अधिगम के उपकरण के रूप में विचार-विमर्श किस प्रकार उपयोगी है? विस्तार से समझाइये ।

अधिगम के उपकरण के रूप में विचार-विमर्श किस प्रकार उपयोगी है? विस्तार से समझाइये ।

उत्तर— विचार-विमर्श अधिगम के उपकरण– विचार-विमर्श कोई नवीन प्रत्यय नहीं है। घरों में अथवा सामाजिक अवसरों पर विचारविमर्श किया जाता है। उदाहरणार्थ – समाज में ‘दहेज प्रथा कैसे समाप्त करे’ प्रकरण पर अक्सर सामाजिक विचार-विमर्श चलता रहता है। विद्यार्थी भी समय-समय पर अपनी समस्याओं से निपटने के लिए आपस में तथा अपने से बड़ों के साथ विचार-विमर्श करते रहते हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से आश्रम भी विचार-विमर्श के केन्द्र थे। आचार्य आपने शिष्यों के साथ ज्ञान-बिन्दुओं पर विचार-विमर्श करते थे। परन्तु आश्रमों के समाप्त होने पर यह तकनीक भी शिक्षा से धीरे-धीरे समाप्त हो गई।
जनतान्त्रिक शासन प्रणाली के प्रारम्भ होने से पुनः विचार-विमर्श तकनीक को बल मिला। विचार-विमर्श कक्षा-कक्ष के वातावरण को सजीव एवं रोचक बना देता है। यदि अध्यापक लगातार व्याख्यान देता रहे तो शिक्षार्थी उसे सुनते-सुनते थक जाते हैं। उनकी स्थिति केवल एक मूक दर्शक के रूप में होती है। इसके विपरीत यदि वह शिक्षण में विचार-विमर्श का प्रयोग करता है तो उसमें कला के अधिकतम शिक्षार्थी भाग लेते हैं तथा विचार व्यक्त करते हैं ।
विचार-विमर्श का अर्थ (Meaning of Discussion)– गुड (Good) ने शब्दकोश के अनुसार विचार-विमर्श किसी प्रकरण या समस्या से सम्बन्धित एक ऐसी प्रविधि है जिसमें शिक्षार्थी अपनी विचार-विमर्श के उपरान्त एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचते हैं। इसका उपयोग सामान्यतः समाजवादी समाज में किया जाता है। यह प्रविधि वाद-विवाद से भिन्न है, क्योंकि इसमें भाग लेने वाला व्यक्ति समस्या से मूल स्रोत को तलाश करता है ।
क्लार्क और स्टार (Clark and Star)–“विचार-विमर्श में किसी व्यक्ति के अहं की सन्तुष्टि के लिए कोई स्थान नहीं है और न ही इसमें किसी को अपने विचार अन्य व्यक्तियों पर थोपने का अवसर दिया जाता है न ही यह व्याख्यान अथवा विमोचन का पर्यायवाची है। “
इस प्रकार विचार-विमर्श में विद्यार्थी अधिक सक्रिय रहते हैं तथा शिक्षक उनको आवश्यकतानुसार निर्देश प्रदान करता है । यह शिक्षार्थी केन्द्रित शिक्षण-प्रविधि है जो कि अध्यापक के कुशल मार्गदर्शन से सम्पन्न होती है।
विवेचन प्रविधि (Discussion Techniques)— विवेचन भाषाशिक्षण में विशेष उपयोगी है। इसके अन्तर्गत शिक्षक एवं छात्रों में पारस्परिक विस्तृत एवं विवेकयुक्त विचारों का आदान-प्रदान होता है । इसमें शिक्षक किसी प्रश्न या समस्या को निर्धारित कर देता है । तत्पश्चात् शिक्षक और छात्र मिलकर पूर्व निर्धारित प्रश्न या समस्या पर स्वतंत्रतापूर्वक विचार-विमर्श करते हैं । विचार-विमर्श द्वारा सम्बन्धों का विश्लेषण एवं तुलना होती है और मूल्यवान करके निष्कर्ष निकाले जाते हैं। जेम्स के अनुसार– “विवेचन एक शैक्षिक सामूहिक क्रिया है, जिसमें शिक्षक तथा छात्र किसी समस्या या प्रकरण पर बातचीत करते हैं । ” शिक्षाशब्दकोश में विवेचन के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है, “विवेचन एक क्रिया है, जिसमें लोग एक प्रकरण या समस्या के सम्बन्ध में सूचना प्राप्त करने अथवा एक समस्या के लिए सभी सम्भावित उपलब्ध साक्ष्य पर आधारित उत्तर खोजने की दिशा में परस्पर बातचीत करते हैं। “
विवेचन के प्रकार–यह दो प्रकार का होता है—
(1) औपचारिक विवेचन,
(2) अनौपचारिक विवेचन ।
(1) औपचारिक विवेचन– इसमें किसी प्रकरण या समस्या पर विवेचन नियमों के अनुसार होता है। विवेचन पर नियंत्रण एवं निर्णय आदि के लिए अध्यक्ष एवं सचिव आदि को चुना जाता है। विवेचन की समस्त कार्यवाही लिखी जाती है।
(2) अनौपचारिक विवेचन– इसमें किसी समस्या / प्रकरण पर शिक्षक एवं छात्र स्वतन्त्रतापूर्वक बातचीत करते हैं। इसमें नियमों का बन्धन नहीं होता है। इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों को अपने भावों एवं विचारों को स्वतंत्रता से व्यक्त करने का प्रशिक्षण देना है।
विवेचन की प्रक्रिया– इसमें विवेचन के संचालन के लिए एक अध्यक्ष एवं एक सचिव का पद होता है । अध्यक्ष विवेचन का संचालन करता है और सचिव विवेचन की समस्त कार्यवाही लिखता है। भाग लेने वाले समस्त अन्य छात्र होते हैं । शिक्षक एंव छात्र मिलकर विवेचन के लिए किसी समस्या या प्रकरण को चुनते हैं। समस्या या प्रकरण का चुनाव हो जाने पर शिक्षक उसके अध्ययन के उद्देश्य पर प्रकाश डालता है और उससे सम्बन्धित सन्दर्भ पुस्तकों का विवरण देता है। छात्र समस्या या प्रकरण से सम्बन्धित विषयवस्तु का अध्ययन करते हैं। पक्ष या विपक्ष में अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए तैयारी करते हैं । निर्धारित तिथि पर छात्र विचार-विमर्श करते हैं । अध्यक्ष नियमानुसार इसका संचालन करता है। विवेचन को नियंत्रित रखता है। छात्रों द्वारा किसी प्रकार की कठिनाई अनुभव किये जाने पर शिक्षक उनका पथ प्रदर्शन करता है। छात्र एक-दूसरे से प्रश्न पूछकरं अपनी शंकाओं का समाधान करते हैं। विवेचन समाप्त हो जाने पर शिक्षक समस्या से सम्बन्धित अपनी संक्षिप्त टिप्पणी या समीक्षा प्रस्तुत करता है । तत्पश्चात् विवेचन के समापन की घोषणा करता है ।
शिक्षण पद—इसमें निम्नलिखित शिक्षण पदों का अनुसरण किया जाता है—
(i) समस्या का चयन एवं प्रस्तुतीकरण
(ii) विवेचना
(iii) अभिलेखन
(iv) मूल्यांकन
(v) समापन।
विवेचन के गुण-इसके निम्नलिखित गुण हैं—
(i) यह उच्च स्तर के छात्रों के लिए विशेष उपयोगी है।
(ii) इसमें छात्रों में सहिष्णुता एवं सहयोग की भावना विकसित होती है।
(iii) यह छात्रों में आत्म निर्देशन एवं स्व-अनुशासन पर बल देता है ।
(iv) इसमें छात्रों की तर्क शक्ति एवं निर्णय शक्ति विकसित होती है।
(v) यह छात्रों को अपने भावों एवं विचारों को सुव्यवस्थित रूप से अभिव्यक्त करने का प्रशिक्षण देता है ।
(vi) यह छात्रों को स्वाध्याय हेतु प्रोत्साहित करता है ।
सीमाएँ—इसकी निम्नलिखित सीमाएँ हैं—
(i) इससे शिक्षण में समय अधिक लगता है।
(ii) यह निम्न स्तर पर उपयोगी नहीं है ।
(iii) अधिकांश छात्र व्यर्थ के वाद-विवाद में उलझ कर समय नष्ट करते हैं ।
(iv) इसमें मन्द-बुद्धि बालक एवं लजीले बालक समुचित लाभ नहीं उठा पाते हैं ।
(v) सभी हिन्दी शिक्षक विवेचन के सफलतापूर्वक संचालन की क्षमता नहीं रखते हैं ।
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