“विद्यालय और शिक्षक संस्कृति को प्रदान करने के अभिकर्ता हैं।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? राष्ट्रीय विकास में विद्यालयों और शिक्षकों की भूमिका पर चर्चा कीजिए।

“विद्यालय और शिक्षक संस्कृति को प्रदान करने के अभिकर्ता हैं।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? राष्ट्रीय विकास में विद्यालयों और शिक्षकों की भूमिका पर चर्चा कीजिए।

उत्तर— संस्कृति में भाग लेने वाले कारक के रूप में विद्यालय एवं अध्यापक की भूमिका—
अध्यापक की भूमिका– भारत जैसे बहु-सांस्कृतिक देश में संस्कृति को राष्ट्रीय एकता के रूप में प्रस्तुत करना आसान कार्य नहीं है।
बालकों में अन्तर- सांस्कृतिक भावना को विकसित करने में शिक्षक एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। परन्तु ध्यान देने की बात है कि अन्तर- सांस्कृतिक भावना को मात्र वही शिक्षक विकसित कर सकता है, जिसका दृष्टिकोण स्वयं व्यापक हो और जिसे अपने विषय के ज्ञान के अतिरिक्त अन्य सभी समूहों की संस्कृति का पूरा ज्ञान हो। इस दृष्टि से अन्तर- सांस्कृतिक भावना विकसित करने हेतु शिक्षक ऐसा होना चाहिए। जो संकीर्ण विचारों एवं विश्वासों के ऊपर उठकर किसी संस्कृति के प्रति ईर्ष्या और द्वेष न रखते हुए सभी संस्कृतियों के प्रति सद्विचार एवं सद्भावना रखता हो। उपर्युक्त गुणों से ओत-प्रोत शिक्षक इस उद्देश्य को सरलता से हासिल कर सकता है।
विद्यालय की भूमिका—आजकल अन्य कार्यों के समान संस्कृति की शिक्षा देने का कार्य भी परिवार से अधिक विद्यालय में ही होता है। भिन्न-भिन्न देशों में विद्यालयों में देश की संस्कृति के अनुरूप बालकों को शिक्षा दी जाती है। पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से उनको समूह के पाठ्यक्रमेत्तर कार्यक्रमों के द्वारा उन्हें संस्कृति के विभिन्न अंगों की शिक्षा दी जाती है । इन पाठ्यक्रमेत्तर कार्यक्रमों में नाना प्रकार के खेलों, नाटकों, सामूहिक गान और नृत्य – वाद-विवाद प्रतियोगिता, देश-विदेश का भ्रमण आदि के द्वारा बालकों को समूह की संस्कृति से परिचित कराया जाता है।
यूँ तो प्रत्येक समाज में परिवार और विद्यालय नई पीढ़ी को समाज की सामान्य संस्कृति सिखाते हैं, किन्तु किसी भी समाज में विभिन्न वर्गों और स्तरों के व्यक्तियों की संस्कृति में न्यूनाधिकार अन्तर देखा जाता है। अस्तु, बालक को न केवल समाज की सामान्य संस्कृति, बल्कि उसके विशेष वर्ग और सामाजिक-आर्थिक स्तर की विशेष संस्कृति की भी शिक्षा दी जाती है। इस प्रकार संस्कृति की शिक्षा में वृहद् संस्कृति की शिक्षा के साथ-साथ उपसंस्कृतियों की शिक्षा की आवश्यकता होती है । संस्कृति की शिक्षा से व्यक्ति को अपने प्राकृतिक और सामाजिक परिवेश से समायोजन करने में सहायता मिलती है। इससे बालक का सामाजिक व्यक्तित्व का निर्माण होता है और वह दूसरों से व्यवहार करना सीखता है। इससे उसे जीविकोपार्जन करने तथा जीवन में आवश्यक अन्य कार्यों में भी महत्त्वपूर्ण सहायता मिलती है। इससे वह सामाजिक संस्थाओं को अपनाता है और उनके अनुरूप व्यवहार करता है। इससे उसे जीवन में प्रत्येक अवसर पर व्यवहार के स्पष्ट प्रतिमान मिल जाते हैं। इससे वह समाज का उत्तरदायी सदस्य बनता है।
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