Bihar Board Class 9Th Hindi chapter 11 समुद्र Solutions | Bseb class 9Th Chapter 11 समुद्र Notes
Bihar Board Class 9Th Hindi chapter 11 समुद्र Solutions | Bseb class 9Th Chapter 11 समुद्र Notes
प्रश्न- समुद्र ‘अबूझ भाषा में क्या कहता है ?
उत्तर— समुद्र अबूझ भाषा में हमेशा कहते रहता है कि “मुझसे जो भी ले जाना हे ले जाओ, जितना चाहता हो उतना ले जाओ परन्तु मेरे देने की अभिलाषा हमेशा बची रहेगी। “
प्रश्न- “जितना चाहो ले जाओ फिर भी बची रहेगी देने की अभिलाषा” से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर— कवि की दृष्टि में समुद्र का हृदय विशाल है तथा समुद्र में देने को प्रबल भाव है। जितना है कि समुद्र खुले हाथ लुटाने में नहीं हिचकता क्योंकि इसमे समस्त अर्पण का भाव है।
प्रश्न- कविता में ‘चिर तृषित’ कौन है ?
उत्तर— इस कविता में चिर तृषित सूर्य है जो समुद्र की छाती से लगातार उसका जल सोख रहा है परन्तु समुद्र कभी नहीं सूखता। वहीं दूसरी ओर मनुष्य भी सूर्य के तरह ही चिरतृषित है जो समुद्र से लगातार
लिये जा रहा है।
प्रश्न- कविता के अनुसार मनुष्य और समुद्र की प्रकृति में क्या अंतर है ?
उत्तर— इस कविता में समुद्र को दानी व मनुष्य को उपभोक्ता वादी बातया गया है। समुद्र की प्रकृति अपनी समस्य संपदाओं को लुटाने की है वहीं मनुष्य की प्रकृति हमेशा समुद्र से कुछ लेते रहने की है। वे हमेशा समुद्र से रेत घोंघे, सीप व मछलियाँ लेते रहते हैं।
प्रश्न- समुद्र कविता से हमें क्या संदेश मिलता है ?
उत्तर— यह कविता हमे उपभोक्ता वादी नहीं बनने का संदेश देता है। जिस तरह समुद्र में हमेशा देने की प्रबल इच्छा रहती है और वो खुले हाथों से सब कुछ लुटाती रहती है हमें भी वैसे ही देने की इच्छा रखनी चाहिए।
प्रश्न-भाव स्पष्ट करें:- क्या चाहते हो ले जाना घोंघे, क्या बनाओगे ले जाकर, कमीज के बटन, नाड़ा काटने के औजार।
उत्तर— प्रस्तुत पंक्तियाँ सीताकांत महापात्र द्वारा लिखित ‘समुद्र’ नामक कविता से ली गई है। इस कविता में समुद्र के विचारों को दर्शाया गया है। इन पंक्तियों में समुद्र कहता है कि मनुष्य उसके रेत पर से अमूल्य घोंघे ले जात हैं जिनसे वे तुच्छ कमीज के बटन या नाड़ा काटने के तेज धार वाले औजार बनाते हैं।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here