भय की संवेगात्मक स्थिरता एवं अस्थिरता को समझाइए ।

भय की संवेगात्मक स्थिरता एवं अस्थिरता को समझाइए ।

उत्तर— भय की संवेगात्मक स्थिरता एवं अस्थिरता – ये व्यक्तित्व के कारक भयों को मन में समावेशित करने में अहम भूमिका निभाते हैं इनकी स्थिरता भयों को नियंत्रित करती है जबकि अस्थिरता भयों की स्थिति को बढ़ाती है। भावुकता नियंत्रण के गुण को बहुत कम कर देती हैं। प्रायः जो व्यक्ति सक्रिय होते हैं उनमें स्वयं को भय से परे ले जाने की प्रकृति अधिक सशक्त होती है।
(1) शंकालु प्रवृत्ति – अव्यक्त भावों के कारण मस्तिष्क विचारों को अन्दर से बाहर भेजने में असमर्थ होती है जिसके कारण कई भय उत्पन्न होते रहते हैं क्योंकि उनका समाधान होने का अवसर ये प्रवृत्ति खो देती है और व्यक्ति अधिक भय से पीड़ित रहता है।
(2) उदासीनता – स्वयं से विश्वास हट जाना, कुछ भी प्राप्त न कर पाने के भय से, स्वयं का आंकलन दूसरों से बहुत कम करना सही निर्देशन की कमी ये कारक भय को उत्पन्न करते हैं। कभी-कभी बारबार असफलताएँ भी उदासीनता के साथ भय का कारण होती है।
(3) उत्साह – व्यक्तित्व का ये कारक भय हो हावी नहीं होने देता इसमें विभिन्न मार्गों द्वारा व्यक्ति भय पर विजय प्राप्त करने में सक्षम होता है किन्हीं परिस्थितियों में ये उदाहरण द्वारा भी सीखता रहता है, उत्साह सदैव जीवन को सामंजस्य सिखाता है।
(4) अन्तर्मुखी व बहिर्मुखी व्यक्तित्व — ये व्यक्ति की उस प्रवृत्ति के द्योतक हैं जो उसके स्वरूप को दूसरों को समझने में सरल बनाते हैं। अन्तर्मुखी व्यक्तित्व कम अन्तःक्रिया करता है जबकि बहिर्मुखी अधिक अन्तःक्रिया करता है जिसके कारण प्रथम को अधिक भय व द्वितीय को कम भय का सामना करना पड़ता है क्योंकि दोनों का स्वयं को समझने का अन्तर उस स्तर तक कम व अधिक होता है जिससे वह स्वयं को व्यवस्थित करता है।
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