अधिगम के सूचना प्रक्रियाकरण सिद्धान्त की चर्चा कीजिए ।
अधिगम के सूचना प्रक्रियाकरण सिद्धान्त की चर्चा कीजिए ।
उत्तर— सूचना प्रक्रियाकरण सिद्धान्त-सूचना सिद्धान्त अपेक्षाकृत एक नया और आधुनिक सिद्धान्त है जो मानव व्यवहार और विकास की व्याख्या कम्प्यूटर प्रणाली के आधार पर करता है। इस सिद्धान्त का विकास लगभग 1970-80 के बीच हुआ। उसके बाद इसका महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। सूचना सिद्धान्त जीन पियाजे के सिद्धान्त की ही भाँति बालक की संज्ञानात्मक क्षमता के विकास की व्याख्या करता है। परन्तु संज्ञान के विकास में जहाँ पियाजे ने उन अवस्थाओं का महत्त्व बताया है जिनसे होकर बालक गुजरता है, वहीं सूचना सिद्धान्त में संज्ञान के विकास पर बालक द्वारा परिवेश से ग्रहण की जाने वाली सूचनाओं की मात्रा, उन सूचनाओं को व्यवहार में लाने की योग्यता तथा बालक की जानकारी को महत्त्वपूर्ण कारक माना गया है।
सूचना सिद्धान्त के प्रवर्तकों ने यह जानने का प्रयास किया हैं कि भिन्न-भिन्न आयु के बालक सूचनाओं को किस प्रकार ग्रहण करते हैं और उन्हें कैसे व्यवहार में लाते हैं। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से यह बात प्रकाश में आयी है कि दो-तीन वर्ष के छोटे बच्चे उतनी कुशलता के साथ सूचनाओं का संचय और प्रत्याह्वान नहीं कर पाते जितनी कुशलता के साथ आठ वर्ष के बालक करते हैं ।
सूचना सिद्धान्त के समर्थकों का मानना है कि छोटी आयु के बच्चे वातावरण से ग्रहण की गई सूचनाओं का समुचित संचय और स्मरण इसलिए नहीं कर पाते क्योंकि वे बड़े बालकों की भाँति सोच-विचार और तर्क-वितर्क करने में सक्षम नहीं होते और उनमें अपनी मानसिक क्रियाओं का समुचित उपयोग करने की क्षमता विकसित नहीं हुई रहती । उनके पास ज्ञान (अनुभव) भी सीमित मात्रा में होता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि भिन्न-भिन्न आयु के बालकों की योग्यताओं में मात्रात्मक अंतर पाया जाता है। जहाँ जीन पियाजे ने इस अंतर का कारण विकासात्मक अवस्थाओं को माना है, वहीं सूचना सिद्धान्त के समर्थक इस अंतर का कारण स्वयं सूचनाओं की जटिलता, बालकों में भाषात्मक कौशल का अभाव, संचय की अयोग्यता तथा अनुभव की कमी को मानते हैं ।
सूचना संग्रह तथा प्रोसेसिंग– वातावरण से बालक सूचनाओं को किस प्रकार ग्रहण करता है ? बच्चे कितनी मात्रा में सूचनाएँ ग्रहण कर सकते हैं ? कितनी शीघ्रता से वे सूचनाओं का मानसिक स्तर पर उपयोग कर सकते हैं तथा कितनी कुशलता से वे संचित सूचनाओं का प्रात्याह्वान और स्मरण कर सकते हैं ? इन प्रश्नों पर सूचना सिद्धान्त विशेष रूप से प्रकाश डालता है।
वर्पिलाट का मानना है कि छोटे बच्चे परिवेश का अवलोकन कर वस्तुओं और ध्वनियों पर ध्यान तो देते हैं परन्तु वे परिवेश को सुव्यवस्थित ढंग से नहीं परखते। उन्होंने एक अध्ययन में चार से आठ वर्ष के बालकों को लेकर उन्हें एक साथ मकानों के दो-दो चित्र दिखाये। बच्चों से पूछा गया कि जोड़े में दिखाए गए दोनों चित्र एक ही मकान के थे या भिन्नभिन्न मकानों के थे। बालकों को दोनों मकानों की तुलना विस्तार के साथ करनी थी अर्थात् जोड़े में दिखाए गए चित्रों को बारी-बारी देखना था तथा उनकी खिड़कियों में पाये जाने वाले अंतरों को ढूँढना था। आठ वर्ष के बालकों ने वस्तुतः ऐसा ही किया। जब उन्होंने दोनों मकानों की खड़कियों में अंतर पाया तो उन्होंने दोनों मकानों को भिन्न-भिन्न बताया।
किन्तु पाँच वर्ष के बालकों ने इस प्रकार से चित्रों की छानबीन नहीं की। न तो उन्होंने एक किनारे से दूसरे किनारे तक मकानों को ध्यानपूर्वक देखा और न ही दोनों की खिड़कियों की तुलना की ।
इसी प्रकार एल्काइन्ड ने भी बच्चों को कार्ड पर छपे वस्तुओं के चित्र दिखाये और पाया कि आठ वर्ष के बालकों ने बायें व दायें और ऊपर से नीचे तक सभी चित्रों को देखा और सभी का नाम बताया जबकि पाँच वर्ष के बच्चों ने कई चित्रों को छोड़ दिया और कुछ चित्रों का नाम दो-दो बार बताया।
सूचना सिद्धान्त के मुख्य बिन्दु—
(1) सूचना सिद्धान्त अपेक्षाकृत नया और आधुनिक सिद्धान्त है और यह बालक के संज्ञानात्मक विकास की व्याख्या कम्प्यूटर प्रणाली के आधार पर करता है ।
(2) सूचना सिद्धान्त जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त की कमियों को प्रदर्शित करता है और उनके द्वारा प्रतिपादित संज्ञानात्मक अवस्थाओं के संप्रत्यय का खंडन करता है।
(3) सूचना सिद्धान्त बालकों द्वारा परिवेश से ग्रहण की गई सूचनाओं के उपयोग की प्रक्रिया पर अनेक कारकों को भूमिका को महत्त्वपूर्ण बतलाया है। इन कारकों में मुख्य हैं—
(i) सूचनाओं का अपर्याप्त संचय एवं स्मरण
(ii) अनुभव की कमी
(iii) भाषात्मक कौशल का अभाव
(iv) सूचनाओं की जटिलता ।
(4) उपर्युक्त दशायें छोटे बालकों में पाई जाती हैं किन्तु उम्र बढ़ने के साथ ये कमियाँ दूर होने लगती हैं। फिर भी छोटे और बड़े बालकों में सूचनाओं की उपयोग-शक्ति में मात्रात्मक अंतर ही पाया जाता है ।
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