपने पति को अपना देवता मानती है। पति चाहे शराबी हो, कर्तव्यहीन हो, चरित्रहीन हो उसके साथ जीवन यापन करती है एवं उसे अपना पविव्रता धर्म मानती है। उसी प्रकार जनता में आम सहमति रहती है कि शिक्षक आदर्शवादी होते हैं। राजनेता अवसरवादी होते हैं, वकील चतुर होते हैं, इत्यादि ।
(3) रूढ़ियुक्ति एक द्वि-मूल्य उन्मुखता है— रूढ़ियुक्ति एक -द्वि-मूल्य उन्मुखता है। द्वि-मूल्य उन्मुखता से अभिप्राय किसी वर्ग या समदाय के प्रति एक सा व्यवहार कई प्रकार से प्रत्यक्षीकरण तथा वर्णित करना जो इस बात पर निर्भर होता है कि कौन उसे कर रहा है ? उदाहरण के लिए, एक हिन्दी भाषी के लिए एक तमिलनाडु के निवासी का तमिल में शिक्षण प्राप्त करना तो राष्ट्रीय भावना के विरुद्ध है जबकि स्वयं वह अपनी मातृभाषा में शिक्षण प्राप्त करने को राष्ट्रीयता का प्रतीक मानता है। एक भारतवासी अपने को तो शांतिप्रिय समझता है चाहे वह युद्ध की कितनी ही अधिक तैयारी पर बल दे रहा हो लेकिन दूसरे राष्ट्र को युद्ध तत्पर समझता है। इसी तरह से पाकिस्तान अथवा अन्य राष्ट्र का विश्वास यह हो सकता है कि भारत तो युद्ध तत्पर है जबकि वह शान्तिप्रिय है।
(4) रूढ़ियुक्ति हमारे प्रत्यक्षीकरण में सरलता लाती है – रूढ़ियुक्ति एक व्यक्ति के लिये जटिल संसार को समझने में सरलता लाती है। यदि हम प्रत्येक व्यक्ति के व्यवहार को समझने की चेष्टा करें तो हमारे सामने कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती है। रूढ़ियुक्तिबद्ध होकर हम एक वर्ग के व्यवहार को एक ही प्रकार की संज्ञा दे देते हैं। यह हमारे प्रत्यक्षीकरण में सरलता ला देती है। रूढ़ियुक्तियों को भली प्रकार से समझने के लिए उन पर हुए कतिपय प्रयोगों पर यह दृष्टिपात करें तो अधिक उपयुक्त होगा।
(5) रूढ़ियुक्तियों में सामान्यीकरण की क्षमता होती है –  रूढ़ियुक्तियों का विकास समाज के वर्ग या समुदाय के लोगों के साथ हुए अनुभवों पर होता है। अर्थात् जब कोई व्यक्ति किसी एक वर्ग के या समुदाय के लोगों के सम्पर्क में आता है तथा बार बार एक ही तरह के अनुभव उस वर्ग के लोगों से प्राप्त करता है तो वह उस वर्ग या समुदाय के सभी लोगों पर सामान्यीकरण कर देता है।
(6) रूढ़ियुक्ति अपरिवर्तनशील होती है— रूढ़ियुक्ति की प्रमुख विशेषता है कि वह अपरिवर्तनशील है। सुधारात्मक प्रयास करने पर भी रूढ़ियुक्तियों में परिवर्तन नहीं आता है। जैसे- दहेज प्रथा उन्मूलन कार्यक्रम चलाने पर भी यह प्रथा आज भी कायम है तथा प्रताड़ित होने पर भी, ससुराल द्वारा जला दिये जाने पर भी हिन्दू नारियाँ अपने पति को देवता मानती है । वस्तुतः रूढ़ि का एक बार निर्माण हो जाने पर चाहे कितने भी सुधारात्मक प्रयास किए जाएँ पर उसमें परिवर्तन असम्भव है ।
(7) रूढ़ियुक्ति सकारात्मक या नकारात्मक दोनों हो सकती है— रूढ़ियुक्तियाँ सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार की हो सकती है। जैसे- ‘पहाड़ी मेहनती होते हैं’, ‘ईसाई मिलनसार होते हैं’ आदि सकारात्मक रूढ़ियुक्ति के उदाहरण हैं।
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