सैद्धान्तिक व प्रायोगिक ज्ञान से आप क्या समझते हैं ?
सैद्धान्तिक व प्रायोगिक ज्ञान से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर— सैद्धान्तिक और व्यावहारिक—आम धारणा यह है कि ज्ञान सिद्धान्त में तो ठीक है लेकिन व्यवहार में नहीं । विद्यालयी पाठ्यक्रम में सैद्धान्तिक रूप से ज्ञान ठीक है, लेकिन व्यावहारिक रूप में यह क्रियान्वित नहीं हो पाता है। सैद्धान्तिक से यह अभिप्राय लगाया जाता है कि वह सब अवास्तविक स्वप्नमयी है । प्रायः सैद्धान्तिक विचार को सिद्धान्त की धारणा से लिया जाता है। सिद्धान्त के विषय में कथन है कि यह तथ्यों में निहित अन्तः सम्बन्धों का द्योतक होता है अथवा तथ्यों के किसी अर्थपूर्ण क्रम में प्रस्तुत किये जाने से है।
आर. बी. ब्रेथवेट ने कहा – “सिद्धान्त उपकल्पनाओं की संयोजना है जो निगमनात्मक व्यवस्था की रचना करती है।”
सैद्धान्तिक एक विश्लेषणात्मक व्यवस्था है, इसकी प्रकृति निगमनात्मक है अन्त: संबंधित प्राक्कथनों की एक संयोजना है, तार्किक आधार पर अन्तः सम्बन्धित प्राक्कथनों की एक संयोजना है, सत्यापित प्राक्कथनों के आधार पर अनुमानित निष्कर्षों के रूप में प्राप्त किये जाते है।
सैद्धान्तिक और व्यावहारिक दोनों में प्रगाढ़ अन्तर्सम्बन्ध होने पर ही ज्ञान क्रिया के रूप में परिणित हो सकता है। दोनों में परस्पर विरोध होने पर बालक का विकास किया जाना संभव नहीं है। सैद्धान्तिक रूप में बहुत सारी बातें व्यावहारिक रूप से लागू नहीं की जा सकती। सैद्धान्तिक ज्ञान कार्यकारी रूप में होने पर ही श्रेष्ठ ज्ञान कहलाता है। सैद्धान्तिक व व्यावहारिकता अपृथकनीय रूप में अन्योन्याश्रित है। यह तो एक सिक्के दो पहलू की भाँति है। ज्ञान के निरन्तर विकास व सुसंयोजन के लिए यह आवश्यक है कि दोनों को 60 प्रतिशत सैद्धान्तिक व 40 प्रतिशत व्यवहारिकता के हिसाब से रखा जाना चाहिए। विद्यालयी स्तर के पाठ्यक्रम में सैद्धान्तिक ज्ञान की परीक्षा ली जाती है तथा व्यावहारिक ज्ञान के न्यून अंक निर्धारित होते हैं ।
अत: दोनों का एक अनुपात में पाठ्यक्रम हो तथा उसी अनुपात के आधार पर मूल्यांकन हो । ज्ञान को अर्थपूर्ण बनाने में सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिकता की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि सैद्धान्तिक वर्तमान का विश्लेषण है और व्यावहारिकता भविष्य को दर्शाने की क्षमता है। ये दोहरी क्षमताएँ ही उच्च स्थिति प्रदान करती हैं। यही ज्ञान की वास्तविकता, सत्यता और समग्रता है। जैसे कोई बालक महारानी लक्ष्मी बाई के पाठ झाँसी की रानी खूब लड़ी मर्दानी की कविता को कक्षा में पढ़े और पढ़ने के बाद घर में स्थित रहने वाली छिपकली, चूहा आदि से डरे तो यह ज्ञान उसका असार्थक होगा। शिक्षा भी अपूर्ण होगी क्योंकि उसे ज्ञान तो सैद्धान्तिक रूप में है, लेकिन व्यवहार में वह उपयोगी नहीं हो सकता। जिस ज्ञान की क्रियान्वित नहीं हो वह ज्ञान सर्वांगीण विकास करने में भी सक्षम नहीं हो सकता । बालक को पाठ तो नैतिक मूल्यों का पढ़ाया और ज्ञान भी उसे हुआ। लेकिन व्यवहार में वह बस वाले को किराया नहीं देता फिर उस ज्ञान की सैद्धान्तिकता और व्यावहारिकता में अन्तर हुआ ।
सैद्धान्तिक पाठ्यक्रम में ज्ञानात्मक विषयों को शामिल किया जाता है, क्रियात्मक विषय व्यावहारिक पाठ्यक्रम में सम्मिलित की जाती है। पाठ्यक्रम सैद्धान्तिक ज्ञान देने के साथ व्यावहारिक ज्ञान भी प्रदान करता हो जिससे विद्यार्थी स्वावलम्बी बनता है तथा समाज के साथ स्वस्थ समन्वय स्थापित करता है।
सैद्धान्तिक व व्यावहारिक पाठ्यक्रम के गुण—
(1) वर्तमान तथा भावी जीवन के लिए तैयार करता है।
(2) सिद्धान्त तथा व्यावहारिक विषय पर जोर दिया जाता है।
(3) बेरोजगारी की समस्या का समाधान प्रस्तुत करता है।
(4) युवाओं को रोजगार के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
(5) अर्जित ज्ञान स्थायी व प्रभावी होता है ।
(6)बालक में रचनात्मक तथा सृजनात्मक विकास संभव है।
(7) बालकों में प्रजातांत्रिक व सामाजिक गुणों का विकास करता है।
(8) छात्र को स्वावलम्बी व आत्मनिर्भर बनाता है।
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