‘कंचन माटी जानै’ की व्याख्या करें।
‘कंचन माटी जानै’ की व्याख्या करें।
उत्तर :- प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी साहित्य के “जो नर दुःख में दुख नहिं मानै’ शीर्षक से उद्धृत है। प्रस्तुत गद्यांश में निर्गुण निराकार ईश्वर के उपासक गुरुनानक सुख-दुख में एकसमान उदासीन रहते हुए लोभ और मोह से दूर रहने की सलाह देते हैं।
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति में कवि ब्रह्म को पाने के लिए सुख-दु:खं से परे होना परमावश्यक बताते हैं। वे कहते हैं कि ब्रह्म को वही प्राप्त कर सकता है जा लोक-मोह, ईर्ष्या-द्वेष; काम-क्रोध से परे हो । जो व्यक्ति सोना को अर्थात् धन का मिट्टी के समान समझकर परब्रह्म की सच्चे हृदय से उपासना करता है वह ब्रह्ममय हो जाता है। जो प्राणी सांसारिक विषयों में आसक्ति नहीं रखता है। उस प्राणा , ब्रह्म निवास करता है।
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