1945 से 1960 के बीच विश्व स्तर पर विकसित होने वाले आर्थिक संबंधों पर प्रकाश डालें।
1945 से 1960 के बीच विश्व स्तर पर विकसित होने वाले आर्थिक संबंधों पर प्रकाश डालें।
उत्तर ⇒ 1945 से 1960 के बीच विश्व स्तर पर विकसित होने वाले अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों को तीन क्षेत्रों में विभाजित करके देखने का प्रयास किया जा सकता है। प्रथम, 1945 के बाद विश्व में दो भिन्न अर्थव्यवस्था का प्रभाव बढ़ा और दोनों ने विश्वस्तर पर अपने प्रभावों तथा नीतियों को बढ़ाने का प्रयास किया। संपूर्ण विश्व मुख्यतः दो गुटों में विभाजित हो गया। एक साम्यवादी अर्थतंत्र वाले देशों का गुट जिसका नेतृत्व सोवियत रूस कर रहा था, जिसकी विशेषता थी राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था और दूसरा, पूँजीवादी अर्थतंत्र वाले देशों का गुट जिसकी विशेषता थी बाजार और मुनाफा आधारित आर्थिक व्यवस्था जिसका नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका कर रहा था। दूसरा क्षेत्र, पूँजीवादी अर्थतंत्र वाले देशों के बीच बनने वाले अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों के विकास के अंतर्गत आता है। यह क्षेत्र पूर्णत: संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वारा संचालित हो रहा था। इसका प्रमुख उद्देश्य साम्यवादी अर्थतंत्र के विचार के बढ़ते प्रभाव को रोकना था। संयुक्त राज्य अमेरिका ने विश्व के दो क्षेत्रों दक्षिण अमेरिकी और मध्य तथा पश्चिम एशिया के तेल संपदा संपन्न देशों (इराक, इरान, सऊदी अरब, जार्डन, यमन, सीरिया, लेबनान) में जबरन अपनी नीतियों को थोपने का काम किया। वस्तुत: अमेरिका यह जानता था कि बाजार आधारित व्यवस्था के आधुनिक रूप की रीढ़ तेल और गैस नामक ऊर्जा स्रोत है, जिसकी कमी उसके सहयोगी अधिकांश पूँजीवादी अर्थव्यवस्था वाले देशों में थी। एक तीसरा क्षेत्र भी था जहाँ नवीन आर्थिक संबंध विकसित हुआ था, वह क्षेत्र था एशिया और अफ्रीका के नवस्वतंत्र देशों का। इन देशों पर तत्कालीन विश्व के दोनों महत्त्वपूर्ण आर्थिक शक्ति अमेरिका और सोवियत रूस अपना प्रभाव स्थापित करना चाहते थे। चूँकि ये सभी नवस्वतंत्र देश लंबे औपनिवेशिक शासन के दौरान आर्थिक रूप से बिलकुल विपन्न हो गए थे और अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए उन्हें इन दोनों देशों से आर्थिक और राजनीतिक दोनों प्रकार के सहयोग चाहिए था।