एकाभिनय एवं मूकाभिनय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

एकाभिनय एवं मूकाभिनय में अन्तर स्पष्ट कीजिए। 

               अथवा
मुकाभिनय की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर— एकाभिनय–अभिनय का एक अन्य स्वरूप है— एकाभिनय । इस विधा के अन्तर्गत मैच पर एक ही पात्र विभिन्न पात्रों के रूप में कार्य करता है। वह अकेला ही अन्य पात्रों की भूमिका निभाता है। एक ही पात्र होने के कारण इसे एकाभिनय कहा जाता है। इसमें पात्र विभिन्न पात्रों के अनुसार भाषा का प्रयोग करता है और उसी के अनुसार हाव-भाव और अंग-संचालन करता है। वेशभूषा नहीं बदलती है।
इस विधा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि मंच पर अभिनय करने वाला पात्र अपना प्रदर्शन इस प्रकार करता है कि प्रेक्षक उस पात्र से इस प्रकार तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं कि उन्हें यह अनुभूति नहीं हो पाती कि मंच पर एक ही पात्र अभिनय कर रहा है। इसका प्रमुख कारण यह है कि अभिनय करने वाला पात्र इतनी कुशलता से अभिनय और वाणी का प्रयोग इस प्रकार करता है कि प्रेक्षक भाव-विभोर हो जाते हैं और रस-मग्न होकर एक पात्र की स्थिति को भूल जाते हैं।
मूकाभिनय–अभिनय के प्रकारों में मूकाभिनय अपना विशिष्ट स्थान रखता है। जैसा कि इसके नाम से ध्वनित होता है कि इसमें अभिनय करने वाले पात्र मूक रहते हैं, अर्थात् इसमें पात्रों द्वारा भाषा का प्रयोग नहीं होता है। अभिनय का मुख्य आधार पात्रों द्वारा प्रदर्शित हाव-भाव और अंग-संचालन होता है। पात्र की मुख- मुद्रा और अंग-संचालन ही भाषा का कार्य करते हैं। कोई पात्र इस कला में जितना दक्ष होगा, वह उतना ही सफल मूक अभिनेता माना जाएगा, क्योंकि इसमें कथ्य की अनुभूति दर्शक पात्र की भाव-भंगिमा और अंग-संचालन के आधार पर ही करता हैं।
मूकाभिनय की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—
(i) पात्रों की संख्या आवश्यकतानुसार रखी जाती है।
(ii) पात्र जिसकी भूमिका में होता है उसके अनुसार वेशभूषा और साज-सज्जा अपनाता है।
(iii) मूकाभिनय अधिक लम्बी अवधि का नहीं होता, क्योंकि लम्बी अवधि होने पर उसका प्रभाव घटता जाता है और दर्शकों में ऊब पैदा कर सकता है ।
(iv) संगीत द्वारा उसके भावों की अभिव्यक्ति अभ्यास द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है ।
(v) ज्ञानेन्द्रियों द्वारा सफल भावाभिव्यक्ति अभ्यास द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है।
(vi) पात्र द्वारा दो या तीन से अधिक बार मूकाभिनय प्रदर्शित किया जा सकता है।
(vii) प्रकाश व्यवस्था भी इस अभिनय में अपना विशिष्ट योगदान प्रदान करता है।
(viii) मंच व्यवस्था में परदे और साज-सज्जा उसके प्रभाव को बढ़ाने में सहायक होते हैं। अतः इन पर भी समुचित ध्यान दिया जाता है।
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