व्यक्तित्व निर्धारण हेतु कौन से कारक जिम्मेदार हैं?

व्यक्तित्व निर्धारण हेतु कौन से कारक जिम्मेदार हैं?

प्रश्न – व्यक्तित्व निर्धारण हेतु कौन से कारक जिम्मेदार हैं?

उत्तर– व्यक्तित्व निर्धारण हेतु निर्धारक तत्व- व्यक्तित्व के विकास में वंशानुगत प्रभावों में शरीर व ग्रन्थि रचना दोनों ही आते हैं। शारीरिक रचना का अस्पष्ट रूप से प्रभाव पड़ता ही है। व्यक्ति के साथ उसके साथियों द्वारा जैसा व्यवहार किया जाता है, उनका आधार व्यक्ति की शारीरिक रचना होती है। ग्रन्थि रचना से तात्पर्य आन्तरिक ग्रन्थि स्राव है। ये ग्रन्थियाँ जब स्वाभाविक रूप से कार्य करती हैं, तब इनका विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। लेकिन जब इन ग्रन्थियों में कोई भी ग्रन्थि ढंग से कार्य नहीं करती तब उसका व्यक्ति के व्यवहार, कार्य व व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है। इन ग्रन्थियों में एड्रिनल ग्रन्थि, गोनाड्स, थॉयराइड ग्रन्थियाँ, उपथायराइड ग्रन्थियाँ, पिट्यूटरी ग्रन्थि, थाइमस तथा फिनियल ग्रन्थियाँ आदि मुख्य हैं।
वंशानुगत या जैविक कारण निम्न बिन्दुओं के आधार पर वंशानुगत या जैविक कारणों का उल्लेख किया जा सकता है –
(1) शरीर रचना- व्यक्ति की शारीरिक रचना का सम्बन्ध व्यक्ति के व्यक्तित्व से अवश्य होता है। प्रायः मोटे व्यक्ति हँस-मुख, आराम पसन्द, मन-मौजी और सामाजिक होते हैं जबकि दुबले-पतले व्यक्ति चिड़चिड़े तथा गंभीर प्रकृति के होते हैं। इसी प्रकार ऊँचाई, भार, रंग, शारीरिक विभिन्नताओं तथा शारीरिक दोष व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं । यदि बौने अथवा मोटे बच्चे को उसके साथी तंग करते हैं तो उसमें हीन भावना आ जाती है।
( 2 ) स्वास्थ्य – वे व्यक्ति जिनका स्वास्थ्य अच्छा होता है जीवन के बारे में अधिक धनात्मक तथा साहसिक दृष्टिकोण रखते हैं तथा ऐसे व्यक्ति जिनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं होता उनके व्यक्तित्व का विकास भी असन्तुलित होता है तथा जीवन के प्रति ऋणात्मक दृष्टिकोण होता है।
(3) बुद्धि – बुद्धि भी व्यक्तित्व को प्रभावित करती है। अधिक बुद्धिमान व्यक्ति अपने आपको वातावरण के साथ शीघ्र समायोजित कर लेते हैं जबकि कम बुद्धि वाले व्यक्ति ऐसा अच्छी प्रकार से नहीं कर पाते हैं ।
(4) लैंगिक विभिन्न्ता – लिंग विभेद की व्यक्ति के व्यक्तित्व पर प्रभाव डालता है। लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ प्रायः कम साहसी तथा अधिक संवेदनशील होती हैं। लड़के प्रायः साहसी कारनामों में अधिक रुचि लेते हैं ।
(5) तन्त्रिका तन्त्र- तन्त्रिका तन्त्र का भी व्यक्ति के विकास पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक व सामाजिक योग्यताएँ सभी तन्त्रिका तन्त्र द्वारा प्रभावित होती है।
(6) अन्त: स्रावी ग्रन्थियाँ – शारीरिक तथा अन्य प्रकार के विकासों पर अन्तःस्रावी ग्रन्थियों द्वारा साविक हार्मोन्स का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है जो कि व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। अन्तःस्रावी ग्रन्थियों की अधिक प्रकार के शारीरिक तथा मानसिक दोष उत्पन्न हो जाते हैं जो कि व्यक्तित्व के विकास पर अत्यन्त हानिकारक प्रभाव डालते हैं। पीयूष ग्रन्थि, थायराइड ग्रन्थि, अधिवृक्क ग्रन्थियाँ तथा लिंग ग्रन्थियाँ मनुष्य को शारीरिक, संवेगात्मक तथा सामाजिक विकास को अत्यधिक प्रभावित करती हैं तथा इसकी अधिक तथा अल्प सक्रियता के कारण व्यक्ति में अनेक प्रकार के रोग तथा असामान्य व्यवहार तथा लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं जो कि उसके व्यक्तित्व के विकास में बाधक होते हैं ।
पर्यावरणीय कारकों का भी व्यक्तित्व पर प्रभाव वंशानुगत की तरह ही पड़ता है। पर्यावरणीय प्रभाव में कुटुम्ब के प्रभाव अर्थात् माँ-बाप, भाई-बहिन के कार्य व्यवहार, विभिन्न घटनाएँ आदि मुख्य होता है । इसके अलावा आस-पास के मित्रों और फिर विद्यालयी वातावरण का प्रभाव होता है । सामाजिक एवं वातावरणीय कारक
(1) भौगोलिक वातावरण-भौतिक अथवा भौगोलिक परिस्थितियाँ भी व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रभावित करती हैं। प्रायः देखा गया है कि ठण्डे प्रदेश में निवासी गर्म प्रदेशों के निवासियों की तुलना में अधिक मेहनती होते हैं।
(2) परिवार – व्यक्तित्व पर पारिवारिक सम्बन्धों वातावरण आदि का गहरा प्रभाव पड़ता है। परिवार का प्रभाव व्यक्ति पर जीवन पर पड़ता है परन्तु बाल्यावस्था अधिक प्रभावित होती है।
(i) परिवार का आकार – एकल तथा संयुक्त परिवार में सदस्यों की संख्या व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रभावित करती है । संयुक्त परिवार में पलने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व एकल परिवार में पलने वाले व्यक्ति से भिन्न होता है ।
(ii) पारिवारिक वातावरण- स्वस्थ तथा सहानुभूतिपूर्ण पारिवारिक वातावरण व्यक्तित्व के सन्तुलित तथा उत्तम विकास के लिये अनिवार्य है। यदि परिवार का वातावरण दूषित तनावपूर्ण तथा अस्स्वस्थ है तो वह बालकों के व्यक्तित्व में कई दुर्गुणों का कारण बनता है। इसी प्रकार परिवार के सदस्यों की संख्या, बच्चों का जन्म क्रम, परिवार का संवेगात्मक वातावरण, माता-पिता का व्यवहार तथा दृष्टिकोण, परिवार का आर्थिक तथा सामाजिक, स्तर आदि का व्यक्ति के व्यक्तित्व पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
(iii) बचपन के अनुभव- बचपन के अनुभवों का व्यक्ति के व्यक्तित्व पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। बचपन के कटु अनुभवों का व्यक्तित्व के विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। बालकों को बचपन में सिखाई गई अच्छी आदतें उनके व्यक्तित्व के समुचित विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
(iv) पड़ोस – बालक के व्यक्तित्व पर उसके पड़ोस का भी समुचित प्रभाव पड़ता है। यदि पड़ोसी अच्छे व्यक्ति हैं तो बालक के व्यक्तित्व पर उसका अच्छा प्रभाव पड़ता है ।
(v) मित्र तथा साथी- बालक के व्यक्तित्व पर उसके मित्र तथा साथियों का भी गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि बालक की मित्रता निम्न वर्ग के बच्चों के साथ होती है तो उसमें ये अनेक बुरी आदतें या अपराध प्रवृत्ति आ जाती हैं। यदि बालक के साथी उच्च तथा समृद्ध वर्ग के होते हैं तो उसमें भी अच्छे तथा उच्च गुण आ जाते हैं ।
(vi) विद्यालय – विद्यालय बालक के व्यक्तित्व को विशेष रूप से प्रभावित करता है। अध्यापक का व्यक्तित्व, पाठ्यक्रम, पाठ्यसहगामी क्रियाओं, शिक्षण विधियाँ तथा विद्यालय का सामान्य वातावरण आदि अनेक विद्यालय सम्बन्धी कारक हैं जो बालक के व्यक्तित्व पर समुचित प्रभाव डालते हैं। विद्यालय ही वह स्थान होता है जहाँ कि व्यक्तित्व के विकास के अधिकतम अवसर प्राप्त होते हैं। इसीलिये शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना होता है ।
(vii) रेडियो, टेलीविजन, वीडियो, सिनेमा- ये सभी साधन अनौपचारिक शिक्षण तथा मनोरंजन के माध्यम से व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं ।
(viii) अन्य – धार्मिक स्थल, व्यक्ति का नाम, वेश-भूषा तथा सांस्कृतिक वातावरण भी व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं ।
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