आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा | internal Security

आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा | internal Security

1.1 आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा 

आंतरिक सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करने से पूर्व हम संक्षेप में देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के फर्क को समझेंगे।

एक देश की अपनी सीमाओं के अंदर की सुरक्षा आंतरिक सुरक्षा है। इसमें अपने अधिकार क्षेत्र में शांति, कानून और व्यवस्था तथा देश की प्रभुसत्ता बनाए रखना मूलरूप से अंतर्निहित है। बाह्य सुरक्षा से आंतरिक सुरक्षा कुछ मायनों में अलग है, क्योंकि विदेशी आक्रमणों से सुरक्षा प्रदान करना बाह्य सुरक्षा है। बाह्य सुरक्षा की जिम्मेवारी देश की सेना की है, जबकि आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेवारी पुलिस के कार्य क्षेत्र में आती है, जिसमें केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों द्वारा मदद प्रदान की जाती है।

भारत में आंतरिक सुरक्षा का उत्तरदायित्व गृह मंत्रालय का और बाह्य सुरक्षा की जिम्मेदारी रक्षा मंत्रालय की है। कई देशों में गृह मंत्रालय को आंतरिक मामलों का मंत्रालय भी कहा जाता है।

1.1.1 खतरों का वर्गीकरण

कोटिल्य ने अर्थशास्त्र में लिखा है कि एक राज्य को चार प्रकार के खतरों का जोखिम हो सकता है:

> आंतरिक

> बाह्य

> आंतरिक सहायता प्राप्त बाह्य

> बाह्य सहायता प्राप्त आंतरिक

भारत की आंतरिक भारत की आंतरिक सुरक्षा को कौटिल्य द्वारा बताये गये उपर्युक्त चारों प्रकार के खतरे हैं। बदलता बाह्य परिवेश भी हमारी आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित करता है। श्रीलंका, पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल और म्यांमार में होने वाली घटनाएं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारी आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित करती हैं। इसलिए आज के सूचना और डिजिटल युग में देश की सुरक्षा के आंतरिक अथवा बाह्य खतरे दोनों एक-दूसरे से आपस में जुड़े हैं। उन्हें एक-दूसरे से अलग करके नहीं देखा जा सकता।

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात्, 39 राज्यों को विखंडित किया गया था। इनमें से पांच राज्यों को विदेशी आक्रमण के कारण विखंडित किया गया था, जबकि 34 राज्यों को अपनी आंतरिक सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम में विफल रहने के कारण विखंडित किया गया था। इसने या तो उन राज्यों की संप्रभुता का नुकसान किया, उनका विखंडन किया, संवैधानिक तंत्र को ठप कर दिया, गृह युद्ध भड़काया, हिंसा के जरिये सत्ता परिवर्तन कराया या सैन्य तख्ता पलट हुआ । इन विफलताओं के कई जटिल कारण थे, लेकिन उन सब राज्यों में आंतरिक सुरक्षा का मुद्दा आम बात थी।
पिछले कुछ वर्षों से हमारी आंतरिक सुरक्षा का खतरा कई गुना बढ़ गया है। आंतरिक सुरक्षा की समस्या ने हमारे देश के विकास और प्रगति को प्रभावित करना प्रारम्भ कर दिया है और यह अब सरकार की मुख्य चिंताओं में से एक है।
इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि संघ लोक सेवा आयोग ने वर्ष 2013 से सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा में आंतरिक सुरक्षा को एक अलग विषय के रूप में शामिल किया है।
● 1.1.2 आंतरिक सुरक्षा के अवयव
आंतरिक सुरक्षा के मुख्य अवयव हैं:,
> देश की सीमाओं की अखंडता एवं आंतरिक प्रभुसत्ता का संरक्षण
> देश में आंतरिक शांति बनाए रखना
>  कानून व्यवस्था बनाए रखना
> विधि का कानून और कानून के समक्ष एकरूपता – बिना भेदभाव के सभी को देश के कानून के अनुसार न्याय
> डर से मुक्ति, संविधान में व्यक्ति को दी गई स्वतंत्रता का संरक्षण शांतिपूर्ण सहअस्तित्व एवं सांप्रदायिक सदभाव
1.2 आंतरिक सुरक्षा के लिए मुख्य चुनौतियां
भारत की स्वतंत्रता के साथ ही आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी कुछ समस्याएं भी सामने आईं | जम्मू एवं कश्मीर राज्य के भारत में विलय के समय से ही आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी कुछ समस्याएं उत्पन्न हो गई थीं। आज़ादी के समय हुए बंटवारे के दौरान अप्रत्याशित हिंसा हुई जिसमें लाखों लोग मारे गए। इस प्रकार सांप्रदायिकता की समस्या रूपी राक्षस आज़ादी के दौरान ही सक्रिय हो गया जो बाद में दंगों के रूप में बार-बार सामने आता रहा है ।
 मुख्य.चुनौतियां

1. भीतरी प्रदेशों में फैलता आतंकवाद

2. जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद

3. पूर्वोत्तर राज्यों में विद्रोह

4. वामपंथी उग्रवाद

5. संगठित अपराध और आतंकवाद के साथ इनका गठजोड़

6. सांप्रदायिकता

7. जातीय तनाव

8. क्षेत्रवाद एवं अंतर-राज्य विवाद

9. साइबर अपराध एवं साइबर सुरक्षा

10. सीमा प्रबंधन

11. तटीय सुरक्षा

एक उभरते हुए राष्ट्र के रूप में हमें आशा थी कि हम इन समस्याओं का समाधान कर लेंगे और राष्ट्र को नवनिर्माण और विकास के रास्ते पर ले जाएंगे, लेकिन देश के अलग-अलग भागों में उभरी आंतरिक सुरक्षा की समस्याओं ने देश के विकास में बाधा उत्पन्न की है।

भाषाई उपद्रवों, राज्यों के आपसी विवादों, धार्मिक एवं जातीय वैमनस्य इत्यादि कारणों से कई वर्षों से भारत की आंतरिक समस्याएं कई गुना बढ़ गई हैं। 1956 में भाषाई उपद्रवों के कारण देश को भाषा के आधार पर राज्यों को पुनर्गठन करने के लिए बाध्य होना पड़ा।

1950 के दशक में पूर्वोत्तर राज्यों में अशान्ति फैली, 1954 में नागालैंड में फिजो ने विद्रोह का झंडा उठाया और बाद में यह विद्रोह मिज़ोरम, मणिपुर एवं त्रिपुरा राज्यों में भी फैल गया।

1960 के दशक के अंतिम चरण में नक्सलवाद के रूप में एक नई समस्या सामने आई। स्वतंत्रता के समय भारत एक अल्प विकसित देश था और हमने देश के नवनिर्माण का कार्य प्रारम्भ किया था। विकास और तरक्की की जो प्रतिकृति हमने अपनाया वह समतामूलक एवं सर्वव्यापी विकास का था, परंतु समय के साथ यह स्पष्ट हो गया है कि हम गरीबी हटाने, बेरोज़गारी की समस्या हल करने और देश के कई दूरस्थ क्षेत्रों का विकास करने में असफल रहे हैं। इस स्थिति का कई लोगों द्वारा गलत फायदा उठाया गया और माओवाद/नक्सलवाद / वामपंथी उग्रवाद के रूप में देश की आंतरिक सुरक्षा को बहुत बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया। वर्ष 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने यह स्वीकार भी किया था कि देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए नक्सलवाद सबसे बड़ा खतरा है।

1980 के दशक में पड़ोसी देश द्वारा प्रयोजित पंजाब का उग्रवाद देखने को मिला। पंजाब में उग्रवाद का बहुत ही घातक स्वरूप देखने को मिला। इस आंदोलन को चलाने के लिए पड़ोसी शत्रु देश से सहायता मिल रही थी। 1990 के दशक में कश्मीर में फिर से राष्ट्र विरोधी बाह्य ताकतों द्वारा समर्थित आतंकवाद का दौर प्रारम्भ हुआ जो कि पिछले एक दशक के दौरान पूरे देश में फैल चुका है। अखिल भारतीय आतंकवाद का महत्त्व 26 / 11 मुंबई आतंकवादी हमले के दौरान पूरी तरह से स्पष्ट हो गया है। इसके बाद केन्द्र ने आतंकवादरोधी तंत्र को मजबूत करने लिए कई ठोस कदम उठाने प्रारम्भ किए।

अंतर्राष्ट्रीय अपराधियों / माफिया संगठनों ने संगठित अपराध और आतंकवाद के बीच गठजोड़ स्थापित कर इस प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद को और बढ़ावा दिया है। इनका धन एकत्रित करने और काम करने का तरीका मुख्य रूप से हथियारों की तस्करी, ड्रग्स की तस्करी, लेन-देन, काले धन को वैध करने (मनी लांड्रिग) और देश के विभिन्न भागों में जाली भारतीय मुद्रा नोटों को चलाना था।

साइबर सुरक्षा हमारे लिए नवीनतम चुनौती है। हम साइबर युद्ध के निशाने पर हो सकते हैं। हमारे महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठान अब पूरी तरह से साइबर पद्धति पर आधारित हैं जिन्हें खतरा हो सकता है। साइबर हमलों को रोकने की अक्षमता हमारी अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के लिए घातक हो सकती है। 2013 के विकीलीक्स इसका एक सजीव उदाहरण है। इंटरनेट और मोबाइल संचार में हुई अभूतपूर्ण क्रांति से यह बात सामने आई है कि सामाजिक मीडिया दुष्प्रचार करने और हिंसा को हवा देने में एक खतरनाक भूमिका निभा सकता है। 2012 में पूर्वोत्तर राज्यों के विद्यार्थियों का दक्षिण राज्यों से पलायन और वर्ष 2013 में मुज़फ्फरनगर के जातीय दंगे ऐसे कुछ उदाहरण हैं, जो स्पष्ट करते हैं कि कुछ समस्याओं में वृद्धि तेज़ी से बढ़ रही संचार प्रणालियों का दुष्परिणाम है।

चूंकि युद्ध का परंपरागत तरीका मनचाहा नतीजा देने में सक्षम नहीं है, ऐसे में हमारे दुश्मन अन्य उपायों के जरिये अपने नापाक मंसूबों को पूरा करेंगे। वे राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने के लिए नागरिक समाज को निशाना बनाएंगे और सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और साम्प्रदायिक कमियों खामियों का अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करेंगे। मनोवैज्ञानिक युद्धों का उपयोग करते हुए अवधारणा की लड़ाइयों की मुहिम छेड़ देंगे ।
चूंकि युद्ध का परंपरागत तरीका मनचाहा नतीजा देने में सक्षम नहीं है, ऐसे में हमारे दुश्मन अन्य उपायों के जरिये अपने नापाक मंसूबों को पूरा करेंगे। वे राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने के लिए नागरिक समाज को निशाना बनाएंगे और सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और साम्प्रदायिक कमियों खामियों का अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करेंगे। मनोवैज्ञानिक युद्धों का उपयोग करते हुए अवधारणा की लड़ाइयों की मुहिम छेड़ देंगे।

इसे चौथी पीढ़ी का युद्ध कहा जा सकता है, जहां स्वयं नागरिक समाजों से नये रंगरूट को भर्ती कर और उसको नष्ट कर देने के लक्ष्य के साथ नागरिक समाज को ही युद्धस्थल बनाया जाएगा। अब भूमि को जीतने के विचार के बजाय मनोवैज्ञानिक अभियानों के जरिये नागरिक समाजों के मन-मस्तिष्क पर नियंत्रण करना प्रमुख हो गया है। यह माना जाने लगा है कि जो नागरिक समुदायों पर प्रभुत्व जमा लेगा, अंततः वही दुनिया पर भी राज करेगा। दूसरी बड़ी समस्या है कि इन समूहों के पास अपना वैश्विक संजाल (नेटवर्क) का होना है। इनके विपरीत भारतीय पुलिस को इसे लेकर काफ़ी संघर्ष का सामना करना पड़ता है, जो राष्ट्रीय स्तर पर ही नेटवर्किंग मामले में बहुत कठिनाई अनुभव करती है ।
हमारी आंतरिक सुरक्षा के लिए सीमा प्रबंधन एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। एक कमजोर सीमा प्रबंधन विभिन्न सीमाओं से आतंकवादियों, अवैध अप्रवासियों की घुसपैठ और हथियारों, ड्रग्स और जाली मुद्रा की तस्करी में सहायक हो सकता है। पूर्वोत्तर राज्यों में अवैध प्रवासियों के खिलाफ घटनाओं में वृद्धि हुई है। यह सुरक्षा की एक गंभीर समस्या है जिसका अभी हमें संतोषजनक हल खोजना है, चाहे वह समाधान राजनीतिक हो या सामाजिक या फिर आर्थिक | हमारी सुरक्षा को लेकर कुछ गैर-परम्परागत, गैर-सैन्य समस्याएं भी हो सकती हैं जैसे-प्राकृतिक आपदा, महामारी, ऊर्जा और पानी की कमी, खाद्यान्न सुरक्षा, संसाधनों की कमी, गरीबी, आर्थिक असमानताएं इत्यादि । परन्तु इन्हें इस पुस्तक में सम्मिलित नहीं किया गया है।
1.3 आंतरिक सुरक्षा की समस्या के लिए जिम्मेवार कारक 
हमारी आंतरिक सुरक्षा की समस्याओं के लिए विभिन्न ऐतिहासिक और गैर-ऐतिहासिक पृष्ठभूमियाँ हैं। इनके बारे में विस्तार से आगामी अध्यायों में चर्चा की गई है। हालांकि कुछ मूल कारण नीचे वर्णित है:
1. शत्रु पड़ोसी
2. गरीबी
3. बेरोजगारी
4. असमान व असंतुलित विकास
5. अमीरी-गरीबी के मध्य बढ़ती खाई
6. प्रशासनिक मोर्चों पर विफलता या सुशासन का अभाव.
7. सांप्रदायिक वैमनस्य में वृद्धि
8. जातिगत जागरुकता और जातीय तनाव में वृद्धि
9. सांप्रदायिक, जातीय, भाषायी या अन्य विभाजनकारी मापदंडों पर आधारित विवादास्पद राजनीति का उदय
10. कठिन भूभाग वाली खुली सीमाएं
11. कमजोर आपराधिक न्यायिक व्यवस्था, भ्रष्टाचार के कारण अपराधियों, पुलिस एवं राजनेताओं के बीच सांठगांठ, जिस कारण संगठित अपराधों का बेरोकटोक होना आज़ादी के समय से ही पहले तीन कारक हमें विरासत में मिले। हम इन तीनों मुद्दों को तो हल करने में असफल रहे ही हैं, दुर्भाग्य से कई नए मुद्दे भी इसमें शामिल हुए हैं, जिससे हमारी आंतरिक सुरक्षा की समस्या कई गुना बढ़ गई है। उपर्युक्त सूची में चौथे, पांचवें और छठे कारक प्रशासनिक विफलताओं और सातवां, आठवां व नौवां दलगत राजनीति के कारण हो सकता है। अंतिम कारक के लिए शासकीय अक्षमता को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं। इन कारकों के कारण प्रत्येक समस्या और उभरकर सामने आई हैं और शत्रु पड़ोसी अपना हित साधने के लिए हमारी आंतरिक स्थितियों का फायदा उठाने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ते । पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की भारत में हजारों तरीकों से खूनखराबा करने की घोषित नीति है।
1.4 आंतरिक सुरक्षा सिद्धांत
हमें उपयुक्त आंतरिक सुरक्षा सिद्धांतों की आवश्यकता है जो कि निम्नलिखित व्यापक घटकों पर आधारित हो सकते हैं:
> राजनैतिक
> सामाजिक-आर्थिक
> प्रशासनिक
> पुलिस / केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल
> आसूचना (इंटेलीजैंस)
> केन्द्र राज्य समन्वय –
> सीमा प्रबंधन
> साइबर सुरक्षा
1.राजनैतिकः सर्वप्रथम हमारे लिए चुनौती के स्वरूप को जानना आवश्यक है कि वो अलगाववादी है, क्षेत्रीय है या कोई अन्य है। हमें इनके कारणों का विश्लेषण कर यह देखना होगा कि क्या मांगें संविधान के दायरे में हैं। सिद्धांत के तौर पर एक अलगाववादी आंदोलन को सख्ती के साथ समाप्त करना चाहिए। अलगाववादी तत्त्वों से निपटने के लिए हमारी नीति स्पष्ट व कानून कड़ा होना चाहिए। क्षेत्रीयतावादियों के प्रति अपेक्षाकृत कुछ नरम दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसी तरह धर्म या जाति संबंधित मांगों को, जब तक कि वे अत्यधिक विखंडनकारी न हो, सहानुभूतिपूर्ण प्रतिक्रिया मिलनी चाहिए।
2. सामाजिक आर्थिक:  सामाजिक आर्थिक देश के लिए खतरा बने कई आंदोलनों की पृष्ठभूमि में सामाजिक एवं आर्थिक कारक होते हैं। कई बार सामाजिक-आर्थिक समस्याएं बहुत असली होती हैं जिनकी जड़ में गरीबी, बेरोजगारी या विस्थापन होता है। ऐसे मामलों में सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का विश्लेषण कर सुनियोजित तरीके से, बिना भेदभाव निवारण सुनिश्चित करना चाहिए , जिससे समाज के सभी वर्गों को योजना का लाभ बराबर मिल सके सबका विकास हो सके ।
3. प्रशासनिकः  कई बार सुशासन की कमी भी राष्ट्र विरोधी तत्त्वों के लिए वरदान साबित होती है। ये लोग कुप्रबंधन, सरकारी योजनाओं में भष्टाचार, दूरस्थ क्षेत्रों में शासनतंत्र की कमी, तथा कानून का सही तरीके से लागू न होना आदि का भरपूर उपयोग करते हैं। हमें देखना होगा कि क्या प्रशासनिक तंत्र कुछ क्षेत्रों में सचमुच अक्षम हो गया है? यदि हाँ, तो शासन में सुधार करना होगा। देश की अपराधिक न्याय प्रणाली का पुनरुत्थान करने और कानून प्रवर्तन तंत्र की क्षमताओं को बढ़ाने और उन्नत करने की आवश्यकता है। पुलिस सहित सिविल सेवा तंत्र को बाहरी राजनीतिक प्रभावों से दूर रखना चाहिए । सुशासन प्रदान करना सरकार का कर्तव्य है। भ्रष्टाचार को समाप्त करना होगा, क्योंकि भ्रष्टाचार और विकास साथ-साथ नहीं चल सकते।
4. पुलिस / केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलः यह देखा गया है कि कई बार पुलिस अत्याचार के आरोप और लोगों की समस्याओं के प्रति पुलिस की संवेदनहीनता पर मतभेद, आंतरिक सुरक्षा की समस्या बढ़ाते हैं। इससे यह देखा गया है कि कई बार पुलिस और सुरक्षा बलों के खिलाफ आंदोलन किए जाते हैं। अफसपा (एएफएसपीए) इनमें से एक उदाहरण है। पुलिस को संयमित होने की जरूरत है और इसके जन-सहयोगी बनाने की जरूरत है। हमें पुलिस सुधार करने की आवश्यकता है ताकि पुलिस निष्पक्ष, पारदर्शी और व्यवहारिक बन सकें। स्थानीय हालात की समझ और क्षमताओं को भी बढ़ाने की आवश्यकता है। केंद्रीय सशस्त्र बलों और राज्य पुलिस में परस्पर समन्वय और से आंतरिक सुरक्षा के लक्ष्य को हासिल करने की जरूरत है ।
5. आसूचना:  आसूचना आंतरिक सुरक्षा का महत्त्वपूर्ण अंग है। हमें आंतरिक और बाह्य शत्रुओं से सावधान रहने की जरूरत है जो देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा खड़ा कर रहे हैं। अधिकतर मुख्य ऑप्रेशन आसूचनाओं के आधार पर किए गए हैं। हमें समय से सचेत रहने, आसन्न खतरों को निष्क्रिय करने और आवश्यकतानुसार सुरक्षात्मक कदम उठाने के लिए, रक्षात्मक के साथ-साथ आक्रामक इंटेलिजेंस की भी आवश्यकता है। विभिन्न एजेंसियों से प्राप्त आसूचनाओं को इकट्ठा करने, उनका परस्पर मिलाप करने और फिर प्राप्त सूचना के आधार पर कार्रवाई के लिए नियमित संस्थागत ढ़ाचे की भी जरूरत है। इस दिशा में मल्टी एजेंसी सेंटर (एमएसी) ने अच्छा कार्य करना शुरू किया है ।
6. केंद्र-राज्य समन्वयः केन्द्र राज्य के बीच समन्वय के अभाव ने भी आंतरिक सुरक्षा से संबंधित कई समस्याओं को बढ़ाया है। इंटेलीजैंस से लेकर ऑप्रेशन तक सभी जगह समन्वय की समस्या है। हमें एक ऐसा संस्थागत ढांचा तैयार करने की आवश्यकता है, जो केन्द्र और राज्यों के बीच समन्वय की समस्याओं को सुलझा सके और सभी स्तरों पर आपसी सहयोग सुनिश्चित कर सके।
7. सीमा प्रबन्धन: हमारे देश की लगभग 15,000 किलोमीटर लम्बी जमीनी अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं छः देशों से लगती हैं। हम हमारी जमीनी सीमाओं के तीन तरफ लगने वाले देशों- चीन, पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान ( वर्तमान में बांग्लादेश) के साथ लड़ाई लड़ चुके हैं। पंजाब और कश्मीर की सीमाओं से घुसपैठ, बांग्लादेश से अवैध अप्रवास और इंडो-म्यांमार सीमाओं से हथियारों की तस्करी की समस्याओं से भी हम जूझ चुके हैं। कश्मीरी उग्रवादी पाक अधिकृत कश्मीर में शरण लेते हैं जबकि उत्तर-पूर्व के दहशतगर्द बांग्लादेश, भूटान और म्यांमार में शरण लेते रहे हैं। इसलिए हमें आतंकवादियों की घुसपैठ, अवैध प्रवासन, हथियारों और ड्रग की तस्करी आदि रोकने के लिए, हमारी जमीनी सीमाओं की निगरानी प्रभावी रूप से करने की जरूरत है। तटीय सुरक्षा की ओर भी विशेष ध्यान देना आवश्यक है। हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि नौसेना, कोस्ट गार्ड एवं कोस्टल पुलिस का रोल सुस्पष्ट और आपस में कार्य करने में सद्भाव एवं तालमेल होना चाहिए ।
8. साइबर सुरक्षा: 2013 (विकीलीक्स) स्नोडन के खुलासे से स्पष्ट होता है कि भविष्य के युद्ध, पारंपरिक नहीं होगें, जो कि जल-थल और नभ में लड़े जाते हैं। वास्तव में यह माना जाता है कि 21वीं सदी में साइबर स्पेस ही युद्ध क्षेत्र होगा। इसलिए इस पहलू से निपटने के लिए आंतरिक सुरक्षा के लिए ठोस सिद्धांत की जरूरत होगी। भारत ने अभी इस दिशा में कार्य करना आरम्भ ही किया हैं। हमें इस पर बहुत अधिक कार्य करने की जरूरत है, ताकि हम कह सकें कि हमारे पास सुरक्षित साइबर स्पेस हैं।
1.5 भारत की बाह्य सुरक्षा : मुख्य मुद्दे
हालांकि यह पुस्तक आंतरिक सुरक्षा के बारे में है, परंतु कई मुद्दे एक दूसरे पर निर्भर हैं। अभ्यर्थियों को बाहरी सुरक्षा मोर्च से संबंध रखने वाले मुख्य मुद्दों के संबंध में भी जानकारी होनी चाहिए। संगठित अपराधों और आतंकवाद जैसे ट्रांस-सीमा मुद्दों की प्रकृति, अनियंत्रित प्रवास की चुनौती और समाज में मूलभूत परिवर्तन संगठित हैं, जिन्होंने बाहरी और आंतरिक सुरक्षा विभेद की सीमाओं को धुंधला कर दिया है।
बाह्य सुरक्षा के मोर्चे पर, भारत दो प्रमुख चुनौतियों का सामना करता है। पहली, पाकिस्तान के साथ लगी सीमा पर और दूसरी, चीन से लगी सीमा पर | भारतीय सेनाध्यक्ष ने 2018 में कहा भी था, “भारत को ढाई मोर्चे पर” चुनौतियां हैं। इसमें आधे मोर्चे से सेनाध्यक्ष का तात्पर्य आतंकवाद, आंतरिक सुरक्षा और छद्म युद्ध के मोर्चे से था।
भारत की बाह्य सुरक्षा को चुनौतियां –
1. पड़ोसी देशों से चुनौतियां
2. मध्य-पूर्व की घटनाएं
3. समुद्री सुरक्षा
4. अंतरिक्ष का सैन्यीकरण
5. साइबर स्पेस से खतरा
6. दुर्लभ संसाधनों जैसे ऊर्जा और सामरिक खनिज हेतु प्रतिस्पर्धा का गहराना
 1.5.1 पड़ोसी देशों से चुनौतियां
भारत एक वृहद भौगोलिक राष्ट्र राज्य है, जो कि कई देशों के साथ भू और समुद्री सीमा साझा करता है। ये पड़ोसी देश भारत के साथ निरंतर मैत्री संबंध बरकरार नहीं रखते। नीति और उपयोगिता इन देशों के साथ व्यवहार की प्रकृति को निर्देशित करती है।
भारत की विदेश नीति की दुखती रग सदा से इसका अपने पड़ोसी देशों के साथ खराब संबंध रही है जिसकी सीमा इसके दो बड़े पड़ोसी देशों, चीन और पाकिस्तान के साथ खराब संबंध से लेकर श्रीलंका के साथ खराब नहीं, परन्तु जटिल संबंधों (मालदीव के साथ बढ़ते) और बांग्लादेश, म्यांमार या नेपाल के साथ गहरे संबंध और भूटान के साथ नाजुक समीकरण तक है। ?
1947 में प्रादेशिक बंटवारे से जिसमें भारत और पाकिस्तान का निर्धारण किया, दोनों राष्ट्रों के बीच कई मुख्य मुद्दों पर असहमती के कारण तनावपूर्ण संबंध रहे हैं; जैसे- कश्मीर पर नियंत्रण, आतंकवाद सुभेद्य सीमा के माध्यम से घुसपैठ । चीन आक्रामक विस्तार की अपनी नीति को सक्रिय रूप से आगे बढ़ता है।
बांग्लादेश और श्रीलंका दोनों से भारत ने समय-समय पर अपने भू-भाग में शरणार्थियों के आने और इसके कारण जातीय संघर्षो का सामना किया है, जो कि आमतौर पर इन देशों में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के कारण होता है। उदाहरण के लिए भारत ने बांग्लादेश और श्रीलंका से आने वाले क्रमशः चकमा और तमिल शरणार्थियों को शरण दी है।म्यांमार भारत के लिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह आर्थिक क्षेत्र का एक अपना दायरा बनाते हुए दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन की मौजूदगी का मुकाबला करता है।
भारत और नेपाल मित्रता और सहयोग का एक अनोखा संबंध सांझा करते हैं, जिसकी मुख्य विशेषताएं खुली सीमाएं और राजनयिक व संस्कृति का लोगों का एक-दूसरे से गहरा संबंध हैं। परंतु, हाल ही में मधेशी आधारित दलों और अन्य समूहों द्वारा विरोध प्रदर्शनों के बीच 20 सितम्बर 2015 को नेपाल की दूसरी संविधान सभा ने एक संविधान प्रख्यापित किया। भारत सरकार ने चल रहे विरोध प्रदर्शनों के संबंधों में गहरी चिंता व्यक्त की और नेपाल सरकार से सभी मुद्दों को एक विश्वसनीय राजनैतिक बातचीत द्वारा सुलझाने हेतु प्रयास करने के लिए अनुरोध किया है।
भारत और मालदीव के बीच द्विपक्षीय संबंध मैत्रीय रहे हैं और सामरिक, आर्थिक और सैन्य सहयोग में काफी निकट संबंध है। परंतु वर्तमान में भारत और मालदीव के बीच राजनायिक और वाणिज्यिक रिश्ते सबसे ज्यादा खराब हैं, जब से एक तख्ता पलट ने भूतपूर्व राष्ट्रपति नाशिद को पदच्युत कर दिया। वाहिद हसन को सत्ता में ले आया और उसके पश्चात् जीएमआर द्वारा निर्मित हवाई अड्डे के संबंध में विवाद उपज गया। यहां यह बताना महत्त्वपूर्ण है कि एक 100 प्रतिशत सुन्नी राष्ट्र होने के बावजूद मालदीव हाल की घटनाओं तक इस्लामी कट्टरवाद के उदय से इतना प्रभावित नहीं था। पिछले कुछ वर्षों से, मालदीव के लोग पाकिस्तान के मदरसों और जिहादी समूह की ओर बड़ी संख्या में आकर्षित हो रहे हैं।
● 1.5.2 मध्य-पूर्व
भारत और मध्य-पूर्व के बीच प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक आदानप्रदान फला-फूला है। यह संबंध आधुनिक युग में भी जारी रहा है, भारत ने मिस्र के साथ एक मज़बूत रिश्ता बनाया है, विशेष रूप से जब से दोनों देश शीत युद्ध के दौरान गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक बने। भारत ने ईराक, ईरान, सीरिया और खाड़ी देशों के साथ द्विपक्षीय संबंध तब से बरकरार रखें हैं, जब क्षेत्र में मसालों के व्यापार में अरब का दबदबा था।
वर्तमान में मध्य-पूर्व के सुरक्षा और राजनीतिक हालात काफी अस्थिर हैं। इसे एक चेतावनी के तौर पर लेकर, पांच लघु से मध्यम अवधि की चुनौतियों की कल्पना की जा सकती है।
1. यहां तक कि पांच वर्षों के बाद भी, अरब स्प्रिंग को लिखने के लिए बहुत जल्द शुरू हो गया है और अरब के बदलाव की वजह से जो उसके पाठ्यक्रम को नहीं चला है। एक सर्वसमावेश रूपरेखा की कमी के बावजूद, अलग-अलग अरब देशों को एक ऐसा प्रारूप विकसित करना होगा, जो अपनी सामाजिक और जनसांख्यिकीय विशिष्टता को दर्शाता है। कोई देश अन्य दूसरे के लिए उपयुक्त मॉडल को प्रभावित या निर्धारित नहीं कर सकता है।
2. क्षेत्र में घटता अमेरिकी प्रभाव जारी रहेगा क्योंकि कोई अन्य देश या देशों का समूह वैकल्पिक नेतृत्व प्रदान करने की स्थिति में नहीं है। कुछ बाहरी शक्तियाँ प्रभाव बनाने की कोशिश करेंगी, परंतु सम्पूर्ण क्षेत्र पर उनका दबदबा नहीं होगा।
3. आईएसआईएस, धार्मिक चरमपंथ और सांप्रदायिक तनाव बने रहने वाले हैं और राजनीतिक हिंसा राज्य की स्थिरता, प्रादेशिक व्यावहार्यता और कुछ मामलों में जीवन क्षमता तक को भी कमजोर बनाए रखना जारी रखेगा।
4. इजरायल- फिलीस्तीन संघर्ष महत्त्वपूर्ण है, परंतु तत्काल समाधान की संभावना नहीं है क्योंकि दोनों पक्षों में विवेक-दूरदृष्टि और राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी है। इसके अतिरिक्त, यह क्षेत्र की मुख्य समस्या नहीं है और अरब और गैर-अरब देशों के फिलिस्तीनियों की राष्ट्रीयता विहीनता के अतिरिक्त चिंतित होने के लिए कई गंभीर समस्याएं हैं।
5. तेल की कीमतों में कमी जारी रह सकती है और यह छोटी और बड़ी दोनों ऊर्जा कंपनियों को प्रभावित करेगा। ईरान प्रतिबंधोत्तर के प्रवेश तथा कीमतों पर और अधिक दबाव डालेगा। कम तेल की कीमत भी सौर ऊर्जा जैसे गैर-हाइड्रोकार्बन ऊर्जा विकल्प के लिए खोज को प्रभावित करती है।
● 1.5.3 समुद्री सुरक्षा चुनौतियां
भारत एक समुद्री सीमाओं वाला राष्ट्र है, न केवल ऐतिहासिक परंपरा के कारण परंतु अपने भू-भौतिकीय समाकृति के कारण भी और भू-राजनीतिक परिस्थितियाँ इसे एकद्वीपीय राष्ट्र के रूप में समुद्र पर निर्भर बनाती हैं। समुद्री सीमाओं वाले राज्यों और द्वीपीय प्रदेशों के साथ ही, भारत में संभवतः अधिकांश यूरोपीय देशों की जनसंख्या से अधिक समुद्री लोग हैं। भारत की समुद्री सुरक्षा चुनौतियां निम्न तीव्रता वाले संघर्षों और समुद्री डकैती से लेकर प्रमुख शक्ति सामरिक प्रतिस्पर्धाओं तक की संपूर्ण सीमा का आवरण करती है। इसकी भौगोलिक विशिष्टता और वैश्विक समुद्री केंद्र बिंदु का संयुक्त अटलांटिक – प्रशांत से भारत – प्रशांत सातव्य खिसकने और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा परिदृश्य में हिंद महासागर क्षेत्र के महत्त्व शीत युद्धोत्तर युग और सबसे नवीनतम 9/11 युग में भारी वृद्धि हुई है।
● वस्तुओं, विचारों लोगों और संसाधनों में बढ़ते क्षेत्रीय और वैश्विक व्यापार के कारण पूरे हिन्द महासागर क्षेत्र में बढ़ी हुई गतिविधि ने नवीन समुद्री सुरक्षा चुनौतियों को जन्म दिया है। इनमें समुद्री डकैती, आतंकवाद और मानव दुर्व्यापार सहित गैर-राज्यकर्त्ताओं से बढ़ता खतरा; पर्यावरणीय निम्नीकरण का प्रभाव; संसाधनों का अवक्षय; जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएं और कमजोर राज्य और असफल होती संस्थाएं हैं। इन विभिन्न प्रकार की चुनौतियां का सामना इस क्षेत्र की सीमा वाले सभी राष्ट्रों से होता है। ऊर्जा की कमी वाले राष्ट्रों जैसे चीन, भारत और अन्य विकासशील देशों के पास पूरे विश्व से, विशेषकर पश्चिम एशिया से, ऊर्जा संसाधनों का भारी मात्रा में आयात करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। उनकी अर्थव्यवस्थाओं को बनाए रखने के लिए तथा ऊर्जा उत्पादों को प्राप्त करने के लिए समुद्रों पर निर्भरता प्रगतिशील रूप से विकसित हो रही है। यह इन जहाजों और उत्पादों पर भी खतरा पैदा करता है जो समुद्री डाकुओं और गैर-राज्य कर्ताओं द्वारा निशाना बनाए जा रहे हैं।
● 1.5.4 अंतरिक्ष का सैन्यीकरण
शीत युद्ध युग के दौरान, अंतरिक्ष युद्ध का अन्य रंगमंच बने बिना, भूमि पर लड़ाई का आवश्यक सहायक बना। अंतरिक्ष का सैन्यीकरण तेजी से हुआ, परन्तु अंतरिक्ष के सशस्त्रीकरण से बचा गया। क्योंकि शीत युद्ध के दौरान अंतरिक्ष सशस्त्रीकरण से बच गया, इसका अर्थ यह नहीं है कि असमयित युद्ध के नए युद्ध में भी इससे बचाया जाएगा। हम कुछ खतरों के खिलाफ उपग्रहों की सुरक्षा में सुधार कर सकते हैं, परंतु उपग्रह उन अंतरिक्ष हथियारों के आसान लक्ष्य बने रहेंगे जो टकराने पर नष्ट करने के लिए बनाए गए हैं।
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की बहुत गहरी नागरिक जड़े हैं, यह भारत को इसके विकास में सहायता करने के साधन के तौर पर प्रारंभ हुआ और इसका मुख्य केन्द्र इसके नागरिकों के दैनिक जीवन में सुधार लाने पर है। हाल ही में भारत ने अपने अंतरिक्ष प्रयासों की शैली में आकस्मिक परिवर्तन किया है। देश ने एक अधिक सैन्यीकरण दृष्टिकोण अपनाया है। जैसा कि भारत ने एक स्वदेशी प्रक्षेपास्त्र रक्षा कार्यक्रम बनाने के वृद्धित प्रयासों द्वारा उदाहरण दिया गया है। भारत के अंतरिक्ष प्रयास अंतरिक्ष की दीर्घकालीन निरंतरता को अत्यंत प्रभावित कर सकते हैं और यह अधिक ध्यान देने योग्य है।
भारत ने मार्च 2019 में ‘शक्ति’ प्रक्षेपास्त्र का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया है। इसके बाद वह अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथा ऐसा देश हो गया है, जिसके पास अंतरिक्ष की निचली कक्षा (एलओए) में घूम रहे किसी उपग्रह को मार गिराने की क्षमता है।
 1.5.5 साइबर अपराध
इस विषय पर अध्याय 9 में विस्तृत और व्यापक रूप से चर्चा की गई है।
> 1.5.6 दुर्लभ संसाधनों हेतु प्रतिस्पर्धा का गहराना
सन् 2003 में यूरोपीय संघ की यूरोपीय सुरक्षा रणनीति ने “प्राकृतिक संसाधनों हेतु प्रतिस्पर्धा” को एक वैश्विक चुनौती के रूप में चिन्हित किया। पूर्व संयुक्त राष्ट्र महासचिव काफी अन्नान द्वारा गठित खतरों, चुनौतियों और परिवर्तनों संबंधी उच्च स्तरीय पैनल की 2004 रिपोर्ट के अनुसार, “प्राकृतिक संसाधनों की कमी अशांति और नागरिक हिंसा का कारण बन सकती है। ” 2009 में पर्यावरण, संघर्ष और शांति निर्माण संबंधी विशेषज्ञ सलाहकार समूह ने यह ध्यान दिया किया कि “आगामी दशकों में वैश्विक जनसंख्या में वृद्धि के साथ ही संसाधनों की मांग भी बढ़ना जारी रहेगी और प्राकृतिक संसाधनों हेतु संघर्ष की भारी संभावना है। ” 21वीं सदी में संसाधनों की कमी को सबसे बड़े सुरक्षा खतरों में से एक माना जाता रहा है।
भारत के परिप्रेक्ष्य में भारत संसाधन स्रोत और सुरक्षा के बीच जुड़ाव को बाह्य अविर्भाव पाकिस्तान और चीन के साथ करारों से समझा जा सकता है। कुछ सुरक्षा विशेषज्ञों ने बंगाल की खाड़ी और इसमें प्राकृतिक गैस के बड़े भंडारों को भविष्य के सिनो – भारत (Sino-India) संघर्ष का स्रोत माना है। चीन ने बर्मा के साथ एक बड़ा प्राकृतिक गैस समझौता किया है और जल्दी ही श्रीलंका के साथ भी कर लेगा।
इसी तरह भारत और चीन के बीच सीमा तनावों में एक मुख्य कारक पानी है। यह तनाव क्षेत्र के सबसे समृद्ध जल क्षेत्रों के इर्द-गिर्द केन्द्रित है, विशेषकर अरुणाचल प्रदेश के संदर्भ में। अतः अरुणाचल प्रदेश का सामरिक महत्त्व, भूमि विवाद से आगे जाता है। अंततः भारत, ब्रह्मपुत्र सहित जो कि निम्न-जल भारत में बहती है, तिब्बत के पठार से निकलने वाली नदियों पर चीन द्वारा बांध निर्माण से अत्यधिक सतर्क है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *