Bihar Board Class 9Th Hindi chapter 1 पद Solutions | Bseb class 9Th Chapter 1 पद Notes
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प्रश्न- रैदास’ ईश्वर की कैसी भक्ति करते हैं ?
उत्तर— रैदास ईश्वर को अपना स्वामी और खुद को उनका दास मानकर ईश्वर की भक्ति करते हैं। वे कहते है कि यदि भगवान चंदन है तो वे जल है, भगवान बादल है तो भक्त मोर है। अर्थात भगवान का अस्तित्व भक्त के होने पर ही है।
प्रश्न- कवि ने ‘अब कैसे छूट राम रट लागी क्यों कहा है ?
उत्तर— कवि भगवान की भक्ति को ही अपनी ‘जीवन की सार्थकता’ मानता है। उनका मानना है कि भगवान किसी मंदिर या मस्जिद में नहीं बल्कि उनके हृदय में निवास करते हैं अतः हृदय में बसने वाले राम को वे कैसे भुला सकते है।
प्रश्न- कवि ने भगवान और भक्त की किन-किन चीजों से तुलना की है ?
उत्तर— कवि ने भगवान और भक्त की तुलना कई चिजों से की है। जैसे- चंदन-पानी, बनघन – मोर, स्वामी – दास, दीपक बाती।
प्रश्न- कवि अपने ईश्वर को किन नामों से पुकारता है ?
उत्तर— कवि अपने ईश्वर को स्वामी, चंदन, दीपक, मोती आदि नामों पुकारता है।
प्रश्न- ‘पद’ कविता का केंद्रीय भाव क्या है ?
उत्तर— इस कविता का केंद्रीय भाव भगवान और भक्त के बीच का गहरा संबंध है। कवि ईश्वर को अपना स्वामी मानते हैं और कहते हैं कि ईश्वर का निवास स्थान उनके हृदय में है अर्थात कवि हमेशा भक्ति रस में डूबे रहना चाहते है ।
प्रश्न- रैदास के राम की अवधारणा का परिचय दीजिए।
उत्तर— रैदास के राम कहीं बाहर किसी मंदिर-मस्जिद में नहीं बल्कि उनके हृदय में निवास करते हैं। अर्थात् रैदास के राम निर्विकार व निर्गुण है और जैसे चंदन की खुशबू हर वस्तु में समायी हुई है। वैसे ही राम हर जगह है।
प्रश्न- रैदास अपने स्वामी राम की पुजा में कैसी असमर्थता जाहिर करते हैं ?
उत्तर— कवि की नजर में ईश्वर की पूजा-अर्चना के लिए चढ़ाए जानेवाले जल व फल-फूल अनूठे नहीं है। वे सभी जूठे और गंदे है। दूध को भी गाय का बछड़ा जूठा देता है। अतः वे पुजा में कुछ भी चढ़ाने में असमर्थ है।
प्रश्न- कवि अपने मन को चकोर के मन की भांति क्यूँ कहते हैं ?
उत्तर— चकोर नामक पक्षी अपने प्रेमिका को पाने के लिए चाँद को सारी रात निहारता रहता है ताकि कब सुबह हो और वो अपनी प्रेमिका से मिले। चकोर के जैसे ही कवि का मन भी प्रेमरूपी प्रभु को मिलने को व्याकुल रहता है।
प्रश्न- “मन ही पूजा मन ही धूप। मन ही सेॐ सहज स्वरूप”। का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर— कवि प्रभु से कहते है- “मैं पूजा-अर्चना के कर्म-कांड में न पड़कर मन-ही-मन आपका जाप करता हूँ और अपने भीतर आपकी ही छवि देखता हूँ।”
प्रश्न- भक्त कवि ने अपने आराध्य के समक्ष अपने आप को दीन-हीन माना है क्यों ?
उत्तर— कवि मानते है कि संसार की सभी वस्तुएँ भगवान की ही बनाई हुई है भक्त के पास अपना कुछ भी नहीं है। यहाँ तक कि पूजा अर्चना के लिए चढ़ाए जाने वाले फल-फूल व जल भी जूठे और वेंदले है। अतः कवि के पास भगवान को चढ़ाने के लिए कुछ भी नहीं है और वह दीनहीन है।
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