असमानता से आप क्या समझते हैं ? लैंगिक असमानता का अर्थ एवं कारण बताइये । शिक्षा द्वारा लैंगिक असमानता को दूर करने के उपाय बताइये ।
असमानता से आप क्या समझते हैं ? लैंगिक असमानता का अर्थ एवं कारण बताइये । शिक्षा द्वारा लैंगिक असमानता को दूर करने के उपाय बताइये ।
उत्तर— असमानता का अर्थ एवं अवधारणा–असमानता का अर्थ, व्यक्तियों को अपने व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के समान अवसर प्राप्त नहीं पाना, समाज में विशेषाधिकारों का पाया जाना, जन्म, जाति, प्रजाति, व्यवसाय, धर्म, भाषा, आय व सम्पत्ति के आधार पर अन्तर होना तथा इन आधारों पर मानव-मानव तथा समूह-समूह के मध्य ऊँच-नीच का भेद को मानना एवं सामाजिक दूरी को बनाए रखने से लगाया जाता है।
विषमता से अभिप्राय एक समाज के व्यक्तियों के जीवन अवसर एवं जीवन-शैली की भिन्नताओं से है जो सामाजिक परिस्थितियों में इनकी विषम स्थिति में रहने के कारण होती है। उदाहरणार्थ — भूमिहीन तथा भू-स्वामी, हरिजन एवं ब्राह्मण की सामाजिक परिस्थितियों में चूँकि अन्तर दिखाई पड़ता है— इसलिए उन्हें प्राप्त होने वाले अवसरों और उनकी जीवन शैलियों में भी पर्याप्त अन्तर परिलक्षित होता है।
लैंगिक असमानता का अर्थ– साधारणतया लिंग असमानता से हमारा तात्पर्य लड़का और लड़की अथवा स्त्री व पुरुष में पाई जाने वाली असमानता से लगाया जाता है इस प्रकार लिंग के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव या असमानता के व्यवहार को लिंग असमानता कहते हैं । हमारे देश भारत में स्त्री एवं पुरुष के अधिकारों में प्रायः अन्तर पाया जाता है । लिंग के आधार पर दोनों में परस्पर भेद किया जाता है । यही लिंग असमानता है।
लैंगिक असमानता के कारण– लैंगिक असमानता के उत्तरदायी कारण निम्नलिखित हैं—
(1) पुरुष प्रधान समाज– हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है पुरुषों को महिलाओं की तुलना में श्रेष्ठ माना गया है। इसी सोच के कारण लिंगीय पक्षपात हमारे देश में बढ़ रहा है ।
(2) अनपढ़ता– अनपढ़ व्यक्ति अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हो पाते हैं इसलिए उससे महिला विकास के विषय में आशा नहीं की जा सकती है। हमें पता है अशिक्षा के कारण समाज में विकास नहीं हो पा रहा है। महिलाएँ पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर नहीं चल पा रही हैं ।
(3) रीति-रिवाज– समाज में अनेक कुरीतियाँ इस प्रकार की है जिन्हें मान्यता प्राप्त है और लोग इनका विरोध करना ही नहीं चाहते। जैसे— दहेज प्रथा, एक लड़की के जन्म पर शोक मनाया जाना ।
(4) शैक्षिक ढाँचे में कमी– हमारे समाज में शैक्षिक ढाँचे की भी कमी है। यहाँ सदैव पुरुषों का ही गुणगान किया जाता है तथा महिलाओं को उचित स्थान नहीं दिया गया है। औरत की वीरता को भी मरदानगी कहकर ही प्रशंसा की गई है यदि आरम्भ से ही लिंगीय पक्षपात के विरुद्ध बच्चों को शिक्षित क्रिया जाए तथा महिलाओं के प्रति हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध उन्हें जागरूक किया जाए तो शीघ्र ही समाज में से लिंगीय पक्षपात को दूर किया जा सकता है।
(5) अन्य कारक– कानून/नीतियाँ लागू करने में कमी, सामाजिक चेतना की कमी, असुरक्षा की भावना एवं अंधविश्वास आदि ।
लैंगिक असमानता को दूर करने में शिक्षा की भूमिका–लिंगीय पक्षपात वर्तमान समय में नकारात्मक वैज्ञानिक रूप ले चुका है । एक समय था जब लड़कियों को जन्म लेते ही गला दबा कर या जहरीली वस्तु देकर मार दिया जाता था। लेकिन वर्तमान समय में वैज्ञानिक तरीके से लड़कियों को गर्भ में ही मार दिया जाता है। इस उपविषय के अन्तर्गत हम लिंगीय पक्षपात को समाप्त करने में शिक्षा की भूमिका के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन करेंगे—
(1) सामाजिक चेतना– शिक्षा सामाजिक चेतना लाने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है क्योंकि समाज को हर तरफ से जागरूक बनाने में शिक्षा के प्राथमिक उद्देश्यों में से एक है। लिंगीय पक्षपात जो वर्तमान समय की गम्भीर समस्या है, इसको सामाजिक चेतना द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है, जिसमें शिक्षा की प्रभावशाली भूमिका है।
(2) कानून और अधिकारों की जानकारी– शिक्षा समाज के लोगों को कानून और अधिकारों के प्रति जागरूक बनाती है। यदि बात ´ स्त्री शिक्षा की ही रही हो तो महत्ता और बढ़ जाती है। शिक्षा के माध्यम से स्त्रियों को संविधान में मिले मौलिक अधिकारों और विभिन्न प्रकार के कानूनों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है ।
(3) भ्रूण और बाल हत्या पर नियंत्रण– शिक्षा समाज में प्रचलित बुराइयों जैसे भ्रूण हत्या और कन्या वध पर नियंत्रण करने में अहम भूमिका निभा सकती है। शिक्षा के माध्यम से लोगों को समझाया जा सकता है कि ऐसे कार्य करने से समाज में लिंगीय अनुपात सुधारा जा सकता है।
(4) समानता की भावना– शिक्षा समानता लाने में अहम भूमिका अदा करती है। सामाजिक पक्षपात की भावना को समाप्त करने के लिए जरूरी है कि समानता का प्रचार किया जाए और शिक्षा के बिना यह सम्भव नहीं हो सकता। लिंगीय पक्षपात को बढ़ावा देने में पुरुष प्रधान समाज का अहम योगदान है।
(5) स्त्री शिक्षा का प्रसार– लिंगीय पक्षपात जैसे दृष्टिकोण को समाप्त करने के लिए जरूरी है कि समाज के इस वर्ग को व्याप्त स्तर पर शिक्षित किया जाये । शिक्षा इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
(6) संकीर्ण सोच का उन्मूलन– वर्तमान समाज अभी भी रूढ़िवादी / तंग सोच का शिकार है। भले हम आधुनिक युग में रह रहे हैं लेकिन अभी भी स्त्रियों के प्रति हमारी सोच में कोई सकारात्मक परिवर्तन नहीं आया है। आधुनिक युग में भी लड़की के जन्म पर अफसोस और लड़के के जन्म पर खुशी मनाई जाती है ।
(7) आत्म-निर्भरता– शिक्षा रोजगार के अवसर प्रदान करने में सहायक है । रोजगार के माध्यम से स्त्रियों को आत्म-निर्भर बनाया जा सकता है। जब स्त्रियाँ आत्मनिर्भर होंगी तो उन्हें समाज में अपनी पहचान का अर्थ में समझ में आयेगा। यही सोच लिंगीय पक्षपात को समाप्त करने में सहायक सिद्ध होगी।
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