व्याख्या करें:

व्याख्या करें:

“सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।”

उत्तर :- प्रस्तुत पद्यांश में जनतंत्र की स्थापना की बात कही गयी है। साथ ही, जनता की शक्ति का बोध कराया गया है। कवि रामधारी सिंह दिनकर ने ओजस्वी भाव में जनता की महत्ता का बोध कराते हुए उसकी सहनशीलता, धैर्य की बात बड़े ही सहज रूप में कहा है। साथ ही, भारत की जनता को अपना अधिकार प्राप्त करने, जनतंत्र स्थापित करने, राजसिंहासन पर आरूढ़ होने की प्रेरणा का भाव कवि ने जागृत करने का सफल प्रयास किया है। इस पद्यांश में जनता की शक्ति का व्यापक चित्रण किया गया है जो ओज का भाव जगाता है।

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Ajit kumar

Sub Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

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