वीरेन डंगवाल रचित ‘हमारी नींद’ शीर्षक कविता का सारांश अपने शब्दों में प्रस्तुत करें।
वीरेन डंगवाल रचित ‘हमारी नींद’ शीर्षक कविता का सारांश अपने शब्दों में प्रस्तुत करें।
उत्तर :- हम नींद में सोते हैं, इसका यह अर्थ कतई नहीं होता कि सृष्टि का विकास क्रम रूक गया है। हमारी नींद में भी प्रकृति का विकासक्रम अग्रसर होता है। हमारे सोने और जागने के बीच पेड़ कुछ इंच बढ़ जाते हैं; पौधों में कुछ सूतों की वृद्धि हो जाती है तथा अंकुर अपने कोमल और लघु-लघु सींगों से बीज की छत (छिलके को) को भीतर से धकेलना शुरू कर देते हैं। हमारी नींद जितने घंटे की होती है, उसमें मक्खी का जीवन-क्रम पूरा हो जाता है। मक्खी के अनेक शिश पैदा होते हैं और उनमें से अनेक मृत्यु को भी प्राप्त हो जाते हैं। हमारी नींद में ही गरीब बस्तियों में धमाके के साथ लाउडस्पीकर पर देवी जागरण हो जाता है। हम जगकर भले ही सोचें कि हमारे सोने में प्रकृति का सारा विकास रूका हुआ था, पर यह सोचना एकदम सही नहीं होता।
जीवन को घेरने, बाँधने, रोकने के अनेक प्रयास होते हैं, पर हमारा हठीला जीवन इनके बावजूद अपनी प्रकृति से कोई समझौता नहीं करता, वह बढ़ता ही जाता है आगे। हम में अधिसंख्य ऐसे हैं जो बाधाओं का सामना नहीं कर पाते, उनके सामने झुक जाते हैं। पर, कुछ ऐसे भी हैं जो भीतर से बहुत मजबूत होते हैं, वे झुकना नहीं जानते। वे अस्वीकार का दुष्परिणाम जानते हुए भी बड़े साहस के साथ साफ-साफ इनकार करने की आदी होते हैं।
प्रस्तुत कविता जीवन की ज़य की कविता है। जीवन अवरोधों को नहीं जानता। वह हर अवरोध को हँसता हुआ पार करता है। उसकी प्रकृति सतत विकास की होती है। वह रुकना नहीं जानता, वह झुकना नहीं जानता।
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