भाषण-कौशल का सविस्तार वर्णन कीजिए ।

भाषण-कौशल का सविस्तार वर्णन कीजिए ।

उत्तर— भाषण-कौशल (Speaking Skill )– भाषा सम्प्रेषण का प्रभावशाली एवं सर्वसमर्थ साधन है। दूसरों के विचारों, मनोभावों तथा अभिव्यक्तियों को सुनने के साथ ही साथ अपने विचारों तथा भावों को वाणी के माध्यम से अभिव्यक्त करने की प्रवृत्ति मानव का सहज स्वभाव है । अन्य भाषा-शिक्षण में इस कुशलता का विकास भाषण-कौशल का मूल आधार है। मौखिक अभिव्यक्ति की कुशलता प्राप्त कर लेने पर न केवल भावों एवं विचारों का प्रकटीकरण सहज सम्भव हो जाता है बल्कि भाषाई कुशलता में भी वृद्धि होती है । भाषण-कौशल वाचन तथा लेखन-कौशल के विकास में विशेष रूप से सहायक सिद्ध होता है। मौखिक अभिव्यक्ति के क्रम में सीखा गया उच्चारण तथा विभिन्न सहायक तत्त्व, यथा, शब्द, अर्थ और भाषाई संरचना शिक्षण की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं ।
भाषण-कौशल का अर्थ और महत्त्व—
भाषण-कौशल का अर्थ है अध्येता में इस प्रकार की योग्यता उत्पन्न करना कि वह अपने भावों तथा विचारों को स्पष्ट एवं प्रभावी रूप से अभिव्यक्त कर सके जिससे दूसरे लोग सुनकर समझ सकें और अभिप्रेत अर्थ ग्रहण कर सकें। विचारों तथा भावों का सम्प्रेषण एक वैयक्तिक और सामाजिक आवश्यकता है। मातृभाषा में बालक भाषाई परिवेश में सहज रूप से ध्वनियों को सुनने और बोलने की आदत विकसित कर लेता है तथा इसके माध्यम से वह अपने भावों को अभिव्यक्त करना सीखता है। मातृभाषा की मूलभूत आदतों के साथ ही साथ अन्य भाषा में विचारों की मौखिक अभिव्यक्ति की आदतें सुदृढ़ करनी पड़ती हैं। सतत प्रयास एवं अभ्यास के पश्चात् भी यह नहीं कहा जा सकता कि अध्येता को पूर्ण सफलता प्राप्त हो गई है। भाषण सिखाने का उद्देश्य है विचारों की अभिव्यक्ति करने वाले वक्ता और विचारों को ग्रहण करने वाले श्रोता के बीच ऐसी स्थिति निर्मित करना जिससे अभिव्यक्त विचारों को यथा तथ्य रूप में ग्रहण किया जा सके।
भाषाई कौशलों में भाषण-कौशल एक जटिल परन्तु महत्त्वपूर्ण कौशल है। विचारों को सुनकर समझने के साथ-साथ विचारों की सफल अभिव्यक्ति करना सिखाना अनिवार्य आवश्यकता है। वस्तुतः अन्य भाषा को सीखने का उद्देश्य भाषाई प्रयोग की कुशलता का विकास करना है। भाषण-कौशल के द्वारा छात्र में यह योग्यता विकसित की जाती है कि वह अध्येय भाषा का मौखिक रूप से सही-सही प्रयोग कर सके और इसके द्वारा अपने विचारों को प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त कर सके। इतना ही नहीं, अध्येता उस भाषा-भाषी जन समुदाय के साथ विचारों तथा भावों का आदान-प्रदान भी करना चाहता है।
भाषण-कौशल भाषा पर अधिकार कराने का प्रमुख साधन है। भाषा-वैज्ञानिकों के अनुसार भाषा का उच्चरित रूप ही भाषाई प्रकृति का वास्तविक परिचायक है। भाषा का लिखित रूप गौण माना जाता है । कारण स्पष्ट है कि इसके द्वारा भाषा की उच्चारणगत विशेषताओं, यथाध्वनियों के उच्चारण, अनुमान, विवृति आदि का द्योतन नहीं होता। अतः भाषा के शिक्षण में विचारों तथा भावों की मौखिक अभिव्यक्ति को विशेष महत्त्व दिया जाता है। यही कारण है कि रॉबर्ट लैडो तथा अन्य विद्वानों ने भाषा के शिक्षण में लेखन के पूर्व भाषण के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। भाषण-कौशल के विकास द्वारा व्यक्ति सामान्यतः अपने व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं को पूर्ण करता है। अन्य भाषा-भाषी समाज के साथ विचारों का सम्पर्क स्थापित करने की कुशलता एक विशिष्ट उपलब्धि है। इससे व्यक्तित्व का उदात्तीकरण होता है और उसका सामाजिका क्षेत्र विस्तृत होता है।
भाषण-कौशल के गुण—
भाषण-कौशल के गुण निम्नानुसार हैं—
(1) भाषण छात्रों में तर्क शक्ति का विकास करता है । भाषणकर्त्ता से छात्र तर्क करते हैं तथा वाद-विवाद कर अपने संशयों को दूर कर सकते हैं ।
(2) भाषण-कौशल विषय-वस्तु का व्यापक व विस्तृत रूप प्रस्तुत कर उसे अधिक बोधगम्य बनाता है।
(3) भाषण-कौशल समय तथा श्रम की बचत कर सकता है । विषय-व -वस्तु को सार रूप से प्रस्तुत कर शिक्षक व छात्र दोनों के श्रम व समय की बचत हो सकती है।
(4) भाषण द्वारा शिक्षक विषय-वस्तु को अपनी व्याख्या, हावभाव, भाषा, उच्चारण आदि के द्वारा अधिक आकर्षक तथा बोधगम्य बना देता है।
(5) यह कौशल अत्यन्त सरल, सहज तथा मितव्ययी है । इस कौशल में किन्हीं अधिक व्यवस्थाओं तथा आयोजनों की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
(6) नवीन पाठ, विषय तथा इकाई का प्रारम्भ करने के लिये भाषण-कौशल एक अच्छा साधन है।
(7)  ज्ञानात्मक उद्देश्य को भाषण-कौशल द्वारा सहजता के साथ प्राप्त किया जा सकता है।
भाषण-कौशल की सीमाएँ—
उपर्युक्त गुणों के साथ भाषण-कौशल की अपनी कुछ निम्नांकित सीमाएँ या कमियाँ भी हैं—
(1) अपरिपक्व भाषणकर्ता भाषण देते समय छात्रों को कक्षा में निष्क्रिय श्रोता बनाकर शिक्षण को पूरी तरह सैद्धान्तिक बना देता है।
(2) भाषण-कौशल के द्वारा कौशलात्मक तथा व्यावहारिक उद्देश्य की प्राप्ति दुर्लभ हो जाती है ।
(3) यह छात्रों को कक्षा में एक निष्क्रिय श्रोता बनाकर अध्ययनअध्यापन प्रक्रिया को नीरसता प्रदान करता है ।
(4) यह कौशल एकपक्षीय है जिसमें शिक्षक ही प्रमुख भूमिका अदा करता है।
(5) यह कौशल व्यक्तिगत विभिन्नताओं की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करता फलतः व्यक्तिगत शिक्षण संभव नहीं है ।
(6) भाषण-कौशल छात्रों में स्वाध्याय, चिन्तन जैसे गुणों का विकास नहीं करता है ।
(7) भाषण-कौशल में केवल श्रवणेन्द्रियाँ ही सक्रिय रहती हैं। अन्य ज्ञानेन्द्रियाँ निष्क्रिय रहती हैं ।
(8) सुझाव भाषण-कौशल का प्रयोग प्राथमिक तथा पूर्व प्राथमिक शिक्षा-स्तर पर सफलतापूर्वक नहीं किया जा सकता है।
सुझाव—
भाषण-कौशल को सफल बनाने हेतु निम्नांकित सुझाव प्रस्तुत किए जा सकते हैं—
(1) भाषण देने से पूर्व विषय-वस्तु को सुनियोजित ढंग से संगठित कर लिया जाये ।
(2) भाषण की भाषा, शैली तथा स्तर छात्रों के मानसिक स्तर के अनुरूप हो ।
(3) भाषण के साथ विभिन्न श्रव्य-दृश्य सहायक सामग्री का पर प्रयोग लाभदायक होता है।
(4) भाषण के दौरान मुख्य बिन्दुओं पर विभिन्न उपायों पर बल देना चाहिए।
(5) भाषण धीमी गति व शान्त भाव से दिया जाये।
(6)  भाषण के मध्य प्रश्नोत्तर, उदाहरण, प्रशंसा, कथन जैसी शिक्षण-युक्तियों का प्रयोग किया जाये।
(7) भाषण की नीरसता तथा तनाव को दूर करने के लिये बीच-बीच में मनोविनोद की व्यवस्था होनी चाहिए।
(8) स्वतंत्रतापूर्वक बातचीत के रूप में भाषण देने की चेष्टा करनी चाहिए।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *