कक्षा-कक्ष वार्तालाप से आप क्या समझते हैं ? कक्षावार्तालाप के प्रमुख गुणों का उल्लेख कीजिए ।
कक्षा-कक्ष वार्तालाप से आप क्या समझते हैं ? कक्षावार्तालाप के प्रमुख गुणों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर— कक्षा-कक्षा वार्तालाप (Classroom Discourse )– सीखने की प्रक्रिया में कक्षा-कक्ष वार्तालाप का विशेष महत्त्व है। विद्यार्थियों के परिवेश में व्यक्तियों औरें वस्तुओं के विषय में चर्चा करना अधिक लाभदायक होता है, जिससे धीरे-धीरे इन वस्तुओं के विषय में विद्यार्थियों को जानकारी हो जाती है। इसमें शिक्षक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बालक शुद्ध भाषा में अपने भाव कहना सीखें और दूसरी ओर शिक्षक का लक्ष्य होना चाहिए कि छात्रों को वस्तुओं की जानकारी होती जाये।
वार्तालाप के गुण– कक्षा में वार्तालाप करना सीखते समय शिक्षक को वार्तालाप के निम्न गुणों को ध्यान में रखना चाहिए—
(1) सुसम्बद्धता– बातचीत में सुसम्बद्धता अथवा क्रम का होना आवश्यक है। कही जाने वाली बात में एक तार्किक क्रम होना चाहिए, जिससे कि श्रोता, वक्ता के कथन के आशय को भली-भाँति ग्रहण कर सकें, जब बातचीत में क्रमबद्धता होती है तब वह स्वतः स्पष्ट होती जाती है और श्रोता, वक्ता के अभिप्राय को समझता जाता है।
(2) गतिशीलता एवं बोधगम्यता– बोलचाल की भाषा में गतिशीलता भी आवश्यक है। भाई योगेन्द्रजीत के अनुसार, “हमारी बोलचाल तथा हमारे विचार दूसरों के लिए बोधगम्य हों, इसके लिए आवश्यक है कि हमारी भाषा में उचित गति एवं प्रवाह हो । यहाँ गति एवं प्रवाह से आशय है कि बोलते समय हम एक ही श्वास में सम्पूर्ण बात न कह दें। ऐसा करने पर कोई भी हमारी बातचीत की ओर ध्यान नहीं देगा। बोलते समय हम विराम चिह्नों का पूरा-पूरा प्रयोग करते चलें । “
(3) स्पष्टता– वार्तालाप में श्रवण एवं आत्मीकरण की दृष्टि से स्पष्टता का गुण अवश्य होना चाहिए, जिससे कि श्रोता, वक्ता के कथन के वास्तविक आशय को यथारूप समझ लें ।
(4) प्रभावोत्पादकता– वार्तालाप की सफलता के लिए उसमें प्रभावोत्पादकता के गुण का होना आवश्यक माना जाता है। श्रोता के हृदय पर वही वक्ता प्रभाव जमा पाते हैं, जो अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में सक्षम होते हैं। प्रभावशीलता का गुण श्रोता को बरबस ही आकृष्ट कर लेता है।
(5) स्वाभाविकता– स्वाभाविकता भाषा का एक महत्त्वपूर्ण गुण है। छात्रों की बातचीत में स्वाभाविकता का गुण ही होना चाहिए, जिससे वे व्यावहारिक जीवन में मुहावरेदार भाषा का प्रयोग कर सकें। बातचीत में कृत्रिमता उचित नहीं रहती। औपचारिक अवसरों पर कृत्रिम भाषा का प्रयोग किया जा सकता है। ‘आसन ग्रहण कीजिए’, ‘विराजिये’ आदि औपचारिक कथनों में कृत्रिमता का आभास है यद्यपि यह कथन अवसरानुरूप स्वाभाविक भी होते हैं ।
(6) प्रासंगिकता– प्रासंगिकता भी वार्तालाप का एक प्रमुख गुण है। प्रसंगानुरूप बात का श्रोता पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। अप्रासंगिक चर्चा असमय शहनाई बजाने जैसी होती है। इसके विपरीत उचित अवसर पर अपशब्द भी मधुर लगते हैं। अवसरानुरूप प्रयुक्त होने वाली कहावतें, चुटकले, व्यंग्य- विनोद और हँसी-मजाक न केवल अच्छे लगते हैं वरन् वे श्रोता पर सद्प्रभाव भी छोड़ते हैं ।
(7) शुद्ध एवं स्पष्ट उच्चारण– वार्तालाप को प्रभावोत्पादक एवं बोधगम्य बनाने के लिए वक्ता को अपने उच्चारण में शुद्धता एवं स्पष्टता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए अध्यापक को चाहिए कि वह छात्रों से बातचीत करते समय स्वयं शुद्ध एवं स्पष्ट उच्चारण करें तथा छात्रों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें ।
(8) मधुर भाषा का प्रयोग– वार्तालाप में मधुर एवं आकर्षक भाषा का प्रयोग करना चाहिए, जिससे श्रोता का चित्त प्रसन्न हो जाए। वार्तालाप में मधुरता एवं शिष्टता का होना अति आवश्यक है। अतः अध्यापक द्वारा छात्रों को शिष्ट भाषा का प्रयोग करना सिखाते समय शिष्टं सम्बोधन भी सिखा देना चाहिए।
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