स्व – क्षमता से आपका क्या तात्पर्य है ?

स्व – क्षमता से आपका क्या तात्पर्य है ?

                          अथवा
आत्म-क्षमता को परिभाषित कीजिए।
उत्तर— स्व क्षमता (आत्म-क्षमता ) – “आत्म-क्षमता या स्वविभाव स्वयं एक ऐसा सम्प्रत्यय है जो विश्व के परिदृश्य में व्यक्ति के स्व का आंकलन करके इसे एक उपयोगी नागरिक बना सकता है। “
अरस्तू के अनुसार—”आत्म- क्षमता एक स्थिर रहने वाला तत्व है जो कि परिवर्तन से प्रभावित नहीं होती है, परिवर्तन सम्पूर्ण विश्व को और उसके क्रिया-कलापों को प्रभावित करता है लेकिन आत्म क्षमता हर व्यक्ति में स्थिर रहती है तथा यह समय की सीमाओं से बंधी नहीं होती।”
शिक्षा द्वारा तथा परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करके अपनी क्षमताओं को उत्कर्ष तक पहुँचाना उन भयों (Fears) संकटों, और परिणामों को समझना जो व्यक्ति के श्रेष्ठतम स्वरूप को प्राप्त करने में सहायक होते हैं, आत्म-सम्भावनाओं, क्षमताओं और निहितों के मार्ग हैं।
रोजर विलियम्स (आध्यात्मिक गुरु ) के अनुसार—”यदि एक व्यक्ति स्वनिहित क्षमता को नहीं पहचानता है तो वह स्वयं का अपराधी है इसके विपरीत यदि वह विपरीत परिस्थितियों में रहकर भी जो वह हो सकता है उस उत्कर्ष तक पहुँचता है तब सम्पूर्ण विश्व का कल्याण करता है। “
दलाई लामा के अनुसार—“ अपनी क्षमताओं को जानकर और उसमें यकीन करके ही हम सब बेहतर विश्व का निर्माण कर सकते हैं। ” आत्म क्षमता एक प्राकृतिक गुण है जो कि प्रत्येक मनुष्य में, प्रकृति में तथा जीवों में स्वतः निहित है इसके लिए उन घटनाओं संकटों परिस्थितियों से लड़ना है जो किसी के पक्ष में नहीं हैं।
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