“स्वदेशी’ कविता का सारांश लिखें।
“स्वदेशी’ कविता का सारांश लिखें।
उत्तर :- पाठयपुस्तक में संकलित ‘प्रेमधन’ के दोहों में नवजागरण और देशप्रेम के स्वर मुखरित हुए हैं। दोहों में पराधीन भारत के लोगों की मनोवृत्तियों का चित्रण हुआ है। ‘प्रेमघन’ को इस बात का बहुत दुख है कि भारत में भारतीयता का सर्वथा लोप हो गया है। भारत के लोग विदेशी रीति और वस्तु के दीवाने हो गए हैं। भारत में कोई भारतीय नहीं रह गया है। सभी परदेश की विद्या को महत्त्व देते हैं उसके चलते उनकी बुद्धि भी विदेशी हो गई है। उन्हें तो विदेशी चाल-चलन ही पसंद आता है। सबको विदेशी पोशाक ही रुचती है। अपनी भाषा छोड़कर सभी अँगरेजी भाषा के की ओर भाग रहे हैं। बोलचाल, रहन-सहन, पहनावा आदि में कहीं भी भारतीयता नजर नहीं आती। हिंदुस्तानी नाम सुनकर सबको मानो लाज लगती है और भारतीय वस्तु से सभी परहेज करते हैं। बाजारों में अँगरेजी माल भरे हुए हैं। अँगरेजी चाल पर घर बने हैं और शहर बसे हैं। राजनेताओं की नीति भी ढुलमुल है। सभी दासवृत्ति से ग्रस्त हैं। सुख-सुविधा की चाह ने सबको दास बना रखा है। सब अँगरेजों की – झूठी प्रशंसा और खुशामद में इसलिए लगे हैं कि उन्हें अंगरेजों की कृपा से कुछ सुख-सुविधाएँ प्राप्त हो जाएँ। सभी भारतीय मानसिक स्तर पर अंगरेजों के दास हो गए हैं। ‘प्रेमघन’ ने इसी पीड़ा की अभिव्यक्ति संकलित दोहों में की है।
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