आतकवाद – विदेशी राज्य और गैर – राज्य कर्ताओं की भूमिका

आतकवाद – विदेशी राज्य और गैर – राज्य कर्ताओं की भूमिका

“आतंकवाद को राजनीतिक, धार्मिक या वैचारिक प्रयोजनों हेतु जोर जबरदस्ती के साधन के रूप में हिंसा के योजनाबद्ध, संगठित और सुव्यवस्थित उपयोग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”

राजनैतिक, धार्मिक या वैचारिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए हिंसा के सुनियोजित, संगठित और व्यवस्थित प्रयोग को आतंकवाद के नाम से परिभाषित किया जा सकता है। आज के युग में यद्यपि आतंकवाद एक वैश्विक समस्या बन चुका है, लेकिन आतंकवाद को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर परिभाषित करने हेतु अभी तक किए गए सभी प्रयास व्यर्थ सिद्ध हुए हैं, जिसके दो मुख्य कारण हैं:
पहला, किसी देश के आतंकवादी को दूसरे देश में स्वतंत्रता सेनानी’ के रूप में देखा जा सकता है। दूसरा कारण है कि कुछ देशों द्वारा दूसरे देशों में किए जा रहे आपराधिक आतंकवादी कृत्यों को विभिन्न प्रकार से प्रोत्साहित किया जाता है। इसलिए वैश्विक स्तर पर आतंकवाद की स्वीकार्य परिभाषा के संबंध में राजनीतिक इच्छा शक्ति का स्पष्ट अभाव है। संयुक्त राष्ट्र भी आतंकवाद की एक सार्वभौम और सभी सदस्य देशों को मान्य एक आधिकारिक परिभाषा देने में असमर्थ हो गया है। वास्तव में आतंकवाद क्या है, इसको परिभाषित करने में आने वाली कठिनाई आतंकवाद के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का वातावरण बनाने में बाधक है। इसके बावजूद, हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि :
“अपनी मांगे मनवाने या राजनैतिक, धार्मिक और वैचारिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किसी व्यक्ति या लोगों के समूह द्वारा हिंसक तरीकों का उपयोग करके आतंक, डर और दहशत का माहौल पैदा करना आतंकवाद है। जिससे अधिकारियों को मजबूर कर ब्लैकमेल किया जा सके।”
आतंकवाद युद्ध का ऐसा तरीका है जिसमें उन लोगों पर भी आक्रमण किया जाता है, जिन पर आक्रमण नहीं किया जाना चाहिए।
2.1 आतंकवाद का वर्गीकरण
आतंकवाद को दो भागों में बांटा जा सकता है
(1) विदेशी राज्य कर्ताओं द्वारा आतंकवाद
(2) गैर-राज्य कर्ताओं द्वारा आतंकवाद
2.1.1 विदेशी राज्य कर्ताओं द्वारा आतंकवाद
जब कोई सरकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपने लोगों या अन्य देश के लोगों के विरुद्ध आतंकवाद में लिप्त हो तो इसे राज्य कर्ताओं का आतंकवाद कहा जाता है।
किसी अन्य देश के विरुद्ध आतंकवाद चाहे अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद की सहायता के लिए हो या उस देश को अस्थिर करने के लिए उसे ‘विदेशी राज्य समर्थित आतंकवाद’ की श्रेणी में रखा जा सकता है।
कश्मीरी आतंकवाद, पाकिस्तान की स्पष्ट व सीधी राज्य नीति है जो कि आईएसआई से प्रभावित है, जबकि इंडियन मुजाहिदीन या सिमी द्वारा देश के दूर-दराज इलाकों में फैलाया जा रहा आतंकवाद परोक्ष रूप से आईएसआई और पाकिस्तान द्वारा समर्थित है। इसलिए पाकिस्तान, जो कि विदेशी राज्य कर्ता है, भारत की सुरक्षा को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से चुनौती दे रहा है।
इसी तरह कई बार बंग्लादेश और म्यांमार ने भी रूखापन दिखाया है। ऐसा शक किया जाता है कि पूर्वोत्तर राज्यों में आतंकवाद के संबंध में कई बार इन्होंने विदेशी राज्य कर्ता की भूमिका निभाई है।
विदेशी कर्ताओं द्वारा आतंकवादी संगठनों की वित्तीय सहायता, तकनीकी सहायता, हथियार, प्रशिक्षण, ढांचागत सहायता या वैचारिक सहायता इत्यादि तरीकों से मदद की जा सकती है।
2.1.2 गैर-राज्य कर्ताओं द्वारा आतंकवाद
इस मामले में आतंकवाद की कार्यवाही ऐसे व्यक्ति या समूह द्वारा की जाती है जो कि न तो किसी सरकार के साथ जुड़ा है और न ही उसे किसी सरकार का वित्तीय सहयोग है। अपने एजेंडे को पूरा करने के लिए गैर-राज्य कर्ता का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सरकार या सरकारी एजेंसियों से कोई संबंध नहीं होता। यद्यपि सरकार से अप्रत्यक्ष संबंधों को पूरी तरह से नकार नहीं सकते। नक्सलवाद, एलटीटीई आतंकवाद और पूर्वोत्तर में उग्रवाद गैर-राज्य कर्ताओं के कुछ उदाहरण हैं।
लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) व इंडियन मुजाहिदीन जैसे- कुछ चर्चित आतंकवादी गुट भी गैर-राज्य कर्ता होने का दावा करते हैं, लेकिन वास्तव में इन्हें पाकिस्तान का समर्थन प्राप्त है।
गैर-राज्य कर्ताओं का प्रयोग अनिवार्य रूप से ऐसे प्रोक्सी तत्त्वों को पैदा करना है जो कि पाकिस्तान राज्य को क्लीन चिट देता है। इसमें कोई शक नहीं कि एलईटी, जैसे गैर-सरकारी कर्ता पाकिस्तान के धन, सैन्य सामान और सैन्य समर्थन के बिना कार्य नहीं कर सकते। आईएसआई और ऐसे ग्रुपों के बीच घनिष्ट संबंध हैं, यह 26/11, जैसे- आक्रमणों में इनकी सीधी संलिप्तता से साबित हो गया है। इन संगठनों का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर, जैसे राज्य में अस्थिरता पैदा करना ही नहीं है, बल्कि इनका बड़ा उद्देश्य देश को अस्थिर करना है। आतंकवादी हमले करके आतंक और डर का माहौल पैदा किया जा रहा है। इसका असर भारत की आर्थिक उन्नति पर पड़ सकता है। देश में नकली भारतीय मुद्रा का प्रसार भी अर्थव्यवस्था को कमजोर करने का एक तरीका है। इसलिए, पाकिस्तान से कार्य कर रहे तथाकथित गैर-राज्य कर्ता इस देश के प्रोक्सी हैं जो कि राजनीति के एक स्पष्ट चार्टर की तरह कार्य कर रहे हैं।
आईएसआई (विदेशी राज्य कर्ता) की कार्य प्रणाली और उद्देश्य
> आतंकवाद के जरिए भारत में हिंसा फैलाना
> नकली भारतीय मुद्रा व अन्य साधनों से भारतीय अर्थव्यवस्था को अस्थिर करना
> भारत में सभी प्रकार के आतंकवादियों को हथियारों और विस्फोटक सामग्री की आपूर्ति करना
> भारत के भीतर सरकार विरोधी कार्य कर रहे ग्रुपों का फायदा उठाने के लिए उन्हें वित्तीय, रसद और सैन्य सहायता प्रदान करना
> इस्लामी कट्टरपंथी गतिविधियों का प्रचार-प्रसार करना
> देश को विभाजित और कमजोर करने के लिए भारत में साम्प्रदायिक घृणा और हिंसा फैलाना
2.2 भारत में आतंकवाद की श्रेणियाँ
मुख्य रूप से आतंकवाद को चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
> भीतरी आतंकवाद
> जम्मू-कश्मीर का आतंकवाद
> पूर्वोत्तर विद्रोह
> वामपंथी उग्रवाद
उक्त में से अंतिम दो का विदेशी राज्य कर्ताओं से कोई संबंध नहीं है। इसलिए हम इन दो चुनौतियों के बारे में अलग अध्यायों में चर्चा करेंगे। जम्मू और कश्मीर का आतंकवाद कश्मीर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की वजह से है। जम्मू-कश्मीर के आतंकवाद पर अलग अध्याय में चर्चा करेंगे।
2.3 भीतरी आतंकवाद की शुरुआत और उसका प्रसार 
भीतरी आतंकवाद ऐसा आतंकवाद है जो देश के दूर-दराज इलाकों तक फैला है। इस प्रकार की आतंकवादी घटनाएं पूरे भारत वर्ष में बिना किसी कारण के हो रही हैं। यदि हम पीछे मुड़ कर देखें और विश्लेषण करें तो पायेंगे कि भारत में आतंकवाद की बढ़ोतरी सिलसिलेवार और सुनियोजित तरीके से हुई है।
1. भारत के विरुद्ध दो परम्परागत युद्धों में मात खाने के बाद, विशेषकर 1971 में हुई अपमानजनक हार के पश्चात्, पाकिस्तान ने आतंकवादी गतिविधियों को समर्थन देकर पिछले तीन दशकों से भारत में खून-खराबा करने के उद्देश्य से गैर-परम्परागत अप्रत्यक्ष/परोक्ष युद्ध का रास्ता अपनाया।
2. वर्तमान आतंकवाद के बीज 80 के दशक में पंजाब में खालिस्तान आंदोलन के साथ बोये गये थे। भारत के लिए यह बहुत ही घातक आंदोलन सिद्ध हुआ। इस आंदोलन का उद्देश्य जम्मू एवं कश्मीर और बाकी भारत के बीच एक प्रतिरोधी प्रभुत्व सम्पन्न राज्य की स्थापना करना था।
3. पंजाब के पश्चात् 80 के दशक के अंत में पाकिस्तान ने अपना लक्ष्य कश्मीर को बनाया और कश्मीरी लोगों के एक समूह की भारत विरोधी भावनाओं का फायदा उठाने का प्रयत्न किया जो कि आजतक जारी है। कश्मीरी आतंकवाद मूलत: पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में स्थित आईएसआई से प्रशिक्षित, प्रेरित एवं निर्देशित एलईटी, जेईएम, हिजबुल मुजाहीदिन इत्यादी इस्लामिक आतंकवादी संगठनों द्वारा संचलित किया जा रहा है।
4. 1977 में अलीगढ़ में भारतीय मुस्लिमों को पश्चिमी प्रभाव से मुक्त कराने और उनसे इस्लामिक आचरण संहिता का अनुसरण करवाने के उद्देश्य से सिमी की स्थापना की गईं। 80 व 90 के दशक में सिमी एक दुत आतंकवादी एवं उग्रवादी संगठन बन गया और इसने और अधिक उग्र रूप धारण कर लिया। इसलिए इसे 2001 में गैर-कानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम के अंतर्गत प्रतिबंधित कर दिया गया।
5. 1992 में आयोध्या घटना बाद, पूरे भारत में विशेषकर मुम्बई में ( 1993 के सीरियल धमाके) प्रतिक्रियात्मक आतंकवाद का उदय हुआ। इससे आईएसआई को भारत में आतंकवाद और साम्प्रदायिकता की आग फैलाने का बहुत बड़ा अवसर प्रदान हुआ।
6. सिमी पर प्रतिबंध लगाने के पश्चात् 21वीं शताब्दी में इण्डियन मुजाहिदीन (आईएम) का गठन हुआ। इसका गठन बाहरी देशों में यह प्रचारित करने के लिए किया गया था कि भारत का आतंकवाद पूरी तरह से घरेलू है जो कि मुस्लिमों के साथ किए गए अत्याचार के कारण हुआ है न कि अन्य देशों द्वारा प्रायोजित है।
7. आईएसआई ने भारतीय युवा मुस्लिमों को भड़काने के लिए हमेशा अयोध्या की घटना और गुजरात दंगों जैसी घटनाओं का फायदा उठाने का प्रयास किया। युवाओं को लामबंद करने आतंकवादी बनाने और भर्ती करने के लिए आईएसआई द्वारा जाली विडियो का प्रयोग किया गया। आईएसआई की सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने के प्रयासों की वजह से भारतीय मुस्लिम समुदाय को आसानी से लामबंदी, अतिवादी और आतंकवादी गुटों में भर्ती करने का खतरा बना रहता है। हाल ही में मुज्जफरनगर जिले के दंगा प्रभावी क्षेत्र से लश्कर-ए-तैयबा द्वारा युवा
आतंकवाद-विदेशी राज्य और गैर-राज्य कर्ताओं की भूमिका 2.5
8. 2006-07 में हमने मालेगांव, मेका मस्जिद हैदराबाद, अजमेर शरीफ और समझौता एक्सप्रेस में बम धमाकों के रूप में प्रतिक्रियात्मक आतंकवाद देखा। प्रारंभ में इन मामलों में विभिन्न राज्यों की पुलिस की जांच एजेंसियों ने कथित तौर पर बेकसूर मुस्लिम युवाओं को फंसाया। इससे मुस्लिमों में असंतोष की भावना उत्पन्न हुई और आईएसआई, एलईटी, सिमी और आईएम इत्यादी आतंकवादी संगठनों को युवा मुस्लिमों को अतिवादी बनाने का एक और मौका मिला।
9. बंग्लादेश का हरकत-उल-जिहाद – एल-इस्लामी (एचयूजेआई) भी भारत में हुए कई आतंकवादी हमलों में लिप्त पाया गया।
 > 2.3.1 भारत में महत्त्वपूर्ण आतंकवादी हमले
हम कह सकते हैं कि पिछले दो दशकों में आईएसआई समर्थित आतंकवाद, जो पहले पंजाब और जम्मू-कश्मीर तक सीमित था, वह भारत के अन्य क्षेत्रों में भी फैल गया है। इसमें से कुछ प्रमुख घटनाएं निम्नलिखित हैं:
> 1993 में मुम्बई में हुए बम विस्फोट जिसमें लगभग 300 लोग मारे गए।
> ब्रह्मपुत्र मेल ट्रेन बम विस्फोट जिसमें 33 लोग मारे गए।
> तालिबान के सक्रिय सहयोग से हरकत-उल-मुजाहिदीन द्वारा एयर इंडिया के जहाज आईसी-814 का अपहरण ।
> श्री लाल कृष्ण अडवानी को लक्ष्य बना कर 1998 में कोयंबटूर में उनकी चुनाव रैली में बम विस्फोट जिसमें 58 लोग मारे गए और 200 लोग घायल हुए।
> 2000 में लाल किले पर हमला ।
> 2001 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमला ।
> 13 दिसम्बर 2001 को लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद द्वारा भारतीय संसद पर हमला।
> लश्कर-ए-तयैबा और जैश-ए-मोहम्मद द्वारा गुजरात में अक्षरधाम मंदिर पर हमला ।
> 2003 में मुम्बई में अलग-अलग हमलों में 68 लोग मारे गए।
> 2005 में दिवाली से दो दिन पहले दिल्ली में हुए बम विस्फोटों में 70 लोग मारे गए।
> 2006 में लश्कर-ए-तैयबा द्वारा किए गए विस्फोटों में 209 लोग मारे गए।
> 2006 में मालेगांव में राइट विंग आतंकवादियों द्वारा किए गए विस्फोट में 37 लोग मारे गए।
> 2007 में इंडियन मुजाहीदिन द्वारा लखनऊ, फैजाबाद और बनारस में अदालत परिसरों में किए गए आक्रमण।
> 2007 में राइट विंग आतंकवादियों द्वारा समझौता एक्सप्रेस और अजमेर शरीफ विस्फोट |
>  2007 में रामपुर में सीआरपीएफ कैम्प पर हमला
> 2008 में इंडियन मुजाहीदिन द्वारा जयपुर, बंगलोर, अहमदाबाद और दिल्ली में किए गए विस्फोट जिसमें 115 लोग मारे गए।
> लश्कर ए-ए-तयैबा द्वारा मुम्बई में किया गया 26/11 का हमला जिसमें 171 लोग मारे गए।
> 2010 में आईएम द्वारा पुणे में जर्मन बेकरी में किए गए बम विस्फोट, जिसमें 17 लोग मारे गए। 2011 में आईएम द्वारा मुम्बई में किए गए सिरियल बम विस्फोटों में 26 लोग मारे गए।
>  2011 में आईएम द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय पर किए गए हमले में 12 लोग मारे गए।
> 2013 में आईएम द्वारा हैदराबाद में किए गए बम विस्फोटों में 16 लोग मारे गए।
> 2013 में आईएम द्वारा बोध गया में किए गए विस्फोट |
> 2014 में पटना चुनावी सभा में विस्फोट |
> मार्च 2015 में जम्मू हमला जिसमें 6 लोग मारे गए।
> जुलाई 2015 में गुरदासपुर हमला जिसमें 10 लोग मारे गए।
> जनवरी 2016 में पठानकोट हमला जिसमें 7 लोग मारे गए।
> जून 2016 में पंपोर (कश्मीर) में सीआरपीएफ काफिले पर हमला जिसमें 8 सीआरपीएफ जवान मारे गए।
>  उरी सैन्य शिविर पर 2016 में जैश-ए-मोहम्मद के हमले में 23 सैनिक मारे गए थे।
> वर्ष 2016 में नागरोटा बेस कैम्प पर हमला ( जैश-ए-मोहम्मद पर संदेह ) ।
> वर्ष 2017 में अमरनाथ यात्रा पर हमला ।
> नवम्बर, 2018 में अमृतसर में हमला।
> पुलवामा (2019) में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के काफिले पर आत्मघाती हमला। हमले में 42 जवान मारे गए। जैश-ए-मोहम्मद ने हमले की जिम्मेदारी ली।
इनसे यह स्पष्ट है कि आतंकवादियों ने भारत की राजनैतिक राजधानी, वित्तीय राजधानी, सूचना प्रौद्योगिकी एवं वैज्ञानिक हबों, धार्मिक एवं पर्यटक स्थलों को निशाना बनाने पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है।
भीतरी आतंकवाद को भी कई बार सीमा पार से पड़ोसी देशों द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। इसलिए इन्हें विदेशी आतंकवाद माना जा सकता है। 1971 की लड़ाई में हारने के बाद से भारत में खून-खराबा करवाना पाकिस्तान की नीति का एक भाग है। इससे उसकी भारत के साथ परम्परागत युद्ध करने की अक्षमता जाहिर होती है। आतंकवादियों को पाकिस्तान में प्रशिक्षण और हथियार आदि दिए जाते हैं और उसके बाद उन्हें नियंत्रण रेखा या नेपाल के रास्ते भेजकर भारत में घुसपैठ करा दिया जाता है।
2.3.2 सक्रिय आतंकवादी संगठन
लश्कर-ए-तैयबा (LeT-Lashkar-e-Taiba) एलईटी का तर्जुमा ‘खालिस लोगों की आर्मी’ है। दक्षिण एशिया में यह काफी शक्तिशाली और बड़े आतंकवादी संगठनों में से एक है। यह मुख्यतः पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर से संचालित होता है। इसकी स्थापना 1990 मेंहाफिज़ सईद ने की थी । लश्कर-ए-तैयबा ने भारत में सैनिक एवं असैनिक ठिकानों पर आक्रमण किया। 2001 में भारत की संसद और 2008 में मुम्बई में भी एलईटी द्वारा हमले किए गए थे। एलईटी भारत के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है।
जैश-ए-मोहम्मद (JeM-Jaish-e-Mohammed ) – जैश-ए-मोहम्मद ( जेईएम या मोहम्मद की सेना) पाकिस्तान आधारित आतंकवादी समूह है। इसका मकसद भारतीय सुरक्षा बलों और सरकार पर हमले के जरिये कश्मीर पर भारत के नियंत्रण को कमजोर करना और उसकी सत्ता को उखाड़ फेंकना है। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई उसका समर्थन करती है। वह जैश-ए-मोहम्मद को धन देती है, उसके आतंकवादियों को प्रशिक्षण देती है और भारत में उनके हमले की रणनीति तय करती है। मसूद अजहर ने इस आतंकवादी समूह का गठन किया था। इसके पहले वह हरकत-उल-मुजाहिदीन संगठन, जिसका ताल्लुक अल-कायदा से था, उसकी तरफ से लड़ता था। 1999 भारतीय विमान आईसी-814 के अपहरण के बाद उनमें सवार यात्रियों की सकुशल रिहाई के बदले भारत को दो अन्य आतंकवादियों के साथ मसूद अजहर को अपनी जेल से छोड़ना पड़ा था। इसके बाद अजहर ने 2000 में जैश-ए-मोहम्मद का गठन किया और तब से वह भारत पर विनाशकारी हमले करता रहा है। चाहे 2001 में संसद पर किया गया हमला हो, 2016 में पठानकोट हवाई अड्डे पर हमला हो, या हाल ही में 14 फरवरी, 2019 को पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर किया गया आत्मघाती हमला, जिसमें 42 जवान मारे गए थे, ये सभी जैश के कराये हुए हैं। जैश ने अपने गठन के तुरंत बाद से भारतीय लक्ष्यों पर हाई-प्रोफाइल आत्मघाती हमले और अन्य तरह के हमलों को अंजाम दिया है। कहा जाता है कि यह आतंकवादी समूह अफगानिस्तान में अमेरिकी कमान में लड़ने वाली नाटो सेना के विरुद्ध जंग में तालिबान को 2001 से ही अपना सक्रिय समर्थन देता रहा । इन्हीं सब कारणों से भारत ने मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने और उसकी आतंकवादी गतिविधियों को प्रतिबंधित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में एक प्रस्ताव दिया था, जिसका समर्थन अमेरिका और फ्रांस समेत अधिकतर देशों ने किया था। हालांकि चीन ने अजहर को प्रतिबंधित करने के भारत के प्रस्ताव का विरोध किया था। ऐसा करने वाला चीन संयुक्त राष्ट्र की 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद का एकमात्र सदस्य देश था।
हिजबुल मुजाहिदीन (HM-Hizbul Mujahideen) – यह कश्मीरी आतंकवादी ग्रुप है जो कि 1989 में बनाया गया था। वर्तमान में इसका नेता सैयद सलाहुदीन के उपनाम से आमतौर पर पाक अधिकृत कश्मीर में रहता है।
एक्यूआईएस ( अल-कायदा इन इंडियन सब-कंटिनेन्ट) – भारतीय उपमहाद्वीप में अल-कायदा मूल अल-कायदा का सबसे युवा संगठन है, जिसका गठन 2014 में किया गया। इसका मकसद भारत, पाकिस्तान, म्यांमार और बांग्लादेश के जेहादियों की भर्ती करना था, जो मुख्यतः पाकिस्तान और अफगानिस्तान में रहते हुए आतंकवादी गतिविधियाँ चला सकें। एक्यूआईएस कश्मीरी आतंकवादियों के भी सम्पर्क में है। यह संगठन संयुक्त राष्ट्र से प्रतिबंधित है।
स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इण्डिया (SIMI-Students Islamic Movements of India) – 1977 में स्थापित सिमी एक प्रतिबंधित इस्लामिक छात्र संगठन है। सिमी का मिशन पश्चिमी भौतिकवादी संस्कृति के प्रभाव से ‘भारत की मुक्ति’ और मुस्लिम समाज को मुस्लिम आचार संहिता के अनुसार रहने के लिए प्रेरित करना था। परंतु सिमी अस्सी और नब्बे के दशक में हिन्दू और मुस्लिम समूहों के बीच सांप्रदायिक दंगों और हिंसा की पृष्ठभूमि में आतंकवादी औरउग्रवादी संगठन बन गया और कट्टरपंथी रुख अपना लिया। इसका आदर्श वाक्य ‘पूरे भारत को इस्लामिक देश में बदलना’ बन गया। 2001 में जब इसे आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त पाया गया तो भारत सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया।
हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामिक (HUJI-Harkat-ul-Jihad-al-Islami): – यह पाकिस्तान बांग्लादेश व एवं बांग्लादेश आधारित बहुत पुराना इस्लामिक आतंकवादी संगठन है जो पाकिस्तान, भारत में काम कर रहा है। 2006 में बनारस में और 2011 में दिल्ली में हुए बम विस्फोटों की जिम्मेवारी हुजी ने ली थी । अफगानिस्तान से सोवियत संघ की वापसी के बाद हुजी ने अफगानिस्तान से अपनी गतिविधियों का संचालन प्रारंभ किया। इसकी बंग्लादेश की यूनिट 2002 में बनाई गई, माना जाता है कि यह तालिबान द्वारा समर्थित है।
इण्डियन मुजाहिदीन (IM – Indian Mujahideen) : – यह भारत आधारित एक इस्लामिक आतंकवादी संगठन है जिसने भारत के कई असैनिक ठिकानों पर आक्रमण किए। पिछले दशक में हुए कई विस्फोटों की जिम्मेवारी आईएम ने ली थी। पुलिस जांचों में पाया गया है कि यह संगठन पाकिस्तान आधारित लश्कर-ए-तैयबा का अग्रिम दस्ता है। वास्तव में, आईएसआई, एलईटी एवं हुजी ने आईएम के गठन को प्रेरित किया है ताकि भारत में आतंकवादी गतिविधियों में पाकिस्तान की लिप्तता को छिपाया जा सके और अन्य देशों में यह प्रचारित किया जा सके कि भारत में आतंकवाद, देश में मुस्लिमों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार के कारण पैदा हुआ है। 2010 में आईएम को एक आतंकवादी संगठन घोषित किया गया और इस पर भारत सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाया गया। न्यूजीलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका ने भी इस संगठन को एक आतंकवादी संगठन घोषित किया। दक्षिण एशिया को ‘इस्लामिक राज्य’ बनाना उसका एकमात्र उद्देश्य था। 2007 में उत्तर प्रदेश में लखनऊ, वाराणसी और फैजाबाद के न्यायालय परिसरों में विस्फोट करने के पश्चात् यह सुर्खियों में आया था। यह भ्रमित युवा मुसलमानों, छोटे अपराधी से लेकर उच्च वेतन प्राप्त सॉफ्टवेयर पेशेवरों की व्यापक स्तर पर भर्ती करता है। हाल ही में इसके एक बड़े नेता यासीन भटकल को भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने गिरफ्तार किया है।
स्लीपर सेल (Sleeper Cells) : -स्लीपर एजेंटों का पृथक् ग्रुप जो तब तक शिथिल रहता है जब तक उन्हें सक्रिय होने का आदेश नहीं मिलता या सक्रिय होने का निर्णय नहीं लिया जाता। स्लीपर सेल एक जासूसों का ग्रुप है जिसे लक्षित देश या संगठन में रखा जाता है, इसे तुरंत कार्य नहीं करना होता बल्कि वक्त पड़ने पर इसे कार्य में लगाया जाता है।
2.3.3 आईएसआईएस से नया खतरा 
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
इस समूह के विभिन्न नाम हैं क्योंकि 1999 में जॉर्डन के कट्टरपंथी अबु मुसाब अल-जारकावी ने जमात अल तवीद वा अल-जैहाद नाम के अंतर्गत इसकी स्थापना की थी। अक्टूबर 2004 में अल-जरकबी ने ओसामा बिन लादेन के प्रति निष्ठा की शपथ ली, उसने समूह का नाम बदलकर ‘तनीम कायदात अल जेहाद फी बिलाद अल रफीदायन’ कर दिया जिसे सामान्यत: ईराक में अल-कायदा या एक्यूआई के नाम से माना जाता है। हालांकि इस समूह ने कभी भी ईराक में स्वयं को अल-कायदा के नाम से नहीं पुकारा, परन्तु कई वर्षों से यह इसका अनौपचारिक नाम रहा है ।जून 2006 में अल-जारकावी के मारे जाने के बाद उग्रवादी गुटों में विलय हो गया और एक नया समूह, अद-दवलाह – अल – ईराक अल-इस्लामिया का निर्माण हुआ जो कि इस्लामिक स्टेट ऑफ ईराक (आईएसआई) के नाम से जाना जाता है। आईएसआई का नेतृत्व अबु उमर अल-बगदादी और अबु अयूब अल-मसरी के द्वारा किया गया, जो कि अप्रैल 2010 में अमेरिकी – ईराक ऑपरेशन में मारे गए। उसके बाद अबु वक्र अल-बगदादी समूह का नया नेता बना।
2011 तक जब ईराक से अमेरिकी सैनिक पूर्ण रूप से हटा लिए गए, ईराक का अल-कायदा अबु बक्र अल-बगदादी द्वारा चलाया जा रहा था, और एक विदेशी ऑपरेशन से एक ईराकी ऑपरेशन बन गया।
” हजारों सशस्त्र सैनिक बगदादी के पास होने के कारण, बगदादी ने सीरिया में शियाओं के विरुद्ध दूसरा मोर्चा खोल दिया जहां राष्ट्रपति बशर अल – आनंद के विरुद्ध एक व्यापक असंतोष था। जल्द ही, बगदादी ने अपने समूह का नाम बदलकर इस्लामिक स्टेट ऑफ ईराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) कर दिया, जो उसकी उच्च महत्त्वकांक्षाओं को दर्शाता है। उसके काले झंडे, जिसमें अरबी में लिखा ‘अल्लाह के अलावा कोई ईश्वर नाम की चीज नहीं है’ और कई इसका अर्थ यह समझते हैं कि यह पैगम्बर मुहम्मद की मुहर है जो कि सर्वव्यापी बन गई।
 अप्रैल 2013 में सीरिया तक विस्तार होने के कारण, समूह ने अद-दवलाह अल-इस्लामिया फी ईराक वा-श्-शम नाम अपना लिया। चूंकि अल-शाम एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी तुलना ‘लेवेंट’ या ‘ग्रेट सीरिया’ से होती है, समूह को विभिन्न नामों से जाना जाने लगा जैसे ‘इस्लामिक स्टेट ऑफ ईराक एंड अल-शाम, इस्लामिक स्टेट ऑफ ईराक एंड सीरिया’, (दोनों का संक्षिप्त रूप आईएसआईएस है) या ‘इस्लामिक स्टेट ऑफ ईराक एंड द लेवेंट’ (संक्षिप्त रूप आईएसआईएल) ।
मई 2014 में, यूनाइटेड स्टेट्स के डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट ने अपने निर्णय की घोषणा की जिसके अनुसार समूह का प्राथमिक नाम “इस्लामिक स्टेट ऑफ ईराक एंड द लेवेंट” (आईएसआईएल) उपयोग में लाया जाएगा।
29 जून, 2014 को संगठन ने स्वयं को विश्वव्यापी इस्लाम प्रभुत्व घोषित किया। अबु बकर अल-बगदादी अपने समर्थकों द्वारा अमीर अल मुमीनिन के नाम से जाना जाता था, इब्राहिम इस्लाम प्रभुत्व को इसका प्रमुख बनाया गया और समूह ने अपना नाम बदलकर अद-दवलाह अल-इस्लामिया [इस्लामिक स्टेट (आईएस)] कर लिया। एक इस्लाम प्रभुत्व के तौर पर यह विश्व भर के मुसलमानों पर धार्मिक, राजनीतिक और सैन्य प्राधिकार का दावा करता है। इसके इस्लाम प्रभुत्व होने की अवधारणा और ‘इस्लामिक स्टेट’ नाम संयुक्त राष्ट्र, विभिन्न सरकारों और विश्व भर के मुस्लिम नेताओं द्वारा अस्वीकार कर दिया गया है।
विश्व भर में सामान्यतः जाने जाने वाले नाम हैं आईएसआईएस और आईएसआईएल।
आईएसआईएस की विचारधारा
आईएसआईएल के मुख्य सिद्धांतों में उसकी यह मान्यता शामिल है कि वह प्रारंभिक इस्लाम के प्रभुत्व की पुन:स्थापना का प्रतिनिधित्व करता है और सभी मुस्लिमों को इसमें निष्ठा की शपथ लेनी चाहिए; ‘झूठे’ इस्लाम से धर्मत्याग की सफाई होनी चाहिए, आमतौर पर खूनी सांप्रदायिकता नर-संहार से और ईश्वर द्वारा कयामत का दिन नजदीक है और आईएसआईएल द्वारा ‘रोम’ कीसेना की हार होगी कि ‘पैगम्बर मुहम्मद और उसके प्रारंभिक अनुयायिओं द्वारा स्थापित’ नियम का पालन करने हेतु सख्त अनुपालन आवश्यक है, यहां तक कि अन्य सलाफी समूहों के नियमों को मात देकर भी।
आईएसआईएल जैसे सलाफी जेहादी मानते हैं कि केवल एक वैध प्राधिकारी ही जेहाद का नेतृत्व कर सकता है और युद्ध के अन्य क्षेत्रों में प्रथम प्राथमिकता है, गैर-मुस्लिम देशों से युद्ध, जो कि इस्लामिक समाज का शुद्धिकरण है। उदाहरण के लिए, आईएसआईएल फिलिस्तीनी सुन्नी समूह ‘हमास’ को धर्मत्यागी मानता है जिसके पास जेहाद करने का कोई वैध प्राधिकार नहीं है और यह मानता है कि इजरायल का सामना करने से पहले हमास से लड़ना पहला कदम है।
आईएसआईएस ने स्वयं को बेहद बर्बर साबित किया है और यह मध्यकालीन युग की अपनी घृणा और जेहाद की धारणा का स्मरण कराता है।
लक्ष्य
आईएसआईएस के अनुसार इस्लाम के स्वर्ण युग की स्थापना, इस्लामिक धार्मिक कानून (शरिया) की सलाफी-जिहादी व्याख्या के आधार पर एक इस्लामी खलीफा के पुनर्निर्माण के माध्यम से होगी। इस्लाम प्रभुत्व राज्य, जिसकी स्थापना की घोषणा आईएसआईएस के माध्यम से की गई थी, वर्तमान में इसमें शामिल है। बगदाद के बाहरी इलाकों से लेकर अलेप्पो के बाहरी इलाकों तक, ईराक और सीरिया के बड़े हिस्से को आईएसआईएस अपना स्वघोषित इस्लामी प्रभुत्व राज्य मानता है तथापि बचे ईराक और सीरिया तक विस्तार करने का इच्छुक है। आईएसआईएस के अनुसार ग्रेटर सीरिया (बिलाद अल-शाम) जिसमें सीरिया, ईराक लेबनान, इजरायल, फिलिस्तीन, जॉर्डन और यहां तक की कुवैत भी शामिल है, में इस्लामी प्रभुत्व में आता है, बगदान और हामासकस में तख्ता पलट कर बाकी हिस्सों में उसका प्रसार किया जाएगा।
तथापि, आईएसआईएस की महत्त्वकांक्षाएं ग्रेटर सीरिया के क्षेत्रों से आगे जाती है। इसके विजन के अनुसार, ग्रेटर सीरिया में इस्लाम प्रभुत्व राज्य एक व्यापक इस्लाम प्रभुत्व राज्य का केन्द्र बिन्दु होगा। इसमें मध्य पूर्व के देश, उत्तरी अफ्रीका के देश; ईरान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान (खोरासन) के भाग शामिल होंगे। वे यूरोपीय देश जो इतिहास में मुसलमानों से जीते गए देश (स्पेन, बाल्कन) और अन्य मुस्लिम देश (तुर्की, काकेशस) शामिल है।
मानचित्र के अनुसार, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) की योजना आगामी पांच वर्षों में, मध्य पूर्व, उत्तर अफ्रीका, अधिकांश भारतीय उपमहाद्वीप और यूरोप के भागों में अपने इस्लाम प्रभुत्व राज्य स्थापना करने की है ।
हाल ही में, महाराष्ट्र के चार किशोर इराक गये और वहां जाकर आईएसआईएस में शामिल हो गए थे। उनमें से केवल एक ही जिंदा लौट सका ।
भारत में आईएसआईएस
जनवरी 2016 में हरिद्वार जिले के रुड़की क्षेत्र से चार आईएसआईएस आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया था। इसके तुरंत बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने देश के विभिन्न भागों में हमले की योजना बना रहे 14 अन्य संदिग्ध लोगों को हिरासत में लिया जो ‘इस्लामिक स्टेट समर्थक’ थे।ये गिरफ्तारियाँ छः शहरों- बेंगलुरु, मंगलौर, हैदराबाद, मुम्बई और लखनऊ में 12 स्थानों पर की गई छानबीन और मारे गए छापों के बाद स्थानीय पुलिस दलों के सहयोग से की गई।
आईएसआईएस की वर्तमान स्थिति
विश्व समुदाय को विगत दो वर्षो में आईएसआईएस के विरुद्ध बड़ी सफलता हाथ लगी है। लेकिन इस्लामिक स्टेट (आईएस) ‘खलीफा’ की तथाकथित बरबादी का समय से पहले उत्सव मनाना अनुचित होगा। वह सीरिया और ईराक के अपने मजबूत दखल वाले क्षेत्र से यूरोप, एशिया और अफ्रीका की तरफ गए हैं। चूंकि आईएसआईएस के पांव सीरिया और ईराक से उखड़ चुके हैं, ऐसे में अफ्रीका के कुछ हिस्से नये युद्धस्थल बन गए हैं। अपुष्ट खबरों के मुताबिक विगत दो वर्षों में अकेले अफ्रीका में 10,000 से अधिक लोग मारे गए हैं और यह खून-खराबा वहां अब भी जारी है। एक समय आईएस से संबद्ध रहे बोको हरम तो आईएस अथवा अल-कायदा से ज्यादा ‘खून का प्यासा’ बना हुआ है। सोमालिया में अल-शहबाब, माली में जमात नुसरत अल-इस्लाम वल मुसलमीन एवं अन्य आतंकवादी संगठन अफ्रीका के विभिन्न हिस्सों में लगातार फल-फूल रहे हैं।
अफगानिस्तान तो कट्टर इस्लामी आतंकवाद का अन्य मुख्य अधिकेंद्र बना ही हुआ है। वर्ष 2017 और 2018 खासकर आतंकवादी हमलों और उनमें हुए जान-माल के भारी नुकसान के लिहाज से बहुत बुरे रहे हैं। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण भारत के आसपास बने हिंसा के वातावरण और कट्टरपंथी समूहों के जेहाद के प्रति उनके उतावलापन जैसी भयानक गतिविधियों से जानबूझ कर अनजान बना नहीं रह सकता । एनआईए ने दिसम्बर 2018 में दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आईएसआईएस के कट्टरपंथी युवाओं के एक मॉड्यूल का पर्दाफाश किया है। इन सबका एक ही स्थायी संदेश है कि धार्मिक रूप से अभिविन्यस्त आतंकवादी समूह आईएसआईएस के प्रति विचारधारात्मक लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। 9
लोन वुल्फ अटैक्स
यह आक्रमण का एक तरीका है, जहां एक अकेला व्यक्ति ही हमलावर होता है। किसी समूह के नियंत्रण – ढांचे के बाहर और बिना किसी सामग्री सहायता के वह अकेले ही हिंसात्मक हमले की तैयारी करता है और उसे अंजाम देता है। ज्यादातर परंपरागत आतंकवादी हमलों में अनेक साजिशकर्ता होते हैं, उनका एक तयशुदा नियंत्रक ढांचा होता है और आमतौर पर परिवार के लोग उसके बारे में जान रहे होते हैं या साजिश में संलिप्त होते हैं। लोन वुल्फ आतंकवादी हमले में ज्यादातर एक अकेला ही साजिशकर्ता होता है और उसमें पदानुक्रम से हुक्म देने वाले ढांचे का अभाव रहता है। सामान्यतया परिवार के लोग भी उसके कट्टर विचारों से अनजान रहते हैं।
सरकारों और रिपोटर्स ने शुरुआत में यह दावा किया था कि आतंकवादियों की एक बड़ी संख्या लोन वुल्फ आतंकियों की है, जो आईएसआईएस या उसकी विचारधारा से प्रेरित है। लेकिन बाद में यह स्पष्ट हुआ कि आईएसआईएस ने उन आतंकवादियों की भर्ती की थी, उन्हें प्रशिक्षित कि वे तकनीक रूप से लोन वुप्फ नही थे। आईएसआईएस ने लोन वुल्फ हमले के सिद्धांत का इंटरनेट के जरिए पूरे विश्व में प्रचार प्रसार किया।
लोन वुल्फ अटैक  की चुनौतियां 
कमांड की कोई शृंखला नहीं होने के कारण लोन वुल्फ हमलावरों पर नजर रखना कठिन है। चूंकि वह नेताविहीन होते हैं, इसलिए खुफिया एजेंसियों को उनकी थाह लेना दुष्कर हो जाता है। आईएसआईएस जैसा आतंकवादी संगठन पूरे विश्व में लोगों को कट्टरवादी बनाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करता रहा है। वह सूचना प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया के जरिये आतंकवादियों की भर्ती करने, उन्हें धन मुहैया करने और प्रशिक्षण देने का काम करता है। आतंकी गतिविधियों के लिए कूट शब्दों के उपयोग किये जाने से उन्हें पकड़ पाना मुश्किल होता है। हालिया जांच से जाहिर हुआ है कि प्रायः ये हमले बाहरी कमान से पूरी तरह स्वतंत्र नहीं होते हैं, जैसा कि समझा जाता है। दूर से काम कर रहे आतंक के सरगना का एक भरोसेमंद और प्रशिक्षक के रूप में आतंकवादियों पर बहुत हद तक प्रभाव रहता है । यह सरगना ही युवकों की खुशामद कर हिंसा को गले लगाने के लिए राजी करता है।
आधुनिक युग का ऑनलाइन आतंकवाद ( साइबर उग्रवाद )
आतंकवादी समूह के कामकाज – रंगरूटों की भर्ती से लेकर उनका प्रशिक्षण और लक्ष्य के लिए तैनाती तक के तरीके में आए बदलाव को कोई भी स्पष्ट रूप से देख सकता है। पहले, किसी खास धर्म और विचारधारा के स्वयं भू सर्वोच्च धर्मगुरु से दीक्षा लेने के बाद सक्षम व्यक्ति को समूह में शामिल कर लिया जाता था। फिर उनके दिमाग में उस समूह की विचारधारा को रोपने और सामरिक प्रशिक्षण दिलाने के लिए चोरी-छिपे लक्षित देश के बाहर ले जाया जाता था। इसके उपरांत, उन्हें भविष्य में स्लीपर सेल होने अथवा कुछ निश्चित ठिकानों पर आतंकवादी हमले करने या कोई अभियान चलाने के निर्देश मिलने तक इंतजार करने के लिए कह कर उन्हें वापस भेज दिया जाता था। अब यहां सब कुछ ऑनलाइन है – नये रंगरूटों को कट्टर बनाने, उन्हें समूह में भर्ती करने और प्रशिक्षण दिलाने से लेकर मुद्रा के हस्तांतरण तक। ये सब आईएस के अपनाये जाने वाले तरीकों से कहीं ज्यादा खतरनाक है, जो आमतौर पर अपने लोगों को सीमा पार आतंक का प्रशिक्षण देता है। आईएस के मानदंडों में तो आतंकी बनने वाले युवक को विभिन्न रास्तों से गुजर कर भारतीय सीमा पार करनी पड़ती है, जो हमेशा आसान नहीं होता। इंटरनेट के व्यापक उपयोग और आधुनिक संप्रेषण तकनीक, खुले और गुप्त (डीप वेब, डार्क वेब आदि), दोनों के उत्थान के साथ, अब अपने कैडर को प्रशिक्षण के लिए निर्दिष्ट जगह पर भेजने की कोई आवश्यकता नहीं है। ऐसे में हमें देश में कट्टरता के प्रचार-प्रसार को रोकने के लिए बेहद मजबूत ऑनलाइन निगरानी क्षमता / सोशल मीडिया निगरानी प्रौद्योगिकी क्षमता से लैस रहने की आवश्यकता होगी।
रेडिकलाइजेशन (आमूलीकरण)
आमूलीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति या समूह, वर्तमान परिदृश्य से असंतुष्ट होकर, अपने और अपने विश्वासों के अनुसार चीजों को बदलने के लिए एक अत्यधिक चरम राजनीतिक, सामाजिक या धार्मिक विचारधारा को अपनाता है, जिसमें हिंसा भी शामिल हो सकती है।अनियंत्रित होने पर विकिरणीकरण, समाज में चरमपंथी प्रवचन, आतंकवादियों द्वारा भर्ती, अन्य समूहों में सांप्रदायिक तनाव / हिंसा और ईंधन अतिवाद को जन्म दे सकता है
आतंकवादी संगठन द्वारा युवाओं के आमूलीकरण के हालिया विगत मुद्दे में वृद्धि हो रही है। आईएसआईएस द्वारा भारतीय युवाओं का ऑनलाइन आमूलीकरण और भर्ती राष्ट्रों की संप्रभुता, सुरक्षा और अखंडता के लिए एक बड़ा खतरा है। लेकिन बढ़ते इंटरनेट पैठ और सोशल मीडिया के आगमन के साथ समस्या जटिल हो गई है। एक तरफ उनके निहित लाभ और अधिक से अधिक गुमनामी, और दूसरी ओर ट्रांसनेशनल की वजह से सामाजिक मंचों को विनियमित करना मुश्किल है।
डी-रेडिकलाइजेशन और काउंटर रेडिकलाइजेशन
डी-रेडिकलाइजेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा पहले से ही आमूलीकृत व्यक्ति को समाज की मुख्यधारा में वापस लाया जाता है जबकि काउंटर – रेडिकलाइजेशन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कमजोर व्यक्तियों को आमूलीकृत होने से रोका जाता है।
ऑनलाइन आतंक की जांच के लिए आगे का रास्ता
इंटरनेट को विनियमित करने का कोई भी कदम नागरिकों के भाषण और अभिव्यक्ति, सूचना, कनेक्शन आदि के मौलिक अधिकारों के प्रति अत्यधिक सम्मान के साथ होना चाहिए ।
1. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: इंटरनेट के उपयोग में कल्पित दिशानिर्देशों का पालन करने हेतु राष्ट्रों और विभिन्न आईटी संबंधित संगठनों के बीच एक अंतर्राष्ट्रीय आम सहमति बनाई जानी चाहिए ।
2. व्यापक विधानः किसी भी प्रकार के कट्टरवाद में शामिल होने से डर पैदा करने हेतु कठोर कानून अधिनियमित किए जाने चाहिए।
3. ऐसी गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों को दंडित करने हेतु एक सशक्त जांच और न्यायिक प्रक्रिया ।
4. प्रौद्योगिकी का उपयोगः बिग डाटा जैसी प्रौद्योगिकी कट्टरवाद संबंधी शब्दों को पकड़ने और ऐसी किसी सामग्री को मिटाने के लिए उपयोग की जा सकती है।
5. बच्चों को कट्टरवाद का शिकार होने से बचाने के लिए ऑनलाइन साइट यू ट्यूब की तरह किसी वयस्क वीडियो देखने के लिए दर्शक की आयु का सत्यापन करने हेतु समान विधि का उपयोग कर सकती है।
6. ‘सिविल सोसायटी, गैर-सरकारी संगठनों इत्यादि की सहायता से तर्कसंगत और तार्किक जवाबी विचारधारा पर ध्यान केंद्रित करने हेतु एक बहुआयामी रणनीति को अपनाना चाहिए।
7. आतंकवादी घटनाओं को रोकने के लिए हमें एनआईए, आईबी और राज्य पुलिस आदि के बीच खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान और परस्पर समन्वय को अवश्य ही बढ़ाना होगा।
8. माता-पिता, परिवार और समाज को अधिक सतर्क और सावधान रह कर अपने बच्चों के क्रिया-कलापों पर नजर रखने की आवश्यकता है। न केवल उनकी गतिविधियों की निगरानी की जरूरत है, बल्कि बौद्धिकता और तार्किक चिंतन के साथ कट्टरतावादी सोच को रोकने की आवश्यकता है।
9. ऐसे गुमराह हो रहे किशोरों के बारे में उनके कुछ मित्रों या परिजनों से जानकारी मिलने पर पेशेवर कुशल परामर्शकों (काउंसिलर्स) से सहायता दिलानी चाहिए ताकि संकीर्णता-कट्टरतावादी विचारों का समय रहते शमन किया जा सके।
10. पुलिस में प्रतिरोधक आतंकवादी क्षमता विकसित करने के लिए उसे उचित प्रशिक्षण दिलाये जाने की आवश्यकता है। साथ ही, पुलिस को ज्ञान की आधुनिक तकनीक से पूरी तरह लैस किया जाना चाहिए।
2.4 खालिस्तान आंदोलन को पुनर्जीवित करने का प्रय
1980 के दशक और 1990 के शुरुआती वर्ष देश में आइएसआइ के समर्थन से चलाये गए खालिस्तान आंदोलन के बेहद घमासान के वर्ष थे। अभी बिल्कुल हाल में, हमने कनाडा और अमेरिका में रह रहे कुछ सिख उग्रवादी युवकों को भारत में अलग खालिस्तान बनाने और सिखों के आत्म-निर्णय के मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश करते देखा है। उनकी इन मांगों का ब्रिटेन में रहने वाले सिख समुदाय के कुछ समूहों का भी समर्थन मिला है। परिणामस्वरूप, कुछेक पश्चिमी राष्ट्रों में सिख – कट्टरतावाद की एक शुरुआत देखी जा रही है। तभी अमेरिका स्थित सिखों की स्वयंभू संस्था ‘सिख फॉर जस्टिस’ ने लंदन में एक खालिस्तान समर्थक रैली प्रायोजित की थी। यह संस्था ब्रिटेन स्थित खालिस्तान सिख फेडरेशन और दल खालसा को अपना समर्थन सहयोग देती रही है। यह खालिस्तान समर्थित भावनाओं को फिर से भड़काने का स्पष्टतम् संकेत है। अलग सिख राज्य के लिए चलाया जा रहा अभियान भारत में देर-सवेर समस्याएं खड़ी कर सकता है।
नवम्बर, 2018 में अमृतसर में बम विस्फोट हुआ था, जिसमें कई लोग मारे गए और लगभग 20 घायल हुए थे। इस घटना को खालिस्तान आंदोलन के पुनरुत्थान की घोषणा माना जा सकता है। यहां तक कि केंद्रीय गृह मंत्री ने संसद को बताया था कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई भारत विरोधी खुराफातों और पंजाब में फिर से उग्रवाद भड़काने के लिए खालिस्तान-समर्थित आंदोलन को नैतिक और वित्तीय समर्थन दे रही है।
केएलएफ (खालिस्तान लिबरेशन फोर्स)
भारतीय सुरक्षा एजेंसियाँ कहती हैं कि 1980 के दशक में काफी सक्रिय रहे सिख उग्रवादी संगठन केएलएफ को आईएसआई के दबाव पर 2009 में मलेशिया में फिर से शुरू किया गया। एनआइए ने कहा कि केएलएफ का मुख्य मकसद ‘तथाकथित खालिस्तान को आजाद कराना’ है। अरुण सिंह द्वारा 1986 में स्थापित यह उग्रवादी संगठन 1994 तक देश में अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा देने में पूरी तरह सक्रिय रहा था। केएलएफ का नेतृत्व यह विश्वास कर चलता है कि वह विशेष समुदायों के लोगों को निशाना बनाने के जरिये पंजाब के समाज का साम्प्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण कर खालिस्तान आंदोलन को पुनर्जीवित कर सकता है। जिन लोगों ने जनरैल सिंहभिंडरावाले के विचारों का विरोध किया था, वे उनके मुख्य निशाने पर हैं। केएलएफ को प्रतिबंधित कर दिया गया और उसे यूएपीए-2018 के तहत पहली अनुसूची में लाया गया।
जनमत संग्रह 2020
अमेरिका में स्थापित संस्था ‘सिख फॉर जस्टिस’ ने दुनिया के 20 से ज्यादा देशों में रहने वाले वैश्विक सिख समुदाय से एकता की अपील करते हुए पंजाब को भारत से अलग करने के लिए 2020 में एक जनमत संग्रह कराने का आह्वान किया है। वह पंजाब को एक स्वतंत्र देश बनाना चाहती है। उसने खालिस्तान आंदोलन के पुनः प्रवर्तन के लिए जनमत संग्रह शुरू भी कर दिया है और उसकी योजना अपनी इन मांगों के समर्थन के लिए संयुक्त राष्ट्र और विश्व की अन्य ताकतों से संपर्क करने की है।
2.5 प्रतिक्रियावादी दक्षिणपंथी आतंकवाद
2.5.1 हिन्दुत्व प्रेरित दक्षिणपंथी आतंकवाद
मालेगांव विस्फोट, मक्का मस्जिद विस्फोट (हैदराबाद), समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट और अजमेर दरगाह विस्फोटों में लिप्त होने का आरोप कुछ हिन्दू संगठनों पर लगा है। यह प्रतीत होता है कि यह तथाकथित राइट विंग आतंकवाद आईएसआई प्रायोजित आतंकवाद और भारत सरकार द्वारा कथित मुस्लिम तुष्टीकरण की प्रतिक्रिया स्वरूप विकसित हुआ और इसने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को लक्षित करने की कोशिश की।
ये सभी घटनाएं 2006 और 2007 के दौरान हुईं। 2007 में गिरफ्तारियाँ किए जाने के पश्चात् ऐसी कोई घटना प्रकाश में नहीं आईं।
2.6 आतंकवाद के प्रसार के कारण
आधुनिक परिस्थितियों में निम्नलिखित कारकों के कारण आतंकवाद का प्रसार तेजी से होता है:
> आतंकवादियों को नई तकनीकों की उपलब्धता ।
> आतंकवादियों के निशानों का देश भर में फैलाव |
> संचार की आधुनिक तकनीकों का सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी घृणित विचारधारा के प्रचार-प्रसार में आतंकवादियों द्वारा उपयोग |
> समाज में बढ़ती जनसंख्या और घटते संसाधनों के कारण सहनशीलता की कमी। बढ़ता वैश्वीकरण |
> आतंकवादी संगठनों को अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता / सहायता ।
> आसानी से धन उपार्जन के लिए आतंकवाद और संगठित अपराध के बीच कुत्सित गठजोड़।2.16 भारत की आंतरिक सुरक्षा की मुख्य चुनौतियां
2.7 मुख्य मुद्दे
● 2.7.1 आतंकवाद के वित्तपोषण स्रोत
भारत कई प्रकार के आंतरिक सुरक्षा के खतरों का सामना कर रहा है। आतंकवाद में लिप्त समूह विभिन्न स्रोतों, जैसे-नकली मुद्रा, जबरन वसूली, अपराध, तस्करी इत्यादी से धन एकत्रित करते हैं। आईएसआई प्रायोजित आतंकवाद व अन्य प्रकार के आतंकवाद के वित्तपोषण स्रोत निम्नवत है
आईएसआई प्रायोजित आतंकवाद
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद, आईएसआई प्रायोजित एवं वितपोषित आतंकवाद का एक सटीक उदाहरण है। आईएसआई राज्य के अतिरिक्त निजी स्रोतों से ड्रग्स एवं वर्जित सामान की तस्करी से प्राप्त धन, चन्दा, धर्मार्थ संस्थानों द्वारा दी गई अनुदान राशि आदि से धन एकत्रित करता है। इसके अलावा विश्व भर के जेहादी इस्लामिक कट्टरपंथियों के वैश्विक संजाल के माध्यम से भी धन एकत्रित करता है। कश्मीरी, गैर-सरकारी संगठनों से भी धन वसूली की जाती है। इसके पश्चात इस धन का प्रयोग भारत के विरुद्ध पाकिस्तान प्रायोजित छद्म युद्ध में किया जाता है। परन्तु इण्डियन मुजाहिदीन (आईएम) के मामले में विदेशी राज्य का समर्थन आईएसआई द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहायता के रूप में है। इसके अलावा संगठित आपराधिक गतिविधियों के माध्यम से तथा वैश्विक नेटवर्क के माध्यम से इनकी गैर-कानूनी गतिविधियों को जारी रखने के लिए धन एकत्रित किया जाता है।
माना जाता है कि आईएसआई का आतंकी नेटवर्क धन के मामले में स्वयं सक्षम है और इनके पास धन निम्नवत तरीके से आता है:
> इस्लामिक देशों से जेहाद के नाम पर चंदा,
> ड्रग्स तस्करी से कमाई,
> भारतीय जाली मुद्रा के प्रसार से,
> अन्य संगठित अपराधों के माध्यम से।
ऐसा माना जाता है कि वित्तीय नेटवर्क, कराची और इस्लामाबाद से, कुछ ट्रस्टों के माध्यम से संचालित होता है। सामान्यतः ये ट्रस्ट जाली बैंक खातों के माध्यम से संचालित किए जाते हैं।
जमात-उद-दावा (जेयूडी) एलईटी की सोशल सर्विस विंग है जो इसके सशस्त्र विंग के लिए धन एकत्रित करता है। मुम्बई हमले के बाद जब जेयूडी का नाम जांच के दायरे में आया तो इन्होंने तुरन्त इसका नाम बदल कर तहरीक-ए-तहफुज – क्योबला अबाल (टीटीक्यूए) कर दिया।
आतंकवादी संगठनों को धन का हस्तांतरण मुख्य रूप से ‘हवाला’ के माध्यम से होता है। कई बार भारतीय आसूचना एजेंसियों को मालूम हुआ है कि आईएसआई द्वारा जेईएम, एलईटी एवं एचएम, जैसे संगठनों को धन अप्रत्यक्ष रूप से उपर्युक्त उल्लिखित साधनों के माध्यम से दिया जाता है।
अन्य प्रकार के आतंकवाद के लिए धन के स्रोत
पूर्वोत्तर के अधिकतर विद्रोही जबरन वसूली और कराधान के माध्यम से धन एकत्रित करते हैं जो कि एक स्थानीय स्रोत है। इसके अतिरिक्त ड्रग्स व हथियारों की तस्करी एवं जाली भारतीय मुद्रा के माध्यम से भी धन एकत्रित किया जाता है। विद्रोहियों को इन क्षेत्रों में बाहर से राज्य प्रायोजित वित्तीय सहायता न के बराबर है तथा उन्हें निजी स्रोतों से ही धन एकत्रित करना पड़ता है।
सीपीआई (माओवादी) विद्रोही गुटों की वित्त पोषण व्यवस्था भी पूर्वोत्तर जैसी ही है, ये भी स्थानीय स्रोतों से बड़ी मात्रा में धन एकत्रित करते हैं। ये सड़क निर्माण, राष्ट्रीय राजमार्गों व बांधों के निर्माण, ग्रामीण विकास योजना जैसी बड़ी परियोजनाओं से हिस्सा लेते हैं। इसके अतिरिक्त देश में कार्य कर रही खनन कंपनियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों में भी सुरक्षा प्रदान के नाम पर धन प्राप्त करते हैं। लेकिन नक्सलवाद को विदेशी राज्य द्वारा प्रायोजित करने के कोई ठोस सबूत नहीं है। वैश्विक वित्तीय परिवेश से भी वास्तव में इन्हें कोई लाभ नहीं हो रहा है।
ये ग्रुप एकत्रित धन के द्वारा सीमा पार से हथियारों, विस्फोटक सामग्री और सैटेलाइट रेडियो, जैसे तकनीक आधारित उपकरणों की तस्करी करते हैं। इस प्रकार नेपाल, म्यांमार, बंग्लादेश और पाकिस्तान की सीमाओं के माध्यम से हथियार और गोलाबारूद को भारत की सीमाओं में पहुंचाया जाता है।
2.7.2 आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए संस्थागत ढांचा
2008 से पहले आतंकवाद का मुकाबला मुख्यतः राज्य पुलिस और केंद्रीय सशस्त्र बलों की मदद से आसूचना ब्यूरो (आईबी) द्वारा किया जाता था। आईबी ने विभिन्न राज्यों की पुलिस के बीच समन्वय का कार्य करने वाली आसूचना एजेंसी की भूमिका निभाई जांच करने और कार्यवाही करने का कार्य राज्य पुलिस द्वारा किया जाता था । इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद विशेष स्थितियों में आतंकवाद के खतरों से निपटने करने के लिए एक विशेष कमांडो बल एनएसजी का गठन किया गया। इन कमाण्डो को अपहरण और आतंकवादी कार्यवाहियों को रोकने के लिए अधिक खतरे वाले कार्यों को करने का प्रशिक्षण दिया गया।
26/11 के पश्चात् नये बदलाव
यद्यपि 26/11 हमले के दौरान मुम्बई पुलिस और एनएसजी द्वारा की गई कार्यवाही की सर्वत्र सराहना की गई है, तथापि प्रारंभिक प्रतिक्रिया और बलों द्वारा प्रयोग में लाए गए हथियारों, प्रशिक्षण और उपलब्ध आसूचना के अनुसार की गई कार्यवाही के बीच समन्वय में गंभीर खामियाँ नजर आईं इसलिए 26/11 के पश्चात भारत सरकार द्वारा कई कदम उठाए गए। भारत सरकार ने एनआईए, नेटग्रिड, एनसीटीसी, जैसे कई नए संस्थानों के सृजन तथा मैक (एमएसी) के पुनर्गठन की घोषणा की और विधि सम्मत कई कदम भी उठाए गए।
1. राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण
राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) एक संघीय एजेंसी है जिसकी स्थापना भारत सरकार ने भारत में आतंकवाद से लड़ने के लिए की है। एनआईए के पास समवर्ती अधिकार क्षेत्र हैं जिनसेइसे देश के किसी भी भाग में आतंकवादी हमले की तहकीकात करने का अधिकार प्राप्त है। इसमें देश की प्रभुसत्ता एवं एकता को खतरा पहुंचाने वाले हमले, बम विस्फोट, हवाई जहाज एवं समुद्री जहाज अपहरण और परमाणु संस्थानों पर हमले शामिल हैं। आतंकवादी हमलों के अतिरिक्त जाली मुद्रा, मानव तस्करी, ड्रग्स या मादक पदार्थ, संगठित अपराध, जबरन धन वसूलना, जहाज का अपहरण, परमाणु ऊर्जा अधिनियम का उल्लंघन, सामूहिक विनाशक हथियार अधिनियम से संबंधित अपराध आदि इसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
एनआईए का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सर्वश्रेष्ठ मानकों से मेल खाते एक अच्छी पेशेवर जांच एजेंसी होना है। इसका उद्देश्य एक उच्च प्रशिक्षित और समन्वयात्मक एजेंसी बन कर राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित अन्य जांचों में उत्कृष्टता के मानक स्थापित करना है। इसकी स्थापना के 7 वर्ष के पश्चात् यह कहा जा सकता है कि राज्य पुलिस के साथ किसी भी प्रकार के टकराव के बिना एनआईए ने काफी हद तक अपनी उपयोगिता सिद्ध की है। जांच अधिक पेशेवर हो गई है। आतंकियों का डाटा बैंक केंद्रीकृत हो गया है।
2. नेटग्रिड
राष्ट्रीय आसूचना ग्रिड या नेटग्रिड एक एकीकृत आसूचना ग्रिड है जो आसूचना का व्यापक स्वरूप इकट्ठा करने के लिए कई विभागों और भारत सरकार मंत्रालयों के डाटाबेस में एक कड़ी का काम करेगी और आसूचना एजेंसियों के लिए सुलभ रूप से उपलब्ध हो सकेगी। यह आतंकवादरोधी उपाय है जिसके तहत, टैक्स और बैंक खातों के विवरण, क्रेडिट कार्ड का लेनदेन, वीजा तथा आव्रजन रिकार्ड और रेल तथा हवाई यात्राओं के रिकार्ड को सरकार के डाटाबेस में सूचना एकत्रित कर उनकी सूक्ष्म रूप से तुलना की जा सकेगी। यह संयुक्त डाटा इन ग्यारह एजेंसियों- रिसर्च एंड एनालाइसिस विंग, आसूचना ब्यूरो केंद्रीय जांच ब्यूरो, वित्तीय आसूचना इकाई, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, राजस्व आसूचना निदेशालय, प्रवर्तन निदेशालय, स्वापक नियंत्रण ब्यूरो, केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क बोर्ड और केंद्रीय उत्पाद आसूचना निदेशालय को उपलब्ध कराया जाएगा। नेटग्रिड को पूरी तरह सक्रिय किया जाना शेष है।
इसका क्रियाशील होना बाकी है। सरकार नेटग्रिड को क्रियाशील करने हेतु उपाय कर रही है। यह लगता है कि वे बहुत जल्द सफल होंगे।
3. मल्टी एजेंसी सेंटर (मैक) का पुनर्गठन
आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए मैक एक मल्टी एजेंसी सेंटर है इसका कार्य आतंकवाद, कारगिल युद्ध के बाद संबंधित प्राप्त सूचना को दैनिक आधार पर साझा करना है। मल्टी एजेंसी सेंटर (मैक) की स्थापना 2002 में दिल्ली में की गई थी और विभिन्न राज्यों की सहायक मल्टी एजेंसी सेंटरों (एसएमएसी) में आसूचना प्रयासों को सांझा करने के लिए विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। मल्टी एजेंसी सेंटर आसूचना ब्यूरो में, पुलिस, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों, रक्षा और वित्तीय आसूचना एजेंसियों सहित कई एजेंसियों के साथ आसूचना साझा करती है। विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में स्थित एस मैक के साथ भी विडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से लगातार और रियल टाइम में सूचना साझा की जाती हैं। बदले में अन्य एजेंसियाँ भी मल्टी एजेंसी के साथ सूचना साझा करती हैं। यह सेंटर 24 घंटे कार्य करता है । यह आतंकवाद विरोधीसूचना के संबंध में राष्ट्रीय मेमोरी बैंक के रूप में भी कार्य करती है। मैक को आतंकवादरोधी आसूचना के लेखीकरण और लेखा परीक्षण के लिए भी अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई है। थोड़े से कार्यकाल में मैक अपनी उपयोगिता सिद्ध करने में सफल रहा है।
4. एनएसजी के चार नए केंद्रों की स्थापना
सुरक्षा बलों की कमी को देखते हुए मानेसर के अतिरिक्त चार स्थानों मुम्बई, कोलकाता, चैन्नई और हैदाराबाद में एनएसजी के केंद्र बनाए गए हैं ताकि मुश्किल हालातों में और अधिक प्रभावशाली तरीके से कार्यवाही सुनिश्चित की जा सके।
5. तटीय सुरक्षा योजना का नवीनीकरण
मुम्बई हमले के बाद तटीय सुरक्षा को मजबूत करने की आवश्यकता महसूस हुई देश की तटीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए कई उपाय किए गए। इस संबंध में सरकार द्वारा लिए गए प्रमुख निर्णय निम्नवत हैं:
> भारत की तटीय सीमा की सुरक्षा की जिम्मेवारी तट रक्षक दल को सौंपी गई है। लेकिन समुद्री सीमा की सुरक्षा की पूर्ण जिम्मेवारी भारतीय नौसेना की है।
> तटीय राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिये गये हैं कि तटीय पुलिस स्टेशनों, चैक पोस्टों, आउट पोस्टों इत्यादि के निर्माण की स्वीकृत तटीय सुरक्षा योजनाओं को यथाशीघ्र क्रियान्वित किया जाए।
> तटीय राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिए गए हैं कि स्थानीय मछुआरों की नौकाएं/ जलपोत किराए पर लेकर तुरंत तटीय गश्त प्रारंभ की जाए ।
> तटीय राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को तट रक्षक दल के साथ सम्पर्क करके उनके तटीय क्षेत्र में पड़ने वाले घुसपैठ संभावित स्थानों का विश्लेषण करने के निर्देश दिए गए।
> जहाजरानी, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को सभी प्रकार के जलपोतों अर्थात् मछली पकड़ने या गैर-मछली पकड़ने वाले जलपोतों के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को सरल और कारगर बनाने के निर्देश दिए गए हैं।
> तटीय गांवों में रहने वाले सभी लोगों एवं मछली पकड़ने वाले सभी व्यक्तियों को पहचान पत्र जारी करना ।
2.7.3 कानूनी रूपरेखा
आतंकवाद से निपटने के लिए पहला विशेष अधिनियम टाडा (टीएडीए) था जो कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद लागू किया गया। परंतु टाडा के दुरुपयोग किए जाने के आरोप लगने के पश्चात् 1995 में इसे समाप्त कर दिया गया और दिसम्बर 2001 में संसद पर हमले के बाद पोटा (पीओटीए) अधिनियम बनाया गया। वर्ष 2004 में पोटा को भी समाप्त कर दिया गया। 26/11 मुम्बई हमले के बाद यूएपीए संशोधन अधिनियम दिसम्बर 2008 में लागू हुआ और 2012 में इसमें और संशोधन किए गए।
1. आतंकवादी एवं विघटनकारी गतिविधियाँ (निवारण) अधिनियम या टाडा अधिनियम
पंजाब आतंकवाद की पृष्ठभूमि के तहत टाडा अधिनियम एक आतंकवादरोधी कानून था जो पूरे भारत में 1985 से 1995 के बीच अस्तित्व में था (1987 में इसमें संशोधन किया गया)। दुरुपयोग के व्यापक आरोप लगने के कारण 1995 में इसे समाप्त कर दिया गया। आतंकवाद को परिभाषित करने और आतंकवादी गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए सरकार द्वारा बनाया गया यह पहला आतंकवाद विरोधी कानून था।
आतंकवाद एवं समाज विघटन की गतिविधियों का निपटारा करने के लिए कानून लागू करने वाली एजेंसियों को इस कानून से व्यापक शक्तियाँ प्राप्त थी। 24 घंटे के भीतर बंदी को न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने के लिए पुलिस बाध्य नहीं थी। बिना चार्जशीट फाइल किए आरोपी को एक वर्ष तक हिरासत में रखा जा सकता था। पुलिस अधिकारी के सामने किए गए अपराध की स्वीकृति न्यायालय में साक्ष्य के तौर पर मान्य थी और अपने को बेकसूर साबित करने की जिम्मेवारी भी आरोपी की थी। इस अधिनियम के तहत मामलों की सुनवाई हेतु विशिष्ट न्यायालय बनाए गए थे। सुनवाई गुप्त रूप से हो सकती थी और गवाहों की पहचान गुप्त रखी जाती थी। अधिनियम की धारा-7A के तहत पुलिस अधिकारी को आरोपी की सम्पति को कुक्र करने के भी अधिकार थे।
2. आतंकवाद निवारण अधिनियम 2002 (पोटा)
पोटा एक आतंक विरोधी अधिनियम है जिसे भारत की संसद ने 2002 में बनाया। यह अधिनियम भारत में कई आतंकवादी हमले, विशेष रूप से, संसद पर हमला होने के बाद बना।
इसके अनुबंध टाडा के अनुबंधों के अनुरूप हैं, इस कानून के अनुसार आरोपी को न्यायालय में चार्जशीट पेश किए बिना 180 दिनों तक हिरासत में रखा जा सकता था। इसके तहत कानून प्रर्वतन एजेंसियाँ गवाह की पहचान गुप्त रख सकती थी। पुलिस के सामने की गई अपराध की स्वीकृति को जुर्म की अभिस्वीकृति माना जाएगा । नियमित भारतीय कानून के तहत व्यक्ति न्यायालय में अपराध स्वीकृति से मुकर सकता है लेकिन पोटा के तहत नहीं । टाडा से भिन्न, इसमें एहतियाती नजरबंदी का कोई उपबंध नहीं था । पोटा को 2004 में निरसित कर दिया गया।
26/11 के बाद परिवर्तन
पहले से विद्यमान गैर-कानूनी गतिविधियाँ (निवारण) अधिनियम में कई सुसंगत संशोधन किए गए।
1. गैर-कानूनी गतिविधियाँ (निवारण) संशोधन अधिनियम (यूएपीए)
व्यक्तियों और संस्थाओं की गैर-कानूनी गतिविधियों और उससे जुड़े मामलों के निवारण के लिए यूपा एक प्रभावशाली अधिनियम है। यूपा 1967 में बना और 1969, 1972, 1986, 2004, 2008 और 2012 में इसमें संशोधन किए गए। 2012 में किए गए संशोधन में यूपा में आतंकवादी कार्यों की परिधि में आर्थिक अपराधों को भी शामिल किया गया। ‘आतंकवादी कार्य’ की परिभाषा को विस्तृत किया गया है, इसमें देश की आर्थिक सुरक्षा को खतरा पैदा करने वाले अपराधों,हथियारों के खरीदारी, आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन एकत्रित करना, भारतीय जाली मुद्रा तैयार करना आदि शामिल हैं। न्यायालयों को अपराध में लिप्त भारतीय नकली मुद्रा के बराबर की संपत्ति को जब्त करने या आतंकवादी अपराध से कमाई गई संपत्ति को जब्त करने की भी शक्तियाँ प्राप्त हैं।
यह कानून सरकार को अधिकार देता है कि वह ऐसे किसी समूह को ‘गैरकानूनी संघ’ अथवा ‘एक आतंकवादी संगठन’ घोषित करे और इस समूह या संगठन के होने वाले सदस्यों या उन्हें सहयोग देने वाले को जुर्म करार दे ।
गैरकानूनी संघ
केंद्र सरकार ने गैरकानूनी संघों की एक सूची रखी है, जिसमें आवश्यकता अनुसार संशोधन किया जा सकता है। एक बार किसी संगठन के इसमें दर्ज होने पर उसकी सदस्यता लेना यूएपीए के तहत जुर्म माना जाएगा। इस कानून के तहत उस संगठन को मिलने वाले धन पर पाबंदी लगाई जा सकती है और उसके दफ्तर की निगरानी की जा सकती है।
किसी संगठन को प्रतिबंधित करने के जिम्मेदार कारक :
> किसी संगठन की भारत से अलग होने का समर्थन करने, उसकी सम्प्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बाधित करने वाली गतिविधियाँ
> स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत की हैसियत को दुष्प्रभावित करने वाली गतिविधियाँ।
> भारत के प्रति वैमनस्य का भाव रखने वाले संगठन |
यूएपीए की पहली अनुसूची
पहली अनुसूची में शामिल कुछ प्रमुख आतंकवादी संगठन हैं
> अल-कायदा,
> बब्बर खालसा इंटरनेशनल,
> कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी), इसके सभी घटक और अग्रिम संगठन, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) – पीपुल्स वॉर, इसके सभी संघटक और अग्रिम संगठन,
> हरकत-उल-मुजाहिदीन,
> हिज्ब-उल-मुजाहिदीन,
> आईएसआईएस,
> इंडियन मुजाहिदीन और इसके सभी संघटक,
> जैश-ए-मोहम्मद,
> खालिस्तान कमांडो फोर्स,
> लश्कर-ए-तैयबा,
> लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे),
> माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी),
> नेशनल सोशलिस्ट कांउसिल ऑफ नगालैंड ( खलपांग ) (एनएससीएन-के), सभी संरचनाएं और अग्रिम मोर्चे,
> नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी), असम,
> स्टुडेंट्ज इस्लामिक मूवमेंट इन इंडिया (सिमी),
>  यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ),
> यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा), खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट ( दिसम्बर, 2018 में प्रतिबंधित),
> जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) 2019 में प्रतिबंधित ।
2. एनआईए अधिनियम, 2008 एवं विशेष एनआईए न्यायालय
2008 में संसद द्वारा एनआईए अधिनियम बनाया गया। इस अधिनियम के अनुसार एनआईए का अधिकार क्षेत्र समवर्ती है। इससे केन्द्र देश के किसी भी भाग में आतंकवादी हमले, देश की अखंडता और एकता को खतरे, बम विस्फोटों, हवाई जहाज या समुद्री जहाज के अपहरण और परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमलों से संबंधित मामलों की जांच कर सकता है।
आतंकवादी हमलों के अतिरिक्त जाली मुद्रा, मानव तस्करी, ड्रग्स या मादक पदार्थ, संगठित अपराध (गिरोहों द्वारा जबरन धन वसूलना), जहाज का अपहरण, परमाणु ऊर्जा अधिनियम का उल्लंघन, सामूहिक विनाशक हथियार अधिनियम से संबंधित अपराध भी इसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
एनआईए अधिनियम 2008 की धारा 11 और 22 के तहत एनआईए पुलिस स्टेशनों में पंजीकृत मामलों की सुनवाई के लिए विभिन्न विशिष्ट न्यायालयों को अधिसूचित किया गया है। इन न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र से संबंधित किसी भी प्रश्न का निर्णय केंद्रीय सरकार द्वारा लिया जाता है। इनकी अध्यक्षता उस क्षेत्र के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की सिफारिश पर केंद्रीय सरकार द्वारा तैनात न्यायाधीश द्वारा की जाती है। किसी विशेष राज्य की प्रवृत परिस्थितियों के आलोक में यदि ऐसा करना न्याय के हित में हो तो भारत के सर्वोच्च न्यायालय को मामलों को एक विशेष न्यायालय से दूसरे विशेष न्यायालय को हस्तांतरित करने का अधिकार है चाहे न्यायालय राज्य के भीतर हो या राज्य से बाहर । इन्हें किसी भी प्रकार के अपराध की सुनवाई करने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता – 1973 के तहत सत्र न्यायालय की सभी शक्तियाँ प्राप्त हैं। –
इन न्यायालयों द्वारा मामलों की सुनवाई प्रतिदिन सभी कार्य दिवसों में होती है और आरोपी के विरुद्ध अन्य न्यायालयों (विशेष न्यायालय को छोड़कर) में चल रहे मामलों से छूट दी जाती है। विशेष न्यायालय के किसी फैसले, सज़ा या आदेश के विरुद्ध अपील उच्च न्यायालय में की जाती है। वर्तमान में 38 विशेष एनआईए न्यायालय हैं। राज्य सरकारों को अपने राज्यों में एक या ज्यादा ऐसे विशेष न्यायालय स्थापित करने की शक्तियाँ दी गई हैं।
2.7.3.1 आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिए उठाये गए कदम
> यूएपीए के अंतर्गत आतंकवाद के लिए धन जुटाना अपराध घोषित,
> वित्तीय खुफिया इकाइयों के साथ सुरक्षा एजेंसियों की एकीकृत कार्यवाही,
> विमुद्रीकरण,
> नई करंसी (मुद्रा) में बेहतर सुरक्षा व्यवस्था,
> पीएमएलए का 2013 और 2018 में मजबूती प्रदान करना ।
> आतंकवाद वित्तपोषण प्रतिरोधक (सीएफटी) विशेष प्रकोष्ठ (गृह मंत्रालय द्वारा 2019 में गठित ) ।
2.7.4 आतंकवाद संबंधी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
चूंकि अधिकतर आतंकवादी प्रकारों के अपने अंतर्राष्ट्रीय जुड़ाव हैं, लिहाजा इन पर काबू पाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग महत्त्वपूर्ण हो गया है; उदाहरण स्वरूप भारत जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव संख्या – 1267 के तहत वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के समर्थन में अंतर्राष्ट्रीय जनमत तैयार करता रहा है। किंतु चीन उसके ऐसे सभी प्रयासों को अवरूद्ध करता है।
द्विपक्षीय और बहुपक्षीय पहल
अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद सहित अपराध से निपटने हेतु कानूनी रूपरेखा में भारत और अन्य देशों के बीच द्विपक्षीय आधार पर की गई आपराधिक मामलों में परस्पर कानूनी सहायता संधियाँ, संगठित अपराध से मुकाबले के लिए समझौता ज्ञापन / द्विपक्षीय समझौते, आतंकवाद / अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद संबंधी संयुक्त कार्य शामिल हैं। ऐसी संधियाँ/समझौते विभिन्न प्रकार के अपराधों, जैसे- आतंकवाद, मादक पदार्थों की तस्करी, धन शोधन, जाली भारतीय मुद्रा नोटों के विरुद्ध द्विपक्षीय सहयोग सुनिश्चित करने के नजरिए से किए गए हैं।
परस्पर कानूनी सहायता संधि
गृह मंत्रालय आपराधिक मामलों में परस्पर कानूनी सहायता संधियाँ करने हेतु प्रारूप मंत्रालय है जो कि जांच, अभियोजन और अपराध की रोकथाम, समन और अन्य न्यायिक दस्तावेजों की तामील कराने, वारंटों और अन्य न्यायिक कमीशनों के क्रियान्वयन और अपराध को बढ़ावा देने और उसके साधनों का पता लगाने, रोकने जब्त करने में परस्पर सहायता के व्यापक उपायों को सुदृढ़ बनाने हेतु तैयार किया गया है।
ये समझौते अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराधों, सीमा पार आतंकवाद, अपराधों और अन्य गंभीर अपराधों जैसे- मादक पदार्थों की तस्करी, धन शोधन, जाली मुद्रा, हथियारों और विस्फोटकों की तस्करी इत्यादि से निपटने में महत्त्वपूर्ण हैं। भारत ने अब तक 34 देशों के साथ इन संधियों को क्रियाशील किया है।
आतंकवाद से निपटने हेतु संयुक्त कार्य समूह ( जेडब्ल्यूजीएस)
आतंकवाद और अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध से लड़ने के लिए सूचना के आदान-प्रदान और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत बनाने हेतु आतंकवाद निरोधक संबंधी संयुक्त कार्य समूह की स्थापना हेतु विदेशी मंत्रालय नोडल प्राधिकरण है। द्विपक्षीय सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा करने के लिए भारत और अन्य देशों के बीच स्थापित आतंकवाद निरोधक संबंधी संयुक्त कार्य समूहों से सम्बंधित मुद्दों पर पी.पी. डिवीजन, एमईए के साथ एक इंटरफेस (मंच) के तौर पर कार्य करता है।
 सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 2322
सुरक्षा परिषद ने 12 दिसम्बर, 2016 को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया था। इसका मकसद आतंकवाद के प्रतिरोध के लिए द्वि-स्तर पर परस्पर न्यायिक सहयोग को बढ़ाना और उसे मजबूत करना था। इसका लक्ष्य सक्रियात्मक सहयोग के जरिये आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अंतर्राष्ट्रीय कानून और न्यायिक प्रणाली की प्रभावकारिता में संवृद्धि करना है। आतंकवाद के संसाधनों पर वैश्विक स्तर पर रोक लगाने और आतंकवादियों के उनके मूल देश या विदेशी धरती पर किये गए उनके गुनाहों के लिए अभियोग चलाने से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लक्ष्य से अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक सहयोग सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा परिषद में वह प्रस्ताव लाया गया है ।
यह प्रस्ताव आतंकवाद प्रतिरोधक गतिविधियों से संबंधित कुछ मुद्दों के बारे में भी है:
> यह द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संधियों और परस्पर कानूनी सहायता और प्रत्यर्पण के लिए एक राष्ट्रीय केंद्रीय प्राधिकरण के गठन जैसे व्यवहार्य अंतर्राष्ट्रीय उपकरणों का उपयोग।
>  विदेशी लड़ाकू आतंकवादियों के प्रवाह को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बनाना और संघर्ष के क्षेत्रों से उनकी वापसी और विदेशी लड़ाकू आतंकवादियों के बारे में उपलब्ध उनकी बायोमैट्रिक एवं बायोग्राफिक सूचनाएं साझा करना ।
> प्रस्ताव राज्यों को आतंकवाद के वित्त-पोषण के काम को एक गंभीर अपराध मानने और आतंकवाद को धन देने वालों को सुरक्षित पनाहगाह देने से इनकार कर देने का सुझाव देता है। यह सलाह भी देता है कि राष्ट्र-राज्य अपने वांछित आतंकवादियों के प्रत्यर्पण की प्रक्रिया सरल बनाने का सुझाव देता है।
> आतंकवाद के विरुद्ध साक्ष्य को जमा करने और उनको साझा करने तथा न्यायालय में इसकी स्वीकार्यता के लिए साक्ष्यों को व्यवस्थित रूप देने के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका बढ़ाने का सुझाव देता है।
> आतंकी गतिविधियों को रोकने के लिए बहुपक्षीय एजेंसियों जैसे यूएनओडीसी (यूनाइटेड नेशन ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम) और इंटरपोल की भूमिका ।
2.7.5 एनसीटीसी की संकल्पना
जब 26/11 के हमले के बाद आसूचना और सक्रियात्मक असफलता सामने आई तब भारत के विरुद्ध आतंकवादी हमलों का मुकाबला करने के लिए सही समय पर आसूचना प्रदान करने वाली संघीय एजेंसी की आवश्यकता महसूस हुईं। आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए सभी उपायों को प्रभावशाली तरीके से एक जगह से नियंत्रण करने हेतु एक शीर्ष निकाय एनसीटीसी की परिकल्पना की गईं। इसे अमेरिका और ब्रिटिश निकाय के प्रारूप की तर्ज पर बनाया गया। इसकी अवधारणा तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने की थी। इस अवधारणा के तहत एनसीटीसी को आईबी के प्रशासनिक नियंत्रण में रखा जाना था।
एनसीटीसी की आलोचना
एनसीटीसी की संकल्पना की निम्नलिखित बिन्दुओं पर आलोचना की जाती है:
> संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार कानून और व्यवस्था राज्य का विषय होता है। बिना राज्य सरकार को शामिल किए स्वतंत्र रूप से जांच करना, तलाशी लेना और व्यक्तियों को गिरफ्तार करने की एनसीटीसी को प्रदत्त शक्तियों को राज्य की शक्तियों के उल्लंघन के रूप में देखा जा रहा है और तदानुसार इससे राजनीति में एक तूफान खड़ा हुआ।
> आसूचना एजेंसियों को गिरफ्तारी का अधिकार न देने के नियम का भी उल्लंघन हुआ है। इससे आसूचना एजेंसियों के सामने भी कई सक्रियात्मक समस्याएं उत्पन्न होती है।
> सभी प्रकार के आतंकवाद रोकने से संबंधित आसूचना प्रबन्धन के लिए नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर (एनसीटीसी) एक उत्कृष्ट एजेंसी हो सकती है। आसूचना इकाई के अतिरिक्त हमें सामरिक महत्त्व की योजना बनाने वाली, जांच और कार्यान्वयन करने वाली संस्था की भी आवश्यकता है। एक योजना बनाने वाली संस्था को निष्पादन करने वाली एजेंसियों से पृथक् किए जाने की आवश्यकता है और प्रत्येक को पेशेवर प्रमुख के तहत रखा जाना चाहिए । इसे गृह मंत्रालय के अधीन आसूचना ब्यूरो (आईबी) के एक अनुलग्नक के रूप में रखा गया है।
> जहां पर तलाशी लेने, आतंकवादी को गिरफ्तार करने के लिए आपरेशन चलाए जाने की आवश्यकता हो तो क्या रास्तों का पता लगाने, अनुवादकों, चिकित्सा सहायता और मृतकों, घायलों और अन्य कानूनी मामलों के प्रबंधन के लिए राज्य पुलिस को शामिल करना आवश्यक है। मामलों की निगरानी सहित दीर्घकालिक जांच बिना स्थानीय पुलिस की सहायता से करना आसान नहीं है।
समावेशन, रोकथाम और जांच पड़ताल में पुलिस की भूमिका की उपेक्षा नहीं की जा सकती। काउंटर आतंकवाद में सज़ा के मुकाम तक ले जाने के लिए रोकथाम, समावेशन और जांच-पड़ताल ये तीन सुस्पष्ट चरण हैं। केवल तत्परता और कार्यवाही योग्य आसूचना आतंकवादी हमले को नहीं रोक सकती। प्रभावशाली पुलिस कार्यवाही जाँच करने के लिए भरोसेमंद तकनीकी बुनियादी ढांचा, खतरे का मुकाबला करने के लिए तत्परता और लोगों के प्रयास इसी सिक्के का दूसरा पहलू है। क्षेत्र में स्थापित तकनीकी बुनियादी ढांचे से प्राप्त सूचना की मॉनिटरिंग या पुलिस कार्यवाही कौन करने जा रहा है। लोगों के प्रयासों को कौन एकीकृत करेगा। राज्य सरकारों और स्थानीय पुलिस की सहायता के बिना ये कार्य कैसे किए जा सकते हैं?
आतंकवादी हमले होने पर घटना स्थल पर पहुंचने वाला पहला व्यक्ति निरपवाद रूप से स्थानीय पुलिस होगी। जब भी आतंकवादी हमला होता है तो तुरंत हिंसा को रोकने, भीड़ एवं यातायात को नियंत्रित करने और आतंकवादियों की संभावित कार्यवाहियों को रोकने की आवश्यकता होती है जबकि ऐसी योग्यता केंद्रीय एजेंसियों के पास नहीं है। साक्ष्यों की सुरक्षा, गवाहों का संरक्षण, मारे गए व्यक्तियों के रिश्तेदारों एवं दोस्तों को संभालना और मीडिया प्रबन्धन इत्यादि समस्या के अन्य पहलू हैं। इनसे केवल राज्य पुलिस ही निपट सकती है। तब हम क्यों राज्यों को अंधकार में रखना चाहते हैं।
राज्य पुलिस के सामर्थ्य को बढ़ाया जाना चाहिए। आसूचना, निगरानी, आधुनिक हथियारों, नई तकनीक, प्रशिक्षित जनशक्ति में वृद्धि की जानी चाहिए ।
राज्य पुलिस के साथ प्रभावशाली समन्वय और समेकित नियंत्रण की आवश्यकताः  प्रशासनिक कुशलता के लिए एकीकृत नियंत्रण हमेशा बेहतर होता है बशर्ते कि इस पर राजनीतिक सर्वसम्मति हो। लेकिन संघीय ढांचे मे यह आसान नहीं। इसके दुरुपयोग की अधिक संभावनाएं हैं जो कि आगे भविष्य में देश के लिए खतरनाक होंगी। इसलिए इस केंद्रीय एजेंसी को राज्य पुलिस के साथ समन्वय बनाकर कार्य करना चाहिए न कि राज्य से स्वतंत्र रूप से।
इसलिए हम कह सकते हैं कि एनसीटीसी वर्तमान रूप में केंद्र प्रभावित है जो कि संघीय ढांचे में राज्यों द्वारा स्वीकृत योग्य नहीं है। हमें स्थानीय संलिप्तता सहित संतुलित नजरिये की आवश्यकता है।
2.8 आतंकवाद के खिलाफ भारत के स्तर पर तैयारियों का विश्लेषण
 आतंकवाद-रोधी एजेंसियों की चार प्रमुख भूमिकाएं निम्नवत् हैं:
> आसूचना एकत्रित करना
> प्रशिक्षण एवं आपरेशन
> जांच
 > अभियोजन
प्रत्येक की भूमिका का नीचे विश्लेषण नीचे किया गया है:
1 आसूचना एकत्रित करना
वर्तमान में यह कार्य राज्य पुलिस और केंद्रीय सरकार एजेंसियों द्वारा किया जा रहा है। 26/11 के बाद स्थापित नेटग्रिड और मैक बहुत ही उपयोगी है। वित्तीय लेन-देन, पासपोर्ट, वीजा से संबंधित अपराधों, सीमा पार घुसपैठ जाली मुद्रा की वसूली इत्यादि से संबंधित जानकारी और महत्त्वपूर्ण सूचनाएं सरकारी एवं गैर-सरकारी एजेंसियों से इकट्ठा कर परस्पर मिलान करने की अभी भी जरूरत है ताकि आतंकी गतिविधियों की जांच एवं पर्दाफाश करने में मदद हो सके। “
हमें समाज, मीडिया, कॉर्पोरेट घरानों, होटल मालिकों इत्यादि को शिक्षित और प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है और ये आसूचना एकत्रित करने के काम में सहायता कर सकते हैं। आतंकवादी हमलों को रोकने में जनता की भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण है जिसके बारे में बहुत सावधानी से कार्य करने की आवश्यकता है। संदिग्ध व्यक्तियों या सामग्री के बारे में बिना किसी उत्पीड़न के, भय के, सभी आयु वर्ग और लिंग के व्यक्तियों को छोटी-से-छोटी सूचना प्रदान करने के लिए सक्षम बनाने हेतु एक प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है। आतंकवाद को नियंत्रित करने के लिए जनता के साथ मिल कर कार्य करने हेतु पुलिस को प्रशिक्षित किए जाने की आवश्यकता है। । इस संबंध में लोगों को शिक्षित करने के लिए निरंतर अभियान चलाने की आवश्यकता है। इस मोर्चे पर जनता के बीच जागरुकता बढ़ी है लेकिन अपेक्षा से अभी भी हम बहुत दूर हैं।
 2.8.2 प्रशिक्षण एवं आपरेशन
प्रशिक्षण एवं उपकरणों के संबंध में राज्य पुलिस की क्षमता सीमित है। पिछले पांच वर्षों से केंद्रीय सरकार की एजेंसियों ने अपनी क्षमता को बढ़ाना शुरू किया है लेकिन अभी और सुधार की गुंजाइश है।वर्तमान में आपरेशनों के लिए विभिन्न राज्य की पुलिसों के साथ आईबी समन्वय की भूमिका निभाती है। परन्तु यदि एक ही समय में हमें कई राज्यों में आपरेशन एक साथ करना हो तो इसके लिए कोई एकीकृत कमांड नहीं है। परंतु कुछ राज्यों के पास वांछित सामर्थ्य भी नहीं है। इसलिए पूरे देश में आपरेशनों के समन्वय के लिए एक केंद्रीय एजेंसी की आवश्यकता है लेकिन इस केंद्रीय एजेंसी को राज्य पुलिस के साथ मिलकर काम करना चाहिए न कि राज्य पुलिस से स्वतंत्र हो कर ।
● 2.8.3 जांच
एनआईए का गठन बहुत ही स्वागत योग्य कदम है और अब तक यह ठीक प्रकार से कार्य कर रहा है। यदि हम राज्य पुलिस की जांच करने की योग्यता को देखें तो पायेगें कि इसमें अभी भी सुधार करने की गुंजाइश है। यदि एक केंद्रीय एजेंसी आतंकवाद के ऐसे सभी मामलों, जो विभिन्न राज्यों में हुए हैं और आपस में जुड़े हैं, की जांच करे तो ऐसे मामलों की जांच भी बेहतर तरीके से हो सकेगी। हमारे पास देश के अन्दर और देश से बाहर सक्रिय विभिन्न आतंकवादी नेटवर्क का अच्छा डाटा बैंक तैयार हो जाएगा।
● 2.8.4 अभियोजन
हमारी न्यायिक व्यवस्था बहुत ही सुस्त है और इसके प्रक्रियात्मक पहलुओं में काफी समय व्यतीत होता है। आतंकवादी मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए विशेष द्रुतगति (फास्ट-ट्रैक) न्यायालयों की स्थापना की जानी चाहिए। इस दिशा में हमें बहुत सुधार करने की आवश्यकता है। एनआईए एक्ट में विशेष न्यायालयों का प्रावधान किया गया है
2.9 बेहतरी की संभावना
आतंकवाद के खतरे का मुकाबला करने के लिए एक विस्तृत रणनीति की आवश्यकता है जिसमें सरकार, राजनीतिक दलों, सुरक्षा एजेंसियों, नागरिक समितियों और मीडिया को एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।
राजनीतिकः देश में एक मजबूत राजनीतिक सर्वसम्मति बनाई जानी चाहिए जिसमें राष्ट्रीय हित सर्वोपरी हो। चूंकि राष्ट्रहित के मामलों पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। इनकी चर्चा मीडिया में या किसी अन्य सार्वजनिक मंच पर नहीं की जानी चाहिए। इनका निर्णय वोट बैंक की राजनीति या पार्टी की विचारधारा के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए।
विधिकः आतंकवाद के विरुद्ध हमें एक सख्त अधिनियम की आवश्यकता है। हमें ऐसी फास्ट-ट्रैक न्यायालयों की आवश्यकता है जो 3-4 माह में फैसला दे सके। आतंकवादियों के विरुद्ध पुलिस के पास शक्तियाँ सीमित हैं। आतंकवाद कानून व अन्य अपराध कानून में कोई ज्यादा अन्तर नहीं है। उदाहरण के तौर पर दोनों मामलों में हिरासत में रखने की अवधि केवल 24 घंटों की है। कई बार आतंकवादी को गिरफ्तार करने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर कार्यवाही करने की आवश्यकता होती है जिसके कारण आतंकवादी को न्यायालय में पेश करना मुश्किल हो जाता है। हमें अपराधिक न्याय व्यवस्था में एक ऐसी प्रक्रिया विकसित करने की आवश्यकता है
 जिसमें सुनवाई और दोषसिद्धि 3 से 4 माह में हो जाय ए तब तक लोगों की याददाश्त ताज़ा होती है। न्यायिक पद्धति में बचाव के रास्ते और न्याय में देरी भी आतंकवादियों को हिंसा में लिप्त होने के लिए निर्भिक बनाती है। सख्त कानून बचाव के रास्ते बंद होने और बिना देरी के न्याय मिलने से परिवार वाले भी अपने सदस्यों को आतंकवाद के कार्य में लिप्त होने से रोकने में भूमिका निभाएंगे।
पुलिसः राज्य पुलिस को मजबूत बनाना, उनकी प्रशिक्षण क्षमताओं में वृद्धि करने, निगरानी करने, जांच करने और ऑप्रेशन के लिए आधुनिक उपकरण मुहैया करवाना समय की मांग है। हमें आधुनिक वैज्ञानिक फोरेंसिक प्रयोगशालाओं की जरूरत है। अधिकतर आतंकवादी साइबर नेटवर्क के माध्यम से काम कर रहे हैं। इसलिए साइबर क्राइम के विरुद्ध विशेष उपकरणों की जरूरत है। मीडिया: आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में मीडिया की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है। मीडिया प्रायः राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर अनावश्यक बहस में लिप्त होता है। लोकतंत्र में बहस का हमेशा स्वागत है परंतु कुछ मामलों में मीडिया को अधिक निर्लिप्त दृष्टिकोण रखना चाहिए। उदाहरण के तौर पर क्या सिमी पर प्रतिबंध लगाना चाहिए या नहीं। यह राष्ट्रीय नीति का एक स्पष्ट मामला है और इसका निर्णय राष्ट्रीय हित के आधार पर लिया जाना चाहिए न कि मीडिया में बहस के आधार पर। कई बार मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग पीड़ितों के मानव अधिकारों की अनदेखी करते हुए, आतंकवादियों के मानव अधिकारों की चर्चा ज्यादा करते हैं । जनताः आम जनता को हमारे पड़ोसी देशों के बुरे इरादों के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक, दोनों समुदायों को धार्मिक सद्भाव और शांति के लिए मिलकर काम करना चाहिए। पर्यावरणीय जागरुकता की तरह की सुरक्षा जागरुकता विद्यालयों में एक विषय होना चाहिए, ताकि सभी नागरिक मूलभूत सुरक्षा मुद्दों के प्रति जागरुक हो और एक ही मंच पर हों ।
2.9 आतंकवाद, विद्रोह और नक्सलवाद के बीच क्या अन्तर है ?
आतंकवाद, विद्रोह और नक्सलवाद के बीच का अंतर नीचे परिभाषित किया गया है:
♦आतंकवादः राजनीतिक, धार्मिक या वैचारिक उद्देश्य के लिए योजनाबद्ध, संगठित और व्यवस्थित तरीके से हिंसा का प्रयोग करना आतंकवाद है।
यह एक सामान्य शब्द है और आतंकवाद की परिभाषा के अनुसार विद्रोह, उग्रवाद एवं नक्सलवाद आतंकवाद के विभिन्न रूप हैं।
♦विद्रोहः : सरकार को अपदस्थ करने की दृष्टि से समाज के एक वर्ग द्वारा सशस्त्र संघर्ष और हिंसक कार्यवाही ‘विद्रोह’ की परिभाषा में आता है। यहां पर महत्वपूर्ण कारक यह है कि विद्रोहियों को सदा ही जनता का समर्थन मिलता है। 1950 के दशक के प्रारम्भ में नागालैण्ड की समस्या को विद्रोह का एक उपयुक्त उदाहरण कहा जा सकता है।
♦नक्सलवाद: कम्युनिस्ट छापामारों का हिसंक गतिविधियों के माध्यम से राज्य को अस्थिर करना ‘नक्सलवाद’ है। भारत में नक्सलवाद अधिकतर माओवादी विचारधारा पर आधारित है जिसके माध्यम से वे लोगों की सरकार स्थापित करने के लिए सरकार को अपदस्थ करना चाहते हैं।
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