विश्वव्यापी तापन/ग्लोबल वार्मिंग के कारण एवं प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।

विश्वव्यापी तापन/ग्लोबल वार्मिंग के कारण एवं प्रभावों को स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर— विश्व उष्णता (Global Warming) — हरित गृह प्रभाव के अध्ययन से यह ज्ञात किया जा चुका है कि वायुमण्डल में कार्बनडाई-ऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से भू-मण्डल का तापमान बढ़ रहा है. इसे ही भूमण्डलीय तापन विश्व उष्णता कहते हैं। इस तापमान के बढ़ने से अनेक समस्यायें उत्पन्न हो जायेगी यद्यपि इस तापमान में वृद्धि पूरे भूमण्डल (globe) में एक सी नहीं होगी जिससे जलवायु में बड़ा परिवर्तन आयेगा। तापमान में वृद्धि से हिमखण्ड पिघलने लगेंगे जिससे समुद्रों का जल स्तर बढ़ जायेगा तथा समुद्र के आस-पास के भागों के डूबने की आशंका बढ़ जायेगी । ।
इसलिए कार्बन-डाई-ऑक्साइड की मात्रा को भूमण्डल में बढ़ने से रोकना चाहिए जिससे भूमण्डल का तापमान नहीं बढ़े और तापमान बढ़ने से मानवता के अस्तित्व को होने वाले खतरे से रोका जा सके ।
अमेरिकी वैज्ञानिकों के अनुसार अण्टार्कटिका के क्षेत्र में पहली बार घास को उगते हुए देखा गया। यह भूमण्डलीय तापमान का ही परिणाम है। जबकि अण्टार्कटिका में तो बर्फ जमी रहती है। इसे सिद्ध हो रहा है कि अण्टार्कटिका पर तापमान बढ़ने के कारण बर्फ पिघल रही है वहाँ घास को उगता हुआ देखा जा सकता है।
ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। एक अध्ययन के अनुसार यदि वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसें नहीं होती तो पृथ्वी की सतह का तापमान, वर्तमान तापमान से लगभग 330 से. कम रहता। अतः हम कह सकते हैं कि पृथ्वी की जलवायु अनुकूल बनाये रखने में ग्रीन हाउस गैसों का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
प्रत्येक ग्रीन हाउस गैस का भूमण्डलीय तापवृद्धि में योगदान एक समान नहीं है। एक निश्चित समय में किसी गैस द्वारा हुई तापमान वृद्धि को उसका ग्लोबल वार्मिंग पोटेशियल (GWP) अर्थात् विश्व ऊष्मीय विभव कहते हैं यदि CO, गैस GWP को एक इकाई मान लें तो मेथेन का GWP लगभग 30, नाइट्स ऑक्साइड का लगभग 300 तथा क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैसों का GWP कई हजार गुना होता है। कार्बनडाई-ऑक्साइड का GWP कम होते हुए भी उसकी वायुमण्डल में सान्द्रता अधिक होने के कारण उसका भू-मण्डलीय ताप वृद्धि में योगदान अधिक रहता है।
वैज्ञानिकों के अध्ययन के अनुसार 2050 तक पृथ्वी के तापमान में 1.5 से बढ़कर 4.5 डिग्री तक वृद्धि की संभावना है। भूमण्डलीय तापवृद्धि में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं—
(1) जलवायु पर प्रभाव – भूमण्डलीय ताप वृद्धि जल को प्रभावित करती है जिससे खेती जल स्रोत, हाइड्रोइलैक्ट्रिक संयंत्र आदि प्रभावित होते हैं। फसलें कम होने से अकाल पड़ता है। जल स्रोतों के कारण कृषि तथा पशुधन दोनों ही प्रभावित होते हैं । ऊर्जा देने वाले हाइड्रोलेक्ट्रिक संयंत्र के बंद होने से देश का विकास रूक जाएगा।
(2) मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव – तापमान वृद्धि से लू चलती है जो घातक हो सकती है तथा मौसम से बीमारियाँ भी बढ़ सकती है।
(3) फसलों पर प्रभाव – तापमान वृद्धि के कारण पौधों से जल का वाष्पन तीव्र गति से होता है तथा मृदा में भी नमी देर तक नहीं रह पाती इससे फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। ताप वृद्धि से नाशकमार जीवों के पनपने (विशेष रूप से ठण्डे देशों में) में सहायता मिलती है जो फसल को शीघ्र नष्ट कर देते हैं। तापमान वृद्धि नाइट्रोजन स्थिरीकरण को भी प्रभावित करती है ।
(4) पर्यावरणीय प्रभाव — ताप वृद्धि से पर्यावरण प्रभावित होता है। इन प्रभावों में ध्रुवों की बर्फ पिघलना मुख्य है। इससे समुद्र तल में वृद्धि होती है ओर तटवर्ती नगरों के जल मग्न होने की स्थिति बन जाती है। इन क्षेत्रों के लोग दूसरे स्थानों पर चले जायेंगे तो वहाँ आवास, खाद्य आदि को लेकर संघर्ष शुरू हो सकते हैं ।
तापमान में वृद्धि में चक्रवात और तेज तूफान उत्पन्न होते हैं जिनमें जान और माल की भारी क्षति होती है। विशाल ग्लेशियर और ध्रुवीय बर्फ पिघलने से भूसन्तुलन में परिवर्तन होता है जिससे भूकम्प आ सकते हैं और ज्वालामुखी सक्रिय हो सकते हैं।
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