व्यक्तिगत स्वच्छता के महत्त्व को लिखिए।
व्यक्तिगत स्वच्छता के महत्त्व को लिखिए।
उत्तर— व्यक्तिगत स्वच्छता का महत्त्व — प्राचीन काल से ही व्यक्तिगत स्वच्छता को निरोगी शरीर के लिए आवश्यक माना गया है। भारत में भी ऐसी मान्यता है कि देवता भी वहीं निवास करते हैं, जहाँ स्वच्छता होती है। जहाँ स्वच्छता है वहीं शरीर और मन की पवित्रता है, व्यक्तिगत और सार्वजनिक आरोग्य है तथा अपना और समाज का हित और कल्याण है। स्वच्छता सबसे पहले अपने आप से आरम्भ होती है । अपने आप को स्वच्छ रखने वाला व्यक्ति अच्छे स्वास्थ्य वाला भी होता है। जबकि व्यक्तिगत स्वच्छता पर ध्यान न देने पर व्यक्ति आलसी हो जायेगा उसकी कार्य क्षमता क्षीण हो जायेगी क्योंकि गन्दगी रोगों व क्लेशों को निमंत्रण देती है। इस दृष्टि से व्यक्तिगत स्वच्छता का स्वास्थ्यप्रद जीवनयापन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। व्यक्तिगत स्वच्छता के महत्त्व को उसके द्वारा होने वाले फायदों के संदर्भ में अच्छी तरह से समझा जा सकता है—
(1) संक्रामक रोगों से बचाव – गन्दगी रोगों का घर कहलाती है जिस बच्चे द्वारा अपने अंग-प्रत्यंगों की सफाई पर ध्यान नहीं दिया जाता वह तरह-तरह के रोगों का शिकार हो जाता है। संक्रामक रोगों की रोकथाम व बचाव के लिए व्यक्तिगत सफाई महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऐसे अनेक संक्रामक रोग होते हैं जो गन्दे हाथों द्वारा फैलते हैं। यदि केवल हाथों की सफाई का ध्यान रखें, खाना खाने से पहले व शौच आदि के बाद साबुन से हाथ धोएँ तो बहुत से ऐसे संक्रामक रोग हैं, जिन्हें हम रोक सकते हैं या उससे अपना बचाव कर सकते हैं।
(2) स्वास्थ्य को बढ़ावा – मशीन के कलपुर्जे तभी ठीक तरह से कार्य करते हैं जबकि नियमित रूप से उनकी सफाई इत्यादि पर ध्यान दिया जाता रहे। यही बात हमारे शरीर के अंग-प्रत्यंगों के ठीक तरह से कार्य करने पर लागू होती है। व्यक्तिगत सफाई व स्वच्छता पर विशेष बल देने से व्यक्तिगत स्वास्थ्य व सामुदायिक स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता है। इस प्रकार यदि सभी व्यक्तियों का स्वास्थ्य अच्छा हो जाता है तो पूर्ण राष्ट्र के नागरिकों का स्वास्थ्य भी अच्छा हो जाता है जिससे पूरा राष्ट्र उन्नति की ओर अग्रसर हो जाता है। R.W. Emerson के अनुसार, “एक राष्ट्र का उत्थान उस राष्ट्र के नागरिकों के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। “
(3) व्यक्तित्व के विकास में सहायक – व्यक्तिगत सफाई व स्वच्छता व्यक्तित्व के आकर्षण में चार चाँद लगा देती है। जो व्यक्ति साफ एवं स्वच्छ रहता है वह सभी को आकर्षक लगता है। विद्यार्थी भी आपस में उसकी प्रशंसा करते हैं, क्यों न हो, सुन्दर एवं सजीली आँखें, स्निग्ध एवं कांतिमय त्वचा, सुन्दर काले केश, साफ एवं उपयुक्त वस्त्र, मोती जैसे चमकते दाँत, स्वच्छ और सुन्दर हाथ, पैर भला किसका मन नहीं मोह लेंगे। वास्तव में सफाई एवं स्वच्छता उसके व्यक्तित्व में निखार लाती है। यही कारण है कि व्यक्तिगत स्वच्छता का ध्यान रखने वाले बच्चे गंदे रहने वाले बच्चों की तुलना में कहीं अधिक सामाजिक, मिलनसार और समायोजित पाए जाते हैं। उनमें आत्मविश्वास तथा समायोजन शक्ति होती है।
(4) हीनभावना से मुक्ति – जो व्यक्ति साफ व स्वच्छ रहते हैं वे हीन भावना से मुक्त रहते हैं। ऐसे व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों से मिलनेजुलने में कोई संकोच नहीं करते जबकि जो बच्चे गन्दे रहते हैं उन् साथ कोई मित्रता नहीं रखना चाहता । वे स्वयं भी दूसरे बच्चों से मिलने में शर्म महसूस करते हैं। साफ एवं स्वच्छ रहने से आत्मविश्वास बढ़ता है तथा हीन भावना नहीं पनपती ।
(5) रुचि एवं अभिवृत्ति में परिवर्तन – शारीरिक स्वच्छता न केवल शारीरिक शक्ति, सजगता, स्फूर्ति एवं कार्य क्षमता में वृद्धि का कारण बनती है, बल्कि मानसिक शक्तियों के समुचित विकास और उसकी कार्य क्षमता में वृद्धि करने में सहायक है। इससे हमारी रुचि व अभिवृत्ति में बदलाव आता है, सोच सकारात्मक हो जाती है, व्यवहार अच्छा हो जाता है और इसके परिणामस्वरूप आस-पास का वातावरण सहज, सुन्दर व स्वस्थ हो जाता है। हमारी कार्य करने में रुचि बढ़ जाती है व हमारे विचारों पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है।
(6) शैक्षणिक महत्त्व – यदि शरीर स्वस्थ न हो तो शिक्षा को सफलतापूर्वक जारी नहीं रखा जा सकता, शरीर उचित स्वास्थ्य विज्ञान के साथ ही स्वस्थ रहता है। इस प्रकार शिक्षा और स्वास्थ्य साथ-साथ चलते हैं। स्कूलों में स्वास्थ्य शिक्षण छात्रों को दिया जाए ताकि उनमें अच्छी आदतों व सकारात्मक सोच का विकास हो और शरीर व मन स्वस्थ बनें क्योंकि यही माध्यम है जिसके द्वारा जीवन में उच्चतम लक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं। ज्ञानेन्द्रियों को ज्ञान का द्वार कहा जाता है। आँख, कान, नाक, जीभ तथा त्वचा के स्वस्थ रहने एवं सक्रिय बन जाने के कारण इनकी शक्तियों में संवेदनशीलता और प्रत्यक्षीकरण योग्यता में सहज ही अपेक्षित वृद्धि हो जाती है।
(7) स्वास्थ्य पर किए जाने वाले खर्च में कमी – एक प्रसिद्ध कहावत इस संदर्भ में अक्षरश: उपयुक्त लगती है कि, “आम के आम गुठलियों के दाम” प्रथम तो स्वच्छता रखने के लिए कुछ धन व्यय नहीं करना होता है, यह तो समझने तथा स्वभाव व आदत बनाने की बात है। दूसरे स्वच्छता होने से हम स्वस्थ रहेंगे अर्थात् विभिन्न रोगों से मुक्ति मिलेगी। स्वस्थ रहने से दोहरा लाभ होगा एक तो रोगों पर खर्च होने वाले धन की बचत होगी और दूसरी तरफ स्वस्थ रहने पर हम अपना कार्य भली-भाँति सफलतापूर्वक कर सकेंगे। ऐसा कहा भी जा सकता है कि, ” रोगों से बचाव का खर्च इलाज़ से कम होता है।” इसका अर्थ यह है कि यदि व्यक्तिगत सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाए तो अनेक रोगों से बचाव किया जा सकता है, जिसमें इलाज पर किए गए खर्च में कमी आ सकती है।
(8) वैचारिक लाभ – व्यक्तिगत स्वच्छता मानव के विचारों (सोच) को भी प्रभावित करती है। भोजन की स्वच्छता, घर की स्वच्छता, कपड़ों की स्वच्छता व वातावरण की स्वच्छता को देखकर व्यक्ति प्रसन्न रहता है। उसकी मानसिक व शारीरिक थकान दूर हो जाती है तथा वह आराम महसूस करता है, वहाँ रहने और कार्य करने की रुचि उत्पन्न होती है । अपनत्व की भावना पैदा होती है इसी के साथ उसके विचार व सोच सकारात्मक होती चली जाती है, जो दूसरों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनती है ।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि हमें सुखमय जीवन व्यतीत करने हेतु सर्वांगीण विकास हेतु स्वस्थ समाज व स्वस्थ राष्ट्र निर्माण के लिए व्यक्तिगत स्वच्छता अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
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