“काल-सूर्य के रथ के / पहियों के ज्यों अरे टूट कर / बिखर गये हों / दसों दिशा में’ की व्याख्या कीजिए।
“काल-सूर्य के रथ के / पहियों के ज्यों अरे टूट कर / बिखर गये हों / दसों दिशा में’ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिन्दी साहित्य के महान प्रयोगवादीकवि अज्ञेय के द्वारा लिखित ‘हिरोशिमा’ नामक शीर्षक से उद्धत है । प्रस्तुत अंश में यह कहा जा रहा है कि हिरोशिमा में बम का विस्फोट होना एक नहीं अनेक सूर्य के शक्ति के बराबर ज्वाला उगला था। इस व्याख्येय अंश में कहा जा रहा है कि हिरोशिमा में आण्विक आयुध का प्रयोग इतिहास का अमिट काला कलंक है । आण्विक विस्फोट की स्थिति ठीक उसी प्रकार लग रही थी जैसे महाकालरूपी सूर्य के रथ का पहिया टूटकर दसों दिशाओं में बिखर गया है। जहाँ-तहाँ पड़ी हुई लाशें सूर्यरूपी महाकाल के टूटी हुई पहियों के रूप में मानवीय संवेदनाओं को झकझोर दिया था ।
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