शिल्प मेले व कला उत्सव सौन्दर्यात्मक व कलात्मक बोध को बढ़ाने में किस प्रकार सार्थक भूमिका निभाते है ?

शिल्प मेले व कला उत्सव सौन्दर्यात्मक व कलात्मक बोध को बढ़ाने में किस प्रकार सार्थक भूमिका निभाते है ? 

उत्तर— किसी भी व्यक्ति में सौन्दर्यात्मकता एवं कलात्मक संवेदना की वृद्धि में कला उत्सवों, शिल्प मेलों एवं प्रदर्शिनयों की विशिष्ट भूमिका होती है। इससे व्यक्ति में रचनात्मक शक्ति के साथ-साथ कल्पनात्मक शक्ति का भी विकास होता है। इसके माध्यम से व्यक्ति में सौन्दर्य की अनुभूति होने के साथ-साथ उसका कला के विभिन्न तत्त्वों के प्रति आकर्षण भी बढता है जो कि कलात्मक संवेदना की वृद्धि के लिए आवश्यक है।
इसके द्वारा विद्यार्थियों की विचारधाराओं तथा कल्पना शक्तियों को प्रदर्शित करने का सुअवसर मिलता है जिससे बालकों में उत्साह, प्रेरणा, रुचि तथा विश्वास तो उत्पन्न होता ही है, उसके साथ-साथ वे दो वस्तुओं या स्थितियों का सम्बन्ध स्थापित करना भी इसी प्रकार से सीख लेते हैं। वे अपने विचारों को एक क्रियात्मक रूप दे सकते हैं। इनमें वास्तविक वस्तुएँ प्रस्तुत की जाती हैं, विद्यालय में इनका आयोजन या तो किसी विशेष विषय सम्बन्धों या किसी विशेष अवसर पर किया जाना चाहिए। जिसमें जिससे विद्यार्थियों के साथ-साथ अध्यापक को अपनी शैक्षिक प्रक्रिया को सुधारने में सहयोग मिले।
इसके अतिरिक्त विद्यार्थी इनसे निम्नलिखित लाभ प्राप्त करते हैं, जो उनकी कलात्मक एवं सौन्दर्यात्मक संवेदना की वृद्धि में सहायक है—
(i) यह अमूर्त विचारों को किसी मूर्त वस्तु के साथ सम्बन्धित करके प्रदर्शित करती है, जिससे समझने में आसानी होती हैं।
(ii) दृश्य-श्रव्य शिक्षा की उपयोगिता एवं महत्त्व से परिचित होते हैं।
(iii) प्रत्येक बच्चे का अपना अद्वितीय व्यक्तित्व होता है और उसमें अलग-अलग रुचियाँ, रुझान तथा क्षमताएँ भी होती हैं लेकिन उनको पनपने का अवसर इन आयोजनों से मिलता है। इससे बच्चों में रचनात्मक शक्तियों को एक विशेष दिशा प्रदान की जाती है।
(iv) बच्चे इन आयोजनों में सक्रिय भाग लेने तथा निरीक्षण-परीक्षण की क्षमता में प्रवीण हो जाते हैं।
(v) इसके द्वारा विचार स्पष्ट, सरल मधुर तथा सरस बन जाते हैं, जिससे मौलिक विचार को समझने में भी आसानी होती है।
(vi) रचनात्मक शक्ति, कल्पना शक्ति तथा प्रतियोगिता का विकास ये आयोजन बहुत ही सुचारु ढंग से करते हैं।
(vii) इसके द्वारा बालकों को स्वयं के कार्यों को प्रकट करने / प्रदर्शन करने का सुअवसार प्राप्त होता है ।
(viii) इससे अनुभवों को एक-दूसरे को अभिव्यक्त करने की तीव्र इच्छा उत्पन्न होगी, जिससे शिक्षा, शिक्षण तथा परीक्षण बिन्दुओं को विशेष बल मिलेगा।
इनका आयोजन करते समय बच्चों की आयु, रुचियों, रुझान, मानसिक स्तर, शैक्षिक आवश्यकताएँ आदि का ध्यान रखना चाहिए। यह आयोजन ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक पक्षों में परिवर्तन लाने में मदद करते हैं। शिक्षा जगत् में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान है। यह दृश्य सामग्री होने के कारण अनौपचारिक शिक्षा का महत्त्वपूर्ण साधन है। इसके द्वारा शिक्षा प्रत्यक्ष रूप में नहीं दी जाती किन्तु अप्रत्यक्ष रूप का आयोजन स्वतः प्राप्त होता है।
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