दल शिक्षण क्या है ? इसकी विशेषताएँ बताते हुए क्रियाविधि को स्पष्ट कीजिए ।

दल शिक्षण क्या है ? इसकी विशेषताएँ बताते हुए क्रियाविधि को स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर–दल शिक्षण — शिक्षक एवं छात्र दोनों की दृष्टि से विषय विशेष की विषय-वस्तु के स्पष्टीकरण के लिए उन सभी विषयों के विशेषज्ञों एवं अध्यापकों का सहयोग लिया जाता है जो इस विषय के स्पष्टीकरण के लिए आवश्यक होते हैं। इस प्रकार अध्यापकों के समूह द्वारा किया गया शिक्षण समूह द्वारा किया गया शिक्षण समूह या दल शिक्षण कहलाता है।
कार्लो आलसन ने दल शिक्षण की परिभाषा निम्न प्रकार से दी है—
‘दल – शिक्षण अनुदेशन परिस्थितियों को उत्पन्न करने की एक प्रविधि है जिसमें दो या दो से अधिक शिक्षक अपने कौशल तथा शिक्षण योजना का एक कक्षा शिक्षण में एक-साथ सहयोग करते हैं। इसकी योजना लचीली होती है जिससे शिक्षण को आवश्यकतानुसार बदल लिया जाता है। “
अतः दल शिक्षण के संदर्भ में कहा जा सकता है कि दल– शिक्षण एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें दो या दो से अधिक शिक्षक शिक्षण सहायक सामग्री अथवा बिना इसके सहकारी योजना अनुदेशन तथा मूल्यांकन के लिए एक या अधिक कक्षाओं के लिए  तैयार करते हैं। इसके अन्तर्गत शिक्षकों की विशिष्ट क्षमताओं का निर्धारित समय में अधिकतम लाभ उठाया जाता है।”
दल-शिक्षण की विशेषताएँ निम्न हैं—
(1) यह प्रशिक्षण प्रविधि की अपेक्षा शिक्षण प्रविधि अधिक है ।
(2) इसे सहकारी शिक्षण की भी संज्ञा दी जा सकती है।
(3) इसमें एक विषय के किसी एक प्रकरण के विभिन्न पक्षों को दो या दो से अधिक शिक्षक प्रस्तुत करते हैं ।
(4) इसमें छात्रों को कई शिक्षकों के स्रोतों, अभिरुचियों तथा दक्षताओं का लाभ मिलता है।
(5) इसमें शिक्षण के उद्देश्यों के निर्धारण का कार्य एवं उद्देश्यों के आधार पर शिक्षण योजना के निर्माण का कार्य शिक्षक मिलकर करते हैं ।
(6) इसमें कक्षा शिक्षण का कार्य दो या दो से अधिक शिक्षक मिलकर करते हैं अर्थात् शिक्षण का उत्तरदायित्व सामूहिक होता है।
दल-शिक्षण की क्रियाविधि—विभिन्न प्रकार के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए दल-शिक्षण में निम्नलिखित सोपानों का अनुसरण किया जाता है—
प्रथम सोपान दल-शिक्षण की योजना इसमें निम्न क्रियाओं का आयोजन किया जाता है —
(1) दल-शिक्षण के उद्देश्यों का प्रतिपादन करना ।
 (2) उद्देश्यों को व्यवहारगत परिवर्तन के रूप में लिखना
(3) विद्यार्थियों के आरम्भिक व्यवहारों की पहचान करना ।
(4) शिक्षण के प्रकरण के सम्बन्ध में निर्णय लेना।
(5) शिक्षण के लिए एक सम्भावित रूपरेखा तैयार करना ।
(6) अनुदेशन का स्तरीकरण करना।
(7) अधिगम वातावरण उत्पन्न करने हेतु आवश्यक शिक्षण सामग्री तथा अन्य साधनों के उपयोग की योजना बनाना ।
(8) मूल्यांकन प्रविधियों के चयन के सम्बन्ध में योजना बनाना । उपर्युक्त के आधार पर लोकतान्त्रिक विधि से सभी अध्यापक योजना बनाते हैं।
द्वितीय सोपान —दल-शिक्षण की व्यवस्था सोपान में योजना के अनुरूप दल-शिक्षण की व्यवस्था की जाती है अर्थात यह चरण क्रियान्वयन से सम्बन्धित है। दल-शिक्षण में सामान्यत: निम्नांकित क्रियाएँ की जाती हैं—-
(1) अनुदेशन का स्तरीकरण करने की दृष्टि से आरम्भ में प्रश्नों द्वारा छात्रों के स्तर का पता किया जाता है।
(2) विद्यार्थियों की भाषा की बोधगम्यता को ध्यान में रखते हुए समुचित सम्प्रेषण की प्रविधि का चयन किया जाता है।
(3) अध्यापक दल से एक अध्यापक द्वारा ‘नेतृत्व प्रवचन’ किया जाता है और अन्य अध्यापक उसके मुख्य एवं विद्यार्थियों की दृष्टि से कठिन बिन्दुओं को अंकित करते जात हैं।
(4) इस सोपान के अगले क्रम में दल के अन्य अध्यापकों द्वारा उन विन्दुओं का अधिक सरल तरीके से स्पष्टीकरण किया जाता है। इसे अनुसरण की क्रियाएँ कहते हैं। कार्य प्रारम्भ किया जाना चाहिए। शिक्षण के कार्यों एवं उद्देश्यों के अनुरूप दल-शिक्षण की गतिविधियों का समुचित पर्यवेक्षण भी होना चाहिए।
निम्न परिस्थितियों में अध्यापक छात्रों की क्रियाओं को पुनर्बलन प्रदान करते हैं और उन्हें कुछ कार्य कक्षा में करने को दिया जाता है जिसका निरीक्षण अध्यापकों द्वारा किया जाता है। उपर्युक्त दोनों सोपान आम सभा सत्र के अन्तर्गत विद्यार्थी एवं अध्यापक साथ-साथ बैठकर पूर्ण करते हैं।
तृतीय सोपान दल-शिक्षण के परिणामों का मूल्यांकनदल-शिक्षण की तृतीय एवं अन्तिम सोपान मूल्यांकन से सम्बन्धित है जो छात्रों एवं शिक्षकों दोनों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होता है। यह सोपान लघु सभा सत्र के अन्तर्गत किया जाता है। इसमें प्रत्येक छात्र को विषय के स्पष्टीकरण, उस पर विचार अभिव्यक्त करने का अवसर तथा प्रयोग करने का अवसर मिले इस दृष्टि से उन्हें छोटे-छोटे दलों में विभक्त कर देते हैं और प्रत्येक दल का अध्यापक के पर्यवेक्षण में अपना कार्य करता है। इस सोपान में निम्नलिखित क्रियाएँ की जाती हैं
(1) मूल्यांकन की विभिन्न प्रविधियों का उपयोग करते हुए अध्यापकों द्वारा छात्रों का मूल्यांकन किया जाता है।
(2) छात्रों की निष्पत्तियों तथा उद्देश्यों की प्राप्ति के सम्बन्ध में निर्णय लिया जाता है।
(3) छात्रों की कमजोरियों तथा कठिनाइयों का निदान कर उपचार किया जाता है।
(4) मूल्यांकन के आधार पर योजना सोपान तथा व्यवस्था सोपान में सुधार किया जाता है।
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