शिक्षा के अधिकार से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रमुख तत्त्वों को समझाइये ।
शिक्षा के अधिकार से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रमुख तत्त्वों को समझाइये ।
अथवा
शिक्षा का अधिकार ( 2009 ) का उल्लेख कीजिए |
अथवा
2009 के आर.टी.ई. अधिनियम की विवेचना कीजिए।
अथवा
शिक्षा का अधिकार-2009 को सविस्तार लिखिये ।
उत्तर— शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 – 2009 में बालकों का ‘‘निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009″ पास किया गया। इस अधिनियम को ही “शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009″ कहते हैं। इसके अनुसार निश्चित आयु वर्ग के बालकों को कक्षा 1 से 8 तक की निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है। सरकार ने अप्रैल, 2010 में इसे कानून के रूप में लागू भी कर दिया है।
इस अधिनियम के प्रमुख तथ्य निम्नलिखित हैं—
(1) 6 से 14 साल की उम्र के प्रत्येक बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है । संविधान के 86वें संशोधन द्वारा शिक्षा के अधिकार को प्रभावी बनाया गया है ।
(2) सरकारी स्कूल सभी बच्चों को मुफ्त शिक्षा उपलब्ध कराएँगे और स्कूलों का प्रबंधन स्कूल प्रबंध समितियों (एस.एम.सी.) द्वारा किया जाएगा। निजी स्कूल न्यूनतम 25 प्रतिशत बच्चों को बिना किसी शुल्क के नामांकित करेंगे ।
(3) गुणवत्ता समेत प्रारम्भिक शिक्षा के सभी पहलुओं पर निगरानी के लिए प्रारम्भिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग बनाया जाएगा !
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के प्रमुख प्रावधानबच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं—
(1) निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा-इस अधिनियम का मुख्य तत्त्व है कि 6 से 14 वर्ष तक सभी बालकों के निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा पूरी करने का अधिकार होगा।
(2) स्थानीय संस्थाओं के कर्त्तव्य स्थानीय संस्थाएँ भी राज्य सरकार के लिए बनाए गए सभी नियमों का पालन करेंगी।
(3) विद्यालय का दायित्व – सरकारी विद्यालयों में तो प्राथमिक शिक्षा निःशुल्क होगी ही साथ ही निजी शिक्षण संस्थाओं को भी आर्थिक रूप से अक्षम छात्रों के लिए 25% सीटें आरक्षित करनी होंगी।
(4) दण्ड की व्यवस्था – किसी भी बालक को शारीरिक या मानसिक दण्ड देना कानूनन अपराध है और विद्यालयों में इसका प्रयोग न किया जाए।
(5) अनुत्तीर्ण होना – किसी भी बच्चे को कक्षा में अनुत्तीर्ण नहीं किया जाएगा और न ही स्कूल से निष्कासित किया जाएगा।
(6) मान्यता – कोई भी स्कूल जिसने मान्यता न ली हो, नहीं जा सकता। मान्यता उन्हीं स्कूलों को दी जाएगी जो मान्यता सम्बन्धी नियम पूरे करेंगे।
(7) विद्यालय परिवर्तन का अधिकार – यदि कोई बालक किसी भी कारणवश अपना विद्यालय परिवर्तन करना चाहता है तो उसे विद्यालय परिवर्तन का अधिकार होगा।
(8) केन्द्र तथा राज्य सरकार का संयुक्त उत्तरदायित्व –इस अधिनियम में यह स्पष्ट किया गया कि अधिनियम को लागू करने में जो व्यय होगा, केन्द्र सरकार उसका ब्यौरा तैयार करेगी तथा प्रान्तीय सरकारों को आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराएगी।
(9) माता-पिता का कर्त्तव्य – माता-पिता का यह प्रमुख कर्त्तव्य है कि वह अपने छात्रों को स्कूलों में अनिवार्य रूप से शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रवेश दिलाए ।
( 10 ) शुल्क – कोई भी विद्यालय अभिभावकों से किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नहीं ले सकता ।
(11) अनिवार्य प्रवेश – कोई भी विद्यालय जन्म प्रमाण-पत्र के अभाव में बालक को प्रवेश देने से मना नहीं कर सकता । प्रवेश तिथि समाप्त हो जाने के बाद भी बालक को प्रवेश देने से मना न किया जाए।
(12) प्रान्तीय सरकारों तथा स्थानीय संस्थाओं को विद्यालय स्थापना का अधिकार – अधिनियम के लागू होने के 3 सालों के अन्दर राज्य सरकारें तथा स्थानीय संस्थाओं को ऐसे क्षेत्रों में स्थापित स्कूल करने होंगे, जहाँ पर स्कूल नहीं हैं।
(13) प्रान्तीय सरकारों के कर्त्तव्य – प्रान्तीय सरकारें निश्चित आयु वर्ग के सभी बालकों के लिए प्रवेश तथा नियमित उपस्थिति सुनिश्चित करेंगी। साथ ही स्कूल भवन, अध्यापक और अध्यापन सामग्री की भी व्यवस्था करेंगी।
(14) वंचित बालकों की पूर्ण शिक्षा – इस अधिनियम में यह स्पष्ट किया गया कि यदि कोई बालक 6 वर्ष की उम्र में प्रवेश न लेकर बाद में अपनी उम्र के अनुसार कक्षा में प्रवेश लेता है और 14 वर्ष तक की आयु में उसी शिक्षा पूरी नहीं हो पाती तो भी उसकी प्राथमिक शिक्षा पूरी होने तक उसे निःशुल्क शिक्षा ही दी जाएगी।
(15) राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का गठन – केन्द्र सरकार इस अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू करने तथा परामर्श देने के लिए “राष्ट्रीय सलाहकार परिषद” का गठन करे ।
(16) परीक्षा – शैक्षिक सत्र के अन्त में बालकों की परीक्षा ली जाए। शिक्षा पूरी करने वाले बालकों को प्रमाण पत्र भी दिए जाएँ।
(17) प्रान्तीय सरकार को नियम बनाने की शक्ति – राज्य सरकारों को अधिनियम के उपबन्धों के कार्यान्वयन के लिए नियम, उपनियम एवं अधिसूचना बना सकते हैं तथा उसकी निगरानी के लिए भी प्रबन्ध करेंगे।
(18) शिक्षा के अधिकार की निगरानी एवं शिक्षा – शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत बाल अधिकार संरक्षण आयोग समयसमय पर विद्यालय में जाकर इस बात की देखभाल एवं परीक्षण करेगा कि बालकों को उनके अधिकार प्राप्त हो रहे हैं या नहीं तथा उन्हें जो शिक्षा दी जा रही है उसका उन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।
(19) अध्यापक कर्त्तव्य – अध्यापकों का कर्त्तव्य है कि वह अपना कार्य पूरी निष्ठा से करें। समय से स्कूल आएँ, पाठ्यक्रम पूरा करें, आवश्यकतानुसार शिक्षण विधियों का उपयोग करें तथा समय-समय पर अध्यापक-अभिभावक बैठकों का आयोजन करें।
(20) छात्रों की संख्या – 40 बालकों पर एक शिक्षक की नियुक्ति हो।
(21) राज्य सलाहकार परिषद – राज्य सरकारें इस अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू करने तथा परामर्श देने के लिए “राज्य सहक परिषद” का गठन करेगी।
(22) शिक्षकों की रिक्तियों को भरा जाना – राज्य सरकार और स्थानीय अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि वे विद्यालय में शिक्षक के रिक्त पद कुल स्वीकृत पद संख्या के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होंगे।
(23) प्रबंधन समिति – सभी निजी स्कूल प्रबंधन समिति का गठन करेंगे। इस समिति में जनप्रतिनिधि, अध्यापक तथा अभिभावकों की भी सहभागिता होगी।
(24) अध्यापक – केन्द्र सरकार अध्यापकों की नियुक्ति के मानक, न्यूनतम योग्यता तथा सेवा शर्तों का निर्धारण करेगी।
(25) अनुसूची को संशोधन करने की शक्ति – केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा किसी मानक को अनुसूची में परिवर्तन या उसका लोप करके उसका संशोधन कर सकेगी।
(26) विद्यालय पूर्व शिक्षा के लिए व्यवस्था करना— तीन वर्ष से ऊपर की आयु के बच्चों को प्रारम्भिक शिक्षा के लिए तैयार करने और जन्म से 6 वर्ष तक के बालकों के लिए आरम्भिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा के लिए राज्य सरकारें एवं स्थानीय प्राधिकारी आवश्यक व्यवस्था करेंगी।
(27) ट्यूशन – कोई भी अध्यापक प्राइवेट ट्यूशन नहीं पढ़ा सकता।
(28) पाठ्यक्रम – पाठ्यक्रम का निर्माण इस प्रकार किया जाए जिससे बालक का सर्वांगीण विकास हो ।
(29) मूल्यांकन – मूल्यांकन की प्रक्रिया में सुधार किया जाए, इसे व्यापक बनाया जाए।
(30) अभियोजन के लिए पूर्व मंजूरी – अधिनियम का पालन न करने पर धारा 13, 18 एवं 19 के अधीन दण्डनीय अपराधों के लिए कोई भी अभियोजन सरकार या निर्दिष्ट अधिकारी के पूर्व मंजूरी के बिना संस्थित नहीं किया जाएगा ।
(31) विद्यालय विकास योजना – सभी सहायता प्राप्त विद्यालय प्रबन्ध समिति का गठन करेंगे जिसमें जनप्रतिनिधि, अभिभावक और शिक्षक होंगे। यह समिति विद्यालय की शिक्षा व्यवस्था की देखरेख के साथ ही विद्यालय के विकास के लिए योजना भी तैयार करेगी जिससे बालकों को सफल एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो सके और उनका सर्वांगीण विकास हो सके।
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