वैद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव तथा चुम्बकत्व (Magnetic Effect of Current and Magnetism)

वैद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव तथा चुम्बकत्व (Magnetic Effect of Current and Magnetism)

वैद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव तथा चुम्बकत्व (Magnetic Effect of Current and Magnetism)

चुम्बकीय क्षेत्र तथा चुम्बकीय बल रेखाओं की धारणाओं को समझने से पहले चुम्बक, चुम्बकीय पदार्थ तथा अचुम्बकीय पदार्थ को भली-भाँति समझ लेना चाहिए।
चुम्बक (Magnet) चुम्बक एक ऐसा पदार्थ है जो लोहा, निकिल, कोबाल्ट और अयस्कों (alloys) को अपनी ओर आकर्षित करता है।
कम्पास सुईं एक छोटी बार चुम्बक होती है तथा चुम्बक के सिरों के निकट के क्षेत्र को जहाँ आकर्षण गुण अधिकतम होता है, उसे ध्रुव (pole) कहते हैं। एक चुम्बक के दो ध्रुव उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव होते हैं।
चुम्बकीय पदार्थ (Magnetic Substance) वे पदार्थ जो चुम्बक द्वारा आकर्षित होते हैं, चुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। उदाहरण इस्पात (लोहा), निकिल, आदि।
अनुचुम्बकीय पदार्थ (Non-magnetic Substance) वे पदार्थ जो चुम्बक द्वारा आकर्षित नहीं होते हैं, अनुचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। उदाहरण लकड़ी, कागज, ऐलुमिनियम, आदि ।
चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic Field)
चुम्बक के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें चुम्बक के प्रभाव का अनुभव किया जा सके, चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है। चुम्बकीय क्षेत्र एक सदिश राशि है जिसमें परिमाण व दिशा दोनों होते हैं। इसका SI मात्रक टेस्ला है जिसे अमेरिकन इंजीनियर निकोला टेस्ला (Nikola Tesla) के नाम पर रखा गया। चुम्बकीय क्षेत्र का छोटा मात्रक गॉस (Gauss) होता है।
                   1 टेस्ला = 1 न्यूटन / ऐम्पियर -मी = किलो ग्राम / ऐम्पियर से2
या                1 टेस्ला = 104 गॉस
चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ (Magnetic Field Lines) 
वे काल्पनिक रेखाएँ, जो चुम्बकीय क्षेत्र में एक चुम्बक के चारों ओर प्रदर्शित हो जाती हैं चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ या चुम्बकीय बल रेखाएँ कहलाती हैं।
चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के किसी भी बिन्दु पर खींची गई स्पर्श रेखा उस बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करती है। चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ, चुम्बकीय कम्पास की सहायता से खींची जाती हैं तथा लोहे को चुम्बकीय क्षेत्र में ले जाने पर यह चुम्बकीय क्षेत्र की रेखाओं का अनुसरण करता है।
चुम्बकीय सुईं कम्पास (Magnetic Needle Compass) यह एक छोटी हल्की चुम्बकीय सुई होती है जो पीतल या ऐलुमिनियम की गोल डिबिया के अन्दर इसके केन्द्र पर एक ऊर्ध्वाधर कील पर इस प्रकार कीलकित (pivoted) होती है कि यह क्षैतिज तल में सभी दिशाओं में स्वतन्त्रतापूर्वक घूम सके तथा सुई का आधा भाग काला कर दिया जाता है, यह सदैव उत्तर-दक्षिण (North-South) दिशा में ठहरती है।
चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के गुण (Properties of Magnetic Field Lines)
(i) चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ चुम्बक के उत्तरी ध्रुव से निकलकर दक्षिणी ध्रुव से मिलती हैं।
(ii) चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ एक बन्द तथा लगातार वक्र बनाती हैं।
(iii) चुम्बक के ध्रुव के समीप जहाँ चुम्बकीय क्षेत्र प्रबल होता है, चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ पास-पास होती हैं तथा चुम्बक के ध्रुव से दूर जहाँ चुम्बकीय क्षेत्र क्षीण होता है चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ भी दूर-दूर होती हैं।
(iv) चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को कभी नहीं काटती हैं क्योंकि यदि वे काटेंगी तो उस बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दो दिशाएँ होंगी, जोकि असम्भव है।
(v) किसी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र में बल रेखाएँ आपस में समान्तर तथा समदूरस्थ (parallel and equidistant) होती हैं। इसका अर्थ यह है कि किसी एक स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण व दिशा समान होती हैं।
(vi) चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के किसी भी बिन्दु पर तीर द्वारा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा प्रदर्शित होती है।
(vii) जब चुम्बकीय कम्पास सुईं को चुम्बकीय क्षेत्र में अलग-अलग बिन्दुओ पर रखा जाता है तब यह किसी बिन्दु पर पंक्ति के सापेक्ष स्पर्श करती है।
चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा (Direction of Magnetic Field)
चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा निम्नलिखित नियमों द्वारा ज्ञात की जाती है।
मैक्सवेल का दक्षिणावर्ती पेंच का नियम (Maxwell’s Right Handed Screw Rule) 
यदि हम पेंचकस को दाएँ हाथ से पकड़कर, पेंच को इस प्रकार घुमाएँ कि पेंच की नोंक चालक में बहने वाली धारा की दिशा में आगे बढ़े तो माध्यम के किसी बिन्दु पर जिस दिशा में अँगूठा घूमता है, वही दिशा उस बिन्दु पर चुम्बकीय बल रेखाओं की दिशा होती है।
फ्लेमिंग के दाएँ हाथ का नियम (Fleming’s Right Hand Rule)
इस नियम के अनुसार, दाएँ हाथ का अँगूठा तथा इसके पास वाली दोनों अँगुलियों [तर्जनी अँगुली (forefinger) तथा मध्य अँगुली (central finger)] को परस्पर लम्बवत् रखकर इस प्रकार फैलाएँ कि तर्जनी अँगुली चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को तथा अँगूठा चालक की गति की दिशा को इंगित करें, तो मध्य (केन्द्रीय) अँगुली चालक के अन्दर प्रेरित धारा की दिशा को इंगित करती है।
दाएँ हाथ के अँगूठे का नियम (Right Hand Thumb Rule)
इस नियम के अनुसार आप अपने दाएँ हाथ में विद्युत धारावाही चालक को इस प्रकार पकड़े हुए हैं कि आपका अँगूठा वैद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करता है, तो आपकी अँगुलियाँ चालक के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाओं की दिशा में लिपटी होगी इसे दाएँ हाथ के अँगूठे का (thumb) नियम कहते हैं।
ऐम्पियर के तैरने का नियम (Ampere’s Swimming Rule)
इस नियम के अनुसार, यदि हम कल्पना करें कि एक व्यक्ति तार की धारा की दिशा में तैर रहा है और उसका सिर हमेशा सुईं की तरह आगे की ओर है, तब धारा उसके पैरों से प्रवेश करके सिर से निकलेगी। तब उत्तरी ध्रुव का चुम्बकीय क्षेत्र उसके सीधे हाथ द्वारा विपथन होगा। इस नियम को बर्फ नियम द्वारा भी समझा जा सकता है, अर्थात् चुम्बकीय सुईं में धारा दक्षिण ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर चलती है। अतः उत्तरी ध्रुव का दक्षिणी ध्रुव की ओर विपथन (deflected) होता है।
वैद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव (Magnetic Effects of Electric Current)
जब किसी चालक में वैद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तब उसके चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। यह घटना वैद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव कहलाती है। एक धारावाही चालक द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का स्वरूप इसकी आकृति पर निर्भर करता है। भिन्न-भिन्न आकृति वाले धारावाही चालकों के द्वारा भिन्न-भिन्न चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।
परिनालिका में प्रवाहित वैद्युत धारा के कारण चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic Field due to a Current in a Solenoid)
परिनालिका बेलनाकार फ्रेम पर एक चालक तार को कसावट के साथ सटाकर लपेटी गई कुण्डलिनी है, जिसमें सभी निकटवर्ती फेरें परस्पर वैद्युत रूप में विलगित (isolated) होते हैं। परिनालिका की अक्ष के किसी भी बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र का मान अत्यधिक संख्या में उपस्थित समरूप वृत्तीय घेरों द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र के अध्यारोपण द्वारा ज्ञात कर सकते हैं। इन फेरों का केन्द्र परिनालिका की अक्ष पर होता है।
परिनालिका यह दर्शाती है कि पास-पास लिपटे वैद्युतरोधी ताँबे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुण्डली को परिनालिका कहते हैं। एक धारावाही परिनालिका के चारो ओर का चुम्बकीय क्षेत्र दण्ड-चुम्बक द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की भाँति समान होता है।
इसका अर्थ यह है कि एक धारावाही परिनालिका का एक सिरा उत्तरी ध्रुव तथा दूसरा सिरा दक्षिणी ध्रुव की भाँति व्यवहार करता है।
                 (परिनालिका के भीतर चम्बकीय क्षेत्र, B = µ0ni)
किसी परिनालिका के भीतर सभी बिन्दुओं पर चुम्बकीय क्षेत्र समान होता है। परिनालिका की बाहरी सतह के स्थानों पर चुम्बकीय क्षेत्र शून्य होता है।
चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान आवेश पर बल (Force on a Moving Charge in Magnetic Field)
जब एक धन आवेशित कण +q एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र B में वेग υ से चुम्बकीय क्षेत्र से θ कोण बनाता है, तब गतिमान आवेश पर एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में लगने वाला बल
                                                (F = qυB sin θ)
जहाँ, B = चुम्बकीय क्षेत्र, q = कणों पर आवेश, υ = आवेशित कणों का वेग
तथा θ = चुम्बकीय क्षेत्र तथा गति की दिशा के बीच का कोण
एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर बल (Force on a Current Carrying Conductor in a Uniform Magnetic Field)
जब एक धारावाही चालक को चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है, तो जब धारावाही चालक चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर रखा जाता है इसको छोड़कर यह एक यान्त्रिकी बल का अनुभव करता है।
चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर लगने वाला बल निम्न कारकों पर निर्भर करता है
(i) धारावाही चालक के कारण चुम्बकीय क्षेत्र पर
(ii) बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र जिसमें चालक रखा गया है,
चालक पर लगने वाले बल की दिशा निम्न कारकों पर निर्भर करती है
(i) धारा की दिशा (Direction of Current) चालक पर लगने वाले बल की दिशा धारा की दिशा के विपरीत हो सकती है।
(ii) चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा (Direction of Magnetic Field) चालक पर लगने वाले बल की दिशा ध्रुवों की स्थिति में बदलाव के कारण चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के विपरीत होती है। जब धारा की दिशा, चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् होती है, तब चालक पर लगने वाला बल अधिकतम होता है।
फ्लेमिंग के बाएँ हाथ का नियम (Fleming’s Left Hand Rule)
फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियम के अनुसार, चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर आरोपित बल की दिशा कार्य करती है। इस नियम के अनुसार, अपने बाएँ हाथ की तर्जनी अँगूठा मध्यमा अँगुली तथा अँगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनों एक-दूसरे के परस्पर लम्बवत् हों। यदि तर्जनी अँगुली चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करती है, तो अँगूठा चालक की गति की दिशा अथवा चालक पर आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा।
औषधि में चुम्बकत्व (Magnetism in Medicine)
विद्युत धारा सदैव चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है, यहाँ तक कि हमारे शरीर की तन्त्रिका कोशिकाओं के अनुदिश गमन करने वाली दुर्बल आयन धाराएँ भी चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करती हैं। जब हम किसी वस्तु को स्पर्श करते हैं, तो हमारी तन्त्रिकाएँ एक विद्युत आवेग को उस पेशी तक वहन करती हैं जिसका हमें उपयोग करना है। यह आवेग एक अस्थायी चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। ये क्षेत्र अति दुर्बल होते हैं और पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की तुलना में उसके एक अरबवें भाग के बराबर होते हैं।
मानव शरीर के दो मुख्य भाग जिनमें चुम्बकीय क्षेत्र का उत्पन्न होना महत्त्वपूर्ण है, वे हृदय तथा मस्तिष्क हैं। शरीर के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र शरीर के विभिन्न भागों के प्रतिबिम्ब प्राप्त करने का आधार बनता है। ऐसा एक विशेष तकनीक जिसे चुम्बकीय अनुनाद प्रतिबिम्ब (Magnetic Resonance Imaging – MRI) कहते हैं, के उपयोग द्वारा किया जाता है। चिकित्सा निदान में इन प्रतिबिम्बों का विश्लेषण सहायक होता है।
चुम्बकत्व (Magnetism)
लगभग 600 ईसा पूर्व पाया गया कि मैग्नेटाइट नामक खनिज पदार्थ में लोहे के पदार्थ को आकर्षित करने का गुण है, ऐसे पदार्थ को चुम्बक कहा गया तथा लोहा, स्टील, कोबाल्ट, निकिल, आदि तथा इनके अयस्कों द्वारा लोहे को अपनी ओर आकर्षित करने के गुण को चुम्बकत्व कहते हैं।
चुम्बकत्व के मूल सिद्धान्त (Basic Laws of Magnetism)
(i) चुम्बकीय ध्रुव सदैव युग्म में होते हैं। जैसे उत्तरी ध्रुव व दक्षिणी ध्रुव ।
(ii) विजातीय ध्रुव एक-दूसरे को आकर्षित तथा सजातीय ध्रुव एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।
(iii) प्रत्येक चुम्बक, चुम्बकीय पदार्थों के छोटे टुकड़ों को आकर्षित करता है।
(iv) मुक्त रूप से लटकी हुई चुम्बक सदैव उत्तरी – दक्षिणी दिशा में ठहरती है।
चुम्बक के प्रकार (Types of Magnet)
चुम्बक निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं
(i) प्राकृतिक चुम्बक (Natural Magnet) ऐसे पत्थर या खनिज जिनमें स्वभाविक रूप से चुम्बकीय गुण विद्यमान रहते हैं, प्राकृतिक चुम्बक कहलाते हैं। प्राकृतिक चुम्बक वास्तव में लोहे तथा ऑक्सीजन के यौगिक होते हैं जिसका रासायनिक सूत्र FegO4 है। उदाहरण लोडस्टोन की चुम्बक एक प्राकृतिक चुम्बक होती है।
(ii) कृत्रिम चुम्बक (Artificial Magnet) वे चुम्बक जिन्हें कृत्रिम ढंग से बनाया जाता है, कृत्रिम चुम्बक कहलाते हैं। अधिकांश कृत्रिम चुम्बक लोहे, इस्पात व निकिल के बनाए जाते हैं। उदाहरण छड़ चुम्बक, घोड़ा नाल चुम्बक, चुम्बकीय सुई, वैद्युत चुम्बक, आदि ।
चुम्बक के गुण (Properties of Magnet )
(i) आकर्षण गुण (Attractive Property) चुम्बक में लोहे, इस्पात, स्टील, कोबाल्ट आदि के कणों तथा धातुओं को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता ध्रुवों पर अधिकतम होती है।
(ii) प्रतिकर्षण गुण (Directive Property) यदि किसी छड़ चुम्बक को धागे से बाँधकर मुक्त रूप से लटका दिया जाए, तो स्थिर होने पर उसका एक सिरा उत्तर की ओर तथा दूसरा सिरा दक्षिण की ओर हो जाता है। जिस बिन्दु का झुकाव भौगोलिक उत्तर की ओर होता है उसे उत्तरी ध्रुव तथा जिस बिन्दु का झुकाव भौगोलिक दक्षिण की ओर होता है। उसे चुम्बक का दक्षिणी ध्रुव कहते हैं।
(iii) ध्रुवों का आकर्षण तथा प्रतिकर्षण (Attraction and Repulsion of Poles) चुम्बक के असमान (unlike) ध्रुव एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं तथा दो समान ध्रुव एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं। एक अकेले चुम्बकीय ध्रुव का कोई अस्तित्व नहीं होता है।
(iv) चुम्बकीय ध्रुवों का संयोग (Magnetic Poles Exist in Pairs) किसी चुम्बक को बीच में से तोड़ देने पर इसके ध्रुव अलग-अलग नहीं होते हैं, बल्कि टूटे हुए भाग पुनः चुम्बक बन जाते हैं तथा प्रत्येक भाग में उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव उत्पन्न हो जाते हैं।
छड़ चुम्बक (Bar Magnet)
जिस प्रकार वैद्युत क्षेत्र के आवेश धनात्मक व ऋणात्मक होते हैं। उसी प्रकार छड़ चुम्बक में दो ध्रुव होते हैं, जो एक उत्तरी ध्रुव तथा दूसरा दक्षिणी ध्रुव का निर्माण करता है।
पृथ्वी का चुम्बकत्व (Earth’s Magnetism)
पृथ्वी चुम्बकीय क्षेत्र का एक प्राकृतिक स्रोत है, जहाँ पृथ्वी की सतह पर प्रत्येक स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र विद्यमान रहता है।
(i) पृथ्वी तल के समीप क्षैतिज दिशा में स्वतन्त्रतापूर्वक घूमती हुई चुम्बकीय सुई का सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा में ही ठहरना, यदि सुईं को किसी दिशा से विस्थापित करके छोड़ दिया जाए, तो भी यह शीघ्र ही अपनी उपयुक्त स्थिति उत्तर-दक्षिण में ही पुनः ठहर जाती है। इसी प्रकार, किसी दण्ड चुम्बक को किसी ऊर्ध्वाधर धागे द्वारा स्वतन्त्रतापूर्वक लटकाने पर, चुम्बक भी सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा में ही ठहरता है। यह तभी सम्भव है जब चुम्बकीय सुईं तथा चुम्बक किसी निश्चित चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित हों, जो पृथ्वी के कारण ही हो सकता है। तथा चुम्बकीय क्षेत्र पृथ्वी के आकार के समान होता है। चुम्बकीय क्षेत्र पृथ्वी के व्यास की लम्बाई का 1/5 वाँ भाग होता है, जो पृथ्वी के केन्द्र की ओर झुका रहता है।
(ii) दक्षिणी ध्रुव पर पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र, पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव की ओर अग्रसरित होता है। इसी प्रकार उत्तरी ध्रुव दक्षिणी ध्रुव की ओर अग्रसरित होता है। अतः दक्षिणी ध्रुव का चुम्बकीय क्षेत्र भौगोलिक रूप से उत्तर की ओर होता है तथा उत्तरी ध्रुव का चुम्बकीय क्षेत्र भौगोलिक रूप से दक्षिण की ओर होता है। पृथ्वी की सतह पर चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण 4×10-5 टेस्ला होता है।
पृथ्वी का अपना चुम्बकीय क्षेत्र होता है। चुम्बकत्व पृथ्वी के केन्द्र पर चुम्बकीय द्विध्रुव की भाँति व्यवहार करता है, उस स्थिति में पृथ्वी के भौगोलिक उत्तरी ध्रुव के समीप ध्रुव को चुम्बकीय उत्तरी ध्रुव कहते हैं। इसी प्रकार भौगोलिक दक्षिणी ध्रुव के समीप ध्रुव को चुम्बकीय दक्षिणी ध्रुव कहते हैं। यह द्विध्रुव पृथ्वी के घूर्णन अक्ष के साथ एक छोटा कोण बनाता है।
पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के अवयव (Components of Earth’s Magnetic Field) 
पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के अवयव निम्न प्रकार हैं
(i) दिपात कोण (Angle of Declination) किसी स्थान पर पृथ्वी की भौगोलिक याम्योत्तर (geographical meridian) एवं चुम्बकीय याम्योत्तर के बीच के न्यूनकोण को पृथ्वी के उस स्थान का दिक्पात कोण कहते हैं।
(ii) नमन कोण (Angle of Dip) किसी स्थान पर चुम्बकीय याम्योत्तर में मुक्त रूप से लटकायी गई चुम्बकीय सुईं की अक्ष क्षैतिज के साथ जो कोण बनाती है, उसे उस स्थान पर नमन कोण कहते हैं। पृथ्वी के ध्रुवों पर यह अधिकतम (90°) तथा भूमध्य रेखा पर न्यूनतम (0°) होता है। इसे δ से प्रदर्शित करते हैं।
(iii) पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक (Horizontal Component of Earth’s Magnetic Field) किसी स्थान पर पृथ्वी के सम्पूर्ण चुम्बकीय क्षेत्र (Be) को क्षैतिज घटक (H) एवं ऊर्ध्वाधर घटक (V) में वियोजित कर सकते हैं। प्रायोगिक दृष्टिकोण से इनमें क्षैतिज घटक अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।
इनमें निम्नलिखित सम्बन्ध होता है
इन घटकों के मान स्थान के साथ-साथ समय पर भी अनियमित रूप से निर्भर रहते हैं।
(iv) भौगोलिक याम्योत्तर (Geographical Meridian) किसी स्थान पर पृथ्वी के क्षैतिज तल में स्थित भौगोलिक उत्तर-दक्षिण दिशा से गुजरने वाले ऊर्ध्वाधर तल को भौगोलिक याम्योत्तर कहते हैं।
(v) चुम्बकीय याम्योत्तर (Magnetic Meridian) जब मुक्त रूप से लटकता हुआ दण्ड चुम्बक स्थिर होता है, तब उसके अक्ष से होकर गुजरने वाले एक ऊर्ध्वाधर समतल को चुम्बकीय याम्योत्तर कहते हैं।
(vi) उदासीन बिन्दु (Neutral Point) उदासीन बिन्दु पर परिणामी चुम्बकीय क्षेत्र शून्य होता है, अर्थात् उदासीन बिन्दु पर पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र किसी अन्य चुम्बकीय क्षेत्र के बराबर तथा दिशा में विपरीत होता है।
(vii) चुम्बकीय तूफान (Magnetic Storm) सभी स्थान पर चुम्बकीय तत्त्वों में समय के साथ नियमित परिवर्तन होते रहते हैं, किन्तु कभी-कभी अचानक कुछ अनियमित परिवर्तन भी होते हैं। अनियन्त्रित परिवर्तन का परिमाण बहुत अधिक होता है। पृथ्वी के चुम्बकीय बल क्षेत्र के तत्त्वों के ऐसे परिवर्तन को चुम्बकीय तूफान कहा जाता है। ये दूर संचार प्रणालियों को प्रभावित करता है।
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता (Intensity of Magnetic Field) 
यह चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा किसी पदार्थ के चुम्बकन की मात्रा को मापता है। दूसरे शब्दों में, निर्वात् में चुम्बकीय प्रेरण एवं निर्वात् की चुम्बकीय पारंगम्यता के अनुपात को चुम्बकन क्षेत्र (H) कहते हैं।
चुम्बकीय पदार्थ (Magnetic Substances)
सन् 1846 में फैराडे ने देखा कि सभी पदार्थों में चुम्बकत्व के गुण पाए जाते हैं। उसने अनेक पदार्थों को चुम्बकीय क्षेत्र रखकर उनके चुम्बकीय व्यवहारों का अध्ययन किया। इस आधार पर पदार्थों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है
1. प्रतिचुम्बकीय पदार्थ (Diamagnetic Substance)
वे पदार्थ, जो बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखे जाने पर क्षेत्र की विपरीत दिशा में क्षीण चुम्बकित हो जाते हैं तथा ये पदार्थ किसी शक्तिशाली चुम्बक के सिरे के समीप लाए जाने पर कुछ प्रतिकर्षित होते हैं, इन्हें प्रतिचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं तथा इनके इस गुण को प्रतिचुम्बकत्व ( diamagnetism) कहते हैं । उदाहरण बिस्मिथ, एण्टीमनी, जस्ता, ताँबा, चाँदी, सोना, हीरा, नमक, जल, पारा, ऐल्कोहॉल, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, आदि प्रतिचुम्बकीय पदार्थ हैं।
गुण (Properties)
(i) प्रतिचुम्बकीय पदार्थों की चुम्बकीय प्रवृत्ति कम तथा ऋणात्मक होती है। इनकी चुम्बकीय प्रवृत्ति ताप पर निर्भर नहीं करती।
(ii) जब इन पदार्थों को असमान चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है, तो ये अधिक तीव्रता वाले भाग से कम तीव्रता वाले भाग की ओर आकर्षित होते हैं।
(iii) ये पदार्थ एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में कमजोर चुम्बकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित होते हैं।
(iv) चुम्बकीय बल रेखाओ में ये कण वायु की अपेक्षा अधिक दूर होते हैं।
(v) चुम्बकीय बल क्षेत्र में, चुम्बकीय कण ताप के बढ़ने अथवा घटने पर परिवर्तित नहीं होते हैं।
2. लौहचुम्बकीय पदार्थ (Ferromagnetic Substance)
कुछ पदार्थ बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखे जाने पर क्षेत्र की दिशा में प्रबल रूप से चुम्बकित हो जाते हैं तथा किसी ‘चुम्बक के सिरे के समीप लाए जाने पर सिरे की ओर तेजी से आकर्षित होते हैं, इन्हें लौहचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं तथा इनके इस गुण को लौहचुम्बकत्व ( ferromagnetism) कहते हैं।
उदाहरण लोहा, निकिल, कोबाल्ट, मैग्नेटाइट, फेरिक क्लोराइड का जलीय विलयन, आदि लौहचुम्बकीय पदार्थ हैं।
गुण (Properties)
(i) ये पदार्थ चुम्बक द्वारा आकर्षित होते हैं।
(ii) इन पदार्थों में अनुचुम्बकीय पदार्थों (paramagnetic substances) के सभी गुण अधिक प्रबलता में पाए जाते हैं।
(iii) इनकी चुम्बकीय प्रवृत्ति ताप बढ़ने पर कम तथा ताप घटने पर अधिक हो जाती है।
(iv) इनकी आपेक्षिक चुम्बकशीलता 1 से बहुत अधिक होती है।
(v) इनकी चुम्बकीय प्रवृत्ति धनात्मक एवं अधिक होती है। जब इन्हे क्यूरी ताप से ऊपर गर्म किया जाता है तो ये क्यूरी नियम का पालन करते हैं।
(vi) चुम्बकीय बल रेखाओं में ये कण वायु के कणों की अपेक्षा अधिक पास होते हैं।
(vii) असमान चुम्बकीय क्षेत्र में, ये पदार्थ क्षीण क्षेत्र से प्रबल क्षेत्र की ओर गति करते हैं।
3. अनुचुम्बकीय पदार्थ (Paramagnetic Substance)
कुछ पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र में रखे जाने पर क्षेत्र की ही दिशा में मामूली से चुम्बकित हो जाते हैं तथा किसी शक्तिशाली चुम्बक के सिरे के समीप लाए जाने पर सिरे की ओर आकर्षित होते हैं, इन्हें अनुचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं तथा इनके इस गुण को अनुचुम्बकत्व कहते हैं। उदाहरण ऐलुमिनियम, सोडियम, प्लेटिनम, मैंगनीज, कॉपर, क्लोराइड, नमक का मिश्रण, ऑक्सीजन, आदि अनुचुम्बकीय पदार्थ हैं।
गुण (Properties)
(i) जब इन पदार्थों की छड़ को चुम्बकीय ध्रुवों के बीच स्वतन्त्रतापूर्वक लटकाते हैं, तो छड़ की अक्ष घूमकर चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर हो जाती है।
(ii) जब इन पदार्थों को असमान चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है, तो ये कम तीव्रता वाले भाग से अधिक तीव्रता वाले भाग की ओर आकर्षित होते हैं।
(iii) इनकी चुम्बकीय प्रवृत्ति इनके केल्विन ताप के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
(iv) इनकी आपेक्षिक चुम्बकशीलता 1 से थोड़ा अधिक एवं 2 से कम होती है। इनकी चुम्बकीय प्रवृत्ति इनके केल्विन ताप के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
(v) इनकी चुम्बकीय प्रवृत्ति धनात्मक एवं कम होती है।
(vi) चुम्बकीय बल रेखाओ में ये कण वायु के कणों की अपेक्षा अधिक पास होते हैं।
(vii) ताप में वृद्धि करने पर इन पदार्थों का चुम्बकत्व घटता है।
वैद्युत चुम्बक (Electromagnet)
वैद्युत चुम्बक एक परिनालिका कुण्डली होती है, जिसमें धारा के प्रवाह के कारण चुम्बकत्व उत्पन्न होता है। यह चुम्बकीय धारा के प्रभाव के नियम पर कार्य करता है। इसमें एक नर्म लोहे की कोर के चारो तरफ एक लम्बा विद्युतरोधी तार लिपटा होता है। तथा चुम्बकीय प्रभाव के कारण परिनालिका से धारा गुजरने लगती है।
नर्म लोहे (soft iron) का उपयोग वैद्युत चुम्बक या कृत्रिम चुम्बक बनाने में किया जाता है। घड़ी के अनुदिश नियम (clock face rule) का उपयोग वैद्युत चुम्बक के उत्तरी- दक्षिणी ध्रुव को ज्ञात करने में किया जाता है।
वैद्युत क्षेत्र की प्रबलता बढ़ाने पर यह निम्न कारकों पर निर्भर करती है
(i) कुण्डली में तारों की संख्या बढ़ाने पर ।
(ii) बहती धारा की मात्रा बढ़ाने पर ।
(iii) ध्रुवों के बीच स्थान कम करने पर ।
वैद्युत चुम्बक के उपयोग (Uses of Electromagnet) इसका उपयोग वैद्युत मोटर, वैद्युत घंटी, टेलीफोन डायफ्राम, लाउडस्पीकर तथा स्क्रैप धातु छंटाई और अस्पतालों में निष्कर्षण के लिए किया जाता है। विशाल वैद्युत चुम्बकों का उपयोग मशीनों को उठाने के लिए प्रयोग में आने वाली क्रेनों में किया जाता है।
स्थायी चुम्बक (Permanent Magnet)
वे पदार्थ जो कमरे के तापमान पर अधिक समय तक लौहचुम्बकीय गुणों का अनुसरण करते हैं, स्थायी चुम्बक कहलाते हैं। किसी लौहचुम्बकीय पदार्थ में धारावाही परिनालिका का प्रयोग करके स्थायी चुम्बक बना सकते हैं। एक लौहचुम्बकीय पदार्थ की छड़ को एक धारावाही परिनालिका में रखकर स्थायी चुम्बक बनायी जाती है। तथा परिनालिका का चुम्बकीय क्षेत्र छड़ को चुम्बकित कर देता है।
स्थायी चुम्बक बनाने के लिए पदार्थ में उच्च निग्राहिता एवं उच्च धारणशीलता (high coercivity and high retentivity) होनी चाहिए। इसके B-H लूप का क्षेत्रफल अधिक होने के कारण ऊर्जा हानि भी अधिक होती है. परन्तु यह केवल स्थायी चुम्बक बनाते समय अर्थात् एक बार ही होती है। अतः स्थायी चुम्बक स्टील या फौलाद के बनाए जाते हैं। उदाहरण एलिको, कोबाल्ट, स्टील तथा टीकानेल, आदि से स्थायी चुम्बक बनाई जाती है।
चुम्बकीय फ्लक्स (Magnetic Flux) 
एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित किसी सतह से अभिलम्बवत् गुजरने वाली बल रेखाओं की कुल संख्या को उस सतह से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स कहते हैं, इसे 0 से प्रदर्शित करते हैं।
अर्थात्                   (Φ = B· A = BA cos θ)
इसका SI मात्रक वेबर या टेस्ला / मी2 तथा CGS मात्रक मैक्सवेल (Mx) होता है।
                              1 Wb = 108 Mx
                              1 वेबर = 1 टेस्ला-मी2 = 1 Wb
◆ यदि कोई तल चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर है, तो उस तल से कोई फ्लक्स रेखा नहीं गुजरेगी, जिसके कारण इस तल से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स शून्य होगा।
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) 
जब किसी कुण्डली तथा चुम्बक के बीच सापेक्ष गति होती है तो कुण्डली में एक वैद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है जिसे प्रेरित वैद्युत वाहक बल कहते हैं तथा इस घटना को वैद्युतचुम्बकीय प्रेरण कहते हैं।
फैराडे के वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम (Faraday’s Laws of Electromagnetic Induction) 
वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण के दो नियम होते हैं
प्रथम नियम (First Law) जब कभी परिपथ से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है, तब इसमें विद्युत वाहक बल प्रेरित हो जाता है। परिपथ यदि बन्द है, तो विद्युत वाहक बल के कारण परिपथ में एक विद्युत धारा भी प्रेरित हो जाती है। परिपथ में विद्युत वाहक बल केवल तभी तक प्रेरित होता है, जब तक परिपथ से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है। इसे फैराडे का प्रथम नियम कहते हैं।
द्वितीय नियम (Second Law) किसी परिपथ में प्रेरित वैद्युत वाहक बल चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन की ऋणात्मक दर के अनुक्रमानुपाती होता है,
अर्थात् प्रेरित वैद्युत वाहक बल,                    (e= –  dΦ dt)
इसे लेन्ज का नियम (Lenz’s law) भी कहते हैं।
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के प्रकार (Types of Electromagnetic Induction) 
चुम्बकीय प्रेरण दो प्रकार का होता है
(i) स्वप्रेरण (Self-induction) जब एक परिपथ में बहने वाली धारा में परिवर्तन होता है, तब परिपथ से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में भी परिवर्तन होता है। परिणामस्वरूप, परिपथ में एक प्रेरित विद्युत वाहक बल (electromagnetic force) स्थापित हो जाता है। यह घटना स्वप्रेरण (self-induction) कहलाती है तथा उत्पन्न विद्युत वाहक बल; पश्च विद्युत वाहक बल (back emf) पर स्वप्रेरित विद्युत वाहक बल (self-induced emf) कहलाता है।
जब कुण्डली में धारा प्रवाहित की जाती है, तब स्वप्रेरण धारा की वृद्धि का विरोध करता है तथा जब कुण्डली में धारा बन्द की जाती है, तब स्वप्रेरण धारा के क्षय का विरोध करता है। इसलिए स्वप्रेरण को वैद्युत का जड़त्व भी कहते हैं।
(ii) अन्योन्य प्रेरण (Mutual Induction) जब दो चालक पाश एक-दूसरे के सन्निकट हों तथा उनमें से एक चालक में प्रवाहित धारा के मान में परिवर्तन करें, तो दूसरे चालक में एक प्रेरित वैद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है, वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण की इस घटना को अन्योन्य प्रेरण कहते हैं।
भँवर धाराएँ (Eddy Currents)
का टुकड़ा किसी वैज्ञानिक फोको ने सन् 1895 में यह देखा कि जब किसी आकृति तथा आकार का कोई धातु परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित होता है अथवा किसी चुम्बकीय क्षेत्र में गति करता है, तो उससे सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन हो तो धातु के सम्पूर्ण आयतन में प्रेरित धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं, जोकि धातु के टुकड़े की गति का विरोध करती हैं। ये धाराएँ जल में उत्पन्न भँवर धाराओं के समान चक्करदार होती हैं, अतः इन धाराओं को भँवर धाराएँ कहते हैं।
भँवर धाराओं के अनुप्रयोग (Applications of Eddy Current) 
(i) रेलगाड़ियों में चुम्बकीय ब्रेक में (Magnetic Braking in Trains)
(ii) विद्युतचुम्बकीय अवमन्दन (Electromagnetic Damping)
(iii) प्रेरण भट्टी (Induction Furnace)
(iv) विद्युत शक्ति मीटर (Electric Power Meter)
विद्युत मोटर (Electric Motor)
विद्युत मोटर एक ऐसी घूर्णन युक्ति है, जिसमें विद्युत ऊर्जा का यान्त्रिक ऊर्जा में रूपान्तरण होता है।
सिद्धान्त (Principle)
विद्युत मोटर इस सिद्धान्त पर आधारित है कि जब आयताकार कुण्डली को चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तथा इसमें धारा प्रवाहित की जाती है, तब दो बराबर तथा विपरीत बल कुण्डली पर लगते हैं, जो इसे लगातार घुमाते रहते हैं।
रचना व कार्यविधि (Construction and Working) 
विद्युत मोटर में विद्युतरोधी तार की एक आयताकार कुण्डली ABCD होती है। यह कुण्डली किसी चुम्बकीय क्षेत्र के दो ध्रुवों के बीच इस प्रकार रखी होती है कि इसकी भुजाएँ AB तथा CD चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् रहें। कुण्डली के दो सिरे विभक्त वलय के दो अर्द्धभागों P तथा Q से संयोजित होते हैं। इन अर्द्धभागों की भीतरी सतह विद्युतरोधी होती है तथा धुरी से जुड़ी होती है। P तथा Q के बाहरी चालक सिरे क्रमशः दो स्थिर ब्रुशों (brushes) X तथा Y से स्पर्श करते हैं।
व्यावसायिक विद्युत मोटर (Commercial Electric Motor)
व्यावसायिक मोटरों में स्थाई चुम्बकों के स्थान पर विद्युत चुम्बक प्रयोग किए जाते हैं तथा विद्युत धारावाही कुण्डली में फेरों की संख्या अत्यधिक होती है। कुण्डली नर्म लौह-क्रोड पर लपेटी जाती है। वह नर्म लौह-क्रोड जिस पर कुण्डली को लपेटा जाता है तथा कुण्डली दोनों मिलकर आर्मेचर (armature) कहलाते हैं। इससे मोटर की शक्ति में वृद्धि हो जाती है।
उपयोग (Uses)
एक महत्त्वपूर्ण अवयव के रूप में विद्युत मोटर का उपयोग विद्युत पंखों, रेफ्रिजरेटरों, विद्युत मिश्रकों, वाशिंग मशीनों, कम्प्यूटरों, MP3 प्लेयरों, आदि में किया जाता है।
◆ दिष्ट-धारा मोटर बैटरी की दिष्ट-धारा ऊर्जा को यान्त्रिकी ऊर्जा में बदलता है।
विद्युत जनित्र (AC Generator)
ऐसी विद्युत धारा जो समान समय अन्तरालों के पश्चात् अपनी दिशा में परिवर्तन कर लेती है, उसे प्रत्यावर्ती धारा ( alternating current) कहते हैं। विद्युत उत्पन्न करने की इस युक्ति को प्रत्यावर्ती धारा जनित्र कहते हैं।
रचना (Construction)
AC जनित्र में, एक प्रवल वैद्युत क्षेत्र की एक आयताकार कुण्डली (rectangular armature coil) होती है। जिसमें स्थायी चुम्बक (permanent magnet) के दोनों ध्रुवों के बीच एक प्रवल चुम्बकीय क्षेत्र होता है। इसमें बल आघूर्ण द्वारा धारा उत्पन्न होती है। इसमें दो स्लिप रिंग कुण्डली के सम्पर्क में रहते हैं, जो बल वाहक ब्रुश के साथ होते हैं, जो बिना किसी अवरोध के घूमते हैं।
दिष्ट् जनित्र (DC Generator)
ऐसी विद्युत धारा जो समय के साथ अपनी दिशा नहीं बदलती है, दिष्ट् धारा (direct current) कहलाती है।
रचना (Construction )
AC जनित्र की रचना DC डाइनेमो की तरह समान होती है जिसमें स्लिप कम्यूलेटर, स्पिलिट रिंग, आदि का प्रयोग किया जाता है। इस परिपथ में एक ब्रुश हमेशा वैद्युत क्षेत्र में आगे बढ़े हाथ के सम्पर्क में रहता है तथा दूसरा पीछे बढ़े हाथ के सम्पर्क में रहता है।
घरेलू विद्युत परिपथ (Domestic Electric Circuit)
हम अपने घरों में विद्युत शक्ति की आपूर्ति मुख्य तारों (जिसे मेंस भी कहते हैं) से प्राप्त करते हैं। ये मुख्य तार या तो धरती पर लगे विद्युत खम्भों के सहारे अथवा भूमिगत केबलों से हमारे घरों तक आते हैं। इस आपूर्ति के तारों में से एक तार को जिस पर प्रायः लाल विद्युतरोधी आवरण होती है, जीवित तार (live wire) अथवा धनात्मक तार कहते हैं। इसे सम्बन्ध तार भी कहते हैं। अन्य तार को जिस पर काला आवरण होता है, उदासीन तार (neutral wire) अथवा ऋणात्मक तार कहते हैं। हमारे देश में इन दोनों तारों के बीच 220 वोल्ट का विभवान्तर तथा 50 हर्टज की आवृत्ति होती है।
घर में लगे मीटर बोर्ड में ये तार मुख्य फ्यूज़ से होते हुए एक विद्युत मीटर में प्रवेश करते हैं, इन्हें मुख्य स्विच से होते हुए घर के लाइन तारो से संयोजित किया जाता है। ये तार घर के पृथक्-पृथक् परिपथों में विद्युत आपूर्ति करते हैं। प्रायः घरो में दो पृथक् परिपथ (distribution circuit) होते हैं, एक 15 A विद्युत धारा अनुमतांक के लिए जिसका उपयोग उच्च शक्ति वाले विद्युत साधित्रों जैसे गीजर, वायु शीतित्र या कूलर (air cooler), आदि के लिए किया जाता है। दूसरा विद्युत परिपथ 5 A विद्युत धारा अनुमतांक के लिए होता है।
विभिन्न घटनाएँ तथा घरेलू विद्युत परिपथ के अवयव (Different Phenomena and Components in Domestic Electric Circuit)
भू-सम्पर्क तार (Earthing or Earth Wire)
मनुष्य विद्युत के झटकों से बचने के लिए भू-सम्पर्क तार का प्रयोग करता है। इसका अर्थ यह है कि ऐसी धातु जिसका विभव शून्य हो तथा वह पृथ्वी से जुड़ी हुई हो, तब उस धातु के तार को अर्थ तार कहते हैं। भू-सम्पर्क तार जिस पर प्रायः हरा विद्युतरोधी आवरण होता है यह घर के निकट भूमि के भीतर बहुत गहराई पर स्थित धातु की प्लेट से संयोजित होता है। इसे तीन पिन वाले प्लग को ऊपर वाले पिन द्वारा भू-सम्पर्क से जोड़ते हैं। अर्थ का उपयोग विद्युत झटकों से बचाने के लिए होता है।
शॉर्ट परिपथ (Short Circuiting)
यदि धारा प्रवाहित तार तथा उदासीन तार सीधे या सम्बन्धित तारो द्वारा सम्पर्क में आ जाते हैं, तब यह घटना शॉर्ट परिपथ कहलाती है। इस दशा में, परिपथ का प्रतिरोध सामान्यतः शून्य हो जाता है जिससे अधिक धारा प्रवाहित होती है तथा यह गर्म होकर आग का रूप धारण कर लेती है।
ओवर लोडिंग (Overloading)
जब एक ही समय में किसी परिपथ से उच्च क्षमता वाले बहुत सारे विद्युत उपकरण जोड़े जाते हैं, तब यह घटना ओवर लोडिंग कहलाती है जिससे तार में अधिक धारा की आवश्यकता होती है जिसके कारण तार गर्म हो जाता है और आग लगने की घटना घट जाती है।
फ्यूज (Fuse)
विद्युत उपकरणों में उन पर अंकित निर्धारित धारा से अधिक धारा प्रवाह होने से रोकने की युक्ति को विद्युत फ्यूज कहते हैं। जब परिपथ में विद्युत धारा का मान बहुत बढ़ जाता है या दोनों तार परस्पर मिल जाते हैं, तो परिपथ लघुपथित हो जाता है तथा उत्पन्न ऊष्मा से उपकरणों के जल जाने या आग लग जाने का खतरा उत्पन्न हो जाता है। इन खतरों से बचने के लिए परिपथों की वायरिंग में फ्यूज तार लगाए जाते हैं। फ्यूज तार ताँबा, टिन (25%) और सीसे (75%) के मिश्रण से बना हुआ एक छोटा सा तार होता है जिसका गलनांक बिन्दु 200°C के आस-पास होता है जो चीनी मिट्टी के होल्डर में लगे दो धात्विक टर्मिनलों के बीच खिंचा रहता है। इस तार का गलनांक ताँबे की तुलना बहुत कम तथा प्रतिरोधकता उच्च होती है।
जिस परिपथ की सुरक्षा करनी होती है उसके संयोजक तारों के श्रेणीक्रम में उचित क्षमता का फ्यूज तार लगाते हैं जिससे अधिक विद्युत धारा प्रवाहित होने पर फ्यूज तार गर्म होकर पिघल जाता है तथा परिपथ टूट जाता है तथा विद्युत उपकरण खराब होने से बच जाते हैं।
लघु परिपथ भंजक (Miniature Circuit Breaker, MCB)
ये सुरक्षा स्विच हैं, जिसका उपयोग विद्युत उपकरणों की सुरक्षा के लिए किया जाता है। जिस समय यह पिघल जाते हैं, तब इन्हें पुनः लगाया जाता है। MCB द्वारा ऐसी घटनाओं पर काबू पाया जाता है। अधिक धारा होने पर MCB बन्द हो जाती है, तब परिपथ से आगे की विद्युत धारा अवरुद्ध हो जाती है।
ट्रांसफॉर्मर (Transformer)
ट्रांसफॉर्मर एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग प्रत्यावर्ती धारा के वोल्टेज को घटाने या बढ़ाने में किया जाता है। यह अन्योन्य प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है। जब प्राथमिक कुण्डली में जाने वाली धारा से एक परिवर्तनशील चुम्बकीय फ्लक्स उत्पन्न होता है, तब समान क्रोड से सम्बद्ध द्वितीयक कुण्डली में भी परिवर्तनशील चुम्बकीय फ्लक्स के कारण एक प्रत्यावर्ती विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है।
एक ट्रांसफॉर्मर के निम्नलिखित तीन भाग होते हैं
(i) पटलित क्रोड, (ii) प्राथमिक कुण्डली, (iii) द्वितीयक कुण्डली |
इसमें कच्चे लोहे या सिलिकॉन स्टील (silicon steel) की पृथक्कृत पत्तियों में बना एक आयताकार क्रोड होता है। कच्चा लोहा या सिलिकॉन स्टील दोनों लौहचुम्बकीय पदार्थ होते हैं। अतः ये चुम्बकीय बल रेखाओं को केन्द्रित करके ऊर्जा के क्षय को कम करते हैं। इसके अलावा क्रोड में उत्पन्न भँवर धाराओं के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से इसे पटलित बनाया जाता है। क्रोड की एक भुजा पर ताँबे के तारों की एक कुण्डली लिपटी रहती है, जिसे प्राथमिक कुण्डली (primary coil) कहते हैं। प्राथमिक कुण्डली के सामने वाली दूसरी भुजा पर एक और कुण्डली लिपटी रहती है, जिसे द्वितीयक कुण्डली (secondary coil) कहते हैं।
ट्रांसफॉर्मर दो प्रकार के होते हैं
(i) उच्चायी ट्रांसफॉर्मर (Step-up Transformer) यह ट्रांसफॉर्मर निम्न विभव की उच्च प्रत्यावर्ती धारा को उच्च विभव की निम्न प्रत्यावर्ती धारा में परिवर्तित करता है। उच्चायी ट्रांसफॉर्मर में द्वितीयक कुण्डली में फेरों की संख्या प्राथमिक कुण्डली में फेरों की संख्या से अधिक होती है।
(ii) अपचायी ट्रांसफॉर्मर (Step-down Transformer) यह ट्रांसफॉर्मर उच्च विभव की निम्न प्रत्यावर्ती धारा को निम्न विभव की उच्च प्रत्यावर्ती धारा में परिवर्तित करता है। अपचायी ट्रांसफार्मर में प्राथमिक कुण्डली में फेरों की संख्या द्वितीयक कुण्डली में फेरों की संख्या से अधिक होती है।
◆ ट्रांसफॉर्मर दिष्ट् धारा का संचालन नहीं करता है, यह केवल प्रत्यावर्ती धारा का संचालन निवेशी तथा निर्गत धारा प्रदान करने में करता है।
◆ निर्वात् नली में ट्रांसफॉर्मर विद्युत धारा को परिवर्तित नहीं कर सकता है।
◆ ट्रांसफॉर्मर वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण पर आधारित है, जो चुम्बकीय ऊर्जा को वैद्युत ऊर्जा में बदलता है।
ट्रांसफॉर्मरों के उपयोग (Uses of Transformers)
ट्रांसफॉर्मरों का उपयोग सभी प्रत्यावर्ती संचालनों में किया जाता है जो निम्न प्रकार हैं
(i) वोल्टेज रेफ्रिजरेटर, टी. वी. के वोल्टेज रेगुलेटर, कम्प्यूटर, शीतलक, आदि में।
(ii) अपचायी ट्रांसफॉर्मर का उपयोग वैल्डिंग में किया जाता है।
(iii) प्रेरण भट्टी में |
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