पाठ्य पुस्तक के माध्यम से पठन कौशल कैसे विकसित किया जा सकता है?

पाठ्य पुस्तक के माध्यम से पठन कौशल कैसे विकसित किया जा सकता है?

उत्तर— पाठ्यपुस्तक द्वारा पठन कौशल का विकास पाठ्यपुस्तक द्वारा वाचन अथवा आत्म प्रकाशन हेतु पर्याप्त समय मिलता है। किसी भी विषय की व्याख्या, सारांश, वाक्य-रचना अथवा प्रश्नोत्तर से छात्रों को वाचन का प्रशिक्षण मिलता है। देखा जाए तो वस्तुतः पाठ्यपुस्तक वह साधन है, जिसके द्वारा विभिन्न विशिष्ट लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है। पाठ्यपुस्तक द्वारा प्रत्यक्ष रीति तथा अप्रत्यक्ष रीति से ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। पाठ्यपुस्तक द्वारा बालक मौखिक रूप से किए हुए प्रस्तुतीकरण द्वारा ज्ञान की प्राप्ति करता है। अतः पाठ्यपुस्तक वह महत्त्वपूर्ण साधन है जिसके द्वारा बालक ज्ञान की प्राप्ति कर सकता है । पाठ्यपुस्तक के प्रमुख उपयोग निम्नलिखित हैं—
(1) इस साधन का प्रयोग इसमें दिए हुए किसी विचार या तथ्य को कण्ठस्थ करने के लिए किया जा सकता है। शिक्षक छात्रों को कोई पाठ घर से कण्ठस्थ करने के लिए दे दिया करते हैं। दूसरे दिन बालकों से उसे मौखिक रूप से सुनते हैं, जिसमें बालकों में वाचन कौशल का पाठ्यपुस्तक की सहायता से विकास होता है ।
(2) छात्रों से इस निर्धारित पाठ का अध्ययन करने तथा उसकी रूपरेखा या सारांश लिखने के लिए कहा जाता है। इसके उपरान्त शिक्षक तथा बालक दोनों मिलकर इस सारांश पर वाद-विवाद करते हैं और उस पाठ के विषय में निश्चित धारणा बनाते हैं। इसके उपरान्त शिक्षक विवरणात्मक रूप से इस संक्षिप्त रूपरेखा को लिखने का आदेश देता है, जिससे उनके पास उसका लेखा रह सके ।
(3) शिक्षक पाठ्य पुस्तकों के पाठों के आधार पर बालकों को पृथक् कार्य निर्धारित करता है जिससे पाठ की समस्त बातों का समावेश होता है। परन्तु यह कार्य इस प्रकार निर्धारित किया जाता है जिसकी पूर्ति के लिए छात्रों को अन्य पुस्तकों, सूत्रों तथा पत्र-पत्रिकाओं से सामग्री एकत्रित करनी पड़ती हैं। इस प्रकार पाठ्य पुस्तक ज्ञानोपार्जन का आधार बन जाती है। भाषा शिक्षण में इसी रूप का उपयोग करना चाहिए क्योंकि इसमें एक तो छात्र पुस्तकालय का उपयोग करना सीख जाएँगे दूसरे वे स्वक्रिया द्वारा ज्ञान अर्जित करना सीख जाएँगे।
(4) बालक भाषा की पाठ्य पुस्तक को पढ़ते हैं और इस प्रकार क्रमानुसार कक्षा के सभी बालक भाषा की पुस्तक को पढ़ते जाते हैं और पाठ पूरा हो जाता है। शिक्षक बालकों की ग्राह्यता को जाँचने के लिए बीच-बीच में प्रश्न पूछता रहता है। स्पष्ट है कि वाचन कौशल का विकास पाठ्यपुस्तक के माध्यम से अत्यन्त सरलता से किया जा सकता है।
(5) इसका उपयोग पाठ को पूर्णतया रटने हेतु नहीं किया जाता है अपितु रटने के साथ-साथ समझने के लिए भी किया जाता है। इस प्रकार के प्रयोग द्वारा बालकों में अर्जित ज्ञान को अपने शब्दों में अभिव्यक्त करने की शक्ति उत्पन्न की जा सकती है। इस प्रकार उनकी अभिव्यंजना शक्ति तथा लेखन कला का विकास किया जाता है।
पाठ्यपुस्तकों द्वारा छात्रों की निपुणता बढ़ती है तथा उनके पढ़ने का स्वभाव उत्पन्न करती है। वाचन कौशल के विकास के साथ-साथ बालकों की स्मरण शक्ति का विकास होता है। साथ ही पाठ्यपुस्तक द्वारा छात्रों तथा शिक्षकों के समय की बचत होती है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि पाठ्यपुस्तकों, वाचन कौशल के कक्ष विकास का महत्त्वपूर्ण साधन है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *