श्रवण कौशल क्या है ? श्रवण कौशल का क्या महत्त्व है ?
श्रवण कौशल क्या है ? श्रवण कौशल का क्या महत्त्व है ?
उत्तर— श्रवण कौशल– सर्वप्रथम बालक सुनने (श्रवण) का ही आश्रित रहता है। इसलिए चारों कौशलों ( सुनना, बोलना, पढ़ना व लिखना) में इसका प्रमुख स्थान है।
सुनने की प्रक्रिया के अन्तर्गत फेफड़ों से निकली हुई वायु ध्वनि यंत्र के अंगों के आन्दोलन के फलस्वरूप बाह्य निष्कासित होती है। इस प्रकार वह एक विशेष प्रकार के कम्पन से लहरें पैदा कर देती है। वे लहरें ही सुनने वाले के कान तक पहुँचती हैं और श्रवणेन्द्रिय में कम्पन्न उत्पन्न कर देती हैं। इस कम्पन का प्रभाव मध्यवर्ती कान की अस्थियों द्वारा भीतरी कान के द्रव्य पदार्थ पर पड़ता है और उसमें भी लहरें उठती हैं, जिसकी सूचना श्रावणी शिरा के तंन्तुओं द्वारा मस्तिष्क में जाती है और हम सुनते हैं ।
डिसेन्ट के कथनानुसार, “श्रवण कौशल तब घटित हाता है, जब बालक (यह) व्यवस्थित करते हैं और याद करते हैं कि क्या सुना गया है।”
शिक्षा शब्दकोश में श्रवण का अर्थ- “श्रवण व्यक्त अथवा अव्यक्त व्यवहार प्रतिमानों के चयनशील मौखिक अथवा लिखित संकेतों को प्राप्त करने के सम्बन्ध में अन्य व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के वार्तालाप पर गहन अध्ययन देने की कला है।’
अतः हम कह सकते हैं कि किसी व्यक्ति अथवा ध्वनि यंत्रों के द्वारा उत्पन्न की गई सार्थक ध्वनियों को श्रवणेंद्रियों के माध्यम से ग्रहण करना अथवा उसे समझ पाने की प्रक्रिया को श्रवण अथवा सुनना कहा जाता है।’
श्रवण कौशल का महत्त्व– बालक जन्म के उपरान्त विभिन्न प्रकार की ध्वनियों को सुनता है जो उसके भाषा-ज्ञान का आधार बनती है। वह इन ध्वनियों को ध्यानपूर्वक सुनता है एवं इसके सूक्ष्म अन्तर को समझने लगता है। बालक पढ़ने के स्थान पर सुनने की क्रिया से अधिक सीखता एवं सुने हुए विचार उसके मानस पटल पर अंकित हो जाते हैं। उसकी धारणा निर्मित होती है इसीलिए बालक के व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास में श्रवण-कौशल का योगदान निर्विवाद है।
(i) इस कौशल के द्वारा छात्र दूसरों के विचारों को ध्यानपूर्वक सुनता है।
(ii) श्रवण कौशल का महत्त्व विशेषत: विद्यालयों में वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में देखने को मिलता है।
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