शिक्षण में ‘भूमिका निर्वाह’ का महत्व क्या है?
शिक्षण में ‘भूमिका निर्वाह’ का महत्व क्या है?
उत्तर— भूमिका निर्वाह– भूमिका निर्वाह अनुरूपीकृत शिक्षण का एक रूप है। इसका प्रयोग दो रूपों में किया जाता है —
(i) शिक्षण कौशलों के विकास के लिए |
(ii) शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए।
जब हम भूमिका निर्वाह का प्रयोग शिक्षण कौशलों के विकास के लिए करते हैं तो एक छात्राध्यापक अपने साथी अन्य छात्राध्यापकों को किसी छोटी कक्षा का छात्र मानकर कोई विषय बनाता है। यहाँ पर एक छात्राध्यापक अध्यापक की भूमिका निभाता है और अन्य साथी छात्राध्यापक किसी छोटी कक्षा के छात्रों की भूमिका निभाते हैं और अध्यापक की भूमिका निभाने वाला छात्राध्यापक पढ़ाता है तथा बाद में उसके शिक्षण की समीक्षा की जाती है। इस तरह से उसके शिक्षण कौशलों का विकास किया जाता है।
दूसरे रूप में यह लघु नाटक का रूप है जिसमें वास्तविक कक्षा शिक्षण के समय कोई एक या दो – तीन छात्र संबंधित विषय को नाटक के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। इसे हम नाटक नहीं कह सकते, क्योंकि इसमें किसी छोटी घटना, तथ्य आदि का ही प्रदर्शन किया जाता है। उदाहरण के लिए, किसी छात्र को शिवाजी की वेशभूषा में कक्षा के सामने प्रस्तुत करना या प्लासी के युद्ध की व्यूहरचना में छात्रों को खड़ा कर देना या सिकन्दर या पौरस के संवादों को कक्षा के सामने दो छात्रों से बुलवाना।
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