परिवार को परिभाषित कीजिए। स्व को आकार देने में परिवार की भूमिका की विस्तृत व्याख्या कीजिए ।
परिवार को परिभाषित कीजिए। स्व को आकार देने में परिवार की भूमिका की विस्तृत व्याख्या कीजिए ।
उत्तर— परिवार का अर्थ एवं परिभाषाएँ–परिवार शब्द Family लैटिन शब्द ‘Famulas’ से बना है तथा यह ‘Famulas’ शब्द ‘एल्मर’ ने अपनी पुस्तक ‘Sociology of Family’ में प्रतिपादित किया । Family शब्द रोमन भाषा से निकलता है। Family शब्द एक ऐसी समिति, संस्था है जहाँ पर पति-पत्नी एक निवास में बच्चों सहित या बच्चों रहित होते हैं। ‘मरडॉक’ ने अपनी पुस्तक ‘सोशल’ स्ट्रक्चर में 250 समाजों का अध्ययन करने पर पाया कि कोई भी ऐसा समाज नहीं है जिसमें परिवार रूपी संस्था अनुपस्थित रही हो । इसीलिये इसकी महत्ता की चर्चा करते हुए ‘मैकाइवर’ एवं ‘पेज’ ने कहा है कि संकटकाल में व्यक्ति देश के लिए युद्ध करता है तथा शहीद हो जाता है परन्तु परिवार के जीवन पर्यन्त परिश्रम करता है।
मेकाइवर तथा पेज के अनुसार, “परिवार पर्याप्त निश्चित यौन सम्बन्धों द्वारा परिभाषित एक ऐसा समूह है जो बच्चों को पैदा करने एवं लालन-पालन करने की व्यवस्था करता है । “
किंग्सले डेविस के अनुसार, “परिवार ऐसे व्यक्तियों का समूह है जिनमें संगोत्रता के सम्बन्ध होते हैं तथा जो एक दूसरे के सम्बन्धी होते हैं।”
ऑगबर्न तथा निमकॉफ के अनुसार, “परिवार स्त्री तथा पुरुष की बच्चों सहित या बच्चों रहित अथवा मात्र बच्चों सहित पुरुष की अथवा मात्र बच्चों सहित स्त्री की एक कम या अधिक स्थायी समिति
गिलबर्ट के अनुसार, “साधारणतः परिवार में एक स्त्री तथा पुरुष का एक या एक से अधिक बच्चों के साथ स्थायी सम्बन्ध होता है। “
बर्गेस तथा लॉक के अनुसार, “परिवार ऐसे व्यक्तियों का समूह है जो विवाह, रक्त अथवा गोद लेने के सम्बन्धों द्वारा एक-दूसरे से बंधे रहते हैं और एक गृहस्थी का निर्माण करते हैं । “
इलियट एवं मैरिल के अनुसार, “परिवार पति-पत्नी एवं बच्चों से बनी एक जैविक सामाजिक इकाई है । “
मरडॉक के अनुसार, “परिवार एक सार्वभौमिक संस्था है। “
बोगार्ड्स के अनुसार, “पारिवारिक समूह प्रथम मानवीय पाठशाला है। “
स्व को आकार देने में परिवार की भूमिका – स्व को आकार देने में परिवार की भूमिका निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट होती है—
(1) बालकों के स्व को आकार देने में परिवार का बहुत महत्त्व है। बच्चा एक परिवार में जन्म लेकर वह उस परिवार का सदस्य बन जाता है। चूँकि परिवार एक प्राथमिक समूह है, अतः इसके सदस्यों जैसे- माता-पिता, भाईबहिन, चाचा-चाची आदि में एक घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। इनके बीच दुलार प्यार सहयोग आदि की भावना अधिक होती है। इन सबका प्रभाव बालक के स्व के आकार पर पड़ता है। –
(2) अनेक समाजशास्त्रियों तथा समाज मनोवैज्ञानिकों का सामान्य मत यही है कि परिवार ही वह पहली संस्था होती है जो बच्चों को शिष्टाचार तथा नैतिक विकास की शिक्षा देकर उसे एक योग्य व्यक्ति बनाती है ।
(3) बालक को यदि अकेला छोड़ दिया जाए तो वह जीवित नहीं रह सकता। उसे भोजन, सुरक्षा तथा सहानुभूति परिवार के सदस्यों से प्राप्त होती है। इस तरह बालक सामाजिक व्यवहार अपने परिवार के सदस्यों से सीखता है। अपने परिवार के सदस्यों के एवं दूसरे सामाजिक प्राणियों के प्रशिक्षण के आधार पर ही उसके सामाजिक आत्म की उत्पत्ति होती है।
(4) सबसे पहले बालक को प्रभावित करने वाली उसकी माता होती है। बालक अपनी माता पर निर्भर रहता है । माता उसको कई प्रकार के अनुशासन सिखाती है। माता
बालक की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है तथा उसको सुरक्षा प्रदान करती है। यह माता एवं बालक के सम्बन्ध ऐसे गुणों के आधार पर बन जाते हैं जैसे-प्रेम, सहानुभूति, सहयोग इत्यादि। माता बालक को खाने की, मल-मूत्र त्यागने की, सोने आदि की आदतें सिखाती है। अतः बालक अनेक अनुशासन अपनी माता से ही सीखता है। अपने आपको सुरक्षित एवं माता पर निर्भर रहता है।
(5) माता का प्रेम ही बालक में सहानुभूति एवं प्रेम की आधारशिला बन जाती है। जो अनुशासन बालक के ऊपर लादे जाते हैं वे उसे यह सिखा देते हैं कि अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए दूसरों की आवश्यकताओं का ध्यान रखना आवश्यक है या नहीं। बालक को सिखा दिया जाता है कि कब खाना खाए, कब खेलें, कब बोलें आदि । उसको यह सिखाया जाता है कि यदि वह अच्छा व्यवहार नहीं करेगा तो उसे अच्छा नहीं समझा जाएगा। इस तरह ये बालक उन व्यवहारों को मजबूत कर लेता है जो दूसरों के द्वारा पसन्द किए जाते हैं तथा उनका दमन कर लेता है जिन्हें वह नापसन्द करते हैं।
(6) माता के अलावा परिवार के सदस्य की भी स्वयं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है । वह बालक को सुरक्षा तथा प्रेम प्रदान करते हैं लेकिन वह कुछ अनुशासन भी उसके ऊपर लाद देते हैं। उदाहरण के लिए – बालक का पिता बालक के साथ प्रेम पूर्ण व्यवहार करता है उसे सुरक्षा प्रदान करता है। परन्तु बालक को ऐसा प्रशिक्षण भी देता है एवं उसमें ऐसी आदतों का विकास करता है जो दूसरों के द्वारा पसन्द की जाती है । बालक को इस बात की स्वतंत्रता नहीं मिलती है कि चाहे जिस ढंग से अपनी इच्छाओं एवं आवश्यकताओं की पूर्ति कर ले, उनकी सन्तुष्टि करने के लिए उस पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिए जाते हैं।
इस तरह बालक परिवार में रहकर भी अपना स्वयं को आकार देता है।
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