अध्यापक में शिक्षण कौशलों के विकास सूक्ष्म शिक्षण किस प्रकार सहायक है ?
अध्यापक में शिक्षण कौशलों के विकास सूक्ष्म शिक्षण किस प्रकार सहायक है ?
उत्तर— छात्र – अध्यापक में शिक्षण कौशलों के विकास में सूक्षम शिक्षण का योगदान – सूक्ष्म शिक्षण की उपयोगिता को हम निम्न बिन्दुओं द्वारा समझ सकते हैं—
(1) सूक्ष्म-शिक्षण द्वारा विभिन्न शिक्षण कौशलों के प्रयोग में दक्षता प्राप्त की जाती है ।
(2) सूक्ष्म शिक्षण इस प्रकार से कार्य करता है कि यह निरन्तर अपने निकटतम लक्ष्यों को प्राप्त करता है और कक्षा में शिक्षक के व्यवहार को बदलने में प्रभावी होते हैं ।
(3) सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया में प्रतिपुष्टि (पर्यवेक्षक, टेप, साथियों द्वारा) मिलने से छात्राध्यापक अपने व्यवहार में सुधार लाने की कोशिश करता है ।
(4) सूक्ष्म शिक्षण द्वारा नियंत्रित अभ्यास में वृद्धि करना सम्भव है। इसके अन्तर्गत सूक्ष्म-शिक्षण की परिस्थिति, समय, छात्रों की संख्या प्रतिपुष्टि एवं निरीक्षण के तरीकों में आवश्यकतानुसार हेर-फेर किया जा सकता है जिससे प्रशिक्षण कार्यक्रम में एक उच्च स्तर के नियंत्रण का समावेश हो जाता है।
(5) पुन: शिक्षण चक्रों को दोहराकर समस्या समाधान विश्लेषण तथा विकास तेजी से होता है।
(6) छात्र को वास्तविक शिक्षण में धीरे-धीरे क्रमिक ढंग से प्रवेश कराया जाता है न कि उन्हें समस्त ज्ञान एक साथ प्रदान किया जाए।
(7) इस विधि से शिक्षण करने से छात्राध्यापकों के मन से वास्तविक या वृहद शिक्षण का भय निकल जाता है।
(8) अनुभवी शिक्षक के लिए इससे नई शिक्षण क्षमताएँ प्रात करने और उनका अभ्यास करने और विद्यमान क्षमताओं में सुधार करने का अवसर प्राप्त होता है।
(9) शिक्षक के कार्य की क्षमताओं तथा कमजोरियों का विशिष्ट क्षमता प्रशिक्षण पद्धति से पता लगाया जा सकता है।
(10) परम्परागत छात्र शिक्षण पद्धति की तुलना में छात्रों को इस पद्धति के अन्तर्गत कम जोखिम है। पर्यवेक्षक व छात्र प्रत्येक शिक्षण कौशल का क्रमिक ढंग से विकास करते हैं।
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