मौखिक भाषा की आवश्यकता क्यों है ?

मौखिक भाषा की आवश्यकता क्यों है ?

उत्तर— मौखिक भाषा का प्रशिक्षण बालकों को आत्मविश्वास के साथ अपने विचार प्रकट करना सिखलाता है । तिरुवल्लुवर के अनुसार मौखिक भाषा-कौशल से रहित व्यक्ति “सुगन्ध रहित खिले हुए फूल” के समान है। शंकराचार्य समयानुसार युक्तियुक्त बोलने में असमर्थ व्यक्ति को मूक तथा बधिर मानते हैं। पाश्चात्य दार्शनिक एल. रॉन हब्बर्ड के अनुसार कोई व्यक्ति जितना भाषा-सक्षम है, उतना ही वह जीवित है तथा जीवन में सफल है।
परिभाषा की दृष्टि से कहा जा सकता है कि व्यक्ति अपने मनोभाव, अनुभव एवं विचार व्यक्त करने के लिए जिन समाजसम्मत ध्वनि संकेतों का प्रयोग करता है, उसे मौखिक भाषा कहते हैं । भाषा को बोलने के लिए स्वरों तथा व्यंजनों के स्वीकृत उच्चारण- प्रयत्नों, शब्दों और वाक्यनिर्माण – कला का ज्ञान होना अनिवार्य है। मौखिक भाषा के माध्यम से व्यक्ति विचार-विमर्श, वार्तालाप एवं भाषण जैसी क्रियाएँ कर पाता है। मौखिक भाषा के द्वारा बालक को भाव एवं विचार – प्रकाशन के अवसर प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त निम्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मौखिक भाषा की आवश्यकता होती है—
(1) बालकों में स्वाभाविक रूप से बोलने की क्षमता उत्पन्न करना ।
(2) बालकों को व्यक्ति या व्यक्तियों के समक्ष अपने विचारों को प्रभावोत्पादक ढंग से प्रस्तुत करना ।
(3) बालक समाज के विभिन्न सदस्यों से शिष्टतापूर्वक बात कर सके, इसके लिए आवश्यक शब्दावली का ज्ञान कराना।
(4) बालकों का उच्चारण शुद्ध एवं परिमार्जित कराना ।
(5) शब्दों को समझकर, उचित स्थान एवं उचित समय पर प्रयोग करने की क्षमता उत्पन्न करना।
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