निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये—
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये—
(अ) बालक के अधिगम में वृद्धि हेतु अध्यापक द्वारा परावर्तन
(ब) बालक के स्व में परिवर्तन के कारण
उत्तर— (अ) बालक के अधिगम में वृद्धि हेतु अध्यापक द्वारा परावर्तन–शिक्षक अपने शिक्षण व अधिगम को उन्नत बनाने के लिए कुछ प्रश्न पूछ सकता है जो परावर्तन में सहायक हो सकते हैं—
(1) क्या मैं बच्चों की विभिन्न आवश्यकताओं को समझने योग्य हूँ ? यदि हाँ, तो मैं उन आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए क्या कर रहा हूँ ?
(2) क्या कुछ बच्चे हैं जो प्रथम स्तर पर पहुँचने में कठिनाई अनुभव करते हैं ? मैं व्यक्तिगत रूप से उनको अभिप्रेरित करने व प्रोत्साहित करने के लिए क्या करता हूँ ?
(3) मैं अपने अध्यापन-अधिगम विधि को कैसे सुधार सकता हूँ ताकि बच्चे एक स्तर से दूसरे स्तर तक जा सकें।
(4) मैं बच्चों को आत्म-आकलन के लिए किस प्रकार अभिप्रेरित कर सकता हूँ?
(5) मुझे किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ?
(6) मुझे और क्या सहायता चाहिए ? ये मुझे कौन प्रदान कर सकता है ? (शैक्षिक कार्यकर्त्ता, अभिभावक, समुदाय, अन्य अध्यापक) ।
(7) उत्तम अध्यापन अधिगम पद्धति को सम्बन्धित करने के लिए मैं क्या प्रयास कर सकता हूँ?
शिक्षक उपर्युक्त प्रश्नों के माध्यम से परावर्तन अभ्यास कर सकता है व शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में सुधार कर सकता है।
(ब) बालक के स्व में परिवर्तन के कारण – स्व प्रत्यय व शीलगुण दोनों बालक के व्यक्तित्व में परिवर्तन व परिमार्जन करते हैं । बालक द्वारा अवांछित गुणों का त्याग करके वांछित गुणों को अर्जित करना गुणात्मक परिवर्तन कहलाता है इसके विपरीत कम वांछित व्यवहारों को अधिक वांछित व्यवहारों में परिवर्तन करना मात्रात्मक परिवर्तन है । बालक के स्व में परिवर्तन के कारण निम्न हैं—
(1) दैहिक परिवर्तन–मस्तिष्क में रचनात्मक विकृति, आंगिक विकृति, अंतःस्रावी विकृति, कुपोषण, चोट, बीमारी, मादक पदार्थ आदि के प्रभाव से बालक का स्व परिवर्तित होता है।
(2) परिवेशीय परिवर्तन– बालक के चारों तरफ के परिवेश अर्थात् सामाजिक, आर्थिक परिवेश में परिवर्तन का प्रभाव उसके स्व पर पड़ता है।
(3) सामाजिक दबाव — बालक के स्व में परिवर्तन में सामाजिक – दबाव की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है जो आंतरिक व बाह्य दोनों रूपों में प्रभावित होता है।
(4) क्षमता में वृद्धि -सक्षमता में वृद्धि अर्थात् पेशीय रूप से या मानसिक क्षमताओं में वृद्धि का प्रभाव ‘स्व’ सम्प्रत्यय पर अनुकूल पड़ता है तथा ये पेशीय तथा मानसिक कौशल बच्चों में उपयुक्तता की भावना से लेकर अनुपयुक्तता की भावना को विकसित करने में अहम् भूमिका निभाते हैं।
(5) भूमिका परिवर्तन–बच्चे अपने ‘स्व’ के संप्रत्यय में सुधार तथा परिमार्जन अनेक भूमिकाओं को करके करते हैं। जैसे—बालक घर में, पड़ोस में तथा विद्यालय में अलग-अलग नेतृत्त्व शैली को अपनाता है तथा अनुभव भी करता है। इस प्रकार का परिवर्तन बच्चा दिन में कई बार करता है अर्थात् स्कूल में छात्र के रूप में, घर में एक पुत्र के रूप में, पड़ोसी के घर औपचारिक ढंग से व्यवहार प्रदर्शित करता है।
(6) व्यावसायिक सहायता–व्यावसायिक सहायता भी बालकों के स्व में परिवर्तन करती है। मनोचिकित्सा एक ऐसी व्यावसायिक प्रविधि है जिससे प्रतिकूल ‘स्व’ सम्प्रत्ययों के कारणों को मनोचिकित्सक समझता है तथा रोगी को अनुकूल व्यवहार के लिए उचित मार्गदर्शन देता है, जो मनोग्रसित बालकों के भविष्य निर्माण हेतु सहायक होता है ।
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