शिक्षण को परिभाषित कीजिए तथा इसकी अवस्थाओं की विस्तारपूर्वक विवेचना कीजिए।
शिक्षण को परिभाषित कीजिए तथा इसकी अवस्थाओं की विस्तारपूर्वक विवेचना कीजिए।
उत्तर— शिक्षण– शिक्षण शिक्षा प्राप्त करने की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। शिक्षण छात्र एवं अध्यापक को विषय से जोड़ता है।
एडम्स के अनुसार, “शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्तित्व (शिक्षक) दूसरे व्यक्तित्व (बालक) पर विकास के लिये कार्य करता है इसमें क्रिया सचेतन तथा सप्रयोजन होती है।” अर्थात् बालक अध्यापक कुछ सीखकर अपने व्यवहार में परिवर्तन कर लेता है तो वही शिक्षण का व्यापक रूप है। शिक्षक और शिक्षार्थी विषय-वस्तु के माध्यम से परस्पर अंतःक्रिया करते हुए अधिगम को सरल बनाते हैं। शिक्षक छात्र को कोरा ज्ञान न देकर उसे सोचने-समझने पर भी विवश करता है। दोनों के मध्य विचारों का आदान-प्रदान होता है, छात्र धीरे-धीरे अनुभवों से सीखता जाता है, इस प्रक्रिया में छात्र और शिक्षक के साथ-साथ पाठ्यक्रम भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। अतः शिक्षण शिक्षक-शिक्षार्थी के मध्य घटने वाली क्रिया है। क्लार्क के अनुसार, “शिक्षण ऐसी प्रक्रिया है जिसके संचालन और प्रारूप का व्यवस्थापन इस प्रकार किया जाता है जिससे छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन लाया जा सके।”
शिक्षण की तीन प्रमुख अवस्थाएँ हैं—
(1) शिक्षण का पूर्व क्रिया चरण
(2) अंतःक्रिया चरण
(3) उत्तर क्रिया चरण ।
(1) शिक्षण का पूर्व क्रिया चरण – कक्षा-कक्ष में शिक्षण कार्य प्रारम्भ करने से पहले शिक्षक द्वारा की जाने वाली क्रियाएँ इस चरण के अन्तर्गत आती हैं जो निम्न हो सकती हैं—
(a) शिक्षण के उद्देश्यों का निर्धारण – इस हेतु शिक्षार्थियों के पूर्व व्यवहार को जानकर उसके अंतिम व्यवहार का निर्धारण किया जाता है।
(b) पाठ्यवस्तु का निर्धारण – शिक्षक कक्षा कक्ष में जाने से पूर्व प्रस्तुत की जाने वाली पाठ्यवस्तु का निर्धारण करता है।
(c) प्रस्तुतीकरण की योजना – शिक्षण उद्देश्यों के निर्धारण एवं पाठ्यवस्तु के चयन के पश्चात् शिक्षक पाठ्यवस्तु के प्रस्तुतीकरण की योजना बनाता है।
(2) शिक्षण का अंतःक्रिया चरण – शिक्षक द्वारा कक्षा में प्रवेश के बाद तथा पाठ्यवस्तु के प्रस्तुत करने तक की सभी क्रियाएँ इसके अन्तर्गत आती हैं। शिक्षक मुख्य रूप से निम्न कार्य करता है—
(a) कक्षा आकार की अनुभूति – कक्षा में प्रवेश करते ही शिक्षक कक्षा के आकार की अनुभूति करता है ।
(b) छात्रों की समस्याओं का निदान – शिक्षार्थियों के पूर्व ज्ञान का पता लगा कर उनकी योग्यता व शिक्षण व विषय सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करता है ।
(c) शिक्षार्थियों से क्रिया – प्रतिक्रिया – शिक्षण में प्रारम्भ में की जाने वाली क्रिया व उस क्रिया के प्रति की जाने वाली प्रतिक्रिया शामिल है।
(d) शिक्षण युक्तियों का विस्तार – पाठ्यवस्तु का प्रस्तुतीकरण सरल रूप से करने हेतु शिक्षक शिक्षण युक्तियों को प्रयोग करता है।
(3) शिक्षण का उत्तर क्रिया चरण – इस चरण में शिक्षक द्वारा अन्तः क्रिया चरण में किये गये कार्यों का मूल्यांकन किया जाता है।
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