भाषा के कार्यों को लिखिए।
भाषा के कार्यों को लिखिए।
अथवा
भाषा के कार्यों की व्याख्या कीजिये ।
उत्तर— भाषा के कार्य– मानव का जीवन विकासोन्मुख करने के लिए प्रत्येक समय भाषा की अत्यन्त आवश्यकता है। मानव जीवन में भाषा अगर नहीं होती तो उसका जीवन पशुओं के समान गया- बीता हो जाता । पूरा संसार सूना हो जाता। भाषा ने संसार के सूनेपन को एक नई जिन्दगी दी है। पं. सीताराम चतुर्वेदी का कहना ठीक ही है— भाषा के आविर्भाव से सारा मानव संसार गूँगों की विराट बस्ती होने से बच गया।” भाषा की आवश्यकता तथा महत्त्व को निम्न तत्त्वों से आँका जा सकता है—
(1) मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए– जब मनुष्य अपनी भावनाओं और विचारों को अभिव्यक्त करता है उस वक्त उसका व्यक्तित्व दिखाई पड़ता है। भाषा अभिव्यक्ति का सशक्त साधन है। मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए भाषा सहायता प्रदान करती है। भाषा के महत्त्व के सम्बन्ध में रायबर्न महोदय का कहना है—“ भाषा ज्ञान के बिना बौद्धिक विकास, ज्ञान-वृद्धि, आत्माभिव्यक्ति और रचनात्मक शक्ति का विकास असम्भव है।” मानव व्यक्तित्व का विकास भाषा के प्रभावोत्पादक प्रयोग पर ही निर्भर है।
(2) विचार विनिमय के लिए भाषा– विचार – विनिमय का सशक्त साधन है। केवल संकेतों से विचार-विनिमय नहीं होता बल्कि विचारों का आदान-प्रदान भाषा के सहारे सुगमता से किया जाता है। हम वार्तालाप करके, लिखकर तथा पढ़कर विचार-विनिमय सरलता से कर सकते हैं। इसलिए भाषा को विचार विनिमय का सर्वोत्तम साधन माना गया है।
(3) ज्ञान की वृद्धि के लिए– ज्ञान की वृद्धि भाषा की सहायता से होती है। मनुष्य अपने जीवन में विभिन्न प्रकार का ज्ञान प्राप्त करता है, उन सभी का माध्यम भाषा ही है। भाषा के बिना शिक्षा और ज्ञान प्राप्त करना आशक्य है । भाषा की सहायता से ही शब्द भण्डार में वृद्धि होती है। भाषा से मानव-मानव में सम्बन्ध प्रगाढ़ होता है।
(4) संस्कृत नागरिक निर्माण करने के लिए– मनुष्य के बौद्धिक विकास के साथ अच्छे नागरिकत्व के गुणों का पोषण होना आवश्यक है। भाषा न केवल मनुष्य के बौद्धिक विकास में सहयोग देती है, बल्कि उसका नैतिक, चारित्रिक और सामाजिक विकास करके उसे अच्छा नागरिक भी बनाती है। केवल भाषा के माध्यम से ही मनुष्य दूसरों के विचारों तथा भावों को समझ सकता है और समझा भी सकता है। माईकल वेस्ट ने अपनी पुस्तक “लैंग्वेज ऑफ एजूकेशन” में लिखा है -“भाषा का महत्त्व केवल बौद्धिक विकास में नहीं, बल्कि चारित्रिक विकास में भी है।”
(5) ज्ञान का संरक्षण करने के लिए– लेखन के जरिए मनुष्य के ज्ञान तथा अनुभवों को चिरकाल तक रख सकती है। भाषा के लिखित रूप द्वारा प्राचीन काल से आज तक क्या-क्या हो गया है, इसका सहीसही पता चलता है। सदियों पहले हुए वाल्मिकी वेदव्यास, कालिदास, शेक्सपीयर आदि महान साहित्यकारों की रचनाएँ भाषा के कारण ही सुरक्षित हैं। वेदों, पुराणों, उपनिषदों का ज्ञान हमें भाषा के माध्यम से आज उपलब्ध है। भाषा का अस्तित्व होने से ही संस्कृति सभ्यता का विकास हो रहा है। भाषा ज्ञान का संग्रह करती है। विज्ञान में होने वाले नये-नये आविष्कारों को वैज्ञानिक लिपिबद्ध करके रखते हैं और उसका लाभ आने वाली पीढ़ियों को सुगमता से हो जाता है।
(6) सामाजिक एकता स्थापित करने के लिए– भाषा जहाँ राष्ट्रीय एकता का निर्माण करती है। वहाँ सामाजिक एकता सहजात से दिखाई पड़ती है। भारत में अनेक भाषा बोलने वाले लोग रहते हैं। भाषा के आधार पर समाज का पता चलता है, जैसे— कन्नड़- कर्नाटक, मराठीमहाराष्ट्र, बंगाली-बंगाल, कश्मीरी-काश्मीर, गुजराती- गुजरात आदि । जब कन्नड़ बोलने वाले दो आदमी काश्मीर में मिलते हैं तो उनमें एकता, भावुकता, प्रेम उत्पन्न होता है। इसी प्रकार विदेश में हिन्दी बोलने वाला भारतवासी मिलता है दोनों में सामाजिक एकता का निर्माण हो जाता है।
(7) राष्ट्रीय एकता का निर्माण करने के लिए– समूचे राष्ट्र में भावात्मक एकता प्रस्थापित करने में राष्ट्रभाषा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत जैसे विशाल देश में अनेक भाषा बोलने वाले, अनेक धर्म, पंथ, जाति के लोग जब एक स्थान पर आ जाते हैं तो उनमें राष्ट्रीय एकता भाषा से ही निर्माण हो सकती है। राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिए राष्ट्रभाषा एक सशक्त साधन है। सभी देशवासियों को भावात्मक एकता में बाँधने का काम राष्ट्रभाषा करती है।
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