संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए- सस्वर एवं मौन वाचन में अन्तर ।

संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए- सस्वर एवं मौन वाचन में  अन्तर ।

                                       अथवा
वाचन से आप क्या समझते हैं ? मौन वाचन तथा सस्वर वाचन में अन्तर बताइये ।
उत्तर— वाचन–वाचन या पाठन भी एक महत्त्वपूर्ण कौशल है। इसका अर्थ है, लिखे हुए तथा मुद्रित लिपि संकेतों को देखकर वाचक के मन में जो अर्थ बिम्ब बनता है वह वाचन कहलाता है। इसमें अर्थ ग्रहण होना आवश्यक है।
वाचन के मुख्य दो रूप सस्वर वाचन तथा मौन वाचन होते हैं । दोनों के उद्देश्य, विधि, क्रिया गुण तथा दोष भिन्न-भिन्न हैं। दोनों में मुख्य अन्तर निम्न हैं—
सस्वर वाचन—
1. सस्वर वाचन में शुद्ध अक्षरोच्चारण का विशेष महत्त्व है।
2. सस्वर वाचन में ध्वनियों का बोध, उच्चारण की शुद्धता, उपयुक्त, बलाघात स्पष्टता, वाचन प्रवाह, स्वर में उतार-चढ़ाव तथा | रसात्मकता की प्रधानता होती है ।
3. सस्वर वाचन दो प्रकार से किया जाता है- शिक्षक द्वारा सस्वर वाचन तथा छात्र द्वारा अनुकरण वाचन।
4. सस्वर वाचन में उच्चारण, लय, गति उतार-चढ़ाव पर ध्यान दिया जाता है।
5. सस्वर वाचन वैयक्तिक तथा सामूहिक दोनों ही प्रकार से हो सकता है।
6. सस्वर, वाचन में शरीर की सभी वाक् इन्द्रियाँ क्रियाशील रहती हैं।
7. सस्वर वाचन प्राथमिक कक्षाओं के लिए अधिक उपयुक्त है।
8.सस्वर वाचन में समय अधिक लगने के साथ-साथ श्रम भी करना पड़ता हैं।
9. सस्वर वाचन में हाव-भाव, मुद्रा एवं रुचि तथा खड़े होने के ढंग का विशेष महत्त्व है।
10. सस्वर वाचन में छात्रों को अन्य छात्रों की गति से वाचन करना पड़ता है।
11. सस्वर वाचन काव्यपाठ (कविता) हेतु उपयुक्त है।
12. सस्वर वाचन काव्य के भावानुकूल वातावरण के निर्माण हेतु किया जाता है।
13. सस्वर वाचन शिक्षण के लिए अनेक विधियों, प्रविधियों तथा माध्यमों का प्रयोग किया जाता है।
14. सस्वर वाचन में उच्चारण व वाचन सम्बन्धी अशुद्धियाँ आसानी से जाँची जा सकती हैं ।
15. सस्वर वाचन करने से छात्र की झिझक व संकोच की प्रवृत्ति दूर होती है तथा आत्मविश्वास बढ़ता है।
16. सस्वर वाचन में छात्रों को थकान शीघ्र होने लगती है, क्योंकि इसमें वाक् यंत्रों पर अधिक जोर पड़ता है।
मौन वाचन—
1. मौन वाचन में अक्षरोच्चारण लिए कोई अवसर नहीं होता, परन्तु छात्र को मनन एवं चिन्तन करना पड़ता है।
2. मौन वाचन मन ही मन में बिना किसी प्रकार की उच्चारण ध्वनि के ध्यानपूर्वक अध्ययन है।
3. मौन वाचन भी दो प्रकार से किया जाता है – गम्भीर वाचन तथा द्रुत वाचन ।
4. मौन वाचन में भाषा, प्रसंग साहित्य व्याकरण, की विधाओं, शैली, चरित्र, भाव आदि पर ध्यान दिया जाता है।
5. मौन वाचन को दोनों प्रकार से किया जा सकता है ।
6. मौन वाचन में वाणी, जिह्वा और ओष्ठ आदि का सहारा नहीं लिया जाता।
7. मौन वाचन माध्यमिक या उच्च कक्षाओं के लिए अधिक उपयोगी है।
8. मौन वाचन में कम समय में अधिक वस्तु ग्रहण हो सकती है।
9. मौन वाचन में छात्र की एकाग्रचित्तता का विशेष महत्त्व है जो उस पर स्वयं पर निर्भर है।
10. मौन वाचन में छात्र को अपनी गति से ही वाचन करना पड़ता है।
11. जबकि मौन वाचन गद्य पाठ हेतु उपयुक्त है ।
12. मौन वाचन भावों एवं विचारों के हृदयंगम हेतु किया जाता है।
13. जबकि मौन वाचन के लिए एक ही विधि स्वाध्याय (मौन) का (एकाग्रचित्त होकर) प्रयोग किया जाता है ।
14. मौन वाचन में इनका जाँचा जाना संदिग्ध है।
15. मौन वाचन में झिझक दूर करने का कोई अवसर नहीं प्राप्त होता ।
16. मौन वाचन में थकान शीघ्र नहीं होती क्योंकि इसमें वाक् यंत्रों का उपयोग नहीं होता ।
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