सीमान्त समूहों के जीवन-मानदण्डों के सुधार हेतु शिक्षा की भूमिका समझाइये ।
सीमान्त समूहों के जीवन-मानदण्डों के सुधार हेतु शिक्षा की भूमिका समझाइये ।
उत्तर— सीमान्त समूहों के जीवन-मानदण्डों के सुधार हेतु शिक्षा की भूमिका–शिक्षा के द्वारा ही सीमान्त वर्गों (अनुसूचित जाति, जनजाति आदि) की शैक्षणिक, आर्थिक तथा सामाजिक उन्नति सम्भव है। अतः इस वर्ग के उत्थान एवं विकास में शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है इसी भूमिका को ध्यान में रखते हुए विभिन्न प्रकार की शैक्षिक सुविधाएँ एवं प्रोत्साहन जो इस वर्ग हेतु उपलब्ध कराई जा रही है, का वर्णन इस प्रकार है—
संविधान द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति की शिक्षा के लिए किए गस विशेष प्रावधान (Special Provisions made by the Constitution for Education of Scheduled Caste and Tribes ) – संविधान द्वारा इन वर्गों की शिक्षा के लिए निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं—
(1) अनुच्छेद 16 के अनुसार, “सभी नागरिकों को अवसर की समानता प्रदान की गई है । “
(2) अनुच्छेद 17 के अनुसार, “छुआछूत को इसे दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है। “
(3) अनुच्छेद 18 के अनुसार, “राज्य-पोषित या राज्य निधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, भाषा, वंश, जाति या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं रखा जाएगा।”
(4) अनुच्छेद 46 के अनुसार, “यह अनुच्छेद इन वर्गों को विशेष शैक्षिक सुविधाएँ प्रदान करने से सम्बन्ध रखता है इस अनुच्छेद में यह प्रावधान है कि राज्य पिछड़े वर्गों विशेष रूप से अनुसूचित जातियों व जनजातियों के शैक्षिक एवं आर्थिक हितों की रक्षा करेगा और उनकी सब प्रकार के शोषण से रक्षा करेगा ।” संविधान में यह भी कहा गया है कि यदि राज्य पिछड़े वर्गों को समाज के अन्य वर्गों के साथ समानता के स्तर पर पहुँचाने के लिए उन्हें विशेष शैक्षिक सुविधाएँ प्रदान करता है तो उसे ऐसा करने से नहीं रोका जा सकता इसी आधार पर विभिन्न राज्यों में इन वर्गों के बच्चों के लिए निःशुल्क शिक्षा, छात्रवृत्ति तथा पाठ्यपुस्तकों व यूनीफार्म आदि की व्यवस्था की गई है। विभिन्न कोर्सों में प्रवेश के लिए अलग-अलग राज्यों द्वारा अलग-अलग प्रतिशत आरक्षण किया गया है।
भारतीय शिक्षा आयोग द्वारा इस वर्ग की शिक्षा हेतु की गई सिफारिशें—आयोग ने अनुसूचित जाति तथा जनजाति की शिक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण सुझाव प्रस्तुत किए जिनका वर्णन इस प्रकार है—
(1) प्राथमिक शिक्षा– आयोग ने कहा कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के बालकों की शिक्षा पूर्णतः संगठित होनी चाहिए। उनके निवासीय क्षेत्रों में अधिक से अधिक विद्यालय खोले जाने चाहिए।
(2) माध्यमिक शिक्षा– आयोग ने कहा कि इन बालकों की माध्यमिक शिक्षा में भूमिका बढ़ाने के लिए अन्य माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना की जाए।
(3) उच्च शिक्षा– आयोग ने सुझाव दिया कि उच्च शिक्षा में अनुसूचित जाति एवं जन-जाति के लोगों की सहभागिता को बढ़ाने के लिए यह आवयश्क है कि उन्हें सभी सुविधाएँ निःशुल्क उपलब्ध कराई जाए।
(4) आयोग ने सुझाव दिया कि जो शिक्षक अनुसूचित जाति एवं जन-जाति के लोगों की शिक्षा से सम्बन्धित हैं, उनके लिए अलग से समवर्ग ( Separate Cadre) बनाए जाए ।
नई शिक्षा नीति में की गई सिफारिशें– नई शिक्षा नीति में इस वर्ग हेतु की गई सिफारिशें निम्नलिखित हैं—
(1) अनुसूचित जातियों के लिए नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में रहने वाले, इन जातियों से सम्बन्ध रखने वाले सभी स्त्री एवं पुरुषों को शिक्षा की दृष्टि से समानता के स्तर पर लाया जाएगा इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए निम्न सुझाव दिए—
(i) गरीब परिवारों से सम्बन्धित 14 वर्ष के बालकों को प्रतिदिन विद्यालय भेजने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
(ii) समयबद्ध कार्यक्रम प्रारम्भ करके सफाई एवं चर्म शोधन जैसे व्यवसायों में लगे परिवारों के बालकों के लिए पहली कक्षा से ही छात्रवृत्ति प्रारम्भ की जाएगी।
(iii) विद्यालय छोड़ चुके इन जातियों के बालकों के लिए अनौपचारिक शिक्षा की व्यवस्था की जाए ।
(iv) इस जाति के शिक्षकों की नियुक्ति को प्राथमिकता दी जाए।
(v) यह बात विशेष रूप से ध्यान में रखनी चाहिए कि इन जातियों के छात्रों के नामांकन व पढ़ाई पूरी करने की प्रक्रिया में कोई कमी न आने पाए।
(vi) इन जातियों के बालकों के लिए जिला केन्द्रों पर छात्रावास स्थापित करके सुविधाओं में बढ़ोत्तरी की जाए।
(vii) इन जातियों के लिए विद्यालय भवनों और प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों की स्थापना करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि इनमें सब सुविधाएँ हो और आने-जाने में कोई समस्या न हो।
(2) अनुसूचित जनजातियों के लिए– इस शिक्षा नीति में अनुसूचित जातियों की शिक्षा के बारे में निम्नलिखित सुझाव दिए गए—
(i) इन जनजातियों के बालकों को प्रवेश में आरक्षण दिया जाए।
(ii) जन जनजातियों के बालकों हेतु छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाए।
(iii) इन जनजातियों के बालकों को निःशुल्क पाठ्य पुस्तकें तथा यूनीफार्म प्रदान की जाए।
(iv) इन जनजातियों को राजकीय विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में आरक्षण की सुविधा प्रदान की जाए।
(v) इस वर्ग की शिक्षा के विकास हेतु विशेष प्रशिक्षण प्रकोष्ठ बनाए जाए।
(vi) इन जनजातियों को अपने क्षेत्र विशेष में विद्यालय स्थापित करने में छूट प्रदान की जाए।
(vii) इन जातियों के बालकों को इनकी क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति दी जाए।
(viii) इन जनजातियों के प्रतिभाशाली नवयुवकों को इनके क्षेत्र में शिक्षक नियुक्त करने में प्राथमिकता दी जाए।
(3) ढेबर आयोग की सिफारिशें– ढेबर आयोग का गठन 196061 में किया गया था। अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों की समस्याओं का पता लगाकर उनके विषय में सुझाव देना इस आयोग का प्रमुख उद्देश्य था। इस आयोग के द्वारा दी गई सिफारिशें निम्नलिखित हैं—
(1) इन जातियों के बालकों को पढ़ाने के लिए नियुक्त अध्यापकों को उपयुक्त आवास की सुविधा प्रदान की जाए तथा साथ ही अन्य सुविधाएँ जैसे भत्ता आदि भी दी जाए।
(2) इन जातियों के बालकों को शिल्प या कौशल की शिक्षा प्रदान की जाए।
(3) इन जातियों की प्राथमिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए।
(4) इन जातियों के बालकों को विद्यालयों में निःशुल्क पाठ्यपुस्तकें, स्कूल यूनीफार्म, लेखन सम्बन्धी सामग्री तथा दोपहर का भोजन भी प्रदान किया जाए ।
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